पर्वतीय जीवन का शायद ही कोई ऐसा पक्ष हो जिस पर नरेंद्र सिंह नेगी की नजर न पड़ी हो और जिस पर उन्होंने गीत की रचना कर उसे अपना मधुर कंठ न दिया हो। उत्तराखंड के खेतों-खलिहानों, जंगलों में घास-लकड़ी लेने अथवा मवेशियों के साथ गई घसेरियों और ग्वैरों, पानी के स्रोत धारा-मंगरों, शादी-विवाह अथवा धार्मिक कार्यक्रमों, घरों और देवालयों अर्थात यत्र-तत्र सर्वत्र यदि कोई एक चीज मौजूद है तो वह है नरेंद्र सिंह नेगी की आवाज।
उत्तराखंड के लोक को अपने शब्दों और मधुर कंठ से जन-जन तक पहुंचाने वाले गढ़रत्न, लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में प्रतिष्ठित संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया। उपराष्ट्रपति वैकेंया नायडू ने देवभूमि की नई पीढ़ी को उत्तराखंड के लोक, रंग, संस्कृति-सभ्यता से परिचित कराने वाले नरेंद्र सिंह नेगी यह प्रतिष्ठित सम्मान प्रदान किया। नरेंद्र सिंह नेगी को वर्ष 2018 के लिए यह सम्मान प्रदान किया गया है।
पर्वतीय जीवन का शायद ही कोई ऐसा पक्ष हो जिस पर नरेंद्र सिंह नेगी की नजर न पड़ी हो और जिस पर उन्होंने गीत की रचना कर उसे अपना मधुर कंठ न दिया हो। उत्तराखंड के खेतों-खलिहानों, जंगलों में घास-लकड़ी लेने अथवा मवेशियों के साथ गई घसेरियों और ग्वैरों, पानी के स्रोत धारा-मंगरों, शादी-विवाह अथवा धार्मिक कार्यक्रमों, घरों और देवालयों अर्थात यत्र-तत्र सर्वत्र यदि कोई एक चीज मौजूद है तो वह है नरेंद्र सिंह नेगी की आवाज। नरेंद्र सिंह नेगी का रचना संसार वास्तविकता के धरातल पर बना है। यही वजह है कि उनके गीतों में भावनाओं का ज्वार होता है। सबसे खास बात यह है कि आज के दौर में भी उनके नए गीतों को पूरी शिद्दत से पसंद किया जाता है। उन्होंने मुख्यत: खुद ही गीतों का सृजन किया, संगीत और स्वर दिया। लेकिन कुछ गीत उन्होंने अन्य कवियों के भी गाए। अनेक लोकगीतों को उन्होंने नया रूप देकर श्रोताओं के सामने रखा।
शुरूआती दौर में नेगी ने गढ़वाली गीत माला के नाम से एकल गीतों के एलबम निकाले। गढ़वाली गीतमाला के 10 भाग निकले। बाद में उन्होंने अपने एलबम को अलग-अलग नाम देना शुरू किया और अन्य गायक-गायिकाओं के साथ गाने लगे। नाम वाला उनका पहला एलबम बुरांश था। नरेंद्र सिंह नेगी अनेक गढ़वाली फिल्मों में भी गीत, संगीत और अपनी आवाज दी है। इन फिल्मों में चक्रचाल, घरजवैं, मेरी गंगा होली मैं मा आली, कौथिग, बंटवारू, छम घुंघरू, जय धारी देवी, सुबेरौ घाम आदि शामिल हैं। यही नहीं आज के दौर में भी उत्तराखंड की संस्कृति को लोगों तक पहुंचाने की सतत साधना में जुटे हुए हैं। पांच दशक लंबे इस सफर में उनका स्वर सम्मोहन जस का तस बना हुआ है। वह आज यू-ट्यूब चैनल पर भी उतने ही लोकप्रिय हैं, जितने रेडियो, कैसेट्स और सीडी के दौर में थे।
नेगी जी की रचनाओं की तीन पुस्तकें खुचकण्डि, मुट बौटिक रख और गाण्यूं की गंगा स्याण्यूं का समोदर भी प्रकाशित हो चुकी है। उनके बहुचर्चित गीत नौछमी नारैणा पर गाथा एक गीत की नामक पुस्तक भी प्रकाशित हुई है। नरेंद्र सिंह नेगी का जन्म 12 अगस्त 1949 को पौड़ी गांव में हुआ। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जो उनकी रचनाओं एवं गीतों के जरिए उत्तराखंडी समाज के लिए आईना बने। वह सिर्फ एक लोकगायक नहीं, एक ऐसे कलाकार, संगीतकार और चितेरे कवि हैं जो अपने पारंपरिक परिवेश की दशा-दिशा को लेकर काफी भावुक एवं संवेदनशील है। एचएनबी केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर द्वारा उन्हें लोककला और संगीत के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान के लिए डॉक्टर ऑफ लेटर्स की उपाधि प्रदान की गई है।
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