कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 योद्धाओं ने सर्वोच्च बलिदान दिया था। इस युद्ध में भारतीय सेना के 527 सैनिक शहीद हो गये थे वहीं 1363 गंभीर रूप से घायल हुए थे।
भारतीय सैनिकों और अफसरों के सैन्य कौशल, धैर्य और साहस से कारगिल युद्ध में पाकिस्तान के दोगलेपन को जगजाहिर हुए 24 साल हो गये। 26 जुलाई को हम हर साल ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में मनाते हैं।
इस दिन भारतीय सेना ने कारगिल की पहाडियों पर कब्जा जमाए, पाकिस्तानी आतंकियों के वेश में घुस आए सैनिकों को मार भगाया था।
इस युद्ध में भारत के 527 सैनिक अपनी मातृभूमि की रक्षा करते शहीद हुए तथा कई 1363 सैनिक घायल हुए। कारगिल युद्ध ने भारत को सैन्य कला और भूराजनीति के कई सबक सिखाए हैं।
कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 योद्धाओं ने सर्वोच्च बलिदान दिया था। इस युद्ध में भारतीय सेना के 527 सैनिक शहीद हो गये थे वहीं 1363 गंभीर रूप से घायल हुए थे।
सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कारगिल विजय दिवस की पूर्व संध्या पर देश के लिये अपने प्राण न्यौछावर करने वाले वीर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की है।
उन्होंने अपने संदेश में कहा कि भारत की सेना ने अपने शौर्य और पराक्रम से हमेशा देश का मान बढ़ाया है। हमें अपने जवानों की वीरता पर गर्व है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में भी देश के लिये बलिदान की परम्परा रही है।
कारगिल युद्ध में बड़ी संख्या में उत्तराखंड के सपूतों ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुती दी। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार सैनिकों, पूर्व सैनिकों एवं उनके परिजनों के कल्याण के लिये वचनबद्ध है।
सीएम धामी ने कहा कि भारतीय सेना के अदम्य साहस व शौर्य का लोहा पूरी दुनिया मानती है। भारतीय सेना के वीर जवानों ने कारगिल में विपरीत परिस्थितियों में भी दुश्मन को भागने पर मजबूर किया था। कारगिल युद्ध में देश की सीमाओं की रक्षा के लिए वीर सैनिकों के बलिदान को राष्ट्र हमेशा याद रखेगा।
पाकिस्तानी सेना के लगभग चार हजार सैन्य बलों के जवान मारे गए। तब आबादी के लिहाज से कारगिल युद्ध में बलिदानी होने वाले उत्तराखंड के सैनिकों की संख्या सबसे ज्यादा थी। उत्तराखंड राज्य के 30 सैनिकों को उनके अदम्य साहस के लिए वीरता पदकों से अलंकृत किया गया।
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