आज हम पहाड़ की ऐसी ही एक कहानी बताने जा रहे हैं, जिससे आप प्रेरणा ले सकते हैं। पेश है, पलायन रोकने और रिवर्स पलायन के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए ‘हिल मेल’ की मुहिम की अगली कड़ी।
घर से दूर जाकर नौकरी? क्यों न अपने घर पर रहकर कुछ किया जाए? शायद ऐसे सवाल आपके भी मन में उठते होंगे पर यह सोचकर कि काफी मुश्किल है, क्या करेंगे, कैसे करेंगे, पैसा कहां है, कौन मदद करेगा… जैसे अनगिनत सवाल हमारे कदम पीछे की ओर खींच लेते हैं। हालांकि जो ठान लेते हैं, वो करके दिखाते हैं।
दो बहनों ने कर दिखाया जिसका देखा सपना
नैनीताल की रहने वाली कनिका शर्मा (Kanika Sharma) दिल्ली में अपनी पढ़ाई कर रही थीं। दिल्ली विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र ऑनर्स किया। उसके बाद जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय से मानवाधिकार पर मास्टर की पढ़ाई की। वह कई संस्थाओं से भी जुड़ी रहीं। उन्हें ISB हैदराबाद से स्कॉलरशिप भी मिली। इसके बाद उन्होंने हॉस्पिटैलिटी में काम करना शुरू किया। वहीं, कनिका की बहन कुशिका शर्मा (Kushika Sharma) ने पेट्रोलियम यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई की, पर दोनों बहनों को घर से दूर रहकर पढ़ाई और नौकरी करना हमेशा कचोटता रहता था।
एक दिन दोनों बहनों ने सोचा कि दिल्ली में हम अपना समय और पैसा खर्च रहे हैं तो क्यों न वापस जाकर अपने घर पर ही कुछ किया जाए। मन में भाव बने तो रास्ते भी दिखने लगे। कनिका बताती हैं कि उनके दिमाग में एक बात काफी समय से थी कि उन्हें लोगों के लिए कुछ करना है। हालांकि इससे पहले उन्हें खुद को साबित करना था, जो आसान तो नहीं पर असंभव भी नहीं था।
वह कहती हैं कि आज बागवानी बंद हो गई है, लोग जमीनें बेचकर पलायन कर रहे हैं। हम इस पर पहले से ही सोचते थे लेकिन जब घर लौटकर कुछ करने का विचार आया तो सबसे पहले हमारे दिमाग में बागवानी का ख्याल आया। दूसरे पहाड़ी राज्यों पर हमने काफी रिसर्च किया। हम ऐसी जगहों पर जाकर जानकारों से मिले और बागवानी और जैविक खेती के बारे में काफी जानकारियां जुटाईं।
शून्य से शुरू की जैविक खेती
कनिका को शुरू में जैविक खेती के बारे में कुछ पता नहीं था। उन्होंने शून्य से शुरुआत की। वह बताती हैं कि शुरू में पहले ही दिन हमने प्रॉफिट के बारे में नहीं सोचा। हम यह मानकर चले थे कि अगर हमारा काम अच्छा होगा तो फायदा मिलेगा ही। उन्होंने कहा कि मुक्तेश्वर, रामगढ़ के इलाके में फलों के काफी बगीचे हैं। आजकल वहां निर्माण खूब हो रहा है। लोग अपनी जमीनें बेच दे रहे हैं क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि बागवानी में प्रॉफिट नहीं है लेकिन हमने इस सोच को बदला और नए तरीके से जैविक खेती शुरू की।
कनिका का प्रोजेक्ट मुक्तेश्वर में है। उन्होंने एक मॉडल तैयार करते हुए एग्रो-टूरिज्म पर फोकस किया। कनिका कहती है कि उत्तराखंड में दो चीजें बहुत महत्वपूर्ण हैं- पर्यटन और खेती। हमने सोचा कि क्यों ने इसे मिलाकर कुछ किया जाए। उत्तराखंड में बड़ी संख्या में टूरिस्ट आते हैं तो हमने उनको ध्यान में रखते हुए ऑर्गेनिक फार्म रिसॉर्ट तैयार किया। वह कहती हैं कि यहां पर हम एक लग्जरी रिसॉर्ट के साथ-साथ लोगों को फार्मिंग का अनुभव भी दे रहे हैं कि कैसे जैविक खेती होती है।
कनिका कहती हैं कि आजकल शहरों में रहने वाले लोगों को खेती के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है। बच्चों को भी पता नहीं होता है कि कौन सी सब्जी जमीन के नीचे होती है और कौन सी जमीन के ऊपर।
गेस्ट को कैसा अनुभव
जो भी गेस्ट कनिका के फार्म में आते हैं। उनके लिए ऐसी व्यवस्था की गई है कि वे अपने लिए फल और सब्जियां खुद तोड़ सकते हैं। गेस्ट ही शेफ को बताते हैं कि क्या खाना बनाना है। यह एक ऐसा मॉडल है जिसमें लोगों को खेती के बारे में सीधे जानकारी दी जाती है। इतना ही नहीं, आने वाले लोगों को जैविक खेती के साथ-साथ सीजनल सब्जियों और फलों के बारे में भी जानकारी उपलब्ध कराई जाती है।
