ड्रोन की मदद से बिहार में अवैध शराब माफियाओं पर ‘स्ट्राइक’, उत्तराखंड का लाल, मचा रहा धमाल

ड्रोन की मदद से बिहार में अवैध शराब माफियाओं पर ‘स्ट्राइक’, उत्तराखंड का लाल, मचा रहा धमाल

वेदांन्त बिष्ट ने उत्तराखंड से ही ड्रोन उड़ाने की तकनीक सीखी और अब रिलायंस समूह की हिस्सेदारी वाली देश की प्रतिष्ठित कंपनी एस्टीरिया एयरोस्पेस में डीजीसीए द्वारा सर्टिफाइड ड्रोन पायलट के तौर पर काम कर रहे हैं। उत्तराखंड में ड्रोन एप्लीकेशन सेंटर की स्थापना का पहला प्रस्ताव हिल-मेल के फ्लैगशिप कार्यक्रम ‘रैबार’ के साल 2017 में देहरादून में आयोजित पहले संस्करण में नेशनल टेक्नीकल रिसर्स आर्गेनाइजेशन (एनटीआरओ) के तत्कालीन प्रमुख आलोक जोशी ने रखा था।

सामूहिक मंथन से निकलने वाले विचार कितना लाभ देते हैं, इसका एक बड़ा उदाहरण हिल-मेल का फ्लैगशिप कार्यक्रम रैबार है। साल 2017 की बात है, देहरादून में रैबार के पहले संस्करण का आयोजन किया गया था। इसी कार्यक्रम के दौरान नेशनल टेक्नीकल रिसर्च आर्गेनाइजेशन (एनटीआरओ) के तत्कालीन प्रमुख आलोक जोशी ने उत्तराखंड में देश के पहले ड्रोन एप्लीकेशन सेंटर की स्थापना का विचार रखा था। कुछ ही महीनों बाद उनकी टीम ने देहरादून में इस पर काम करना शुरू किया और यह सेंटर अस्तित्व में आ गया। आज इसी सेंटर से कई ड्रोन एक्सपर्ट निकलकर अलग-अलग जगहों पर अपने हुनर का डंका बजा रहे हैं। इन्हीं में से एक हैं वेदांन्त बिष्ट, जिन्होंने अपनी बीटेक डिग्री हासिल करने के बाद इसी सेंटर में इंटर्नशिप की। 24 साल का यह युवा बिहार में अवैध शराब के खिलाफ की जा रही सबसे बड़ी कार्रवाई का अहम किरदार बन गया है। डीजीसीएस से सर्टिफाइड पायलट वेदांन्त के इनपुट पर ही बिहार में ये सारा एक्शन चल रहा है।

बिहार में नीतीश सरकार के शराब बंदी कानून को अवैध शराब माफिया धता बताकर राज्य के कई हिस्सों में अवैध शराब का धंधा धड़ल्ले से चला रहे थे। अभी तक के तौर-तरीके जब नाकाफी लगने लगे तो राज्य सरकार ने आधुनिक तकनीक की मदद लेना बेहतर समझा। अब बिहार का पुलिस-प्रशासन अवैध शराब के कारोबारियों, तस्करों की धरपकड़ और शराब के अड्डों की पहचान के लिए ड्रोन का सहारा ले रहा है। ये ड्रोन आसमान से ही शराब के अड्डों की पहचान कर लेते हैं और नीचे जमीन पर पुलिस, आबकारी विभाग गोरखधंधा करने वालों की धरपकड़ में जुट जाते हैं। राजधानी पटना समेत बिहार के अलग-अलग इलाकों में एक महीने से चल रहे इस अभियान ने शराब तस्करों की नींद हराम कर रखी है।

सबसे अहम बात यह है कि बिहार में अवैध शराब के खिलाफ ‘ड्रोन स्ट्राइक’ में उत्तराखंड का एक युवा अहम भूमिका निभा रहा है। वेदांन्त बिष्ट ने उत्तराखंड से ही ड्रोन उड़ाने की तकनीक सीखी और अब रिलायंस समूह की हिस्सेदारी वाली देश की प्रतिष्ठित कंपनी एस्टीरिया एयरोस्पेस में डीजीसीए द्वारा सर्टिफाइड ड्रोन पायलट के तौर पर काम कर रहे हैं। उत्तराखंड में ड्रोन एप्लीकेशन सेंटर की स्थापना का पहला प्रस्ताव हिल-मेल के फ्लैगशिप कार्यक्रम ‘रैबार’ के साल 2017 में देहरादून में आयोजित पहले संस्करण में नेशनल टेक्नीकल रिसर्स आर्गेनाइजेशन (एनटीआरओ) के तत्कालीन प्रमुख आलोक जोशी ने रखा था। इस प्रस्ताव के कुछ समय बाद ही देहरादून में ड्रोन एप्लीकेशन सेंटर की स्थापना को अमलीजामा पहना दिया गया।

