Shaurya Doval Interview: स्वरोजगार और इकोनॉमिक क्लस्टर बनाने से ही बदलेगी उत्तराखंड की तस्वीर

Shaurya Doval Interview: स्वरोजगार और इकोनॉमिक क्लस्टर बनाने से ही बदलेगी उत्तराखंड की तस्वीर

उत्तराखंड को अगले 20 साल में किस राह पर आगे बढ़ना चाहिए, विकास का रोडमैप कैसा हो, क्या वक्त आ गया है कि उत्तराखंड पॉलिसी लेवल पर परंपरागत तरीकों से अलग देखे। इन्हीं सब सवालों पर उत्तराखंड के आर्थिक परिदृश्य पर बारीकी से नजर रखने वाले और अपने बेबाक अंदाज के लिए चर्चित इंडिया फाउंडेशन के संस्थापक और भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी के विशेष आमंत्रित सदस्य शौर्य डोभाल से खास बातचीत।

शौर्य डोभाल का ताल्लुक पौड़ी गढ़वाल के घीड़ी गांव और देशसेवा को समर्पित परिवार से है। वह भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और अरुणि डोभाल की पहली संतान हैं। पिता को अपनी सेवाओं के लिए शौर्य चक्र मिला इसलिए बेटे का नाम भी शौर्य रखा। हालांकि पिता की छवि से अलग शौर्य की एक अलग पहचान है। वह एक इनवेस्टमेंट बैंकर रहे हैं। आर्थिक मामलों पर जबरदस्त पकड़ रखने वाले शौर्य डोभाल राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए बने इंडिया फाउंडेशन थिंक टैंक के संस्थापक हैं। दुनिया के तमाम देशों में अपनी सेवाएं देने वाले शौर्य के दिल में उत्तराखंड के भविष्य को लेकर कई सपने हैं। यही वजह है कि साल 2019 में उन्होंने गृहराज्य उत्तराखंड में जनसेवा के लिए आगे आने का फैसला करते हुए भाजपा की सदस्यता ली। इसके बाद से वह उत्तराखंड में राजनीतिक तौर पर सक्रिय हैं। वह प्रदेश कार्यकारिणी के विशेष आमंत्रित सदस्य हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित हिंदू कॉलेज से उन्होंने अर्थशास्त्र (ऑनर्स) में प्रथम श्रेणी में डिग्री पाई। उनकी प्रतिभा को देख मात्र 20 वर्ष की आयु में ‘आर्थर एंडरसन’ ने उन्हें नौकरी दी। साथ ही चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने का अवसर दिया। 23 वर्ष की उम्र में यह डिग्री हासिल कर वह सीए बने। उनकी क्षमता, योग्यता व प्रतिभा को देख कर दुनिया के दस अग्रणी बिजनेस स्कूलों में शामिल इंग्लैंड के लंदन बिजनेस स्कूल तथा अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय ने उन्हें एमबीए का अवसर दिया। एमबीए की डिग्री हासिल कर वह कामयाब प्रोफेशनल बने। उन्होंने दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कंपनियों जैसे मोर्गन स्टेनले, जीई कैपिटल आदि में उच्च पदों पर काम किया जहां उन्हें व्यवसायिक श्रेठता हासिल करने का मौका मिला। वर्ष 2012 में उन्हें देश के प्रतिष्ठत इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक स्टडीज ने उद्योग रत्न अवॉर्ड दिया। वर्ष 2015 में शौर्य को अमेरिका में प्रतिष्ठित आइजनहॉवर फैलोशिप के लिए चुना गया। यह सम्मान दुनिया भर में कुछ गिने-चुने लोगों को मिलता है। शौर्य का विवाह भी टिहरी के नौटियाल परिवार में जन्मी दिव्या के साथ हुआ है जो एक ख्याति प्राप्त कैंसर डॉक्टर है।

  • उत्तराखंड ने 20 साल का सफर पूरा कर लिया है, एक राज्य के तौर पर आप इसे कहां खड़ा पाते हैं?

