महिला होना कभी भी मेरी जिंदगी में बाधक नहीं बना – सुषमा रावत

महिला होना कभी भी मेरी जिंदगी में बाधक नहीं बना – सुषमा रावत

सुषमा रावत ने 1 जनवरी 2023 को ओएनजीसी के निदेशक अन्वेषण का पदभार संभाला। इससे पहले उन्हें 2020 में पूरे पूर्वोत्तर भारत में अन्वेषण पोर्टफोलियो की देखभाल के लिए असम और असम अराकान बेसिन, जोरहाट के बेसिन प्रबंधक के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने साल 1989 में स्नातक प्रशिक्षु के रूप में ओएनजीसी को ज्वाइन किया और उसके बाद उन्हें मद्रास में कावेरी बेसिन में एक कूप स्थल भूविज्ञानी के रूप में जिम्मेदारी दी गई। उनकी दूसरी पोस्टिंग देहरादून में हुई और फिर उसके बाद मुंबई में केरल-कोंकण बेसिन में कार्य किया।

सुषमा रावत को साल 2013 में एक बार फिर देहरादून में भारतीय अवसादी बेसिनों के लिए बेसिन स्केल 3डी पेट्रोलियम सिस्टम मॉडल विकसित करने की जिम्मेदारी दी गई। वह इस कार्यकाल को सबसे महत्वपूर्ण मानती हैं क्योंकि उन्होंने अन्वेषण के तहत लगभग सभी अवसादी बेसिनों में काम किया और विभिन्न प्रकार के आंकड़ों और जानकारियों को एकीकृत किया। इसी कारण से उन्हें भारत सरकार की विभिन्न परियोजनाओं जैसे अन्वेषित बेसिनों का मूल्यांकन, हाइड्रोकार्बन संसाधनों का पुनर्मूल्यांकन आदि की जिम्मेदारी दी गई। सुषमा रावत ने बताया कि उन्होंने अपना बचपन पहाड़ों की गोद में बिताया और वह बताती हैं कि शायद इसी वजह से शायद मेरे मन में हमेशा जिज्ञासा रही कि आखिर ये पहाड़ और ये नदियां कैसे बने होंगे। ऐसे ही कई मुद्दों को लेकर ओएनजीसी की निदेशक अन्वेशन सुषमा रावत ने हिल-मेल के संपादक वाई एस बिष्ट से खास बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के कुछ अंश : –

प्रश्न : आप ओएनजीसी में निदेशक अन्वेषण के पद पर कार्यरत हैं, इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को आप बखूबी निभा रही हैं, आप इस चुनौती को कैसे देखती हैं ?

सर्वप्रथम मैं आपको, आपकी प्रतिष्ठित पत्रिका में अपने विचार रखने का अवसर देने के लिए धन्यवाद करना चाहती हूं। मैंने अपना बाल्यकाल पहाड़ों की गोद में बिताया है और शायद इसी वजह से ही मेरे मन में हमेशा से यह जिज्ञासा रही है कि आखिर ये पहाड़ और ये नदियां कैसे बने होंगे और इसीलिए आगे चल कर मैंने अपने ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए भूगर्भ विज्ञान विषय चुना। ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे ओएनजीसी जैसे प्रतिष्ठित महारत्न संस्थान में सेवा प्रदान करने का अवसर मिला, जहां मुझे देश के दिग्गज भूवैज्ञानिकों एवं पेट्रोलियम इंजीनियरों के साथ कार्य करने का मौका मिला। उनके मार्ग दर्शन में मैंने पेट्रोलियम अन्वेषण की बारीकियों को सीखा और आज 33 से भी ज्यादा वर्षों से ओएनजीसी एवं देश के लिए अपना यथोचित योगदान देने की कोशिश कर रही हूं। आज भारत सरकार ने मुझे निदेशक अन्वेषण जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी है और मेरा पूरा प्रयास है कि मैं अपने इस दायित्व का निर्वहन करूं और ओएनजीसी अन्वेषण को एक वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी कंपनी बना पाऊं।

