पहाड़ी उत्पादों से 42 प्रकार के अचार, जूस, चटनी… उत्तरकाशी में स्वरोजगार से महिला सशक्तिकरण की कहानी लिख रहे योगेश बधानी

पहाड़ी उत्पादों से 42 प्रकार के अचार, जूस, चटनी… उत्तरकाशी में स्वरोजगार से महिला सशक्तिकरण की कहानी लिख रहे योगेश बधानी

तिमली, दाड़िम, सेमल, सेब पिलखाई… उत्तराखंड के लोग इनसे परिचित होंगे। लेकिन क्या इसकी मदद से स्वरोजगार शुरू किया जा सकता है। पहाड़ में रहते हुए आखिर शहरों में बन रहे उत्पादों से टक्कर कैसे ले पाएंगे। कितना मुश्किल ये है काम। महिलाएं किस तरह की भूमिका निभा सकती है। पढ़िए इन सबके जवाब देती उत्तरकाशी से आई ये प्रेरक कहानी।

उत्तराखंड में स्वरोजगार! यह सुनते ही बहुत से लोग निगेटिव पहलु गिनाने लग जाते हैं। तर्क दिया जाता है कि जब बड़ी कंपनियां नहीं हैं तो हम अपना रोजगार कैसे खड़ा कर पाएंगे। यह चलेगा कैसे? अब सवाल यह कि एक धारणा बनाकर कुछ न करना सही है, या पूरी मेहनत, लगन के साथ प्रयास करना। जो लोग बनी बनाई धारणा में नहीं उलझे उन्होंने एक कामयाब मॉडल खड़ा करके दिखा दिया। हिल-मेल स्वरोजगार स्पेशल में आज बात उत्तरकाशी के नौगांव के योगेश बधानी की। उन्होंने कड़ी मेहनत और योजनाबद्ध तरीके से स्वरोजगार का एक उम्दा मॉडल खड़ा कर दिया है। सफलता का मंत्र सीधा है, उ पलब्ध संसाधन यानी जहां से कच्चा माल मिलेगा, पैकेजिंग, ब्रांडिंग, मार्केटिंग ये सब चीजों पर पहले ही एक खाका तैयार कर लिया जाए तो स्वरोजगार में सफलता पाई जा सकती है।

महिला स्टाफ के जिम्मे है पूरा काम

योगेश बधानी और ऋचा डोभाल की ये सक्सेस स्टोरी हमें बताती है कि कैसे पहाड़ में रहकर यहां के संसाधनों की मदद से भी अपना कारोबार स्थापित किया जा सकता है। उनका यह प्रयास महिला सशक्तीकरण की भी एक मिसाल है। ऋचा डोभाल के साथ 20 महिला स्टाफ ही पूरा कामकाज देखता है।

अपने किचन और एक कर्मचारी से शुरू कर प्रोसेसिंग यूनिट खड़ी करने वाले योगेश बधानी बताते हैं कि कोई भी स्वरोजगार शुरू करने के लिए सबसे जरूरी यह होता है कि हम उसकी रणनीति तैयार करें कि हमारे पास संसाधन क्या-क्या हैं जिसका हम काम शुरू कर रहे हैं। इसके साथ-साथ मार्केटिंग या बिक्री कैसे करेंगे। उसके लिए जरूरी चीजें हमारे पास कितनी उपलब्ध हैं या हम क्या और कैसे करेंगे।

42 प्रकार के अचार, जूस चटनी बन रहे

योगेश अचार बनाने का काम कर रहे हैं। कोटियाल गांव के इस दंपति ने पहाड़ में रहकर यहीं के फलों, सब्जियों से 42 प्रकार के अचार, जूस, चटनी और स्क्वैस तैयार करना शुरू किया। स्थानीय महिलाओं को रोजगार भी उपलब्ध कराया गया है।

ऋचा और योगेश उत्तरकाशी के विकासखंड नौगांव के कोटियाल गांव के रहने वाले हैं। योगेश का हाथ बंटाने के लिए ऋचा ने अपनी नौकरी भी छोड़ दी। 2017 में उन्होंने स्थानीय स्तर पर यह काम शुरू किया। अपनी पुश्तैनी जमीन पर स्थानीय उत्पादों की प्रोसेसिंग के लिए कारखाना खड़ा किया।

पहले तो लोग मजाक समझते थे

कोटियाल गांव के नजदीक जटा नामक स्थान पर स्थानीय उत्पादों की प्रोसेसिंग यूनिट शुरू की गई। ऋचा बताती हैं कि यूनिट खड़ी करना इतना असान नहीं था। उनके पति योगेश ने पहले खुद के किचन से अचार बनाने का काम शुरू किया तो परिवार के लोग भी मजाक समझने लगे। दरअसल, यह घर-घर की कहानी है कि लोग पहाड़ में रोजगार या फैक्ट्री के बारे में कम ही सोचते, समझते हैं।