मैं उत्तराखंड को एक हाई परफॉर्मिंग स्टेट के नजरिये से देखता हूं। पिछले 20 साल में उत्तराखंड ने दो-तीन मुख्य चीजें हासिल की हैं। एक नया राज्य एक नए बच्चे की तरह होता है। जब एक राज्य का गठन होता है तो यह केवल एडमिनिट्रेटिव डिमार्केशन यानी प्रशासनिक सरहदबंदी ही नहीं है, यह एक पहचान भी है। एक तो उत्तराखंड ने अपनी पहचान बनाई है। यह एक अलग तरह का राज्य है, अलग तरह के लोग हैं।  राज्य की अलग पहचान है, एक तरफ यह देवभूमि है तो दूसरी तरफ यहां ईमानदार, वफादार, परिश्रमी और बहादुर लोग हैं, यह पहचान अब साबित हो चुकी है। दूसरी तरफ अगर आप उत्तराखंड के परफॉर्मेंस के तौर पर देखें तो आज यह देश भर में जीडीपी के तौर पर 20 नंबर का राज्य है। अगर राज्य की जीडीपी ग्रोथ रेट देखें तो यह और ऊंची मिलेगी। इस तरह देखें तो मैं कहूंगा की पिछले 20 साल काफी हद तक ठीक रहे हैं। राज्य ने एक बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा कर दिया है। एक पहचान विकसित कर ली है। स्कूल, सड़कें बनीं हैं, राज्य आज कनेक्ट है। उत्तराखंड ने एक हद तक अपने लिए आर्थिक विकास का रास्ता बना लिया है। मौटे तौर पर यही कहा जाएगा कि उत्तराखंड ने पिछले 20 साल में अच्छा काम किया है।

  • उत्तराखंड की आर्थिकी टूरिज्म और धार्मिक पर्यटन पर निर्भर है, ऐसे में दूसरे कौन से सेक्टर हैं, जिन्हें यहां की भौगोलिक परिस्थिति के हिसाब से बढ़ावा दिया जाना चाहिए?

उत्तराखंड को हम टूरिज्म और धार्मिक पर्यटन की नजर से ही देखते रहे हैं। अगर हम अगले 20 को देखते हैं, तो यह एक सीमित सोच है। हमें यहां से आगे कई नए सेक्टरों को देखना चाहिए। अगर हम कृषि क्षेत्र को देखें तो हम हाई वैल्यू एग्रीकल्चर प्रोडक्ट की बात करनी चाहिए। अगर हम मैन्यूफैक्चरिंग के नजरिये से देखें तो सेमी कंडक्टर एवं चिप इंटस्ट्री की ओर देख सकते हैं। ऐसे सेक्टर जो हाई वैल्यू और लो लैंड यूज वाले हैं, उन पर ज्यादा फोकस करने की जरूरत है। कल थ्रीडी प्रिंटिंग भी यहां आएगी। अगर हम सर्विस सेक्टर को देखें तो हमें यहां नॉलेज वर्कर्स देखने चाहिए। उत्तराखंड स्कूल और कॉलेज में एक विश्वस्तरीय एजुकेशन डेस्टीनेशन बन सकता है। कुछ कमी है, जिसे दूर किया जा सकता है। आज की तारीख में ऑनलाइन एजुकेशन का अहम रोल है। उत्तराखंड को न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया में एजुकेशन का हब बनने के बारे में सोचना चाहिए, तो अगर हम सेक्टरों की ओर देखें तो हमारे लिए कई नए विकल्प खुलते हैं। पर्यटन और धार्मिक पर्यटन तो है ही, भविष्य में अगर हम उसमें इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करेंगे, क्वॉलिटी में सुधार करेंगे तो ये सेक्टर तो बढ़ेगा लेकिन उसकी अपनी सीमाएं हैं, यह इनमें आस्था रखने वाले हिंदू समाज तक सीमित रहेगा। जहां तक टूरिज्म की बात है तो हमें ग्लोबल स्केल पर देखना चाहिए कि अगले 20 साल में हम कैसे ग्लोबल टूरिस्ट को आकर्षित कर सकते हैं। या जो ग्लोबल टूरिस्ट इंडिया में आता है, उसे कैसे यहां ला सकते हैं। टूरिज्म अपने आप में अच्छा इसलिए है कि टूरिस्ट कमाते कहीं और हैं और खर्च करने के लिए आपके राज्य में आते हैं। इसलिए हमें गैर-परंपरागत तरीके से सोचना पड़ेगा। हम धार्मिक पर्यटन या सामान्य पर्यटन में कैसे इनक्रिमेंटल चेंज यानी बेहतर बदलाव ला सकते हैं, यह सोचना होगा