आज के वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में जहां एक तरफ वैश्विक जलवायु परिवर्तन के खतरों को देखते हुए पूरा विश्व हरित ऊर्जा संसाधनों की तरफ कदम बढ़ा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ भारत को अपनी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए ऊर्जा की नितांत आवश्यकता है और ऐसे परिदृश्य में देशहित को देखते हुए हम ऊर्जा के लिए लगातार दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रह सकते। ओएनजीसी इस चुनौती को भली-भांति समझता है, और इसीलिए हमारा ये मिशन है कि ना सिर्फ पेट्रोलियम संसाधनों के अन्वेषण एवं उत्पादन में तेजी लायी जाए बल्कि साथ में ही ऊर्जा के अन्य स्रोतों को भी खोजा जाए और उनका विकास किया जाए। पिछले कुछ वर्षों में तेल और गैस के उत्पादन में कुछ कमी आयी है परन्तु मुझे पूरा विश्वास है कि आगे आने वाले दिनों में ना सिर्फ पेट्रोलियम उत्पादन में वृद्धि होगी बल्कि आप ओएनजीसी को वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों जैसे भू-तापीय ऊर्जा, सौर ऊर्जा, हाइड्रोजन ऊर्जा और अपतटीय पवन ऊर्जा जैसी परियोजनाओं में भी कार्य करते हुए देखेंगे। अपनी स्थापना के समय से ही, ओएनजीसी हमेशा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संचालित एक संगठन रहा है, और मुझे विश्वास है कि वर्तमान चुनौतियों का समाधान भी हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से ही ढूंढ पाएंगे।

प्रश्न : आप अपने ओएनजीसी के 33 साल के कार्यकाल में अपनी कॉर्पोरेट प्रगति और उत्तरदायित्व के बारे में बताएं ?

मैं वर्ष 1989 में स्नातक प्रशिक्षु के रूप में ओएनजीसी परिवार का हिस्सा बनी और तुरंत बाद ही मुझे तत्कालीन मद्रास में कावेरी बेसिन में एक कूप स्थल भूविज्ञानी (Well site Geologist) के रूप में नियुक्त किया गया। जैसा कि आपको ज्ञात होगा कि उस समय महिलाओं के लिए बाहर काम करना कितना मुश्किल था, वह भी घर से इतनी दूर। हालांकि, मैं आज भी उत्साहित हो जाती हूं जब मैं भारत के दक्षिणी सिरे के पास वेदारण्यम नामक स्थान पर 14 दिनों की अपनी शिफ्ट के पहले दिन को स्मरण करती हूं। मेरी दूसरी पोस्टिंग KDMIPE देहरादून में थी और फिर उसके बाद मैंने मुंबई में केरल-कोंकण बेसिन में कार्य किया। वर्ष 2013 में, मुझे एक बार फिर KDMIPE देहरादून में भारतीय अवसादी बेसिनों (Sedimentary Basins) के लिए बेसिन स्केल 3डी पेट्रोलियम सिस्टम मॉडल (PSM) विकसित करने की जिम्मेदारी दी गई। मुझे लगता है, यह मेरे कार्यकाल का सबसे महत्वपूर्ण चरण था क्योंकि मैंने अन्वेषण के तहत लगभग सभी अवसादी बेसिनों में काम किया और विभिन्न प्रकार के आंकड़ों और जानकारियों को एकीकृत किया। शायद यही कारण था कि मुझे भारत सरकार की विभिन्न परियोजनाओं जैसे अन्वेषित बेसिनों का मूल्यांकन, हाइड्रोकार्बन संसाधनों का पुनर्मूल्यांकन आदि के लिए जिम्मेदारियां दी गईं।

वर्ष 2020 में, मुझे लगभग पूरे पूर्वोत्तर भारत में अन्वेषण पोर्टफोलियो की देखभाल के लिए असम और असम अराकान बेसिन, जोरहाट के बेसिन प्रबंधक के रूप में नियुक्त किया गया था। अन्वेषण की गति में तेजी लाने के लिए सिर्फ यथास्थिति बनाए रखना पर्याप्त नहीं था। अतः बेसिन मैनेजर के रूप में, मैंने अन्वेषण के क्षेत्र को बढ़ाने और अब तक गैर-अन्वेषित क्षेत्र या कम अन्वेषण वाले क्षेत्रों को अन्वेषण के दायरे में लाने पर जोर दिया। सर्वेक्षण, प्रसंस्करण और व्याख्या, ड्रिलिंग और कूप लॉगिंग के क्षेत्र में कई उन्नत तकनीकियों को शामिल करने सहित बेसिन ने अन्वेषण प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए कई कदम उठाए। विभिन्न प्रशासनिक मुद्दों जैसे वन मंजूरी, भूमि अधिग्रहण, असम और नागालैंड के बीच विवादित क्षेत्रों (DAB areas) में अन्वेषण जैसे मुद्दों को हल करने के लिए मैंने असम और नागालैंड के मुख्यमंत्रियों के साथ कई बैठकें कीं ताकि उन्हें DAB क्षेत्रों के साथ-साथ नागालैंड में भारी हाइड्रोकार्बन क्षमता के बारे में आश्वस्त किया जा सके, जिसके उत्पादन का लाभ सभी हित धारकों को मिलेगा। जनवरी 2023 में निदेशक अन्वेषण का कार्यभार संभालने के बाद से, मेरे पास देश की ऊर्जा आवश्यकता के साथ समन्वय बनाये रखने के लिए, अन्वेषण परिदृश्य को मजबूत करने और स्वच्छ और हरित ऊर्जा संसाधनों की ओर ऊर्जा ट्रांज़िशन के मुद्दों को संबोधित करने का बड़ा दायित्व है।

