वैसे तो देशभर के गांवों से शहरों में बसने की होड़ मची है लेकिन पहाड़ वीरान होते जा रहे हैं। आधुनिक सुविधाओं की चाह, अच्छा रहन-सहन, पढ़ाई और सबसे बड़ी बात रोजगार के लिए पहाड़ के युवा शहरों का रुख कर रहे हैं। एक को
वैसे तो देशभर के गांवों से शहरों में बसने की होड़ मची है लेकिन पहाड़ वीरान होते जा रहे हैं। आधुनिक सुविधाओं की चाह, अच्छा रहन-सहन, पढ़ाई और सबसे बड़ी बात रोजगार के लिए पहाड़ के युवा शहरों का रुख कर रहे हैं। एक को सेटल होता देख दूसरा और फिर शहर जाने वालों की लाइन लग गई। आलम यह है कि उत्तराखंड के सैकड़ों गांव अब खाली हो चुके हैं। सबसे बड़ी वजह बताई जाती है रोजगार। पहाड़ पर उद्योग लग नहीं सकते, रोजगार क्या करें? लेकिन क्या ऐसा ही है, क्या प्रकृति की गोद में रहकर रोजगार करना असंभव काम है? जी नहीं, आज हम आपको ऐसी ही एक प्रेरक कहानी बताने जा रहे हैं, जो इस तरह की सोच रखने वाले युवाओं को नई दिशा दिखा सकती है।
नाम- खीम सिंह नगरकोटी, गांव- बसौली, जिला- अल्मोड़ा। खीम ने 12वीं तक की पढ़ाई गांव के ही सरकारी स्कूल से की। बीकॉम अल्मोड़ा से किया और फिर साल 2010 में आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चले गए। सीए फर्म में उन्हें अकाउंटेंट की नौकरी भी मिल गई। करीब 4 साल उन्होंने यहां नौकरी की। तनख्वाह अच्छी थी और उनका नाम भी खूब हो गया था। इस बीच 2014 में उनकी शादी हो गई तो उन्हें लगा कि मां के साथ ही क्यों न रहा जाए। यहीं कुछ रोजगार किया जाए। हालांकि यह सोचना आसान था पर आगे का सफर आसान नहीं था।
पिता का जल्दी निधन, मां पर आई जिम्मेदारी
खीम सिंह बताते हैं कि वह जब हाई स्कूल में पढ़ रहे थे, तभी उनके पिताजी का देहांत हो गया था। उनकी किडनी खराब हो गई थी। वह बैंक में सर्विस करते थे तो उनके बाद मां को नौकरी मिल गई। मां नौकरी करने जाती हैं तो खीम को लगा कि अब उनसे दूर न रहा जाए। गांव से थोड़ी दूरी पर उन्होंने एक कानूनी सलाह देने वाली फर्म में नौकरी कर ली और 3 साल तक काम किया।
टीवी प्रोग्राम से मिला आइडिया
दिल्ली से वापस आने के बाद खीम एनिमल प्लानेट चैनल खूब देखने लग गए। वह कहते हैं कि इसी चैनल से उनमें प्रकृति को लेकर सोच बढ़ी और उनके दिमाग में क्रिएटिव आइडियाज आने लगे। एक दिन उन्हें लगा कि क्या वह भी किसी जानवर की तरह हैं? उनके जन्म का उद्देश्य क्या है? क्या ऐसे ही नौकरी करके जिंदगी गुजार देना है या कुछ अलग करना है। उन्होंने ठान लिया कि वह कुछ अलग करेंगे और आखिर में 2017 में खीम सिंह ने नौकरी छोड़ दी और गांव आ गए।
उस समय उनके छोटे भाई एमकॉम की पढ़ाई कर रहे थे। छोटा भाई खेतों में आकर पढ़ाई करता था। उन्होंने सोचा कि क्यों न बंजर पड़े खेतों का कायाकल्प किया जाए, जिससे शांति के लिए शहरों से आने वाले लोगों को पर्यटन के लिहाज से एक अच्छा डेस्टिनेशन उपलब्ध कराया जा सके। जंगल, चिड़िया, पहाड़ इनसे एक जुड़ाव सा हो गया। खीम ने सोचा कि क्यों न ऐसा माहौल तैयार किया जाए, जिसमें गांव के लोग 30-35 साल पहले रहते थे।
कैसा है इनका बसेरा
दोनों भाइयों ने लैंप और कैंडल की रोशनी में खाना, मड हाउस, योग केंद्र, रात में कैंपफायर पूरी तरह प्राकृतिक चीजों के बीच रहन-सहन की व्यवस्था की। तेजपत्ता, तुलसी और कई प्राकृतिक औषधीय गुणों वाली चीजों से वह चाय बनाते हैं। खाना बनाने का तरीका देसी और खाने का भी, जिससे खाने वाले पर्यटक का जायका बढ़ जाता है। जंगल में बेकार पड़े खेतों को खोदा गया। घास और सब्जियां उगाई गईं और धीरे-धीरे इसे व्यवसाय के रूप में खड़ा किया गया।
पर शुरुआत इतनी आसान नहीं थी
हालांकि खीम बताते हैं कि शुरुआत में उनके पास ज्यादा पैसे नहीं थे तो उन्होंने जंगल की लकड़ियों और तिरपाल की मदद से टेंट लगाए। एक साल तक कम संसाधनों में ही व्यवस्था की। इस दौरान गिने-चुने ग्राहक ही आए। जब लोगों को कैंप के बारे में जानकारी हुई तब लोगों का आना शुरू हो गया। शुरू में करीब एक लाख रुपये खर्च किए गए और बाद में पक्का व्यवसाय बनाने के लिए उन्होंने घर से पैसे लिए और 9-10 लाख रुपये का लोन कराया।
लोन लेने में उनका काफी समय लग गया। कई बैंकों ने उनके प्लान को फेल मानते हुए लोन देने से मना कर दिया लेकिन खीम ने हार नहीं मानी और करीब तीन महीने की भागदौड़ के बाद एक दिन उन्हें लोन मिल गया। अब खीम कहते हैं कि वह अपने काम से काफी खुश हैं। यह भी कहते हैं कि मेरा संघर्ष जारी है।
पलायन करते युवाओं को संदेश
उत्तराखंड के पहाड़ों से पलायन कर शहरों की ओर जा रहे युवाओं को क्या संदेश देंगे? जब यह सवाल हमने किया तो उन्होंने कहा कि देखिए इंसान ही वह प्राणी है जिसने धरती पर तमाम आविष्कार किए, इसे कहां से कहां तक पहुंचाया। खीम ने कहा कि इंसान को काम वही करना चाहिए जिससे दिली खुशी मिले। जब मांझी जैसा आदमी पहाड़ को खोद सकता है तो हम खेत तो खोद ही सकते हैं। गांव का इंसान चाहे तो सब कुछ कर सकता है।
खीम को रियल हीरोज की कहानी और फिल्में काफी पसंद हैं। वह कहते हैं कि इन कहानियों से प्रेरणा मिलती है बस हममें लगन होनी चाहिए। परिवार और वित्तीय मदद मिले तो गांव का युवा विकास की नई कहानी लिख सकता है। शहर के ही बच्चे आगे निकलते हैं, ऐसा नहीं है। खीम कहते हैं कि रिक्शेवाले का लड़का आईएएस बन जाता है। गांव में रहकर भी जिंदगी को बेहतर दिशा दी जा सकती है।
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