  • कोरोना काल में उत्तराखंड में बड़ी संख्या में युवा, कुशल-अकुशल कामगार लौटे, लगभग 70 फीसदी ऐसे लोग अब यहीं कुछ करना चाहते हैं, क्या एग्रीकल्चर सेक्टर में इसकी पर्याप्त क्षमता है या कुछ नए क्षेत्र तलाशने होंगे?

जो लोग लौटकर आए हैं, वो मौटे तौर पर सर्विस सेक्टर से लौटकर आए हैं। अगर हम कहें कि सर्विस सेक्टर से लौटे लोगों को हमारा एग्रीकल्चर सेक्टर खपा लेगा तो यह बहुत कम वैल्यू वाला होगा, यह लंबे समय तक टिक नहीं पाएगा। साथ ही न तो हमारे पास इतनी जमीन है और न ही इतना आउटपुट है कि परंपरागत खेती इन लोगों को सपोर्ट कर सके।  हमारे लिए यह अच्छा अवसर भी है, क्योंकि हर तरह के कामगार लौटे हैं और हर तरह के वर्कफोर्स के लिए अलग रणनीति होगी। जैसे स्किल्ड वर्कर हैं तो उनकी री-ट्रेनिंग और री-स्किलिंग का अच्छा मौका है। उत्तराखंड में देखा जाए तो ज्यादातर लोग सैन्य सेवा या टीचिंग के प्रोफेशन से जुड़े हैं। इसलिए हमें काम इस तरह की कैपेसिटी विकसित करने की दिशा में काम करना चाहिए। भविष्य में एजुकेशन काफी हद तक ऑनलाइन होगी और अगर हम उत्तराखंड को दुनिया का ट्यूशन सेंटर हब बना सकें तो यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। फिर हम गांव-गांव से एजुकेशन इंस्टीट्यूट चला सकते हैं, लोगों को अपने घर-गांव छोड़कर नहीं जाना होगा। दूसरी तरफ हम रिटायर्ड सैन्यकर्मियों को देखें, हिंदुस्तान अब अपने रक्षा उपकरण खुद विकसित बना रहा है, तो ये सब प्रैक्टिशनर रह चुके हैं, अगर ये छोटे-छोटे इकाइयां स्थापित कर सकें खास तौर पर कंसलटिंग के लिए,  मैन्यूफैक्चरिंग थोड़ा मुश्किल होगा क्योंकि ऑर्म्ड फोर्सेज को हाई स्टैंडर्ड इक्विपमेंट चाहिए, इसके लिए ऑटोमेशन चाहिए होगा। लेकिन अगर हम कंसल्टिंग दुनिया को डिलीवर कर सकें तो इससे लोगों को एक जगह से दूसरी जगह नहीं जाना होगा। हॉस्पिटालिटी सेक्टर के लोगों को रि-स्किल्ड कर अगर हम उन्हें आंत्रप्रेन्योरशिप की तरफ ले जा पाएं, क्योंकि उनके पास वो स्किल हैं जो उत्तराखंड को एक ग्लोबल टूरिस्ट डेस्टीनेशन बना सकती है। लेकिन इसके लिए हमें गैर-परंपरागत तरीके से सोचना होगा, अपने तंत्र को थोड़ा बदलना पड़ेगा, क्योंकि मुझे लगता है कि इन चीजों के लिए जो हमारा मौजूदा तंत्र है, वह काफी हद तक पुराना है, वह एक लीक पर चला आ रहा है। यह हमारे लिए परिस्थितियों, हमारे भविष्य के लिए एप्लीकेबल ही नहीं है। हमारे भविष्य के लिए हम जो करना चाहते हैं, यह उसके माकूल नहीं है। उत्तराखंड ने पिछले 20 साल में एक हाई ग्रोथ रेट हासिल किया है। ग्रोथ करना आसान होता है लेकिन उस ग्रोथ को बनाए रखा काफी चुनौतीपूर्ण होता है। उत्तराखंड के पास न तो जमीन है, न लोग हैं न ही ऐसे रिसोर्स हैं कि वह इसे बड़े स्तर तक ले जाए। इसलिए उत्तराखंड को अपने हाई क्वॉलिटी मैन पॉवर और उसे स्किल्ड करते हुए हमेशा कुछ नया करते रहना पड़ेगा। हमारी क्वांटटिटी भले भी कम हो लेकिन हमारी क्वॉलिटी इतनी अच्छी होनी चाहिए कि उसकी इकॉनमिक वैल्यू हो।

