मॉर्डन, स्मार्ट, टेकसेवी होगी उत्तराखंड पुलिस, धरातल पर दिखेगी ‘खाकी में इंसान’ की परिकल्पना

मॉर्डन, स्मार्ट, टेकसेवी होगी उत्तराखंड पुलिस, धरातल पर दिखेगी ‘खाकी में इंसान’ की परिकल्पना

पुलिसिंग को लेकर हमारी परिकल्पना है कि खौफ बदमाशों में हो, आम लोगों में नहीं। लोगों में पुलिस के प्रति पॉजिटिव भाव जागे। उन्हें लगे कि पुलिस आ गई है तो मैं सुरक्षित हूं। क्राइम नहीं होगा, पुलिस सब संभाल लेगी। आम आदमी को लगे कि मैं थाने जाऊंगा तो मेरे साथ दुर्व्यवहार नहीं होगा। अगर मैं शिकायत लेके जाऊंगा तो मुझे पीड़ित की तरह देखा जाएगा। ये टॉरगेट लेकर हम चले हैं। – अशोक कुमार, डीजीपी

लोगों को एक अच्छी पुलिस व्यवस्था देने, पुलिस के मानवीय पहलू को उजागर करने और खामियों को खत्म कर देने की दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ आईपीएस अशोक कुमार ने उत्तराखंड के नए पुलिस प्रमुख की जिम्मेदारी संभाली। उत्तराखंड पुलिस को एक स्मार्ट, रिस्पोंसिव, रिस्पोंसिबल पुलिस फोर्स के रूप में ढालने के लिए उन्होंने कई अहम कदम उठाए हैं। उनका जोर इस बात पर है कि उत्तराखंड पुलिस देश की सबसे स्मार्ट और टेकसेवी पुलिस में से एक हो। साथ ही लोगों में पुलिस को लेकर बनी धारणा बदले और पुलिस का मानवीय चेहरा लोगों के बीच जाए। हरियाणा के एक गांव से निकलकर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ तकनीकी संस्थानों में से एक आईआईटी दिल्ली में पढ़ने और भारतीय पुलिस सेवा के एक शानदार करियर के दौरान अशोक कुमार ने पुलिस के मानवीय रुख को लोगों के बीच रखने पर सबसे ज्यादा जोर दिया। उनकी कोशिशों की बानगी पूरे देश ने कोरोना काल में देखी, जहां उत्तराखंड पुलिस को देवभूमि के देवदूत बताया गया। अब सूबे के डीजीपी की जिम्मेदारी संभालने के बाद उनका जोर उत्तराखंड पुलिस को एक आधुनिक पुलिस बल बनाने पर है। यह कैसे होगा, इसके लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं, इस पर हिल-मेल के अर्जुन सिंह रावत से हुई बातचीत में डीजीपी अशोक कुमार ने विस्तार से बताया…।

एक राज्य के रूप में उत्तराखंड के सफर को करीब से देखने वाले डीजीपी अशोक कुमार की गिनती देश के शीर्ष कर्मठ आईपीएस में होती है। 1989 में पुलिस सेवा में आने से पहले उन्होंने आईआईटी दिल्ली से बीटेक और थर्मल इंजीनियरिंग में एमटेक किया। अपनी नियुक्ति के शुरुआती वर्षों में अशोक कुमार ने एएसपी इलाहाबाद के तौर पर काम किया। वह 1992 में अयोध्या प्रकरण के दौरान वहां तैनात रहे। इसके बाद उन्होंने बतौर एसपी शाहजहांपुर, बागपत, रामपुर में सेवाएं दीं। वह मैनपुरी और मथुरा के एसएसपी भी रहे। जहां तक उत्तराखंड में नियुक्ति की बात है तो अशोक कुमार ने एडीशनल एसपी नैनीताल, एसपी चमोली के तौर पर जिम्मेदारी संभाली। खास बात यह है कि वह एक पुलिस अधिकारी के तौर पर उत्तराखंड आंदोलन के साक्षी रहे हैं। उन्होंने राज्य गठन से पहले ऊधम सिंह नगर, हरिद्वार में भी सेवाएं दीं। इसके बाद 2004 में हरिद्वार के एसएसपी रहे।

