‘चंद्रशिला’ एक ऐसा स्थान जहां राम, रावण और चंद्रमा ने तपस्या कर शिव को प्रसन्न किया

‘चंद्रशिला’ एक ऐसा स्थान जहां राम, रावण और चंद्रमा ने तपस्या कर शिव को प्रसन्न किया

चंद्रशिला को जाने वाले ट्रेक पर आगे पीने का पानी नहीं है और न ही किसी प्रकार की चाय पानी की दुकाने हैं – सीधी चढ़ाई है, इसलिए बेहद धीरे – धीरे चलिए लेकिन बार-बार रुकिए नहीं। मैन ट्रेक थोड़ा लम्बा है लोग शोर्ट कट चले रहे हैं लेकिन आप अपनी सांसों को काबू कीजिये, ध्यान आस पास की घाटियों और पर्वत श्रृंखलाओं के विस्तार पर लगाये और धीरे धीरे चढ़ाई की ओर बढ़ते रहिये।

यात्रा वृत्तांत

जे पी मैठाणी/फोटो – पूनम पल्लवी

पहाड़ अडिग हैं – तुंग यानी पर्वत या चोटी के शीर्ष के साथ – यात्रा आगे जारी है – चन्द्रशिला की ओर, जो 2 किलोमीटर ऊपर है – तुंगनाथ मंदिर से –

अभी हमने श्री तुंगनाथ के दर्शन किये – पांव बुरी तरह से ठन्डे हो गए हैं, जूते बदलने वाले स्थान पर बहुत भीड़ है मंदिर के दाहिने ओर छोटे – छोटी कटुवा पत्थर के पांडवों के मंदिर भी है। तुंगनाथ मंदिर के मुख्य द्वार के ठीक सामने जो नंदी विराजमान है लगता है बेहद शांत हैं, उनके सारे शरीर पर चन्दन, लाल पिठाई (रौली) चांवल पोत दिए गए हैं, भक्त नंदी के कान में मंत्र या अपने अपने मनोकामना की प्रार्थना कर रहे हैं ऐसा ही ठीक मैंने भी किया जीवन में पहली बार पर मांगा कुछ नहीं।

इस सारे परिदृश्य और शिव के जयकारों के बीच हमने मंदिर प्रांगण से बाहर निकलकर – पहले कुछ खाने का मन बनाया, मंदिर के लिए लिया गया प्रसाद पैक करवाने के बाद चाय पीने और आलू परांठे खाये। महंगाई बहुत है, सुबह से हमने कुछ खाया नहीं था। हां पीपलकोटी घर से निकलने से पहले हमने सिर्फ चाय पी थी (घर वाले कोई उठे नहीं थे ये सुबह साढ़े तीन बजे के आस पास की बात होगी)।

हम मंदिर से नीचे उतरे हैं – सामने की पर्वत श्रृंखलाओं को धीरे धीरे बादल अपने आगोश में लेने लगे हैं धूप बढ़ने लगी है लेकिन दूसरी तरफ ठंडी हवाएं भी बीच बीच में नाक और कान पर अपना तीखा स्पर्श दे रही हैं। चाय नाश्ते बाद अब पूनम और मेरा लक्ष्य था चंद्रशिला जिसका रास्ता मंदिर के प्रवेश द्वार के दाहिने ओर से ऊपर को जाता है। यहां पर एक बोर्ड लगा है जिस पर लिखा है चंद्रशिला 1 किलोमीटर पर ये दूरी किसी भी स्थिति में डेढ़ – दो किलोमीटर से कम नहीं है।

कृपया ध्यान रखिये – चंद्रशिला को जाने वाले ट्रेक पर आगे पीने का पानी नहीं है और न ही किसी प्रकार की चाय पानी की दुकाने हैं – सीधी चढ़ाई है, इसलिए बेहद धीरे – धीरे चलिए लेकिन बार-बार रुकिए नहीं। मैन ट्रेक थोड़ा लम्बा है लोग शोर्ट कट चले रहे हैं लेकिन आप अपनी सांसों को काबू कीजिये, ध्यान आस पास की घाटियों और पर्वत श्रृंखलाओं के विस्तार पर लगाये और धीरे धीरे चढ़ाई की ओर बढ़ते रहिये।

वापस मुख्य ट्रेक पर – तीखी चढ़ाई होने की वजह से कई बार ट्रेकर या यात्री घबरा जाते हैं, सांसे उखड़ने लगती है लेकिन – मानव की लक्ष्य को पाने की चुनौती उसको रुकने नहीं देती यही हमारे साथ भी हुआ। इससे पूर्व मैंने तीन बार चंद्रशिला तक का ट्रेक कर लेना था लेकिन अलग अलग कारणों से ये नहीं हो पाया।

