उत्तराखंड में कोरोना काल में 2 लाख लोग वापस अपने गांव लौटे हैं तो इन लोगों के लिए रोजगार के अवसर कैसे मुहैया कराए जा सकते हैं। रोजगार करना अच्छा है या फिर स्वरोजगार? स्वरोजगार करना चाहें और सरकार की मदद के बारे भी मालूमात है फिर भी समझ में नहीं आ रहा कि कैसे शुरुआत करें…. इन्हीं सब पर हुई चर्चा बात उत्तराखंड की।
हिल मेल की नई पेशकश ‘बात उत्तराखंड की’ लाइव शो में रोजगार और स्वरोजगार के विषय पर दिलचस्प चर्चा हुई। शो में मॉडरेटर की भूमिका में रहे वरिष्ठ पत्रकार अनुराग पुनेठा और ओपी डिमरी। रोजगार के अहम मसले पर चर्चा के लिए शामिल हुए स्वामी रामा हिमालयन यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ. विजय धस्माना, सैकड़ों किसानों के उत्पाद को बेचकर उनकी मदद कर रहे नरेश नौटियाल और पिरूल आर्टिस्ट मंजू आर. शाह।
रोजगार अच्छा या स्वरोजगार…
डॉ. विजय धस्माना ने कोरोना काल में गांव लौटे प्रवासी श्रमिकों के लिए सरकार के प्रयासों का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार ने काफी अच्छी कोशिश की है लोगों को स्वरोजगार से जोड़ने की। अगर सब कुछ ठीक रहता है तो जिस समस्या से हम पहले जूझ रहे थे कि पलायन कर लोग पहाड़ों से नीचे आ रहे थे, उस लिहाज से बहुत बढ़िया होगा। जो लोग भ्रम में हैं कि रोजगार करें या स्वरोजगार चुनें तो मैं सुझाव दूंगा कि लोग स्वरोजगार को ही चुनें। सरकार की योजनाओं का फायदा उठाएं और उत्तराखंड के हित में काम करें।
डॉ. धस्माना ने कहा कि कोरोना काल को हमें अवसर के रूप में लेना चाहिए। जो युवा निचले इलाकों में छोटे-मोटे काम कर रहा था, अगर हम उन्हें रोक सकें, उनकी हैंड होल्डिंग कर सकें….अगर 30 प्रतिशत यूथ भी रुकता है और हम उन्हें साधन दें तो तस्वीर बदल सकती है। कृषि, पर्यटन, हेल्थ टूरिज्म, होम स्टे जैसे तमाम क्षेत्र हैं। अपनी तरफ से पहल का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हम अपने विश्वविद्यालय की ओर से 150 युवाओं का चयन कर रहे हैं, जिन्हें हम होम स्टे का प्रशिक्षण देंगे। हमारे हिल कैंपस (सतपुली के पास) के 20-25 गांवों के लोगों को हमने कह रखा है कि आप फसल उगाइए चाहे राजमा, उड़द या कुछ और उसे खरीदने की जिम्मेदारी हमारी है। हम आपको पैसा देंगे। इससे उन्हें प्रोत्साहन मिलेगा। कैश पेमेंट जल्द होगा तो लोग मेहनत करना चाहेंगे।
डॉ. धस्माना ने आगे कहा कि हम छोटी-छोटी चीजों से लोगों को प्रोत्साहित कर रहे हैं कि अगर आप अचार ही बना रहे हैं तो बनाइए हम खरीदेंगे और अपनी कैंटीनों में गढ़वाल का अचार ही परोसा जाएगा। लोगों के अंदर इससे जागृति आएगी।
उन्होंने कहा कि गांव के लोगों को गाइडेंस चाहिए। उन्हें मेहनताना अगर मिल जाएगा तो हर कोई काम करना चाहेगा। प्रधान एक बढ़िया लिंक हैं जो सरकार की योजनाओं को गांव के लोगों तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं और मैंने भी इन्हीं जागरूक प्रधानों के माध्यम से गांव के लोगों से संपर्क साधा और प्रोत्साहित करने का काम शुरू किया है।
नरेश के पिटारे में खेती-किसानी से जुड़े 80 सामान
उत्तरकाशी जिले के नौगांव के रहने वाले युवा उद्यमी नरेश नौटियाल ने बताया कि मैं मार्केटिंग सुपरवाइजर का काम करता था। वहां स्थानीय चीजों का कारोबार होता था। वह 2009 से स्वरोजगार कर रहे हैं। उन्हें सरकारी योजनाओं के माध्यम से तमाम फेयर में अपना स्टॉल लगाने का मौका मिलता है। नरेश के पास 80 आइटम्स हैं। 10-12 प्रकार के राजमा, 5-6 प्रकार के नमक, हाथ की बनी बड़ियां हैं, बुरांश का जूस जैसी कई चीजें है जिसकी काफी मांग है। उन्होंने बताया कि हम दिल्ली, मुंबई, सूरत, प्रयागराज समेत देश के कई शहरों में स्टॉल लगा चुके हैं। देहरादून में 1 साल में 50 मेले में शामिल होते हैं।
पढ़ें- पिरूल से क्या-क्या बनाती हैं मंजू, देखिए
उन्होंने कहा कि इतनी अच्छी डिमांड आती है कि हम उसे पूरा नहीं कर पाते हैं। सरकार द्वारा 3 लाख रुपये तक का ब्याज मुक्त लोन की सुविधा के बारे में पूछने पर नरेश ने कहा कि इससे लोगों को काफी फायदा होगा। लोगों की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वह अपने से पैसे लगा पाए। अगर इस तरह की आर्थिक मदद मिलती है तो लोग काम बढ़ा सकते हैं। उन्होंने बताया कि वह अभी 10-15 लाख रुपये तक का काम कर रहे हैं, उसे वह 50 लाख रुपये तक ले जाना चाहते हैं। उनके साथ 500 किसान जुड़े हैं।
वहीं, मंजू ने बताया कि वह ताड़ीखेत में प्रयोगशाला सहायक के पद पर कार्यरत हैं। जब वह पहली बार वहां गई थी तो उन्होंने देखा कि आर्ट एंड क्राफ्ट सिखाया जा रहा था। वहां बच्चों को सामान बाजार से लाना पड़ता था। मंजू ने पिरूल से कला सीखी हुई थी तो उन्होंने सोचा कि क्यों न बच्चों को यह कला सिखाई जाए और वे कम संसाधन से अपने रोजगार का साधन प्राप्त कर सकें। कोलकाता में इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल 2019 में उन्हें बेस्ट अपकमिंग आर्टिस्ट का अवॉर्ड मिल चुका है।
पूरी चर्चा सुनने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें…
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