उत्तराखंड में पुलिस के लिए ढांचागत सुविधाएं उपलब्ध कराने में भी अशोक कुमार का अहम रोल रहा है। डीआईजी हेडक्वॉर्टर रहने के दौरान उन्होंने पुलिस मुख्यालय, पुलिस लाइन, पीएसी, पीटीसी तथा कई थानों एवं चौकियों के नए भवनों का नए डिजाइन के साथ निर्माण करवाया। हरिद्वार में मेला कंट्रोल रूम भी उन्हीं की देखरेख में बना। वह 2007 से 2009 के बीच आईजी गढ़वाल और आईजी कुमाऊं भी रहे हैं। यही वजह है कि उन्हें उत्तराखंड को अच्छी तरह से समझने वाला पुलिस अधिकारी कहा जाता है। अशोक कुमार ने साल 2010 में डीआईजी सीआरपीएफ की जिम्मेदारी भी संभाली। इसके अलावा वह बीएसएफ में आईजी प्रशासन भी रहे।  वह बंगाल और पंजाब में भी बल के आईजी रहे। अशोक कुमार को 2006 में पुलिस पदक, 2013 में राष्ट्रपति पुलिस पदक, कोसोवो में संयुक्त राष्ट्र मिशन में सेवाएं देने के लिए यूएन मेडल एंड बार जैसे सम्मान मिले हैं।

उत्तराखंड में आपने स्मार्ट पुलिसिंग की अवधारणा रखी है, इसके लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

हम उत्तराखंड पुलिस को आधुनिक, तकनीकी रूप से दक्ष, स्मार्ट, रिस्पांसिव, जवाबदेह और पारदर्शी पुलिस बनाना चाहते हैं। पुलिस का तकनीकी तौर पर दक्ष होना जरूरी है, क्योंकि आज के जमाने में अपराधी भी टेकसेवी होता जा रहा है। इसके लिए हमने यूनीफॉर्म से लेकर, इक्विवमेंट तक में कुछ ने कुछ एलिमेंट्स डालने की कोशिश कर रहे हैं। हम अभी बहुत सारे नए सिस्टम लागू करेंगे, जो अभी पाइपलाइन में हैं, इसमें ई-बीट बुक, सिटी पुलिस के लिए स्मॉल वेपन। यानी पुलिसकर्मियों को इलेक्ट्रॉनिक बीट बुक दी जाएगी। सिटी पुलिस से लांग रेंज वेपन राइफल आदि हटाकर पिस्टल जैसे छोटे हथियार लेकर आएंगे। इस तरह के हमारे कई सारे प्रयास हैं। साइबर क्राइम बढ़ता जा रहा है, इसके लिए हमने ई-सुरक्षा चक्र चलाया है, उसके माध्यम से हम सभी लोगों को प्रशिक्षित कर रहे हैं। इसमें हमारे इंस्पेक्टर, सब-इंस्पेक्टर हैं, सर्विस स्टॉफ है, ताकि उन्हें ऐसा महसूस न हो कि यह कैसा क्राइम आ गया है, जिसका हमें पता ही नहीं है। कोशिश यही है कि ये सभी साइबर क्राइम की डिटेल्स समझ सकें। हर फ्रंट पर हम बहुत सारी चीजों को ऑनलाइन कर रहे हैं। शिकायतों की हैंडलिंग को ऑनलाइन कर रहे हैं।

आपका जोर पुलिस को जवाबदेह और परफॉर्मर बनाने पर है, इस दिशा में क्या नई पहल की गई है?

हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी लोगों के प्रति है। पुलिस जनता के लिए बनी है। हमें जनता के सहयोग से पुलिसिंग करनी है, उसमें चाहे वह क्राइम कंट्रोल हो, चाहे लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखना हो, हम जनता के सहयोग से मिलकर कदम उठाते हैं। क्राइम कंट्रोल में हम प्रीवेंटिंव स्टेप पहले उठाते हैं, अपराधियों के पीछे पुलिस पड़ेगी तो अपराधी को क्राइम करने का मौका ही नहीं मिलेगा। हमने यही रणनीति अपनाई है कि क्रिमिनल को फॉलो करें, क्राइम को नहीं। हम क्रिमिनल के पीछे पड़े रहेंगे तो क्राइम होगा ही नहीं। हमें क्राइम के पीछे भागना ही नहीं पड़ेगा। सारी रणनीति हम लगा रहे ताकि लोगों के प्रति हमारी जवाबदेही हो। जो पुलिसकर्मी लॉ एंड ऑर्डर में, क्राइम कंट्रोल में सफल नहीं होते हैं, उन्हें जवाबदेह बनाया जाए। जो लोगों के प्रति संवेदनशील नहीं हैं, पीड़ित के प्रति, उनकी समस्याओं के प्रति संवेदनशील नहीं हैं, उन्हें जवाबदेह बनाया जाए। जो लोगों की शिकायत दर्ज नहीं करते हैं, उन पर कार्रवाई की जाए। शिकायत मिलने के बाद उस पर समयबद्ध कार्रवाई भी हो, ये भी हम सिस्टम में डाल रहे हैं।

लोगों के मन में पुलिस को लेकर एक झिझक रहती है, इसे खत्म करने के लिए क्या कोई योजना है?

झिझक तब दूर होगी, जब हमारी इमेज बदलेगी। पुलिस की इमेज पुरानी चली आ रही है, चाहे उसे ब्रिटिश समय से चली आ रही बोलें, या फिल्मों ने इसे जो बैकग्राउंड दिया है, वो कारण बताएं, कहीं न कहीं पुलिस और पब्लिक के बीच एक दूरी है, एक कम्युनिकेशन गैप है। हमें इसको खत्म करना है, जब ये खत्म होगा तभी ये झिझक खत्म होगी। हमारी परिकल्पना पुलिस के बारे में ऐसी है कि पुलिस का खौफ बदमाशों में हो, शरीफ लोगों में नहीं। आम लोगों में पुलिस को देखकर पॉजिटिव भाव जागे। शरीफ आदमी को लगे कि पुलिस आ गई है तो मैं सुरक्षित हूं। क्राइम नहीं होगा, पुलिस सब संभाल लेगी। आम आदमी को लगे कि मैं थाने जाऊंगा तो मेरे साथ दुर्व्यवहार नहीं होगा, मेरा सम्मान होगा। अगर मैं शिकायत लेके जाऊं तो पीड़ित की तरह ट्रीट होना चाहिए। जैसे हॉस्पिटल में जाने पर डॉक्टर ट्रीट करता है, ऐसे ही हमें पुलिस थानों, चौकियों पर पीड़ित को ट्रीट करना है। ये सारे टॉरगेट लेकर हम चले हैं। अगर हम 100 फीसदी सफल होते हैं तो निश्चित तौर पर झिझक खत्म होगी। एक और हमें संवाद स्थापित करना है। हम जहां भी जाते हैं, संवाद स्थापित करते हैं। जहां भी मैं गया हूं चाहे वह हल्द्वानी हो, गोपेश्वर, कर्णप्रयाग हो, रुड़की हो, सभी जगह हमने लोगों से संवाद स्थापित किया है, क्योंकि कोई भी पुलिस व्यवस्था तभी सफल होगी जब वह लोगों के साथ मिलकर की जाए। पुलिस लोगों के लिए बनी है, अगर यह उनके लिए बनी है तो उनको पक्ष बनाना पड़ेगा, उनको इनवॉल्व करके चलना पड़ेगा।

आपके डीजीपी बनने के बाद पहला सबसे बड़ा आयोजन हरिद्वार कुंभ है, कैसी तैयारी चल रही है?

कुंभ के लिए हमारी पूरी तैयारियां हैं। शुरुआती दौर में लग रहा था कि कोरोना की वजह से कुंभ शायद नहीं हो पाए, अंतिम निष्कर्ष तो अभी निकलना बाकी है, कोरोना की वैक्सीन आ गई है, उसे लगाने का काम शुरू हो रहा है, इसका क्या असर रहता है। अगर कुंभ की पाबंदियां कम हुईं और लोगों के मन से डर हटा तो निश्चित तौर पर भीड़ बढ़ेगी। हम लोग उसकी तैयारी कर रहे हैं। हर एंगल से तैयारी की जा रही है। मुझे विश्वास है कि कुंभ को हम शांतिपूर्वक तरीके से कराने में सफल होंगे।

पुलिसकर्मियों खासतौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में बल को आधुनिक तकनीक से लैस करने की क्या योजना है?