हिल-मेल ने जब वेदांन्त बिष्ट से बात की तो वह गोपालगंज में थे। उन्होंने बताया कि मैंने ग्राफिक एरा यूनिवर्सिटी देहरादून से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया। मेरे अंदर ड्रोन को लेकर एक आकर्षण था, मैंने ड्रोन उड़ाना कॉलेज के बाद शुरू किया। उत्तराखंड में ड्रोन एप्लीकेशन सेंटर बन गया था, यह उसके बाद की बात है। ड्रोन एप्लीकेशन सेंटर में मेरे दोस्त थे तो उन्होंने मुझे ड्रोन उड़ाने की बेसिक जानकारी दी। इसके बेसिक रूल और फलाइंग की बारीकियां भी सिखाईं। इससे धीरे-धीरे मेरी रुचि बढ़ने लगी। ड्रोन एप्लीकेशन सेंटर की वजह से मुझे इसमें बहुत मदद मिली। मैंने यहां इंटर्नशिप भी की।

वेदांन्त ने बताया कि जब मैंने देहरादून स्थित ड्रोन एप्लीकेशन सेंटर में इंटर्नशिप की तो उसे प्रीति त्यागी हेड कर रही थीं। वह एनटीआरओ से थीं। आईटीडीए और एनटीआरओ के बीच में एमओयू साइन हो रखा है। उस समय एनटीआरओ से दो लोग यहां थे, उनमें से एक प्रीति त्यागी और एक गौरव थे। उनसे मुझे काफी मदद मिली, उन्होंने मुझे ट्रेनिंग के दौरान काफी आगे बढ़ाया, इसका मुझे फायदा भी हुआ। वेदांन्त बताते हैं कि देहरादून के ड्रोन एप्लीकेशन सेंटर में आईपीएस अमित सिन्हा ने भी मुझे काफी मोटीवेट किया। वह आईटीडीए को हेड कर रहे थे।

वेदांन्त ने शुरुआती ट्रेनिंग के बाद ड्रोन ऑपरेटर के तौर पर भी काम किया। वेदांन्त के मुताबिक, ड्रोन एप्लीकेशन सेंटर में इंटर्नशिप के दौरान उन्होंने सरकारी विभागों के कई अधिकारियों को भी ड्रोन संचालन के तरीके सिखाए। उन्होंने ड्रोन एप्लीकेशन सेंटर में एक साल काम किया। इस दौरान उन्होंने उत्तराखंड का पहला ड्रोन प्रोटोटाइप बनाया। इसके बाद से वेदांन्त एस्टीरिया एयरोस्पेस में यूएवी पाइलट के तौर पर काम कर रहे हैं। वह इस समय बिजनेस डेवलपमेंट विभाग में है। कंपनी के किसी भी प्रोजेक्ट में ट्रायल और डेमो की जिम्मेदारी वेदांन्त और उनकी साथी ड्रोन पायलटों की होती है। वह बताते हैं कि बिहार सरकार के साथ उनकी कंपनी का एक साल का कांट्रैक्ट है। अभी ट्रायल स्टेबल हो गया है। काफी अच्छे नतीजे मिल रहे हैं। पिछले एक महीने में बिहार के कई हिस्सों में हजारों लीटर अवैध शराब नष्ट की गई है और कई शराब तस्कर पकड़े गए हैं।

कैसे करता है काम

आधुनिक ड्रोन की मदद से करीब आधे किलोमीटर की ऊंचाई से जमीन का वीडियो और फोटो लिया जा सकता है। साथ ही ड्रोन को जिस स्थान से उड़ाया जाता है, वहां से करीब 5 किलोमीटर के रेडियस में ये घूम सकता है। आकाश में उड़ते हुए ड्रोन के कैमरे को जूम कर नीचे की तस्वीर ली जा सकती है। इससे शराब भट्टियों का पता लगाने में काफी मदद मिल जाती है। छापेमारी में जिन ड्रोन कैमरों का इस्तेमाल किया जाता है उसमें थर्मल कैमरे लगे होते हैं। इस कैमरे का फायदा यह है कि जहां शराब की भट्ठी चल रही होती है वहां के तापमान का पता सहज रूप से चल जाता है। उसके बाद यह उस जगह की नजदीक से तस्वीर लेता है, ताकि छापेमारी करने में आसानी हो।