प्रश्न : आपको निदेशक अन्वेषण जैसे महत्वपूर्ण पद तक पहुंचने के लिए किन किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

ओएनजीसी आज न सिर्फ हमारे देश की सबसे बड़ी तेल एवं गैस उत्पादक कंपनी है बल्कि विश्व के 15 देशों में तेल गैस के अन्वेषण एवं उत्पादन परियोजनाओं पर काम कर रही है। ओएनजीसी को इस मुकाम तक पहुंचने में बहुत से लोगों ने अपना अमूल्य योगदान दिया है। ओएनजीसी ने देश को कई अनुभवी भूविज्ञानी और प्रौद्योगिकीविद्ने दिए हैं, जिन्होंने एक के बाद एक तेल और गैस भंडारों की खोज की और देश को विश्व के पेट्रोलियम नक्शे पर लाए हैं। ओएनजीसी में हर एक भूवैज्ञानिक के सामने चुनौती होती है कि वो स्वयं को एक सुयोग्य भू-वैज्ञानिक सिद्ध करें और देश के विभिन्न तेल भण्डारो में स्थापित पेट्रोलियम सिस्टम की एक व्यापक समझ बनाये। इसके अलावा कंपनी के वित्तीय हितों को ध्यान में रखते हुए अन्वेषण के दायरे को बढ़ाने के लिए वैश्विक ऊर्जा व्यापार की अच्छी समझ होना भी जरूरी है।

पिछले कुछ दशकों में तेल गैस उद्योग में महत्वपूर्ण तकनीकी परिवर्तन हुए हैं, आज आसान, सतह के नज़दीक में मिलने वाले तेल भण्डारों का युग समाप्त हो गया है, लगभग सभी आधुनिक अन्वेषण एवं उत्पादन कंपनियों द्वारा परिष्कृत अत्याधुनिक उपकरण और नए तरीके विकसित और अपनाए जा रहे हैं। किसी भी उम्र के पेट्रोलियम भू-वैज्ञानिकों के लिए यह अनिवार्य है कि वे समय के साथ हो रहे परिवर्तनों से कदम मिला के चलें और अत्याधुनिक सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर का उपयोग करना सीखें। साथ ही बढ़ते हुए कार्यभार के बीच अपने आप को तकनीकी और नवीनतम ज्ञान से अपग्रेडेड रखने की बड़ी चुनौती है।
मैं भाग्यशाली रही हूं, कि मैं लगभग सभी भारतीय बेसिन के पेट्रोलियम सिस्टम मॉडलिंग प्रोजेक्ट्स से जुड़ी, जिसने मुझे अन्वेषण की विभिन्न चुनौतियों का एक समग्र दृष्टिकोण दिया। मैंने तकनीकी एवं वाणिज्यिक मूल्यांकन परियोजनाएं भी की है जिससे मुझे अन्वेषण परियोजनाओं के व्यावसायिक दृष्टिकोण को समझने में मदद मिली। मैंने अपनी टीम के युवा सदस्यों से भी बहुत कुछ सीखा है, जिनकी कंप्यूटर और सॉफ्टवेयर में पकड़ स्वाभाविक रूप से अच्छी होती है। आज के आधुनिक सॉफ्टवेयर में वो काम कुछ ही घंटे में हो जाते हैं जिन्हें पहले मैन्युअली करने में कई दिन लग जाते थे।

प्रश्न : ओएनजीसी के वर्तमान परिवेश में तेल की नई और बड़ी खोज की महत्त्वपूर्ण चुनौती आपके सामने है, आप इसको किस तरह देखती हैं?