हालांकि योगेश की मेहनत रंग लाई। किचन से बने अचार की मांग बाजार में बढ़ती गई। उनके पास न तो कोई व्यवस्थित जगह थी और न ही कोई अन्य संसाधन। परिवार के लोगों को भरोसे में लेकर यह दंपति अचार, जूस बनाने के संकल्प को पूरा करने की तैयारी में जुट गया। पहाड़ के सभी फलों को यूनिट की प्रासेसिंग का हिस्सा बनाने का काम शुरू हुआ। अब वे स्थानीय फलों से 42 प्रकार के अचार, जूस, चटनी, स्क्वैस आदि सामग्री तैयार कर रहे हैं।

यमुना नदी के किनारे बसे कोटियाल गांव-नौगांव घाटी में नगदी फसल और फलों का बड़ा कारोबार है। मंडी दूर है, यातायात के साधन सीमित हैं। इसे देखते हुए ऋचा डोभाल ने स्थानीय स्तर पर फलों और अन्य नगदी फसल के लिए युवा हिमालय नाम से प्रोसेसिंग यूनिट बनाई।

यूनिट की स्थापना से एक तरफ लोगों को स्वरोजगार मिल रहा है और दूसरी तरफ लोगों को उनकी फसल का अच्छा-खास दाम भी मिल रहा है। ऋचा बताती हैं कि वह पढ़ाई के समय से ही कल्पना करती थी कि क्यों न पहाड़ पर ही स्थानीय संसाधनों के जरिए स्वरोजगार शुरू किया जाए। ऋचा ने पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ दिनों तक मुख्यधारा की पत्रकारिता भी की है। हालांकि उन्हें यह सब रास नहीं आया। उनका सपना था कि पहाड़ को कैसे स्वावलंबी बनाया जाए। शादी के बाद योगेश ने भी मदद की और खुद भी सीविल सोसायटी की अच्छी खासी पगार छोड़कर दोनों अपने पहाड़ यानी कोटियाल गांव लौट आए।

महिला सशक्तीकरण की मिसाल

दो साल से ऋचा और योगेश अपनी प्रोसेसिंग यूनिट का काम संभाल रहे हैं। खुद प्रोसेसिंग, पैकजिंग से लेकर मार्केटिंग के काम संभालते हैं। यूनिट में काम करनी वाली महिलाएं भी खुश हैं। एक कर्मचारी और छोटे किचन से शुरू हुआ ऋचा का यह उद्योग वर्तमान में लगभग 30 लाख रुपये की आमदनी प्रतिवर्ष कर रहा है। साथ ही स्थानीय स्तर पर दो दर्जन से अधिक महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ा है। पहाड़ पर उद्योग घाटे का सौदा बताया जाता था, पर ऋचा ने इस धारणा को बदल दिया है। वह प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना का लाभ ले रही हैं। कहना यही होगा कि महिला सशक्तिकरण के लिए ऋचा डोभाल एक मिसाल हैं।

उनके इस प्रयास से स्थानीय चीजों की पहचान भी बढ़ रही है। स्थानीय फल चूलू को भी बाजार में स्क्वैस के रूप में उतारा गया है। यह इस यूनिट का ऐसा काम है जिसकी मांग स्थानीय स्तर पर बढ़ती जा रही है। चूलू को इस क्षेत्र के लोग आमतौर पर फेंक देते थे, पर अब इस यूनिट के माध्यम से चटनी, अचार के साथ-साथ स्क्वैस का स्वाद भी ले रहे हैं।

यूनिट में स्थानीय उत्पाद तिमली, दाड़िम, सेमल, सेब पिलखाई, आंवला आदि 42 प्रकार के उत्पादों से अचार, चटनी और जूस बड़ी मात्रा में बनाया जा रहा है। खास बात यह है कि प्रोसेसिंग की गुणवत्ता का भी कोई जवाब नहीं है।

अगर आप दिल्ली, एनसीआर, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड, मुंबई में हैं तो आप फेसबुक से संपर्क कर अचार का ऑर्डर दे सकते हैं। योगेश ने हिल-मेल से बातचीत में बताया कि वह देश के कोने-कोने में अचार भेज रहे हैं। लोग उनसे फेसबुक पर संपर्क करते हैं और उन्हें पोस्टल सेवा के जरिए अचार भेज दिया जाता है। आगे वह फ्लिपकार्ट और ऐमजॉन से भी बात कर रहे हैं। जल्द ही ऑनलाइन भी उत्तरकाशी का अचार देश के कोने-कोने से ऑर्डर किया जा सकेगा।

1 comment
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1 Comment

  • Deepak Bhatt
    September 16, 2022, 9:18 pm

    Sir I’m interested

    REPLY

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