  • आम तौर पर एक धारणा है कि प्राकृतिक तौर पर उत्तराखंड के लोग आंत्रप्रेन्योर नहीं होते, वह सर्विस सेक्टर में ज्यादा मिलते हैं, स्वरोजगार की योजना कितनी सफल होती देखते हैं?

मैं इस बात से बिल्कुल असहमत हूं कि उत्तराखंड के लोग आंत्रप्रेन्योर नहीं होते। उत्तराखंड के लोग मूलतः ईमानदार, परिश्रमी और इंटेलिजेंट होते हैं। मुझे लगता है कि यही सारी चीजें हैं, जो आंत्रप्रेन्योर बनने के लिए जरूरी होती हैं। उनके पास सिर्फ एक चीज नहीं होती है, वह है कैपिटल। यानी उनके पास पैसा नहीं होता है काम-धंधे में लगाने के लिए। उनके पास आइडिया होते हैं लेकिन पूंजी ही एक ऐसा फैक्टर है जो उनकी राह की मुश्किल होता है। इसकी की वजह से वह सारी मेहनत करते हैं दूसरों के लिए। अगर हम सर्विस सेक्टर कहते हैं, तो वह किसी और की कंपनी में काम करते हैं, किसी और के होटल में काम करते हैं। किसी और को सर्विस प्रोवाइड करते हैं। जब तक वो ऐसा करते रहेंगे तो उनकी स्किल्ड, उनकी मेहनत, उनकी सोच से कोई भी आदमी 10 रुपये कमाएगा और उनको दस पैसे देगा। अब या तो हम ये फैसला कर लें कि हम अपने बच्चों को भविष्य में 10 पैसे के लिए ही तैयार करें। …अगर हमारे पास कमाने की सारी खूबियां हैं, बस पूंजी की समस्या है तो इस समस्या को हल किया जा सकता है। हम इस तरफ दिमाग लगाएं कि हम कैसे इसके लिए रास्ता खोल सकें। नई पीढ़ी को रिस्क लेना का मौका दें, उन्हें पूंजी उपलब्ध करा सकें, उन्हें ट्रेनिंग उपलब्ध कराने की योजनाएं और पॉलिसी बनाएं। लेकिन अगर हमने यह सोच लिया कि आंत्रप्रेन्योर नहीं हो सकते, हम सिर्फ सर्विस सेक्टर हैं, तो हमारा आने वाला भविष्य बहुत कमजोर होगा। आने वाले समय में दुनिया के अंदर नौकरियां होंगी ही नहीं, कोरोना काल ने इस प्रक्रिया को तेज कर दिया है। नौकरी करने वाले होंगे लेकिन नौकरियां नहीं होंगी। कल तो फौज भी तकनीक की तरफ जाएगी, तो आपके भविष्य के विकल्प काफी लिमिटेड होंगे। समय रहते हमें अपना माइंडसेट बदलना चाहिए, हम यह देखते हुए उस प्रॉब्लम को हल करें कि पूंजी कैसे जुटाई जाए, कैसे खर्च किया और कैसे उसे लाभ देने वाला बनाएं कि हमारे राज्य में लोग स्वरोजगार की तरफ आगे बढ़ें।

  • छोटी कंपनियों, आईटी इंडस्ट्री को पहाड़ी इलाकों तक लाने के लिए सरकार को क्या करना चाहिए?