हमारा देश इस समय तेज गति से विकास कर रहा है, वास्तव में यह अगले कुछ वर्षों के लिए सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। इस वृद्धि को बनाये रखने के लिए लॉजिस्टिक्स और परिवहन में सरलता बहुत महत्वपूर्ण है जो कि उपयुक्त ईंधन पर निर्भर है। वर्तमान में हम लगभग 85 प्रतिशत आवश्यक कच्चे तेल और गैस का आयात कर रहे हैं जो राष्ट्रीय हित में उपयुक्त नहीं है। ओएनजीसी जो देश की सबसे बड़ी तेल कंपनी है, अपने पुराने भंडारों से उत्पादन को बनाए रखने के लिए अथक प्रयास कर रही है। हमारे लगभग सभी प्रमुख तेल भंडार 40 साल पहले खोजे गए थे जहां प्राकृतिक उत्पादन में गिरावट होना स्वाभाविक है। हालांकि, सघन अन्वेषण प्रयासों के माध्यम से हम अपने मुख्य भंडारों के आसपास की संरचनाओं में नए तेल भंडार जोड़ते जा रहे हैं। आपको बता दें कि सिर्फ मुंबई हाई फील्ड में ही, 1974 में इसकी खोज के बाद से, हमने मूल रूप से अनुमानित तेल गैस भंडार की तुलना में निरंतर अन्वेषण के माध्यम से लगभग तीन गुना भंडार जोड़ा है।

जैसा कि आपने पूछा, एक नया और बड़ा तेल और गैस भंडार खोजना हमारी कार्यसूची में सबसे ऊपर है और यही कारण है कि हम क्षैतिज और गहराई दोनों आयामों में अपने अन्वेषण क्षेत्र का विस्तार कर रहे हैं। हम विशेष रूप से श्रेणी-2 और श्रेणी-3 बेसिन में स्थल (onshore) और अपतटीय (offshore) क्षेत्रों में नए अन्वेषण पट्टों (Exploration lease areas) का अधिग्रहण कर रहे हैं, जहां पर अभी तक व्यवस्थित रूप से अन्वेषण नहीं किया गया है और साथ ही हम पहले से खोजे गए बेसिनों में और गहरी परतों में तेल की खोज का प्रयास रहे हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि हमें कृष्णा गोदावरी, कावेरी और अंडमान बेसिन के गहरे पानी और अत्यधिक गहरे पानी वाले क्षेत्रों और विंध्य और बंगाल बेसिन जैसे तटवर्ती क्षेत्रों में बड़ी सफलता मिलेगी। चुनौतीपूर्ण गहरे जल क्षेत्रों और गहरी परतां में तेल का पता लगाने के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी की उपलब्धता भी महत्वपूर्ण है। ओएनजीसी गहरी परतों की इमेजिंग के साथ-साथ गहरे कुओं की ड्रिलिंग के लिए उच्च तकनीक वाले रिग एवं अन्य उपयुक्त उपकरणों के अधिग्रहण की दिशा में कार्य कर रहा है। इसके अतिरिक्त, ओएनजीसी भारतीय अपतटीय क्षेत्रों में अन्वेषण के लिए ऐसी प्रतिष्ठित वैश्विक कंपनियों के साथ साझेदारी कर रहा है, जिन्हें गहरे समुद्र में अन्वेषण का अच्छा अनुभव है। कुल मिलाकर घरेलू संसाधनों को बढ़ाने के प्रयासों और उपयुक्त भागीदारों के सहयोग से बेहतर क्षमता का निर्माण होगा और एक बहुत बड़े भूभाग का तेजी से अन्वेषण संभव होगा।

प्रश्न : एक महिला होने के नाते आपको करियर में किन किन विशेष मुश्किलों का सामना करना पड़ा?

