खेती से भी संभव है… धनिए से आई अल्मोड़ा के नरेंद्र के जीवन में हरियाली

खेती से भी संभव है… धनिए से आई अल्मोड़ा के नरेंद्र के जीवन में हरियाली

नियमित सब्जी उत्पादन से आर्थिक तंगी में जीवन जी रहे अल्मोड़ा के नरेंद्र और उनके परिवार के हालात अब धीरे-धीरे सुधरने लगे हैं। वर्तमान में शिमला मिर्च, टमाटर, जुकुनी, कद्दू, खीरा और गोभी इत्यादि फसलों को बेचकर वे अपने परिवार के सपने पूरे कर रहे हैं।

अल्मोड़ा से हिल-मेल के लिए ललित पांडे

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के चौखुटिया ब्लॉक का सुदूर गांव पालन बाड़ी, खीड़ा के नरेंद्र सिंह कुछ समय पहले एक स्वयंसेवी संस्था संजीवनी से जुड़े। नरेंद्र की आय में बढ़ाने के लिए संस्था ने उन्हें पॉलीहाउस लगाकर सब्जी (Agriculture in Uttarakhand) उत्पादन की सलाह दी। जीवन के करीब दो पड़ाव पार कर चुके नरेंद्र सिंह की अब तक कोई नियमित आय नहीं थी। वे अपने गांव में ही सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान चलाते थे, जिसे महीने-दो महीने में वे बमुश्किल एक सप्ताह के लिए खोलते थे।

एक हाथ से दिव्यांग, लेकिन मेहनती और आशावादी नरेंद्र को लगा कि सब्जी उगाकर उन्हें नियमित आय हो सकती है, ऐसे में उन्होंने पॉलीहाउस लगाने के लिए झट से हामी भर दी। लेकिन, घर पहुंचकर जब उन्होंने अपनी पत्नी से इस संबंध में चर्चा की, तो उन्होंने पॉलीहाउस लगाने से साफ मना कर दिया। इसकी वजह यह थी उनके आसपास के लोग परंपरागत फसलें बोया करते थे और पॉलीहाउस में सब्जी उगाने के बारे में उन्होंने बहुत कम सुन रखा था।

कई दिनों की लगातार कोशिशों के बाद नरेंद्र सिंह को उनकी पत्नी ने महज पॉलीहाउस लगाने भर की जगह दी। इतना ही नहीं, पॉलीहाउस लगने के बाद भी कई महीनों तक उन्हें सुबह-शाम अपनी पत्नी के ताने सुनने पड़ते थे। पॉलीहाउस में उन्होंने धनिया, मूली, शलजम, मटर इत्यादि के बीज लगाए। खेती करने में संस्था से जुड़े कृषि वैज्ञानिकों का उन्हें भरपूर सहयोग मिला। वैज्ञानिकों ने नरेंद्र को न केवल जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित किया, बल्कि नई विधियों से खेती करने के गुर भी सिखाए।

तीन-चार महीने की मेहनत के बाद नरेंद्र की मेहनत रंग लाने लगी। आश्चर्यजनक बात यह कि इस दौरान उनकी नाराज पत्नी ने पॉलीहाउस के भीतर कदम तक नहीं रखा। जब धनिए की अपनी पहली फसल लेकर नरेंद्र स्थानीय बाजार में गए, तो उनका धनिया हाथों-हाथ बिक गया, जिसकी एवज में उन्होंने करीब 1500 रुपये कमाए। जब घर लौटकर उन्होंने मेहनत की कमाई अपनी पत्नी के हाथ में रखी, तो वह भावुक हो गईं।

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पहली बार फसल बेचकर पति के हाथ में आई रकम को देखकर वह इतनी ज्यादा खुश हुईं कि उनकी आंखों से आंसू टपक पड़े। इसके बाद जब नरेंद्र अन्य फसलों को बेचकर नियमित तौर पर अपनी पत्नी के हाथ में पैसे रखते गए, तो उन्होंने वह पूरा खेत अपने पति को साग-सब्जी उगाने के लिए दे दिया, जिसमें वह कभी पॉलीहाउस लगाने तक की जगह देने को तैयार नहीं थीं।

नियमित सब्जी उत्पादन से आर्थिक तंगी में जीवन जी रहे नरेंद्र और उनके परिवार के हालात अब धीरे-धीरे सुधरने लगे हैं। वर्तमान में शिमला मिर्च, टमाटर, जुकुनी, कद्दू, खीरा और गोभी इत्यादि फसलों को बेचकर वे अपने परिवार के सपने पूरे कर रहे हैं। गौरतलब बात यह कि इन दिनों नरेंद्र गैर-मौसमी सब्जियां भी उगा रहे हैं, जिससे उनकी आमदनी में अच्छा-खासा इजाफा हो रहा है। अब उन्हें अपनी सब्जी बेचने के लिए बाजार भी नहीं जाना पड़ता, क्योंकि ग्राहक उनके खेत में ही सब्जी खरीदने आ जाते हैं।

नरेंद्र सिंह अब अपने आसपास के किसानों को जैविक और वैज्ञानिक तरीके से खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं और वह उनके लिए एक नजीर पेश कर रहे हैं, जो खेती-किसानी को घाटे का सौदा बताते हैं या रोजगार के लिए पहाड़ से पलायन कर रहे हैं। नरेंद्र कहते हैं, यदि किसान कड़ी मेहनत, वैज्ञानिक तरीके और आशावादी सोच के साथ खेती करे, तो हमारे पहाड़ में ही सबकुछ संभव है।

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