जानेमाने राजनेता, साहित्यकार व शिक्षाविद स्व. कुलानन्द भारतीय के जन्म शताब्दी पर पुस्तक लोकार्पण

जानेमाने राजनेता, साहित्यकार व शिक्षाविद स्व. कुलानन्द भारतीय के जन्म शताब्दी पर पुस्तक लोकार्पण

भारत तब विश्वगुरु था जब वेद उपनिषद पढ़े जाते थे। उन्हीं ग्रंथो से भारत विश्वगुरु कहलाया जाता था। वेद का ज्ञान बताने वाले ब्राह्मण हैं। विज्ञान का मूल श्रोत भी संस्कृत है। हर राष्ट्र का मूल खोजने पर संस्कृत ही मिलेगी। भारतीय संस्कृति को कुलानन्द भारतीय के दृष्टिकोण से देखना होगा, जानना होगा ? यह बात डॉ मुरली मनोहर जोशी ने कही।

सी एम पपनैं

मूर्धन्य साहित्यकार एवं प्रबुद्ध शिक्षाविद स्व. कुलानन्द भारतीय की जन्म शताब्दी (1924-2024) के सु-अवसर पर डिप्टी स्पीकर हाल कांस्टीट्यूशन क्लब में 28 अप्रैल को मंचासीन मुख्य अतिथि पद्मभूषण डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी तथा विशिष्ट अतिथियों में पूर्व राज्यसभा सांसद जनार्दन द्विवेदी, पूर्व विधान सभा अध्यक्ष दिल्ली विधानसभा डॉ. योगानन्द शास्त्री, उप कुलपति दिल्ली शिक्षक विश्वविध्यालय दिल्ली सरकार डॉ. धनंजय जोशी तथा सचिव दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग दिल्ली सरकार कुलानन्द जोशी (आईएएस) के कर कमलों “मानवीय मूल्यों को समर्पित एवं प्रेरक व्यक्तित्व स्व. श्री कुलानन्द भारतीय” पुस्तक का लोकार्पण किया गया।

स्व. कुलानन्द भारतीय जन्म शताब्दी समिति भारती शिक्षण संस्थान द्वारा आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह का श्रीगणेश मंचासीन अतिथियों के कर कमलों दीप प्रज्वलित कर तथा आयोजन समिति द्वारा मुख्य व विशिष्ट अतिथियों का स्वागत अभिनंदन शाल ओढ़ा कर तथा पौंध के गमले व स्मृति चिन्ह प्रदान कर किया गया।

आयोजन के इस अवसर पर समिति प्रमुख संजय भारतीय द्वारा सभी मंचासीन अतिथियों व सभागार में उपस्थित शिक्षा, साहित्य, राजनीति, पत्रकारिता और सामाजिक जीवन से जुड़े सभी प्रबुद्ध जनों का स्वागत अभिनंदन कर कहा गया, आज का दिन गौरवशाली दिन है। “मानवीय मूल्यों को समर्पित एवं प्रेरक व्यक्तित्व स्व. श्री कुलानन्द भारतीय” पुस्तक का लोकार्पण डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी के कर कमलों संपन्न होना उनकी समिति के लिए गौरव की बात है। अवगत कराया गया, पुस्तक के संपादक रमेश कांडपाल हैं।

मूर्धन्य साहित्यकार एवं प्रबुद्ध शिक्षाविद स्व. कुलानन्द भारतीय के कृतित्व व व्यक्तित्व पर मंचासीन विशिष्ट अतिथियों द्वारा विचार व्यक्त कर कहा गया, एक छोटे से गांव से निकल कर देश की राजधानी दिल्ली में इतना बड़ा मुकाम कुलानंद भारतीय जी ने हासिल किया था। सद्गुण व सद विचारों से असंभव को संभव बनाने में वे सिद्धहस्त थे, तभी इतिहास पुरुष बने। उन्होने अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत किया। वे राजनेता से पूर्व अपने को शिक्षक मानते थे। ओजस्वी व्याख्यान देते थे। वे राष्ट्रीय एकता एवं राष्ट्रीय प्रेम के उपासक थे। उनका यही राष्ट्रप्रेम उनकी रचनाओं में दृष्टिगत होता था। एक साहित्यकार के रूप में भारतीय जी ने कविता, लेख, उपन्यास, संस्मरण इत्यादि इत्यादि विधाओं में अपनी लेखनी चलाई। फर्श से अर्श तक की विकास यात्रा उन्होने पूर्ण की थी।

