खेती हो, कंपनी खड़ी करना हो या कोई दूसरा कामकाज… सफल होने के लिए एक बेहतर प्रबंधन मॉडल की जरूरत होती है। किसी काम की सफलता उसकी तैयारी पर निर्भर करती है। हाल के वर्षों में पहाड़ों में जैविक खेती का ट्रेंड बढ़ रहा है। पारंपरिक खेती से इतर रासायनिक खाद से कम पैसे में स्वास्थ्य के लिए हितकर खेती की जाने लगी है। हालांकि पहली नजर में यह परेशानी भरा, बाजार कहां मिलेगा, फायदा कितना होगा, सूअर-बंदर तो नहीं खा लेंगे… ऐसे सवालों का सामना होता है। पर आज हम जिस फार्म ग्रुप की बात करने जा रहे हैं उसके सोशल-बिजनस मॉडल से न सिर्फ किसानों को फायदा हुआ है बल्कि बेहतर प्रबंधन से आसपास के लोगों को स्थायी रोजगार भी मिल गया है।
दीर्घायु आर्गेनिक्स को शुरू हुए डेढ़ साल से ज्यादा वक्त बीत चुका है। पहाड़ों पर खासतौर से कुमाऊं क्षेत्र में रानीखेत के आसपास यह समस्या है कि जो लोग अपनी दालें या ऐसी दूसरी पारंपरिक खेती करते हैं तो उसके अच्छे दाम नहीं मिलते। लोग उपयुक्त मार्केट तक पहुंच ही नहीं पाते हैं। दीर्घायु ऑर्गेनिक्स की अवधारणा को तारा चंद्र उप्रेती ने साकार करने की पहल की। पहला कदम उन्होंने बढ़ाया लेकिन आज कई बड़े फार्म इससे जुड़ गए हैं। दीर्घायु ऑर्गेनिक्स के सीईओ और निदेशक अतुल पांडे के कहते हैं, कोई भी बड़ा काम जब शुरू करना होता है तो केवल आप नहीं, आपको पूरे इलाके को शामिल करना होता है।
इसका सबसे अच्छा उदाहरण रामगढ़ की आड़ू है। यहां आड़ू केवल एक किसान नहीं उगा रहा है, पूरा रामगढ़ का बेल्ट उगाता है। इसका फायदा यह हुआ कि अच्छे आड़ू के बीज मिले, लोगों को बांटे, उत्पादन अच्छा हुआ, प्रचार हुआ और आज आलम यह है कि जब आड़ू का सीजन आता है तो रामगढ़ में मुंबई से 200 ट्रक आड़ू लेने आते हैं और निर्यात भी होता है। हमारा भी आइडिया कुछ इसी तरह का था। एक तो पारंपरिक खेती से किसान को फायदा नहीं मिल रहा। कुछ कमियां हैं, पानी हो या जानवरों ने दुखी कर रखा हो। लोगों की जमीन खाली रही तो पलायन होने लगा। हमने सोचा कि पलायन रोकने के लिए पहले किसान को ऐसे उन्नत बीज दिए जाएं जिससे उसे कुछ प्रॉफिट तो हो।
दीर्घायु का कामकाज संभालने वाले कुलदीप यादव बताते हैं कि हम काफी समय से ये सब देख रहे थे। हमने फार्मिंग शुरू की और बाहर के बाजार में बेचने का प्लान तैयार किया। दरअसल, यहां किसानों के सामने बड़ी समस्याएं थीं। हमने सोचा कि छोटे किसानों की चीजें हम अपने प्लेटफॉर्म पर बेचना शुरू करें। उसकी प्रोसेसिंग हम खुद करें। इससे उन्हें बाजार के रेट से ज्यादा दाम मिलेगा और हमें भी लाभ होगा। रानीखेत में झलूड़ी गांव से इसकी शुरुआत की गई। फॉर्म पर औसतन 7-10 महिलाएं और 4 पुरुष काम करते हैं। लोगों को लगातार रोजगार मिलता रहता है। इसके साथ ही एक प्रोसेसिंग यूनिट भी तैयार की गई। खेत से जैसे हल्दी खोदी गई, उसे धुलाई कर कटिंग कर सुखाया जाता है। इसके बाद एक बार फिर साफकर उसे पीस देते हैं। अदरक, लहसुन के लिए भी प्रोसेसिंग का काम 9 महिलाओं के जिम्मे है और मिस्टर हरीश रावत इसका सुपरविजन करते हैं।
हम पहाड़ में कैसे सोशल-बिजनेस मॉडल के जरिये बदलाव ला सकते हैं, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है दीर्घायु आर्गेनिक्स। यह स्थानीय महिलाओं, युवाओं को खेती के साथ जोड़कर उनके जीवन में बदलाव लाने की कोशिश है। युवाओं को यह बात समझनी होगी कि आप कंपनी वाली नौकरी से ज्यादा अपने पहाड़ में रहकर कमा सकते हैं बस सोचने का तरीका बदलना होगा। – तारा चंद्र उप्रेती
