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इस ग्रोथ सेंटर में काम करने वाली महिलाओं ने बताया कि इसके चलते वे घर से बाहर निकलकर नया काम सीख रही हैं। कहा जाता था कि लाइट्स बनाने का काम पुरुषों का होता है लेकिन जब हमने इसे बनाने की ट्रेनिंग ली तो यह पता चला कि यह काम कोई भी कर सकता है। हम बिजली के काम करने से डरते थे लेकिन अब हम इस काम को बड़े आसानी से कर रहे हैं। हम यहां चार से पांच घंटे काम करते हैं।
READ MOREआरजे काव्य…देवभूमि उत्तराखंड के लिए तीन साल में ही ये एक ऐसा नाम बन गया, जिसे क्या पहाड़ और क्या मैदान, हर जगह भरपूर प्यार मिला। काव्य को उत्तराखंड के लोग परिवार का हिस्सा मानने लगे। आरजे काव्य ने खुद को ‘उत्तर का पुत्तर’ कहा तो लोग उनके फैन बनते चले गए। इसके बाद शुरू हुआ पहाड़ की कला, संस्कृति को रेडियो के जरिये बढ़ावा देने का सिलसिला।
READ MOREमुख्यमंत्री रावत ने कहा कि वर्ष 2020 को उत्तराखंड के इतिहास में बड़े फैसलों के लिए जाना जाएगा। राज्य के लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए हमने गैरसैण को न केवल ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया बल्कि राजधानी परिक्षेत्र में राजधानी के अनुरूप इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट का काम शुरू कर दिया गया है।
READ MOREहिमालय देवभूमि संसाधन ट्रस्ट द्वारा मिठाईयां बनाई जा रही है। इन मिठाइयों में जिन स्थानीय अनाजों का इस्तेमाल किया जा रहा है, उनमें मंडुआ, चैलाई, झंगोरा, कुट्टू का आटा, गहत, सोयाबीन, उड़द की दाल का प्रयोग किया जा रहा है।
READ MOREकोरोना काल में जब लोग शहरों से गांवों की ओर लौटे हैं। गांव में घर के आसपास ही रोजगार की संभवनाएं तलाशी जा रही है। उत्तराखंड के जानेमाने गायक पवनदीप ने अपनी तरफ से एक पहल की है, जिससे न सिर्फ रोजगार मिलेगा बल्कि गायकी का हुनर रखने वालों को मौका भी मिलेगा।
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इस ग्रोथ सेंटर में काम करने वाली महिलाओं ने बताया कि इसके चलते वे घर से बाहर निकलकर नया काम सीख रही हैं। कहा जाता था कि लाइट्स बनाने का काम पुरुषों का होता है लेकिन जब हमने इसे बनाने की ट्रेनिंग ली तो यह पता चला कि यह काम कोई भी कर सकता है। हम बिजली के काम करने से डरते थे लेकिन अब हम इस काम को बड़े आसानी से कर रहे हैं। हम यहां चार से पांच घंटे काम करते हैं।
READ MOREआरजे काव्य…देवभूमि उत्तराखंड के लिए तीन साल में ही ये एक ऐसा नाम बन गया, जिसे क्या पहाड़ और क्या मैदान, हर जगह भरपूर प्यार मिला। काव्य को उत्तराखंड के लोग परिवार का हिस्सा मानने लगे। आरजे काव्य ने खुद को ‘उत्तर का पुत्तर’ कहा तो लोग उनके फैन बनते चले गए। इसके बाद शुरू हुआ पहाड़ की कला, संस्कृति को रेडियो के जरिये बढ़ावा देने का सिलसिला।
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