प्रबुद्घ वक्ताओं ने कहा, कुलानन्द भारतीय जी अधिकांशतया राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय रहे, किंतु राजनीति के दुष्चक्र से वे सदेव दूर रहे। यह उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी। वक्ताओं द्वारा अवगत कराया गया, 1952 शक्ति नगर दिल्ली में कुलानंद भारतीय द्वारा विद्यालय की स्थापना की गई थी। 1969 में वे दिल्ली युवा कांग्रेस राष्ट्रीय एवं 1971 से 1980 तक जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय युवा केंद्र के अध्यक्ष रहे थे। 1962 से 1975 तक नगर निगम सदस्य रहे, साथ ही कई समितियों के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष पदों को उन्होंने सुशोभित किया था। 1972 से 1975 तक वे विद्वत परिषद के सदस्य रहे थे। 1983 से 1990 तक दिल्ली प्रशासन शिक्षा विभाग में कार्यकारी पार्षद (शिक्षा मंत्री) रहे थे। वक्ताओं द्वारा कहा गया, एक शिक्षामंत्री के रूप में कुलानंद भारतीय द्वारा भारत की शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन करने हेतु तथा शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठाने में मत्वपूर्ण योगदान दिया गया था। उनके अथक परिश्रम के फलस्वरुप देश में शिक्षा की उन्नति हुई थी।

प्रबुद्घ वक्ताओं ने कहा, गांधी जी के आदर्श व उद्देश्य पर संचालित स्कूल प्रेम विद्यालय ताड़ीखेत (रानीखेत) की स्वरोजगार से जुड़ी शिक्षा पद्धति से वे सदा प्रभावित रहे थे। देश की आजादी के आंदोलन में भागीदारी की थी। आजीवन खादी के कपड़े पहन कर खादी को अहमियत दी थी। कुलानन्द भारतीय जी ने कठिन परिस्थितियों में जीवन जी कर जन के अभावों व चुनौतियों को समझा था। वे सामाजिक आंदोलनों में अहिंसक भाव से संघर्ष किया करते थे। साहित्यिक, सामाजिक कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति सहज रहती थी। वे कोई मुद्दा नहीं रखते थे, जो उनकी सहजता का पक्ष रखता था।

प्रबुद्ध वक्ताओं द्वारा कहा गया, आज अगर मुद्दों पर संघर्ष किया जा रहा है, तो समझना होगा आंतरिक विकास कितना हुआ है? आज राजनैतिक स्वार्थ बढ़ने से बदलाव हुआ है। कुलानन्द भारतीय जी सचमुच भारतीय थे। उन्होने उस जमाने में प्रतिमान हासिल किया था, जब वे कुछ नहीं थे। वे संघर्ष के बल आगे बढ़े थे। उनका जीवन मूल्यों को समर्पित था। उनके जीवन दर्शन को शब्दों में सीमित नहीं किया जा सकता, इतने गुण थे उनमें। व्यक्ति चला जाता है, उसके विचार नहीं जाते हैं। भारतीय जी के विचार दर्शन को आगे बढ़ाना होगा। आज की पीढ़ी का दायित्व बनता है। उनके आदर्शो, विचारों, संस्कारों को अपने जीवन में उतारें।

आयोजन मुख्य अतिथि भाजपा वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा, मेरे दृष्टि से आयोजित कार्यक्रम का महत्व है। कुलानन्द भारती अल्मोड़ा जिले के जिस गांव में पैदा हुए थे वह क्रांतिकारियों का गांव था। सल्ट और स्याल्दे में जाकर स्वाधीनता की लड़ाई में अंग्रेजों को उन गांवो में गोलियां चलानी पड़ी थी, इस घटना से उन गांवों के आंदोलन को समझा जा सकता था। उन्होंने कहा, एक समय था उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल के इन गांवों में कुछ नही था। जाना कठिन था। स्वाधीनता सेनानियों ने त्याग किया था, बलिदान दिया था। कुलानंद भारतीय जी के माध्यम से उन स्वाधीनता सेनानियों को याद करता हूं, श्रद्धांजलि देता हूं।

डॉ. जोशी ने कहा, सच है, आज के वातावरण में कुलानन्द भारतीय राजनीति में रह सकता है, असंभव है। भारतीय जी समाज के लिए समर्पित थे, ऐसे व्यक्ति आज ढुढ़े नहीं मिल सकते हैं। उस समय समर्पित लोग राजनीति में होते थे। उन्होंने कहा गया, कुलानन्द भारतीय का मुख्य कार्य था राजधानी दिल्ली में संस्कृत अकादमी की स्थापना करवाना। संस्कृत को उसका उचित स्थान मिले जानना जरूरी है, उनकी यह सोच रही। डॉ. जोशी ने कहा, विश्वगुरु हम बन सकते हैं, संस्कृत का अध्ययन, उन्नयन सबसे महत्वपूर्ण है। अंग्रेजों ने संस्कृत को भारत के जीवन से हटाया। दुनिया के विद्वानों ने कहा, भारत विश्वगुरु है। किसी देश के विद्वान ने अपने रचित ग्रंथ में कहा था, सबसे विद्वान देश भारत है, समस्त विद्याओं का ज्ञाता है। भारत के लोग जो जानते हैं उसका अपने ग्रंथ में बखान किया।

