उत्तरकाशी में एक ऐसा फूल जिसे द्रोपदी अपनी माला व गजरे के रूप में इस्तेमाल करती थी

उत्तरकाशी में एक ऐसा फूल जिसे द्रोपदी अपनी माला व गजरे के रूप में इस्तेमाल करती थी

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के मांगली गांव में इस फूल ने एक अखरोट के पेड़ को अपना घरौंदा बना रखा है। जबकि अरुणाचल प्रदेश व दूसरे राज्यों में ये फूल बांज व अन्य पेड़ों पर भी अपना डेरा जमाता है। फ़ॉक्सटेल ऑर्चिड यानी द्रोपदीमाला फूल एक ऑर्चिड प्रजाति का हिस्सा है। ये फूल जमीन व पेड़ दोनों पर होता है।

लोकेंद्र सिंह बिष्ट

फूलों की दुनिया में अपनी खूबसूरती, अनूठेपन और खुशबू की वजह से ऑर्किड की अलग ही पहचान है। उत्तरकाशी शहर के बीचों बीच माँ गंगा के तट पर केदार मार्ग पर गंगा विचार मंच के प्रान्त संयोजक लोकेंद्र सिंह बिष्ट ने अपने निवास में स्थित अपनी छोटी सी बगिया में द्रौपदी माला नामक फूलों की सुंदर दुनियाँ बसायी है। पिछले 6 वर्षों से इनकी बगिया में द्रौपदी माला के पुष्प खिल रहे हैं।

इन दिनों भी आजकल यहां ऑर्किड के दिलकश फूल खिल रहे हैं। इनमें से एक खास ऑर्किड फूल द्रौपदीमाल। माना जाता है कि द्रौपदी जी इस फूल को माला व गजरे के रूप में इस फूल को पहनती थी। त्रेता युग में मां सीता जी भी इसी फूल का इस्तेमाल करती थीं। इसलिए इस फूल का एक नाम सीता वेणी भी है। ये असम व अरुणाचल प्रदेश का राज्य पुष्प भी है और वहां के मुख्य त्योहार ‘बीहू उत्सव’ के समय नृत्यांगनाएं इन ऑर्किड फूलों की यानी द्रौपदीमाला को पहनती हैं। आज मैं आपके लिए लाया हूं सम्पूर्ण जानकारी सुंदर, मनमोहक, दिव्य आकर्षक फूल फ़ॉक्सटेल ऑर्चिड यानी द्रौपदिमाला, यानी सीतावेणी की…

अरुणाचल प्रदेश का राज्य पुष्प फ़ॉक्सटेल ऑर्चिड से आजकल अपना उत्तरकाशी भी महक रहा है। सनातनी धर्म की मान्यताओं व विश्वास के चलते इस फूल को हिंदी में द्रौपदीमाला कहते हैं। धार्मिक, औषधीय व सांस्कृतिक विरासत से जुड़े द्रोपदीमाला पुष्प की सुगंध से आजकल अपनी देवभूमि उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले का मांगली बरसाली गांव भी महक रहा है। द्रोपदी के गजरे पर सजने वाला ये पुष्प मां सीता काे भी बेहद प्रिय था। आपको बताते चलें कि इसी धार्मिक महत्व को देखते हुए उत्तराखंड के वन महकमे ने इसको सहेजने में सफलता पाई है। पुष्प को वन अनुसंधान केंद्र ने हल्द्वानी स्थित एफटीआइ की नर्सरी में खिलाकर इसे संरक्षित किया है। लेकिन ये फूल आजकल उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के मांगली गाँव मे एक अखरोट के पेड़ पर खिलने के बाद गाँव की सुंदरता पर चार चांद लगा रहा है।

दरअसल Rhynchostylis Retusa बोटानिकल नाम से विख्यात ये पुष्प फ़ॉक्सटेल ऑर्चिड के नाम से दुनियाभर मे जाना जाता है। वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया व भारत के अरुणाचल प्रदेश, असम व बंगाल में ये बहुतायत में प्राकृतिक रूप से उगता है। अरुणाचल प्रदेश व आसाम का ये ‘राज्य पुष्प’ भी है।

लेकिन अपने उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में इस फ़ॉक्सटेल ऑर्चिड के लिए अनुकूल माहौल वातावरण, पर्यावरण नही है जिसके चलते इसको उगाने के प्रयास सरकारी स्तर पर जारी हैं। लेकिन अपने उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के मांगली बरसाली गांव में एक अखरोट के पेड़ पर इस फूल ने पिछले 10 वर्षों से अपना ‘घरौंदा’ बना रखा है। दरअसल इस फूल को कोई प्रवासी पक्षी लाया होगा औऱ बीट (मलत्याग) के माध्यम से इस फूल को Germination यानी अंकुरण में इस पुराने सड़ रहे अखरोट के पेड़ पर उपयुक्त और अनुकूल मिट्टी माहौल और वातावरण मिल गया होगा। तब से लेकर आज तक यानी पिछले 10 वर्षों से ये फूल हर मई जून में खिलता है।