दीर्घायु फार्म में अदरक, लहसुन, हल्दी, ग्रीन-येलो-रेड चिली, सुपरफूड केल जैसी फसलें उगाई जाती है। कुलदीप ने बताया कि केल हमारी सुपर क्रॉप है। इसमें पोषक तत्व और फाइबर काफी ज्यादा होता है। इसे सलाद में खाया जाता है और सुखाकर पाउडर भी बनाया जाता है, जिसकी मांग जिम में होती है। वह कहते हैं कि जो न्यूट्रीशन वैल्यू हिल्स में होती है वह मैदानी इलाकों में पैदा होने वाली केल में नहीं होती है। फिलहाल कोरोना काल में 13 महिला- पुरुष काम कर रहे हैं।
दीर्घायु का बिजनेस मॉडल
बिजनेस मॉडल की बात करें तो दीर्घायु ऑर्गेनिक्स में एक तो अपना खुद का प्रोडक्शन होता है और दूसरा आसपास के गांवों के उन किसानों की मदद होती है जो जैविक खाद का इस्तेमाल करके फसल उगाते हैं। किसानों को प्रोत्साहित कर बीज, कीड़े से बचाने के लिए नीम ऑइल जैसी चीजें देने में भी मदद की जाती है। किसानों को फायदा यह होता है कि जो चीज बाजार में जिस रेट पर मिल रही है दीर्घायु के जरिए उन्हें रेट ज्यादा मिल जाता है। दीर्घायु ऑर्गेनिक्स का नोएडा में भी ऑफिस है और उसके जरिए यहां के उत्पाद को ऐमजॉन, फ्लिपकार्ट और दूसरे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर बेचा जा रहा है। दिल्ली में कुछ बड़े आउटलेट्स पर भी सामान की सप्लाई हो रही है। यानी दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले लोग दीर्घायु ऑर्गेनिक्स की चीजें सीधे खरीद सकते हैं।
अपना फायदा तो है ही, किसानों का ज्यादा
कुलदीप यादव बताते हैं कि 18-20 सालों से वह सामाजिक कार्यकर्ता की तरह काम करते आ रहे हैं। वह कई एनजीओ में काम कर चुके हैं। यूएनडीपी का रानीखेत में एक प्रोजेक्ट चल रहा था तब वह 2003 में यहां पहली बार आए थे। ओएनजीसी से रिटायर्ड डायरेक्टर (एचआर) डीडी मिश्रा के मित्र हैं ताराचंद उप्रेती। मिश्रा जी के साथ हमने रानीखेत इलाके में बागवानी और ऑर्गेनिक खेती की शुरुआत की थी। तय हुआ कि अब इसे बड़े स्तर पर शुरू किया जाएगा। ताराचंद उप्रेती ने ही इसकी पहल की और फंड किया। पहले जमीन लीज पर ली उसमें समस्या आई। फिर जमीन खरीदने और अच्छे किसानों की जमीन लीज पर भी ली गई। उन्होंने कहा कि उप्रेती जी अपने फायदे के बारे में कम और किसानों के फायदे के बारे में ज्यादा सोचते हैं। आज यह देखकर खुशी होती है कि 25 से ज्यादा लोगों को स्थायी रोजगार मिला हुआ है।
उन्होंने कहा कि अगर कोई और किसान जुड़ना चाहता है तो उसका स्वागत है। किसानों की मदद के सवाल पर कुलदीप कहते हैं कि अगर कोई किसान हमारी तरह ऑर्गेनिक खेती कर रहा है और उसे अच्छा दाम नहीं मिलता है तो वह हमसे जुड़कर अच्छा प्रॉफिट कमा सकता है। हम उसके उत्पाद को अपने हिसाब से बाहर या ऑनलाइन बेच लेंगे।
लीक से हटकर खेती
यहां खेती करने वाले किसान सूअर और बंदर से परेशान रहते हैं। अक्सर वे फसलों को नष्ट कर देते हैं। हालांकि हमारी केल जैसी फसल में ऐसा नहीं है। पहली बात तो यह महंगा बिकता है और 9 महीने तक पत्ते देने वाली फसल है। इसे बंदर भी नुकसान नहीं पहुंचाते। उन्होंने कहा कि हमने आसपास के तीन गांव लिए हैं। 10-10 महिलाओं के ग्रुप बनाएं हैं सभी को अलग-अलग तरह के लिए ट्रेंड कर रहे हैं। एक को अचार, दूसरे को पाउडर बनाने और तीसरे ग्रुप को पैकेजिंग में ट्रेंड कर रहे हैं। इससे उनमें एक हुनर आ रहा है और हमारा काम भी आसान हो रहा है। इसके तहत झलूड़ी फार्म में कुल पांच फार्म हैं।