उन्होंने कहा, हम जिस कालखंड में विश्वगुरु कहे जाते थे उसे जानना होगा। आज हम स्वयं कहे हम विश्वगुरु हैं, बात अलग है। अंग्रेजों ने भारत की संस्कृति व संस्कृत को सबसे पहले नष्ट किया था। अंग्रेजों ने अंग्रेजी के पठन-पाठन को हर विषय में बल दिया। हमारा संविधान कहता है, हम जो भी शब्द लेते हैं, उनका श्रोत संस्कृत है। वहीं से हर विषय के शब्द लिए जा सकते हैं। संस्कृत को स्मरण करना चाहिए जो आवश्यक भी है।

डॉ. जोशी ने कहा, भारत तब विश्वगुरु था जब वेद उपनिषद पढ़े जाते थे। उन्हीं ग्रंथो से भारत विश्वगुरु कहलाया जाता था। वेद का ज्ञान बताने वाले ब्राह्मण हैं। विज्ञान का मूल श्रोत भी संस्कृत है। हर राष्ट्र का मूल खोजने पर संस्कृत ही मिलेगी। भारतीय संस्कृति को कुलानन्द भारतीय के दृष्टिकोण से देखना होगा, जानना होगा, आप क्या थे? कहा गया, साहित्य से संस्कृत को निकाल देंगे, तो क्या मिलेगा? आवश्यकता है, इस बात को जानने की भारत क्या है ? क्या था ? आज कहां तक जा सकता है?

उन्होंने कहा, देश की राजधानी दिल्ली में कुलानंद भारतीय द्वारा संस्कृत अकादमी की स्थापना करना दूरदर्शी सोच थी। जो उद्देश्य के लिए खोली गई थी, जिससे भारत की आत्मा को जाना जा सके। कहा गया, भारतीय ज्ञान परंपरा व्यापक है, भारतीय शिक्षा प्रणाली में। जिन्होंने शिक्षा नीति लिखी है, उन्हें ही मालूम नहीं है। हमारे देश की जो न्याय पद्धति चलती थी उसका अता पता नहीं है। ब्रिटिश कानून चलायमान हैं। डॉ. जोशी ने कहा, कुलानान्द भारतीय जी ने बताया संस्कृत के बिना भारत का ज्ञान अधूरा व असंभव है। संविधान निर्माण के वक्त भी संविधान की भाषा संस्कृत हो जोर दिया गया था। तब मौका था अगर कुछ बड़े कद के लोग संस्कृत भाषा का समर्थन करते तो बात कुछ और होती। देवनागिरी को माना गया जिससे काम चल रहा है। कहा गया, हमें की गई गलतियों के बावत सोचना चाहिए। जो बीज बोया था आगे बढ़ेगा। समय आयेगा आगे आना ही होगा। तभी व्यवस्थाए ठीक होंगी।

डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा, उपभोग पर आधारित व्यवस्थाए विनाशकारी हैं। विकास को और उपभोग को समानार्थी मान लिया जाए यह और भी ज्यादा विनाशकारी है। प्रतिस्पर्धा के दौर में एक दूसरे को पटकनी देकर ही मात दी जा सकती है। व्यवस्थाए संयुक्त राष्ट्र की देन हैं वही रोक रहा है पटकनी को। आज का दर्शनशास्त्र विनाशकारी है। जो प्रेरित नहीं कर सकता यह अधिक से अधिक संघर्ष करने को प्रेरित करता है। उन्होंने कहा गया, राह उपनिषद से मिलेगी। वक्तव्य स्माप्त करने से पूर्व डॉ. जोशी ने कहा, स्मरण करता हूं, कुलानंद भारतीय के आदर्शो को साकार करने की शक्ति मिले, प्रार्थना करता हूं। उन्हें श्रद्धांजलि।

सभी मंचासीन अतिथियों व खचाखच भरे डिप्टी स्पीकर हाल में उपस्थित प्रबुद्घ जनों का आयोजन में सम्मिलित होने हेतु आभार व्यक्त करने तथा आयोजित कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा करने से पूर्व लोकार्पित पुस्तक संपादक रमेश कांडपाल द्वारा अवगत कराया गया, उत्तराखंड में भी संस्कृत अकादमी की स्थापना कुलानंद भारतीय की सलाह पर ही राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी द्वारा की गई थी। आयोजित जन्म शताब्दी कार्यक्रम का प्रभावशाली मंच संचालन प्रमोद घोड़ावत द्वारा बखूबी किया गया। राष्ट्रीय गान के के साथ आयोजित जन्म शताब्दी आयोजन का समापन हुआ।

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