रुद्रनाथ मंदिर आते आते – पूरा क्षेत्र पेड़ विहीन हो जाता है अब ट्री लाइन पीछे छूट गयी हैं और तुंगनाथ मंदिर से आगे चंद्रशिला के रास्ते में भी अब पेड़ पौधों की जगह सुंदर लाल-आंकुडी-बांकुडी, नीले-कैम्पानुला, पुष्करमूल, बुरांस, आदि अनेक प्रकार के फूलों ने ले ली है। अब बुग्याल की हरी घास मखमली बुग्याल में बदल गयी है, और कई स्थानों पर पूरी की पूरी मिटटी दिखाई दे रही है जो इस हिमालयी बुग्याल की सेहत के लिए ठीक नहीं है, यहीं से चंद्रशिला की पहाड़ी की मिटटी भी बह रही है अगर ये आगे भी जारी रहा तो इस क्षेत्र के शायद पारिस्थितिकी या इकोलोजी के लिए ठीक नहीं है। पूरी की पूरी पहाड़ी नमी से भरी है शॉर्ट कट रास्ता थोड़ा खतरनाक है – ऊपर चोटी पर चंद्रशिला मंदिर के ऊपर बना छोटा मंदिर और झंडे दिखाई दे रहे हैं इस बार देश का तिरंगा भी हिमालय की बर्फीली हवा और फिजां में लहरा रहा है ये सब आपको आमंत्रित कर रहे हैं।

मंदिर से घंटियों की आवाज आपको हिमालय की इस शिला पर आमंत्रित कर रही हैं। ये दो किलोमीटर की चंद्रशिला की राह पूनम के लिए शुरू में थोडा कठिन लग रही थी लेकिन उसने जल्दी ही ट्रैकिंग के टिप्स सीख लिए और वो धीरे – धीरे आगे बढ़ रही है। मंजिल पास है और हिमालय का अविभूत करने वाला बेहद शानदार दृश्य – हमारे चारों और फ़ैल गया है – कुछ याद नहीं रहा – न पानी न सांस – बस नीला आसमान और उसके नीचे चन्द्रशिला से हिमालय की चोटियों का शानदार दृश्य। ये स्थान लगभग 4000 मीटर ( 13,200 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है।

मुझे लगने लगा –
पूरा का पूरा हिमालय विस्तारित है
उत्तर से दक्षिण तक
पूरब से फिर उत्तर तक
चौराबारी, त्रिशूली, केदार
बन्दरपूंछ, हाथी दृघोड़ा
उधर नंदा घुंघुटी, ठीक पीछे –
नंदादेवी का एक पार्श्व,
कामेट और द्रोणागिरी का पूर्वार्ध
अनेक अनाम चोटियों के विहंगम दृश्य
और पृथ्वी के मापदंड को स्थापित करती
पहाड़ की संरचना…

ओह ये कितना रोमांचक है और विस्मयकारी है।
(बस यही शानदार अहसास हुआ मुझे – चंद्रशिला पहुंचकर)
कुछ ने कहा – ये वन देवियों का गढ है,

कुछ ने सुनायी परियों और ऐरी आछरी की कहानियां (ऐरी आछरी – गढ़वाली में दूसरे लोक की परियों को कहा जाता है) और किस्से – जहां परियों द्वारा लोगों को हर लिए जाने की कहानिया पूरे पहाड़ में सुनायी जाती हैं।

क्या है चंद्रशिला का पौराणिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व – तुंगनाथ मंदिर के ऊपर इस पहाड़ी के शीर्ष पर चंद्रशिला की चोटी है –

प्रथम जनश्रुति के अनुसार – भगवान् शंकर को प्रसन्न करने के लिए और हिमालय पर जाने से पहले और शिव का आशीर्वाद पाने के लिए लंकापति रावण ने चंद्रशिला में तपस्या की और भगवान् शिव को प्रसन्न किया।

दूसरी जनश्रुति के अनुसार त्रेता युग में रावण लंकापति के साथ युद्ध के बाद जब भगवान् राम ने रावण का वध किया तो इसका उन्हें बहुत दुःख था। क्यूंकि रावण एक योगी, विद्वान और ब्राहमण थे और रावण वध या ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाने लिए चंद्रशिला में ही भगवान् राम ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की और क्षमा याचना की।