प्रॉफिट पर एक सवाल के जवाब में कुलदीप कहते हैं कि हमने बिजनेस मॉडल भले ही बनाया है पर इसे सोशल-बिजनस मॉडल के तौर पर चलाया जा रहा है। कोरोना महामारी में लोगों के पास पैसे नहीं हैं। ऐसे में हम ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार देने और काम बढ़ाने पर फोकस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कमाई तो आगे कर लेंगे अभी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक फायदा पहुंचाना है। ऑर्गेनिक खेती के लिए पांचों फार्म सर्टिफाइड हैं। इस सोशल-बिजनस मॉडल का मकसद किसानों की मदद करने के साथ ही ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देना है, फायदा अपने आप होगा।
अतुल पांडे बताते हैं कि हमारा कोटाबाद और रानीखेत में फार्म है। कोटाबाद में अदरक और हल्दी खूब होती है। लोग स्थानीय बीज उगाते हैं और मार्केट में ज्यादा फायदा नहीं मिलता। कोटाबाद में आंवला भी होता है, एक जगह पूरा यही है। आम बहुत होता है पर उसका फायदा नहीं है, केवल किसान को उसकी लागत मिल पा रही। ऐसे में हमने प्लान किया कि हम जैविक खेती की तरफ जाते हैं। इसमें दाम सामान्य से ज्यादा मिलता है।
जैविक खेती के लिए हमने प्रोडक्शन और मार्केटिंग की अलग-अलग टीम बनाई। हमने अपने आसपास के लोगों को भी जोड़ा और उन्हें उन्नत बीज दिए। हमने उनसे कहा कि ये बोइए आपको अगर 1 किलो में 5 किलो मिलता है तो इससे 7 या 10 किलो मिलेगा। या इसका रेट अच्छा मिलेगा, बस आपको जैविक खेती करनी होगी। हमने समझाया कि ज्यादा रासायनिक खाद डालने से जमीन एसिडिक होती जा रही है। अगर जैविक खाद डालेंगे तो जमीन खराब नहीं होगी। हमारे तराई की जमीन पंजाब की तरह खराब होती जा रही है। हमने कहा कि ये बीज बोइए, जो उत्पादन मिलेगा हम खरीदेंगे और बाजार से जो लाभ मिलेगा आपके साथ शेयर करेंगे। हमने अदरक, लहसुन, हल्दी की शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए उसका पाउडर फॉर्म निकालना शुरू किया। हमने वेबसाइट बनाई, ऐमजॉन-फ्लिपकार्ट के साथ टाइअप किया।
डेढ़ साल में लोग अब दीर्घायु को जानने लगे हैं। कुछ कंपनियां हमसे खुद संपर्क कर रही हैं कि हमें आपकी हल्दी चाहिए। आगे हम दुनिया की सबसे बेहतरीन हल्दी जो मेघालय में पाई जाती है, उसे यहां लाकर बोने की योजना पर काम कर रहे हैं। हल्दी उत्पादन में उत्तराखंड का भी नाम आ सकता है। हल्दी और अदरक की डिमांड हमेशा रहती है और अगर हम अपने बेल्ट को इसका उत्पादक बनाकर प्रमोट करें तो न सिर्फ नाम होगा बल्कि नई पहचान भी बनेगी और फायदा भी होगा। इससे किसानों की माली हालत में काफी सुधार होगा।
ऐसे समझिए कि जो चीज 60-70 रुपये किलो बिक रही है, उसके दाम 300-400 रुपये किलो मिलने लगे तो कितना फायदा होगा। हमने लाल, हरी मिर्च के साथ पीली मिर्च का उत्पादन कर रहे हैं। पीली मिर्च ग्रेवी में थिकनिंग एजेंट के तौर पर भी काम करती है। ये चीजें बंदर नहीं खाता तो किसानों को कोई टेंशन नहीं है। यूथ को पहाड़ों में रोकना बहुत जरूरी है। उन्हें हमें समझाना होगा कि पहाड़ों में रुककर अपने खेतों से अच्छी कमाई कर सकते हैं। अपने यहां के एक किसान ने डेढ़ एकड़ खेत में स्ट्रॉबेरी उगाकर साल में 35 लाख रुपये कमाए हैं। खुद प्रधानमंत्री ने उनकी तारीफ की है।
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