किसको-किसको जोड़ा
कनिका ने स्कूल बीच में छोड़ने वाले उन लोगों को अपने इस प्रोजेक्ट से जोड़ा, जो दिल्ली जैसे बड़े शहरों में जाकर कम पैसे में काम करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। यहां पर रहन-सहन भले ही अच्छा हो लेकिन ऐसे लोग नौकरी की चाह में पलायन कर जाते हैं। ऐसे में कनिका ने स्कूल ड्रॉपआउट्स को हॉस्पिटैलिटी की ट्रेनिंग देकर अपने होटल के अंदर भर्ती करने के बारे में सोचा, जो सफल रहा।
सरकार की मदद कैसी
इस प्रोजेक्ट में सोलर पैनल का इस्तेमाल किया गया है, जितनी बिजली की जरूरत होती है, सब आसानी से मिल जाती है। सरकार भी इस दिशा में काफी मदद कर रही है। कनिका बताती हैं कि कई तरह की छूट मिल जाती है। उन्हें कुछ लोन भी लेना पड़ा था। दूसरे किसान अगर मदद लेना चाहते हैं तो उन्हें भी अच्छी मदद मिल सकती है। कनिका ने ग्रीन हाउस या पॉली हाउस भी तैयार किया क्योंकि हर सब्जी बाहर नहीं हो सकती है।
कनिका के मॉडल को लोग भी काफी पसंद कर रहे हैं। न सिर्फ गेस्ट बल्कि आसपास के किसानों का भी रिस्पॉन्स काफी अच्छा है। दूसरे किसान भी जैविक खेती के लिए प्रेरित हो रहे हैं। कनिका ने बताया कि जैविक खेती के लिए जब भी कोई प्रशिक्षण में वह शामिल होती हैं तो आसपास के किसानों को भी इसमें बुलाती हैं। इसके लिए किसानों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता है।
मुक्तेश्वर किसान संस्था में आसपास के करीब 500 किसान जुड़े हैं। पहले उन किसानों को स्थानीय मंडियों में अच्छा रेट नहीं मिल पाता था लेकिन अब बड़ी मंडियों तक पहुंच के कारण उन्हें अच्छा लाभ हो रहा है।
जैविक खेती के बारे में जानिए
खेती में बिना कोई रासायनिक खाद डाले फल, सब्जियां या अनाज पैदा किया जाए तो उसे ही जैविक खेती कहा जाता है। दरअसल, जल्दी से पैदावार लेने के चक्कर में किसान धड़ल्ले से खेतों में खाद डालते गए, जिससे न सिर्फ खेत बल्कि इंसानों की सेहत भी खराब होती चली गई। ऐसे में सुरक्षित और सरल जैविक खेती तेजी से बढ़ रही है। इसमें किसी भी तरह के कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं होता है। उसकी जगह सूखी पत्तियों, देसी गायों के मल-मूत्र को लेकर कम्पोस्ट खाद बनाई जाती हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या इस तरह से खाद तैयार करने में पैसा ज्यादा लगता है तो कनिका ने कहा कि नहीं, लोगों में यह भ्रम है जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि हर चीज का अपना नियत समय होता है तो हो सकता है कि इसमें समय लगे क्योंकि दवा से फसल कुदरती समय से भी पहले बढ़ा दी जाती है।
वह कहती हैं कि अगर फसल में कीड़े लगे हैं तो उसके लिए क्या किया जाए, इसको लेकर लोगों को जानकारी कम है। आखिर में और केमिकल का इस्तेमाल कर देते हैं जो ठीक नहीं है।
उन्होंने बताया कि जो युवा जैविक खेती के बारे में सोचते हैं और इस क्षेत्र में कुछ करना चाहते हैं तो इस फील्ड में काफी स्कोप है। कनिका बताती हैं कि आज की तारीख में सब कुछ रिवर्स ऑटो मोड में चल रहा है। पहले खूब केमिकल वाली चीजें खाई जाती थीं लेकिन अब सेहत को ध्यान में रखा जा रहा है। अब सब जैविक खेती को जानना चाहते हैं क्योंकि पैसे से हेल्थ नहीं खरीदी जा सकती है। अगर रुचि हो तो पहाड़ के युवा अपने गांव आकर बिना खाद वाली खेती करके पैसे कमा सकते हैं और सेहत भी अच्छी पा सकते हैं।
पूरा परिवार फार्मिंग में
कनिका की बहन ही नहीं, उनके भाई भी जैविक खेती के इस प्रोजेक्ट में उनका हाथ बंटा रहे हैं। गौरव शर्मा पेशे से शेफ हैं और 23 साल की उम्र में उन्होंने फार्मिंग के क्षेत्र में काम करना शुरू किया। वह बागवानी में प्लांटेशन पर फोकस कर रहे हैं। शेफ होने के नाते उन्हें डिशेज की टेस्ट, कस्टमर की पसंद की बारीक समझ है, जिससे काफी फायदा हो रहा है।
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