तीसरी जनश्रुति के अनुसार –

सतयुग में राजा दक्ष हुए जिनकी कई पुत्रियां थी उनमे से एक पुत्री दृसती का विवाह शिव से हुआ था लेकिन उनके आत्मदाह के बाद जब तांडव के साथ पूरे हिमालय में भ्रमण कर रहे थे तब हिमालय में 51 शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। राजा दक्ष की 27 पुत्रियों का विवाह देव चन्द्रमा से हुआ था लेकिन चन्द्रमा का विशेष प्रेम राजा दक्ष की बड़ी पुत्री रोहिणी से ही था।

इस बात की शिकायत राजा दक्ष की अन्य 26 पुत्रियों ने अपने पिता से की, राजा दक्ष ने देव चन्द्रमा को बहुत समझाया लेकिन चन्द्रमा नहीं माने तो उन्हें क्षय रोग का श्राप मिला। चंद्रशिला ही वो स्थान है जहां क्षय रोग से मुक्त होने के लिए चन्द्रमा ने कुछ समय के लिए इसी पहाड़ी छोटी पर शिवजी की प्रार्थना और तपस्या की,और तब भगवान् शिव ने चन्द्रमा को क्षय रोग से मुक्त होने का आशीर्वाद दिया और तब से इस शिला खंड का नाम चंद्रशिला (डववद त्वबा) पड़ा।

तुंगनाथ मंदिर के उपर भगवान् राम द्वारा शिव की तपस्या करना और चंद्रशिला के ठीक सामने – जोशीमठ के उत्तर में काकभुशुण्डी झील का होना – जहां – हाथी – घोड़ा और बरमल पर्वत श्रृंखला भी है – और यहां काकभुशुण्डी रामायण का पाठ करते हैं – ये सब अजीब संयोग है – भूगोल और कल्पना के पार।

बताते हैं कि – सर्वप्रथम भगवान् शिव ने ही माता पार्वती को रामायण की कथा सुनायी थी और वो कथा एक कोव्वे ने सुन ली थी जिसका पुनर्जन्म काकभुशुंडी के रूप में हुआ, यह भी बताया गया है कि, लोमश ऋषि के शाप के कारण ही काकभुशुण्डी कौवा बन गए और तुंगनाथ क्षेत्र में पीली चोंच वाले पूरे काले कौवे दिखाई देते हैं।

कितनी बातें कितने किस्से कहानियां ख़तम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं, इस ट्रेक में मेरी सहयात्री और मित्र पूनम ने मुझे चन्द्रमां के श्राप वाली बात बताई तो महाराष्ट्र से आयी टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस की मेरी विद्यार्थी वेदिका ने कल मुझे रावण की चंद्रशिला में तपस्या वाली बातें बताई।

ये सिलसिला यहीं खत्म नहीं होता – आयुर्वेद के एक विद्वान वैध्य जो अल्मोड़ा के लाला बाजार में रहते थे उन्होंने वर्ष 1997 में मुझे और योगी भाईसाब को चन्द्रमा के – आमवस्या से पूर्णमासी की यात्रा या परिक्रमा काल और चांद के बदलते रूप के हिमालय की जड़ीबूटियों पर पड़ने वाले दिव्य प्रभाव के बारे में बताया था और कहा था कि, इस विषय पर उत्तराखंड में आयुर्वेद में अध्ययन होना चाहिए।

तुंगनाथ में – गढ़वाल विश्वविध्यालय के – हाई अल्टीट्यूड प्लांट फिजियोलोजी रिसर्च सेंटर के इस क्षेत्रीय लैब में जड़ी बूटी की खेती और संरक्षण पर कार्य किया जा रहा है। लेकिन शायद चन्द्रमा से जड़ी बूटियों के तत्व और प्रभाव पर ध्यान दिया जाता हो ऐसा दिखाई नहीं पड़ता है।

चंद्रशिला में पहुंचकर सारी थकान दूर हो जाती है – अब लगभग 11ः45 बज गए हैं – थोड़ी देर तक पूरे हिमालय – के साथ गोपेश्वर – पीपलकोटी की घाटी, नागनाथ – पोखरी, उखीमठ और केदारनाथ की घाटियों के साथ आस पास पूरे पूर्वोत्तर और दक्षिण में विस्तारित हिमालय को निहारते हुए – अचानक आस पास की पहाड़ियां बादलों से घिर गई हैं – हमने ठंडी फुहारों से पहले वापस लौटने का मन बनाया हालांकि मन नहीं था।

