प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उत्तरकाशी जिले के मुखबा और हर्षिल में प्रस्तावित कार्यक्रम से पूर्व गंगा विचार मंच के प्रान्त संयोजक लोकेंद्र सिंह बिष्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 27 फरवरी को उत्तरकाशी जिले के मुखबा और हर्षिक का दौरा करने वाले है। इस दौरे से पूर्व गंगा विचार मंच के प्रान्त संयोजक लोकेंद्र सिंह बिष्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। इस पत्र में लिखा गया है कि मां गंगा यमुना सहित देश की सभी नदियों में वस्त्र, पूजा, श्रृंगार आदि विसर्जित करने पर रोक लगे, और नदियों में जल समाधि पर प्रतिबंध लगे। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से अनुरोध किया है कि इस पत्र के विषयों को ‘मन की बात’ में शामिल किया जाये।
गौरतलब है कि मां गंगा जी के धाम गंगोत्री-यमुनोत्री में श्रद्धालु महिलाएं मां गंगा-यमुना जी में बडी संख्या में वस्त्र आदि प्रवाहित कर मां गंगा-यमुना को उसके ही उद्गम में मैला करने का काम कर रहे हैं। गंगोत्री-यमुनोत्री में एक दिन में 10 से 15 हजार श्रद्धालु मां गंगा-यमुना में पवित्र स्नान करते हैं। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं द्वारा भी मां गंगा-यमुना जी को वस्त्र आदि भेंट कर जलधारा में प्रवाहित करते हैं।
दुःखद पहलू यह है कि महिला तीर्थयात्रियों द्वारा बड़ी संख्या में मां गंगा-यमुना जी में श्रृंगार का सामान जैसे चूड़ी, बिन्दी, लिपिस्टिक, कंगी, कॉजल, चुनरी, सीसा, सिन्दूर व सभी श्रृंगार के वस्त्र धोती, साड़ी प्रवाहित की जाती है। बड़ी संख्या में कई श्रद्धालु पुराने कपड़े भी विसर्जित करते हैं।
गंगा विचार मंच के प्रांत संयोजक विगत कई वर्षों से गंगोत्री धाम और यमुनोत्री धाम में गंगा प्रहरियों के साथ धाम में आने वाले सभी श्रद्धालुओं से अपील करता आ रहा है, कि जलधारा में किसी भी तरह के वस्त्र, पूजा, श्रृगांर सामग्री भेंट कर उसे प्रदूषित न करें। गंगा विचार मंच विगत 10 वर्षों से गंगोत्री और यमुनोत्री धाम में मां गंगा और मां यमुना जी की जलधारा से बहाये गये वस्त्रों को एकत्रित करने का कार्य करता आ रहा है।
आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अथक प्रयासों से गंगा स्वच्छता पर बहुत कुछ होने के बावजूद मां गंगा जी व्यथित व दुःखी है। दरअसल साधु समाज के दशनामी संप्रदाय के गिरीपर्वत, सागर, पुरी, भारती, सरस्वती वन, अरण्य तीर्थ और आश्रम के सन्यासियों और समाज के कुछ और वर्गों में शरीर त्यागने पर जलसमाधि देने की परंपरा है।
मां गंगा जी में तरह-तरह के प्रदूषण के साथ ही सबसे बड़ी समस्या जलसमाधि की भी है। भारतीय समाज के विभिन्न हिस्सों व विभिन्न वर्गों में जलसमाधि देने की परंपरा है जो कि ठीक नहीं है। कई साधु संतो ने गंगा में प्रदूषण की समस्या को देखते हुए भूसमाधि लेने की घोषणा की है। यदि प्रधानमंत्री अपने ‘मन की बात’ के आगामी अंक में इन दो विषयों को शामिल कर लें तो गंगा स्वच्छता अभियान में ये मील का पत्थर साबित होंगे।
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