इस सवाल का जवाब मेरे लिए थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि मुझे नहीं लगता कि मेरा महिला होना कभी भी मेरे लिए या ओएनजीसी की प्रगति में बाधक रहा हो। ओएनजीसी एक बहुत ही पेशेवर संगठन है और यहां पर एक अधिकारी की पेशेवर क्षमता, सत्यनिष्ठा और नेतृत्व क्षमता ही हमें करियर के अगले पायदान तक लेके जाते हैं। हां ये जरूर है, कि एक भूवैज्ञानिक होने के साथ ही मैं एक गृहिणी भी हूं और 2 बच्चों की मां भी हूं। जब मैं देहरादून में कार्यरत थी, और विशेषकर जब मेरे बच्चे छोटे और मेरे पति मसूरी में कार्यरत थे तो घर और काम के बीच समन्वय बिठाने के लिए मुझे बहुत भाग दौड़ करनी पड़ती थी। परन्तु अगर लक्ष्य बड़ा है तो मेहनत भी तो ज्यादा करनी पड़ेगी। यद्यपि जब मैं अपने बचपन को स्मरण करती हूं तो हमेशा से ही मुझे एक साहसिक और तेज रफ़्तार जीवन जीना पसंद था शायद इसी वजह से मुझे जियोलॉजी विषय इतना पसंद आया जिसमें आउटडोर फील्ड सर्वे एक अभिन्न अंग होता है। आज मैं जरूर कहूंगी कि मुझे अपने करियर के लक्ष्य हासिल करने में अपने परिवार का भरपूर सहयोग मिला है, जिसके लिए मैं उनकी शुक्रगुज़ार हूं।

ये बात सही है कि हमारे देश में आज भी बच्चों की परवरिश और घर के रोज़मर्रा के कामों को करने की जिम्मेदारी स्त्री के कंधो पर ही ज्यादा है, जिससे शायद कुछ महिलाएं वर्क-लाइफ में उचित सामंजस्य नहीं बिठा पाती हैं। हालांकि, यदि आपके जीवन के लक्ष्य स्पष्ट हैं और आप उन्हें प्राप्त करने के लिए दृढ़ हैं, तो आपको अपना सर्वश्रेष्ठ देना चाहिए। एक सहायक और प्रेरक परिवार होने से यह सुनिश्चित होगा कि आप सभी बाधाओं को पार कर लेंगे और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करेंगे।

प्रश्न : आप उत्तराखंड से आती हैं, आपकी उत्तराखंड राज्य के विकास को लेकर क्या सोच है तथा उत्तराखंड की महिलाओं को आप क्या संदेश देना चाहती हैं?

देवभूमि उत्तराखंड मेरा जन्म स्थान है, इसलिए स्वाभाविक रूप से मेरे हृदय में इसका विशेष स्थान है। अपने जन्म से लेकर आजतक मैंने उत्तराखंड को अपनी आंखों के सामने बदलते देखा है। एक लम्बे संघर्ष के बाद अंततः वर्ष 2000 में उत्तराखंड एक नए राज्य के रूप में स्थापित हुआ, उसके बाद से ही हमारा राज्य बहुत तेजी से प्रगति पथ पर अग्रसर है। सरकार ने भी कई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना में मदद की है। दूसरी ओर अपनी अंतर्निहित प्राकृतिक सुंदरता के कारण राज्य पर्यटन स्थल के रूप में सभी उम्र एवं क्षेत्रों के लोगों को आकर्षित करता रहा है चाहे वह एडवेंचर टूरिज्म हो या आध्यात्मिक। बिजली और जलापूर्ति परियोजनाओं, केदारनाथ, बद्रीनाथ आदि जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों के पुनर्विकास और साथ ही अच्छी सड़कों, चारधाम रेलवे परियोजना, विभिन्न रोपवे परियोजनाओं के माध्यम से बेहतर संपर्क पर सरकार के ज़ोर से भविष्य में अधिक पर्यटकों के उत्तराखंड आने की उम्मीद है। इसलिए राज्य में पर्यटन और आतिथ्य उद्योग में स्पष्ट रूप से बहुत बड़ा अवसर है।

हालांकि, यह उत्तराखंड के सभी लोगों की जिम्मेदारी है कि वे इन पवित्र पहाड़ियों की नाजुक पारिस्थितिक और पर्यावरणीय स्थिति के बारे में जागरूक बनें। पर्यावरण और हमारी प्राचीन पहाड़ियों और जंगल को किसी भी तरह की क्षति से बचाने के लिए हमें अपनी योजनाओं को पर्यावरण के अनुकूल ही बनाना चाहिए। पर्यटन के अलावा, उत्तराखंड धीरे-धीरे एक शिक्षा केंद्र के रूप में भी उभर रहा है, इसलिए हमें आधुनिक प्रयोगशालाओं और भविष्य के पाठ्यक्रम के साथ विश्व स्तरीय संस्थानों का विकास करना चाहिए, जो वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, शिक्षाविदों और प्रबंधकों की अगली पीढ़ी का विकास कर सके।