यह फ़ॉक्सटेल ऑर्चिड पुष्प अधिपादप श्रेणी में है। अधिपादप वे पौधे होते हैं, जो आश्रय के लिये वृक्षों पर निर्भर होते हैं लेकिन परजीवी नहीं होते। ये वृक्षों के तने, शाखाएं, दरारों, कोटरों, छाल आदि में उपस्थित मिट्टी में उपज जाते हैं व उसी में अपनी जड़ें चिपका कर रखते हैं।… हमारे गांव मांगली बरसाली में ये पिछले 10 साल से एक पुराने अखरोट के पेड़ पर हर वर्ष मई जून में खिलता है जिसके हम लोग स्वयं साक्षात गवाह भी हैं। गांववासियों के लिए इस फूल का खिलना एक कौतूहल से कम नहीं है।

ये फूल इतना सुंदर और आकर्षक है कि इसको असम और अरुणाचल प्रदेश ने इसे अपना राज्य पुष्प घोषित कर रखा है। हिंदी में इस फूल को द्रोपदीमाला फूल कहते हैं। मेडिकल गुणों की वजह से इसकी खासी डिमांड है। आंध्र प्रदेश में इसकी तस्करी भी होती है। मान्यता है कि महाभारत की अहम पात्र द्रोपदी इन फूलों को माला के तौर पर इस्तेमाल करती थीं। जिस वजह से इसे द्रोपदी माला कहा जाता है। ये भी मान्यता है कि वनवास के दौरान सीता मां से भी इसके जुड़ाव का वर्णन है। यहीं वजह है कि महाराष्ट्र में इसे सीतावेणी नाम से पुकारा जाता है।

उत्तराखंड से मिली एक जानकारी के अनुसार उत्तराखंड वन विभाग दुर्लभ वनस्पतियों को सहेजने के साथ साथ अन्य दुर्लभ प्रजातियों पर भी काम कर रहा है जिनका धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व है। बताते चलें कि द्रोपदीमाला पुष्प को उत्तराखंड के वन अनुसंधान केंद्र द्वारा ज्योलीकोट व एफटीआइ की नर्सरी में प्रयोग के तौर लगाया गया है। जानकर बताते हैं कि अस्थमा, किडनी स्टोन, गठिया रोग व घाव भरने में द्रोपदीमाला का दवा के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। विभिन्न भारतीय नृत्यों में महिलएं इस फूल का श्रृंगार कर नाचती गाती हैं।

इस कड़ी में असम का बीहू नृत्य है जो दुनियाभर में प्रसिद्ध है। सांस्कृतिक कार्यक्रम से लेकर शुभ अवसर पर यहां की महिलाएं बीहू नृत्य करती हैं। मान्यताओं के मुताबिक इस दौरान महिलाएं बालों में इस फूल को जरूर लगाती है। इस फूल को प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है। एक मान्यता ये भी है कि वनवास के दौरान भगवान श्रीराम पंचवटी नासिक में रूके थे। तब सीता मां ने भी इस फूल का इस्तेमाल किया था। जिस वजह से इसे सीतावेणी भी कहा जाता है।

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के मांगली गांव में इस फूल ने एक अखरोट के पेड़ को अपना घरौंदा बना रखा है। जबकि अरुणाचल प्रदेश व दूसरे राज्यों में ये फूल बांज व अन्य पेड़ों पर भी अपना डेरा जमाता है। फ़ॉक्सटेल ऑर्चिड यानी द्रोपदीमाला फूल एक ऑर्चिड प्रजाति का हिस्सा है। ये फूल जमीन व पेड़ दोनों पर होता है। आमतौर पर समुद्रतल से 700 मीटर से लेकर १५०० मीटर ऊंचाई पर मिलने वाला द्रोपदीमाला फूल अखरोट, बांज व अन्य पेड़ों पर नजर आता है। धार्मिक व औषधीय महत्व से अंजान होने पर लोग न तो इसके संरक्षण के प्रति जुड़ाव रख पा रहे हैं न इसको अन्यत्र पौधारोपण कर पा रहे हैं। उत्तराखंड में यह फ़ॉक्सटेल ऑर्चिड यानी द्रौपदी माला फूल जंगलों में न के बराबर देखा जाता है।

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