मां गंगा जी के तट पर मां गंगा जी की भव्य दिव्य अदभुत आलौकिक 5 फीट ऊंची मूर्ति विराजमान हो गई। मां गंगा जी की भव्य दिव्य मूर्ति यहां से 2525 किलोमीटर दूर कलकत्ता से बनकर आई है, मूर्ति को प्रसिद्ध मूर्तिकार संजय सरकार ने बनाया है।
दो साल के अथक प्रयासों के बाद आखिरकार आज मां गंगा जी के तट जोशियाड़ा में व्यू पॉइंट के साथ मां गंगा जी की 5 फीट ऊंची भव्य प्रतिमा का अनावरण और व्यू पॉइंट का उद्घाटन नगरपालिका परिषद बाड़ाहाट उत्तरकाशी के अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौहान और गंगा विचार मंच के प्रान्त संयोजक लोकेंद्र सिंह बिष्ट और सभासद वंदना नौटियाल के साथ सभी नगरपालिका के सभासद गणों की गरिमामय उपस्थिति में संपन्न हुआ।
इसी के साथ मां गंगा जी के तट पर मां गंगा जी की भव्य दिव्य अदभुत आलौकिक 5 फीट ऊंची मूर्ति विराजमान हो गई। मां गंगा जी की भव्य दिव्य मूर्ति यहां से 2525 किलोमीटर दूर कलकत्ता से बनकर आई है, मूर्ति को प्रसिद्ध मूर्तिकार संजय सरकार ने बनाया है।
मकर पर सवार मां गंगा जी की चतुर्भुज मूर्ति के एक हाथ में कमल तो दूसरे हाथ में जल से भरा घड़े के साथ एक हाथ जनमानस को आशीष देते हुए एक हाथ शांति और सद्भाव स्वच्छता और सौम्यता का संकेत और संदेश देते हुए मां गंगा जी अपने वाहन मकर/मगरमच्छ पर सवार है। मां गंगा की सवारी मकर (मगरमच्छ) है। जो एक पौराणिक पशु है, जिसका शरीर घड़ियाल जैसा और पूंछ मछली की तरह होती है। मकर को ही देवी मां गंगा का वाहन माना जाता है।
हिंदू धर्मग्रंथों में देवी मां गंगा का वाहन मगरमच्छ को बताया गया है। मगरमच्छ एक प्रतीक है, जो बताता है हमें जल में रहने वाले हर प्राणी की रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि जल में रहने वाला हर प्राणी पारिस्थितिक तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है।
आपको बताते चलें कि देवी-देवताओं के वाहन पशु-पक्षियों के रूप में होने के कई कारण हैं। यह प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने, देवी-देवताओं के गुणों को प्रदर्शित करने, और उनके साथ हमारे संबंध को समझने में मदद करते हैं। देवी-देवताओं के वाहन पशु-पक्षियों को स्वीकार करना, प्रकृति के प्रति सम्मान और संरक्षण का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि मनुष्य और पशु-पक्षी एक-दूसरे पर निर्भर हैं और प्रकृति के संतुलन के लिए दोनों आवश्यक हैं।
प्रत्येक देवी-देवता के वाहन उनके विशिष्ट गुणों और शक्तियों का प्रतीक होते हैं। उदाहरण के लिए, भगवान शिव का वाहन (नंदी) बैल उनकी शांत और स्थिर शक्ति को दर्शाता है, जबकि देवी दुर्गा का वाहन सिंह उनकी शक्ति और साहस को दर्शाता है।
देवी-देवताओं के वाहन हमें उनके साथ एक गहरा संबंध स्थापित करने में मदद करते हैं। वे हमें सिखाते हैं कि कैसे पशु-पक्षियों के साथ प्रेम और सम्मान से व्यवहार करना चाहिए और कैसे प्रकृति के साथ संतुलन में रहना चाहिए। सांस्कृतिक मान्यता है कि कुछ संस्कृतियों में देवी-देवताओं को पशु-पक्षियों से संबंधित माना जाता है। आध्यात्म के अनुसार पशु-पक्षियों को कुछ आध्यात्मिक गुणों से भी जोड़ा जाता है, जो देवी-देवताओं के साथ उनकी समानता को दर्शाते हैं।
देवी-देवताओं के वाहन उनके द्वारा दर्शाए जाने वाले गुणों का प्रतीक होते हैं। उदाहरण के लिए, गणेश जी का मूषक उनकी बुद्धि और ज्ञान का प्रतीक है। कुल मिलाकर, देवी-देवताओं के वाहन पशु-पक्षियों के रूप में होने के पीछे कई कारण हैं, जो उनकी आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक महत्व को दर्शाते हैं।
ठीक इसी तरह मां यमुना जी का वाहन कछुआ (कच्छप) है। कछुआ को पवित्रता और दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है। यमुना जी को हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवी और नदी माना जाता है। उन्हें श्रीकृष्ण की पत्नी भी माना जाता है। यमुना जी का वाहन कछुआ है, जो जल में रहने वाले एक प्राणी है, जो दृढ़ता और धीरज का प्रतीक माना जाता है। यमुना जी का वाहन कछुआ है, जो पवित्रता, दृढ़ता और संतुलन का प्रतीक है।।
मां गंगा जी की मूर्ति के अनावरण कार्यक्रम में जिला पंचायत उत्तरकाशी के पूर्व अध्यक्ष नत्थी लाल शाह, सभासद वंदना नौटियाल, सभासद संतोषी राणा, सभासद सुषमा डंगवाल, सभासद सुनीता नेगी, सभासद आदित्य चौहान, सभासद देवराज सिंह बिष्ट, सभासद मनीष पंवार, मनोज शाह, नगरपालिक की अधिशासी अधिकारी शालिनी चित्रण, इंजीनियर जितेंद्र कुड़ियाल, कुसुम राणा, सुशांत राणा सहित नगरपालिका के अधिकारी और कर्मचारीगण उपस्थित रहे।
साभार — लोकेंद्र सिंह बिष्ट
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