टोकरी, फूलदान….. पारंपरिक चीजों की बढ़ी मांग, तो उत्तराखंड के गांवों में बढ़ रहा स्वरोजगार

टोकरी, फूलदान….. पारंपरिक चीजों की बढ़ी मांग, तो उत्तराखंड के गांवों में बढ़ रहा स्वरोजगार

सच ही कहा गया है कि असली भारत गांवों में बसता है और गांवों में विकास होगा तो देश सच मायने में खुशहाल होगा। ऐसे में गांवों में सरकार रोजगार बढ़ाने पर ध्यान दे रही है। इस दिशा में स्वरोजगार एक बेहतर विकल्प के रूप में उभरा है।

प्लास्टिक और दूसरी सिंथेटिक चीजों ने भले ही बाजार को भर दिया हो पर धीरे-धीरे ही सही लोग वापस अपनी पारंपरिक चीजों की ओर लौटने लगे हैं। इससे न सिर्फ पर्यावरण को फायदा होगा बल्कि गांवों में रोजगार सृजन भी होगा। पारंपरिक इस्तेमाल की चीजों से लघु उद्योगों को बढ़ावा मिलता है और स्वरोजगार में लगे समूह अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

उत्तराखंड के चंपावत जिले का थारू जनजाति बाहुल्य गांव है बमनपुरी बनबसा। यहां की भूमि स्वयं सहायता समूह की 50 से अधिक महिलाएं रिंगाल, कांस और मौज घास को अपनी आजीविका का साधन बना कर टोकरी, फूलदान, हॉटपॉट का निर्माण कर अच्छी आय अर्जित कर रही हैं। हाथ से निर्मित वस्तुओं की बाजार में मांग बढ़ने से जिला प्रशासन की ओर से इन्हें बाजार भी उपलब्ध कराया जा रहा है।

जिला परियोजना निदेशक विम्मी जोशी बताती हैं कि बमनपुरी गांव की कुछ महिलाएं अपने उपयोग के लिए घास से निर्मित टोकरियां, फूलदान व अन्य वस्तुएं बनाती थीं। उनके कौशल को देखते हुए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत उन्हें  ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (आरसेटी) से प्रशिक्षण देकर इनके कौशल का विकास किया गया तथा इन महिलाओं को संगठित कर एक समूह का गठन किया गया।

आज इससे जुड़कर महिलाएं इन वस्तुओं का निर्माण कर अच्छी आय कर रही हैं। उन्होंने बताया कि इसके लिए इन महिलाओं की उत्पादों के मार्केटिंग की व्यवस्था के लिए बाजार भी उपलब्ध करा दिया गया है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में गांव की 50 से अधिक महिलाएं इस कार्य से जुड़ी हुई हैं।

भूमि स्वयं सहायता समूह से जुड़ी गांव की महिला नीरू राणा बताती हैं कि पहले हमारे गांव की महिलाएं अपने उपयोग के लिए मौज घास, रिंगाल से टोकरी, फूलदान, रोटी रखने का हॉटपॉट व सूप सहित जरूरी वस्तुओं को बनाती थीं। जिला प्रशासन ने हमारे कौशल को देखते हुए उन्हें 30 दिन का प्रशिक्षण दिया और इसके रखरखाव, पैकिंग अन्य जानकारी दी।

समूह की अन्य महिलाएं बताती हैं कि पहले हम खेतों में काम करते थे। लेकिन समूह में जुड़कर हम टोकरी और अन्य सामान बना रहे हैं, जिससे हमें फायदा हो रहा है। हमारी टोकरी, फूलदान या अन्य सामान 200 से 400 रुपये तक में बिक जा रहे हैं। इन हाथ से बनी चीजों की मांग भी काफी है।

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1 Comment

  • गिरीश
    September 14, 2020, 11:27 am

    उत्तराखंड में होने वाले सभी तरह के स्थानीय उत्पादों और लघुउद्योग करने वाले मित्र मुझे 8865038560 पर वाट्सअप सम्पर्क करें
    मेरी कोशिश रहेगी कि उस उत्पाद को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाकर आपको लाभ दिला सकूँ

    REPLY

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