हमारी कोशिश है कि हमारी कोशिश है कि पुलिसकर्मी को मॉर्डन, स्मार्ट और तकनीकी तौर पर दक्ष बनाएं। कांस्टेबल के लिए कम से कम 12वीं तक की योग्यता है, सब इंस्पेक्टर के लिए ग्रेजुएशन है, तो हर आदमी तकनीकी तौर पर दक्ष नहीं होता। न ही हर आदमी का साइंस बैकग्राउंड है। इसके बावजूद जितना अधिकतम हम कर सकते हैं, उनको ट्रेनिंग दे रहे हैं। सीसीटीएनएस सिस्टम है हमारा, एफआईआर सब कंप्यूटराइज्ड हो गया है। रिकॉर्ड्स हमारे कंप्यूटराइज्ड होते जा रहे हैं। मुझे विश्वास है कि हम देश की सबसे स्मार्ट और टेकसेवी पुलिस में से एक बनेंगे।

पुलिसकर्मियों के वेलफेयर को लेकर आपने कुछ पहल की हैं, आगे क्या कदम उठाने का विचार है?

वेलफेयर के फ्रंट पर मेरी सोच यह है कि जब हम उनसे काम लेते हैं, तो काम में कोई कोताही नहीं। 100 फीसदी काम और अनुशासन भी 100 प्रतिशत। ऐसे में उनके वेलफेयर का ख्याल रखना भी हमारी जिम्मेदारी बनती है। फिर चाहे वह उनके रहने की व्यवस्था हो, ट्रांसफर से जुड़े मामले हों, कार्मिक मामले हों, इसके लिए हमने पुलिस मुख्यालय में शिकायत निवारण सेल बना रखी है। इसे ऑनलाइन कर दिया गया है। वो अपनी शिकायत ऑनलाइन, व्हाट्सएप पर कर सकते हैं, उन्हें यहां आने की कोई जरूरत नहीं है। इस तरह से हम उनकी प्रॉब्लम को सॉल्व कर रहे हैं। उनके रहन-सहन का स्टैंडर्ड बढ़ाने की योजना है। एक महीने में ही एक उदाहरण हम पेश करने वाले हैं। देहरादून में बैरकों का स्टैंडर्ड बढ़ा देंगे। उनका रहन-सहन सुधरेगा, जिससे कि उनका काम में मन लगेगा। इसी तरह से उनके औसतन वर्किंग ऑवर 13 घंटे हैं, जब तक वह सीएल नहीं लेता, ये नॉन स्टॉप है। इसमें कोई संडे या हॉलीडे भी नहीं है। इसमें भी कोशिश कर रहे हैं कि सप्ताह में एक दिन वह रिजर्व ड्यूटी पर रहे। यानी छुट्टी तो नहीं होगा लेकिन रिजर्व ड्यूटी होगी। यानी उसे आमतौर पर न बुलाया जाए लेकिन इमरजेंसी पड़ने पर बुला लिया जाए। जवानों के वेलफेयर के लिए इस तरह के प्रयास हमारे चल रहे हैं।  उनके लिए जो बेस्ट पॉसिबिल किया जा सकता है, वह किया जाए।

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पहाड़ी जिलों से पुलिसकर्मियों को अवकाश की पहल हुई है, यह पूरे राज्य में कब तक अमल में आएगा?