उत्तराखंड की महिलाएं दुनिया में सबसे मेहनती, निडर और निस्वार्थ भाव से काम करने वाली होती हैं। चाहे वह पर्यावरण संरक्षण के लिए चिपको आंदोलन हो, अलग राज्य के लिए आंदोलन हो या एक साधारण पहाड़ी महिला का दैनिक संघर्ष, उत्तराखंड की महिलाओं ने बहुत ही दृढ़ता और साहस दिखाया है। मैं उत्तराखंड की महिलाओं को सिर्फ इतना कहूंगी कि ‘आप वो सब कुछ, जो मानवीय रूप से संभव है करने में सक्षम हैं, इसलिए बड़े सपने देखें और उन्हें पाने के लिए कड़ी मेहनत करती रहें’।

प्रश्न : आप ओएनजीसी जैसी महारत्न कंपनी में निदेशक होने के नाते उत्तराखंड के युवा जो कॉरपोरेट ज्वाइन करना चाहते हैं, उन्हें व्यवसायिक सफलता का क्या मंत्र देना चाहती है?

युवा देश का भविष्य हैं। उत्तराखंड के युवाओं को ऊर्जा, उत्साह और अच्छे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का वरदान प्राप्त है, यही कारण है कि उत्तराखंड के कई लोग राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके हैं। हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और हमारे पूर्व सेनाध्यक्ष स्व. जनरल बिपिन रावत, जिन पर हम सभी गर्व महसूस करते हैं, समकालीन प्रमुख उदाहरण हैं। जीवन के हर क्षेत्र में चाहे वह कला हो, संस्कृति हो, पर्यावरण संरक्षण हो, खेल हो, सिनेमा हो, आध्यात्म हो, शिक्षा हो, व्यवसाय हो या रक्षा, उत्तराखंड के लोगों ने अपार योगदान दिया है। उन सभी युवाओं के लिए जो कॉर्पोरेट क्षेत्र या उद्यमिता में अपनी पहचान बनाने के इच्छुक हैं, मेरे पास कुछ सुझाव हैं, जैसे :-

  • अपना लक्ष्य निर्धारित करें : अपनी रुचियों और क्षमता के आधार पर अपने जीवन के लक्ष्य निर्धारित करें और फिर अल्पकालिक लक्ष्य बना करके अपने करियर की प्रगति का रास्ता प्रशस्त करें।
  • इंटरनेट का सदुपयोग : आज इंटरनेट दुनिया में ज्ञान का सबसे बड़ा स्रोत है जो मुफ्त में उपलब्ध है लेकिन यह सबसे बड़ा ध्यान भ्रमित करने वाला माध्यम भी है। युवाओं को अपने ज्ञान और कौशल के उन्नयन के लिए इंटरनेट का सदुपयोग करना चाहिए और मूल्यवान समय को बर्बाद करने से बचना चाहिए।
  • कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प : कुशाग्र बुद्धि कुछ लोगों के लिए भगवान का उपहार हो सकती है, लेकिन एक औसत छात्र के लिए भी दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत सफलता का निश्चित तरीका है। तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप टॉपर्स में से नहीं हैं या सर्वश्रेष्ठ बी-स्कूलों में प्रवेश नहीं कर पाए हैं, अपने दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से आप किसी भी ऊंचाई को छू सकते हैं और अपने जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।
  • अपने विचारों को व्यक्त करें : विभिन्न पाठ्येतर गतिविधियों जैसे सम्मेलन, संगोष्ठी, तकनीकी प्रतियोगिताओं, बहस आदि में भाग लें और अपने विचारों के बारे में स्पष्ट रहें। यह आपको सार्वजनिक स्तर पर बोलने में मदद करेगा और किसी दिए गए मुद्दे या परियोजना के बारे में आपके दृष्टिकोण को भी परिष्कृत करेगा। युवाओं को खेल, साहसिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों जैसी टीम गतिविधियों में भी भाग लेना चाहिए, जहां वे टीम वर्क, पारस्परिक व्यवहार और नेतृत्व कौशल सीखेंगे जो कॉर्पोरेट सफलता के लिए बहुत आवश्यक हैं।

अंत में मेरी यही कामना है कि उत्तराखंड की आने वाली पीढ़ियां अपने जीवन में प्रगति की नित नई ऊंचाइयां छुएं और राज्य और देश दोनों को गौरवान्वित करें।

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