यूसैक से सीखी जीआईएस की बारीकियां

वेदांन्त ने ड्रोन के साथ ही जीआईएस यानी भौगोलिक सूचना प्रणाली की बारीकियां भी उत्तराखंड में ही सीखीं। उन्होंने देहरादून स्थित उत्तराखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (यूसैक) में ड्रोन मैंपिंग के बाद जीआईएस प्रोसेसिंग की पूरी प्रक्रिया सीखी। वह बताते हैं कि इसमें उन्हें यूसैक के जीआईएस एक्सपर्ट हेमंत बिष्ट की मदद मिली। इस दौरान मैंने बारीकी से जीआईएस सॉफ्टवेयर को समझा। इस उपयोग ड्रोन इमेज की प्रोसेसिंग कैसे किया जाता है। वेदांन्त बताते हैं कि जब आप ड्रोन को ऑपरेट करते हैं तो क्लाइंट को फाइनल आउटपुट फॉर्म में मैप चाहिए होता है। वह भी अच्छे रेज्यूलेशन का मैप। ड्रोन की मदद से प्वाइंट 25 सेंटीमीटर के ऑब्जेक्ट को बड़ी आसानी से पहचाना जा सकता है। ड्रोन की मदद से थ्रीडी मैप भी तैयार कर सकते हैं। इसके लिए ड्रोन से कई इमेज कलेक्ट करते हैं। ऑबजेक्ट की कितनी हाइट है, कितनी गहराई है, कितना एरिया है इसका आकलन जीआईएस सॉफ्टवेयर की मदद से किया जा सकता है।

उत्तराखंड बनेगा ड्रोन मैन्युफैक्चरिंग हब

उत्तराखंड में ड्रोन का सबसे ज्यादा इस्तेमाल हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर के टूटने से आने वाली आपदाओं, भूस्खलन, फॉरेस्ट सेक्टर और टाउन प्लानिंग में हो सकता है। अभी जितने भी सरकारी कार्यालय हैं, जैसे पुलिस एसडीआरएफ, फॉरेस्ट इनमें हम मदद करते हैं। हम इनको ट्रेनिंग देते हैं और इनके पास खुद के ड्रोन होते हैं, जैसे बाढ़ आने पर एसडीआरएफ ड्रोन की मदद से लोगों की मदद कर सकती है। हमारा एक इंडीजीनियस ड्रोन है। चीनी ड्रोन इंडिया में कैंसिल हो रहे हैं। उत्तराखंड का ड्रोन सेंटर इस लिहाज से भी अहम है कि यह देश का ड्रोन का पहला आरएडंडी सेंटर भी है। जहां रिसर्च चल रही है, डेवलपमेंट चल रहा है, ड्रोन का पहला प्रोटाटाइप बना है, यहां आने वाले टाइम में मैन्यूफैक्चरिंग भी होगी।