लेकिन मौसम और समय की सीमा के साथ लौटना शुरू किया। अब नीचे उतरना भी कठिन है आप जल्दी जल्दी नहीं उतर सकते हैं – और शार्टकट का रास्ता खतरनाक और फिसलन भरा हो सकता है इसलिए इस ट्रेक के लिए अच्छे जूते होने चाहिए – चंद्रशिला जाते वक्त – बारिश से बचने के लिए बरसाती – छाते या पौन्चो जरूर रखिये।

हम चंद्रशिला से तुंगनाथ मंदिर के निकट 20 मिनट में वापस पहुंच गए, मेरे बैग में वन अनुसन्धान संस्थान से इकट्ठा किया गया एक रुद्राक्ष था – उसको मैंने वापस तुंगनाथ मंदिर के नंदी को छुआ कर सहयात्री के आग्रह पर वापस अपने पास रख लिया है। लेकिन यह रुद्राक्ष मेरे बैग में कब से था इस बारे में मुझे कुछ याद नहीं है।

अब तुंगनाथ से वापस लौटने लगे हैं ढाल पर पैर जल्दे जल्दे पड़ने लगे हैं कार के ड्राईवर श्री लक्ष्मण जी का फ़ोन आ गया मैंने, अपने साथी से कहा – तो जवाब मिला सर 30-40 मिनट में वापस पहुंच जायेंगे – इस आत्मविश्वास पर ख़ुशी हुई – कुछ शोर्टकट रास्ते पकडे और लगभग 3ः20 पर हम वापस चोपता के ढाबे में पहुंच गए – बेहद अव्यवस्था के बीच बहुत महंगा खाना मिला और फिर हम कार तक वापस पहुंच गए।

चंद्रशिला, तुंगनाथ, चोपता, दुग्गलबित्ठा, धोतीधार पीछे छूट रहे हैं कानों में कैलाश खैर का भजन आदि योगी गूंज रहा है, हिमालय में शिव और उनसे जुडी कथा कहानियों कल्पनाओं के साथ आंखे भी बोझिल हो रही है, कैलाश गा रहे हैं – प्रसून जोशी की धुन के साथ
उस योगी शिव की आराधना में…

कैलाश खैर गाते हैं
दूर उस आकाश की गहराइयों में
एक नदी से बह रहे हैं आदि योगी,
शून्य सन्नाटे टपकते जा रहे हैं
योग धारा बह रही है
पीस दो अस्तित्व मेरा
और कर दो चूरा चूरा
सांस शाश्वत – सनन सनन
प्राण गुंजन – घनन घनन…
उतरे मुझमे आदि योगी…

बस यही सब चलता रहा बाहर भीतर – बहने लगा पूरा का पूरा हिमालय चंद्रशिला की चोटी से और मैंने, मह्सूस किया हम कितने सूक्ष्म हैं – इस धरा पर – इस हिमालय और चंद्रशिला की पहाड की चोटी पर।
ढाल पर उतरते हुए मक्कूमठ – उखीमठ से नीचे कुंड पहुंच गए हैं – ऊपर कही कही फ़ोन लगता है – नेटवर्क की काफी समस्या है, अब हम मन्दाकिनीं के बाएं तट के साथ देहरादून की ओर बढ़ रहे हैं।

मन्दाकिनी नदी की लहरे हैं उसमे ही समाहित है तुंगनाथ और चंद्रशिला की चोटियों से निकलने वाली अक्ष कामिनी जलधारा का शीतल जल जो आगे अलकनंदा और फिर देवप्रयाग में गंगा बनकर समुद्र में समाहित हो जाएगा।

पहाड़ शांत हैं, और अडिग हैं रात के अंधेरे में – वही जहां बर्फ के ग्लेशियरों के साथ वो हिमालय से बंगाल तक भारत की धरा को सिंचित कर रहे है।

फिर यकायक आंख खुलती है – नेशनल हाईवे बन रहा है और हम चाय के लिए श्रीनगर और तीन धारा में रुकने के बाद वापस उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी देहरादून सुबह की आहट के साथ वापस पहुचं गए है।

मन शांत है – थकान से और हिमालय में शिव की शक्ति के प्रभाव से। पिछले जून माह से अब तक का शारीरिक और मानसिक कष्ट काफूर हो गया है।

फिर मिलेंगे – हिमालय, ऊपर धुंधलके आसमान में चांद हमारे साथ है – सुबह का सूरज देहरादून में आहट देने लगा है, चंद्रशिला और तुंगनाथ तुम बहुत याद रहोगे।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked with *

विज्ञापन

[fvplayer id=”10″]

Latest Posts

Follow Us

Previous Next
Close
Test Caption
Test Description goes like this