सरकार को सबसे पहले अपना एक विजन स्पष्ट करना चाहिए कि अगले 20 साल में वह कहां इस राज्य को ले जाना चाहते हैं। वह किस तरह का विकास करना चाहते हैं। इसे लेकर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर एक संवाद होना चाहिए। दुनिया की परिस्थितियों को देखते हुए सरकार को कुछ ऐसी नीतियों का निर्माण करना चाहिए जो पहाड़ के अंदर क्लस्टर तैयार करें। जहां कंपनियां आकर कम खर्च पर बेहतर मैनपॉवर के साथ अच्छा आउटपुट दे सकें। चाहे वह आई कंपनियां हों, चाहे वो छोटे उद्योग हों। सरकार की भूमिका उन क्लस्टर की पहचान करके वहां थोड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करके उसके आर्थिक गतिविधि का केंद्र बनाएं। अभी उत्तराखंड की सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमारी सोच सड़क, घर, स्कूल को लेकर है। यह सब भी जरूरी है, हमने काफी हद तक इसे हासिल भी किया है लेकिन आगे अगर पहाड़ में नौकरी ही नहीं होगी तो वहां के स्कूल में कोई जाएगा ही नहीं, वहां लोग नहीं होंगे तो अस्पताल के डॉक्टरों को तनख्वाह ही नहीं मिल सकेगी तो ये लोग वहां जाने से बचेंगे। आपको कहीं न कहीं आर्थिक गतिविधियों का चक्र शुरू करना होगा। मुख्य मुद्दा यह रहता है कि हम कैसी आर्थिक गतिविधियों की बात कर रहे हैं, जो हम पहाड़ों में शुरू कर सकें।

  • एक बड़ी चुनौती पहाड़ी क्षेत्रों में आधुनिक शिक्षा, मेडिकल जैसी जरूरी सुविधाओं को पहुंचाने में सामने आती रही है, यह पलायन का कारण भी रहा है, इसमें क्या किसी तरह का नीतिगत बदलाव देखते हैं?

ऐसा करना का समय आ गया है, क्योंकि वहां की गतिविधियां आर्थिक तौर पर व्यवहारिक नहीं हैं, इसीलिये पलायन हो रहा है। गांव में दिक्कतें हैं, अस्पताल में समस्याएं हैं। स्कूल की बिल्डिंग है तो टीचर नहीं है, टीचर हैं तो बच्चे नहीं हैं। सवाल यह है कि पलायन क्यों हो रहा है। पलायन इसलिये हो रहा है कि आपके पास वहां पर किसी को देने के लिए कुछ नहीं है। पलायन को रोकने का एक ही तरीका हो सकता था कि आपकी वहां पर आर्थिक गतिविधियां इतनी अधिक हों कि वहां मद्रास का आदमी काम करने आना चाहे। आदमी पलायन तब करता है जब उसे किसी जगह पर अपना भविष्य नहीं दिखता। आप सिर्फ स्कूल और बिल्डिंग देके लोगों को नहीं रोक सकते, वहां उन्हें भविष्य दिखना चाहिए। अगर वहां भविष्य उज्जवल होगा तो बाहर का आदमी भी आना चाहेगा। अगर आप ऐसा भविष्य दे देते हैं, जैसा स्विट्जरलैंड देता है तो अमेरिका का भी आदमी आएगा। इसके लिए उस स्तर की सोच से आगे बढ़ना होगा। हमें ऐसी नीतियों का गठन करना होगा जिससे हम पहाड़ के अंदर इस स्तर का विकास कर सकें कि हम पलायन न रोकें बल्कि हॉर्वर्ड से पढ़े लड़के को यह कह सकें कि उत्तराखंड में अपना प्लांट लगा। अपना आइडिया यहां पर जनरेट कर। जब आप ऐसे सोचेंगे, तब आपके इकॉनमिक क्लस्टर बनेंगे। तब आप देखेंगे कि आपके अस्पताल, स्कूल सब अपने आप भर जाएंगे। लोग खुशी-खुशी वहां रुकेंगे, क्योंकि वह अपने बच्चों का वहां भविष्य देख पाएंगे।

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