इसमें मुझे जवानों का भी सहयोग चाहिए। जवान अगर इसे छुट्टी समझने लगेगा तो संभव नहीं होगा। नीचे के जिलों में इसलिये नहीं किया गया है क्योंकि अभी कुंभ की तैयारियां चल रही हैं। बहुत सारी ड्यूटियां कुंभ में चली गई हैं। दूसरा नीचे के जिलों में ज्यादा लोग हैं। हम ट्रायल पर देख रहे हैं कि सातवां दिन रोटेशन से होगा, यह वीकएंड नहीं होगा। किसी को सोमवार, किसी को मंगलवार और किसी को बुधवार को ऑफ मिलेगा। ऑफ ड्यूटी के रूप में 1/7 लोगों को एक दिन ऑफ मिलेगा। उस दिन उनकी संतरी या पिकेट ड्यूटी नहीं लगेगी। उन्हें थानों में ही रहना होगा, रिजर्व ड्यूटी होगी। उस दिन वे अपने निजी जरूरी काम कर सकते हैं। यही इसका उद्देश्य है, अगर कहीं इसका दुरुपयोग हुआ तो यह सफल नहीं हो पाएगा। हमारे जवानों को भी इसमें सहयोग देना पड़ेगा तभी यह प्रयोग सफल हो पाएगा।

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कोरोना महामारी ने पुलिस की एक अलग छवि पेश की, अब इसे और पुख्ता बनाने के लिए क्या विचार है?

कोरोना हमारे लिए एक अभूतपूर्व ड्यूटी थी। इससे पहले इस तरह की ड्यूटी देश की पुलिस ने ही नहीं की थी। इसके समकक्ष कोई ड्यूटी थी तो वह कर्फ्यू ड्यूटी थी। लेकिन इसमें माहौल एक प्रकार से पूरी तरह अलग था। कर्फ्यू होता है कि आप किसी को बलपूर्वक घर में रोकते हैं, कहीं न कहीं शांति व्यवस्था की समस्या हो रखी होती है। यानी अगर घर से बाहर आ गए तो दंगा हो सकता है। यहां पर क्या है कि हम लोगों की सुरक्षा के लिए लोगों को घर में रहने के लिए कह रहे हैं। इसमें बहुत सारे लोग स्वेच्छा से घर के अंदर थे। कुछ लोग जो अंदर नहीं थे, उनके लिए लॉकडाउन लागू करने में हमें मेहनत करनी पड़ी। फिर एक ऐसा फेज आया जब सड़कों पर पुलिस के अलावा कोई नहीं था। तो सारे काम हमें ही करने थे, फिर चाहे वह राशन-पानी की व्यवस्था है, चाहे वह मेडिकल आदि की व्यवस्था है। चाहे कोई डिलीवरी करानी है। इसलिए मैंने पुलिस को कहा कि इस समय को मानवीय कामों में इस्तेमाल करें। लॉकडाउन दृढ़ता से लागू कराएं। नियम का 100 फीसदी पालन कराएं लेकिन साथ-साथ मानवीय पहलुओं का ख्याल रखें। ऐसा आदेश वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये, लिखित रूप से जरिये दिए गए, इसे लोगों ने आत्मसात किया। फिर सोशल मीडिया में लोगों ने देखा कि पुलिस इतना आगे बढ़कर मानवीय काम कर रही है तो उनका हीरो बनना भी शुरू हुआ। इसने पुलिसकर्मियों को और मोटिवेट किया। इसमें पुलिस की वो छवि निकलकर सामने आई जो उनका सर्वोच्च मानवीय रूप है। बाकी देश में भी इसे फॉलो किया गया। हमारा प्रयास यह है कि जब पुलिस बैक टू हार्डवर्क जाएगी, जहां बहुत सारे इश्यू होते हैं, जहां दो पक्ष होते हैं… एक गिरफ्तारी चाहते हैं, दूसरे नहीं चाहते हैं। तो उसमें कहीं न कहीं पुलिस के लिए चुनौती तो होती है। लेकिन हम तटस्थ रहेंगे, अपना काम सही से करेंगे तो हमारी छवि, हमारी विश्वसनीयता उतनी ही बनी रह सकती है, जितनी कोरोना काल में रही है। इसका प्रयास हम करेंगे। मैं तो हमेशा अपील यही करूंगा कि पुलिस लोगों के लिए बनी है। आप पुलिस के साथ मिलकर काम करें। अगर कोई पुलिसकर्मी आपके साथ गलत करता है तो हमारे संज्ञान में लाएं। हर आम नागरिक का थाने पर स्वागत है। उनकी शिकायतों को गंभीरता से डील किया जाएगा। उनकी हर समस्या का समाधान करने की कोशिश करेंगे।

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