उत्तराखंड का ड्रोन एप्लीकेशन सेंटर बहुत अहमः अनिल धस्माना

हाल ही में ऋषिकेश में आयोजित रैबार के तीसरे संस्करण में पहुंचे एनटीआरओ के प्रमुख अनिल धस्माना ने भी उत्तराखंड के ड्रोन एप्लीकेशन सेंटर के महत्व को रेखांकित किया था। उन्होंने कहा कि भारत का सबसे पहला ड्रोन एप्पलीकेशन रिसर्च सेंटर उत्तराखंड में बनाने का कारण यही था कि एनटीआरओ का सबसे बड़ा बेस देहरादून एयरपोर्ट पर है। यह बात बहुत कम लोगों को पता है। ‘नीड टू नो बेसिस’ पर वहां काम होता है। जब उत्तराखंड की विशेष परिस्थितियां और टोपोग्राफी को देखा गया तो चर्चा के दौरान यह बात सामने आई कि हमारे पास ऑलरेडी एक एस्टेब्लिशड सेंटर है। अगर किसी स्टेट में ड्रोन का कोई रिसर्च सेंटर बनाना है तो हमें उत्तराखंड से कार्य शुरू करना होगा। इसके बाद यह कार्य हमने 2018 में यहां शुरू किया। इस सेंटर के बनने के बाद हमने करीबन तीन पायलट बेसिक कोर्सेज यहां किए। इसी सेंटर में एनटीआरओ के सामूहिक प्रयासों के बाद डीजीसीए ने पहला ट्रेनिंग पायलेट कोर्स किया। वो भी यहीं देहरादून में हुआ था। जिन लोगों ने उस ट्रेनिंग कोर्स को यहां से किया, वे आज ड्रोन ट्रेनिंग कोर्स के डीजीसीए एप्रूव्ड इंस्ट्रक्टर हैं। इसलिए उत्तराखंड का ड्रोन सेंटर बहुत महत्वपूर्ण है। इस ड्रोन रिसर्च सेंटर के शुरू होने के बाद उत्तराखंड में कई जगह जब आपदाएं आईं तो यहां के अधिकारियों ने ड्रोन्स का पूरा उपयोग किया। ड्रोन्स को थोड़ा मॉडिफाई करके उन आपदाओं के दौरान इस्तेमाल किया गया। यह तो एक छोटा सा प्रयास था, आगे बड़े-बड़े प्लान हैं।

उत्तराखंड के लिए ड्रोन तकनीक सबसे अहम

अनिल धस्माना के कहते हैं, उत्तराखंड बॉर्डर स्टेट है। तिब्बत ऑटोनॉमस रीजन से लगा हुआ है। एक तरफ नेपाल का भी बॉर्डर है। ड्रोन का सिस्टेमैटिक एफर्ट करके उपयोग करना चाहें तो बॉर्डर पुलिस के लिए यह बहुत उपयोगी साधन होगा। हमारा उत्तराखंड इतना फैला हुआ है कि कई सीमांत इलाकों में मीलों तक कोई गांव नहीं हैं। वहां बॉर्डर्स में जो पेट्रोलिंग होनी चाहिए, क्योंकि बहुत रिमोट एरिया होता है, इसलिए कम होती है या सही ढंग से नहीं होती है। इस चीज के लिए ड्रोन बहुत ही ज्यादा उपयोगी साबित होगा, क्योंकि ड्रोन से आप रिमोट के जरिये भी बॉर्डर का सर्विलांस कर सकते हैं। इसके बारे में हमने चर्चा की है। मुझे उम्मीद है कि इस प्रोजेक्ट पर उत्तराखंड में आगे काम किया जाएगा। एनटीआरओ ने एक कम्युनिकेशन सिस्टम बनाया है जिसका उपयोग भूकंप, तूफान या सुनामी के हालात में किया जा सकता है। ऐसे समय पर जब आपके पास कोई भी कम्युनिकेशन सिस्टम न हो तो एनटीआरओ ने ऐसा एक मोबाइल सिस्टम डेवलप किया है जिसे आप अपने बैगपैक में भी ले जा सकते हैं। कितना वेट आप ले जाना चाहेंगे उसके हिसाब से उसका डिस्टेंस कवर होता है। यह बहुत ही नॉर्मल सिस्टम है। उसमें बहुत बड़ी कोई मशीनरी की जरूरत नहीं है। जो कॉमन मोबाइल फ़ोन हैं उन्हीं को ट्वीक करके सिस्टम को बनाया गया है। ऐसे समय जहां आपके पास कोई साधन न हो कम्युनिकेट करने का, उस स्थिति में आप टेम्परेरी दस फुट का टावर इरेक्ट कर सकते हैं। उसे आप गाड़ी, ज़मीन कहीं पर भी लगा सकते हैं। जो स्पेक्ट्रम पहले से उपलब्ध है, उसको अपने लगाए टावर के साथ कनेक्ट कर सकते हैं। इस सिस्टम में हमने टेंपररी बेस टावर बनाकर उन फ्रीक्वेंसीज को यूज़ किया है जो उस स्पेक्ट्रम में एलोटेड नहीं थीं। इससे आप 5 से 7 किलोमीटर के अंदर अपना एक नेटवर्क बना सकते हैं और किसी से भी संपर्क कर सकते हैं। मेरी उत्तराखंड के कुछ अधिकारियों से इस बारे में चर्चा हुई है कि जल्द इस सिस्टम को उत्तराखंड लाया जाएगा।

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