हरिद्वार में विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन कुंभ 2021 कुछ ही समय में शुरू होने वाला है। कोरोना काल की चुनौतियों के बीच होने जा रहे इस आयोजन की तैयारियों को लेकर हिल-मेल ने हाल ही में एक वेबीनार का आयोजन किया था। इसमें आचार्य महामंडलेश्वर जूनापीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज भी शामिल हुए। उन्होंने कुंभ की महत्ता और इस आयोजन की तैयारियों को लेकर विस्तार से अपने विचार रखे।
– स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज, आचार्य महामंडलेश्वर जूनापीठाधीश्वर
कुंभ हमारी संस्कृति का आधार स्तंभ है, मेरूदंड है। संसार की अत्यंत प्राचीन सभ्यता कुंभ से ही परिभाषित होती है। कुंभ का अर्थ है सबका समागम होना। यहां ऋषि, मुनि, गृहस्थ, समाज सुधारक, घुमंतु पर्यटक, जिज्ञासुओं का भी आगमन कुंभ के अवसर पर होता है। नक्षत्रीय विधा के अंतर्गत यह कुंभ होता है जैसे सिंहस्थ उज्जैन में, मकरस्थ प्रयाग में होता है, वैसे कुंभस्थ का स्वरूप हरिद्वार में होता है। इसमें संतों की बड़ी भूमिका है। सभी मत, पंथ, संप्रदाय के संतों का एकीकरण होता है। वे मंथन और विचार करते हैं, समाज के लिए दिशा तय करते हैं। इसके साथ ही वे उच्चतम मानक और प्रतिमानों की व्याख्या करते हैं। प्राचीन कालखंड में शास्त्रार्थ भी होता था। उस समय दिशा तय की जाती थी कि किस प्रकार से परिवारों का प्रबोधन हो, कुरीतियों या उन विषयों के प्रति जो समाज में द्वेष पैदा करते हों, उनका उन्मूलन कैसे हो। ऐसे में यह समझने की जरूरत है कि यह केवल डुबकी लगाने का पर्व नहीं है।
उत्तराखंड समेत पूरे देश के संत हैं उत्साहित
यह पर्व है कि इसमें यज्ञ होंगे, परस्पर संवाद होंगे और देश के आस्थावान प्राणियों का जिनके छोटे संगठन और संस्थाएं हैं, वे यहां आते हैं। यहां लाखों नागा संन्यासी भी आते हैं। हमारी दीक्षाओं के सत्र भी इस अवसर पर आयोजित होते हैं। हमारे संन्यासियों के लिए यह बड़ा और महापर्व है। उत्तराखंड समेत पूरे देश के संत बड़े उत्साहित हैं।
न सामूहिक भजन होगा, न भंडारा…. हरिद्वार महाकुंभ के लिए उत्तराखंड सरकार ने जारी की गाइडलाइंस
सीएम, मेला अधिकारी पूरे शासन में समन्वय
मैं उत्तराखंड सरकार की प्रशंसा करना चाहूंगा कि कोरोना काल में जब चुनौतियां हैं, ऐसे में भी निर्माण कार्य तेजी से हुआ है। घाट पूरे सज चुके हैं, दीवारों पर भित्ति चित्र, पौराणिक आख्यान, कथानक उकेरे गए हैं। इस प्रकार हरिद्वार में एक अद्भुत वातावरण है। यहां संत समाज में भारी संतोष है। सीएम का गंभीर्य, प्रशासनिक क्षमताएं, मेला अधिकारी, पुलिस अधिकारी और पूरे शासन में समन्वय है। प्रथम दृष्टया ऐसा नहीं लगता है कि किसी तरह की कोई चूक हुई हो। जबकि कोरोना को लेकर ढेरों चुनौतियां हैं।
जब भारत आत्मनिर्भरता के पथ पर बढ़ रहा हो, आधात्मिक दृष्टि से पूरे संसार का नेतृत्व कर रहा हो तो हम दुनियाभर के लोगों को कुंभ से प्रेरित कर सकते हैं। अब तो वैक्सीन आ गई है, पर हमें सामाजिक दूरी जैसे नियमों का पालन करते रहना होगा। कुंभ को लेकर गाइडलाइंस का भी पालन करना चाहिए। मेले में आने वाले लोग सरकारी निर्देशों का भी पालन करें। सभी संत, स्थानीय लोग, पर्यटक सभी समन्वय के साथ काम करें तो भव्य आयोजन होगा।
महाकुंभ से क्या लेकर जाएंगे…
हरिद्वार महाकुंभ में आने वाले लोग यहां से क्या लेकर जाने वाले हैं? तो भारतीयों की जो प्रकृति है वह केवल पर्यटन की ही नहीं है, देशाटन और तीर्थाटन की भी है और इसमें व्यक्ति यहां तर्पण, अर्पण और समर्पण के लिए आएंगे। यहां से ले जाने के लिए विचार, यहां से ऊर्जा, उत्साह, उमंग अथवा एक जो अतुल्य सामर्थ्य, व्यक्ति के भीतर अंनत संभावनाएं हैं उसे उजागर करने के लिए वे विद्या, विभूति ले जाएंगे। कुंभ के समय में गंगा की प्रकृति बदल जाती है। पूरे वातावरण में अमृतत्व घुल जाता है। यहां से व्यक्ति सकारात्मक प्रवृत्तियां लेकर जाएगा, तो वह उसके लक्ष्य के लिए सिद्धिकारक बनेगा।
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दुनिया को दें संदेश
कोरोना काल में भीड़ को नियंत्रित करने, सीमित आयोजन और दिव्य आयोजन कर हम एक संदेश भी दे सकते हैं कि कोरोना काल में कैसे उत्तराखंड ने आदर्श आयोजन किया। भारतीय संस्कृति, सभ्यता, औषधि खानपान को लेकर भी एक संदेश दुनिया में जाना चाहिए। कुंभ से लोग गंगाजल लेकर जाएं। भगवान शंकराचार्य ऐसा कहते हैं कि गंगा का स्मरण करते ही शुचिता और पावित्र्य का बोध होता है। एक बड़ी चुनौती है, कोरोना काल में उत्तराखंड के सामने मेगा इवेंट है। धन्य है उत्तराखंड सरकार, पुलिस, प्रशासन पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। यहां की प्रजा, भक्ति मंडली और लोगों में एकता का सौहार्द्र है। ऐसे में लोग एकता की भावना भी लेकर जा सकते हैं। जैसे भी बेहतर परिस्थितियां होंगी हम ऐसा संदेश पूरे संसार को देंगे कि कोरोना के समय में कैसे बड़े समूह का समन्वय किया जा सका।
मंत्रों की तरह करें गाइडलाइंस का पालन
कुंभ में आने वाला व्यक्ति ज्ञान और बुद्धि लेकर जाएगा। हरिद्वार में आकर कोई देखे यहां उत्सव का माहौल है। केंद्र और राज्य सरकारों की गाइडलाइंस को हम मंत्रों की तरह अनुपालन करेंगे। यह मानते हुए कि हमारे लिए जरूरी है। यह कोई सीमाएं नहीं हैं, हमें इसका निर्वहन करने में खुशी होनी चाहिए और हम एक आदर्श स्थापित करेंगे।
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March 3, 2021, 8:26 pm[…] केवल डुबकी लगाने का पर्व नहीं है महाकु… […]
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