निर्मल पंडित वो नाम है जिसके नेतृत्व में कलेक्टर की एम्बेसडर राज्य आन्दोलनकारियों में अपने कब्जे में ली थी। इस एम्बेसडर कार में जिलाधिकारी के बोर्ड की जगह लिखा होता मुख्यमंत्री। एक समय निर्मल की लोकप्रियता इतनी बढ गयी कि सरकार ने उसे जिन्दा या मुर्दा पकड़ने के आदेश दे दिए।
निर्मल पंडित छोटी उम्र मैं ही जन-आंदोलनो की बुलंद आवाज बन कर उभरे थे। 1991-92मे पहली बार पिथौरागढ़ महाविद्यालय मे छत्रसंध महासचिव चुने गए। छात्रहितों के प्रति उनके समर्पण का ही परिणाम था की वह 3 बार इस पद पर चुनाव जीते। इसके बाद वह पिथौरागढ़ महाविद्यालय के छात्रसंध के अध्यक्ष भी बने।
उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के समय पिथौरागढ़ के एक छात्रनेता ने जिलाधिकारी ऑफिस के बाहर आत्मदाह कर लिया। करीब-करीब दस-पन्द्रह दिन तक इस छात्रनेता के बारे में अलग-अलग बातें की जाती थी।
कोई कहता किसी ने मिट्टी तेल के जार में पेट्रौल मिला दिया, कोई कहता पुलिस वालों ने कम्बल नहीं डालने दिया, कोई कहता उसके किसी दोस्त ने गद्दारी कर दी, कोई कहता पुलिस ने गद्दारी कर दी।
लोगों के बीच ये चर्चायें कम हुई थी कि महीने भर बाद अचानक खबर आई, दिल्ली में छात्रनेता की मौत हो गयी. इस घटना के कई सालों तक इस छात्रनेता का नाम पिथौरागढ़ कॉलेज इलेस्कशन में लिया जाता रहा. नाम है निर्मल पंडित।
बुरी खबर यह थी कि एक युवा जिसने राज्य के लोगों के लिये अपनी जान दे दी उसके परिवार को वृद्धावस्था पेंशन के लिये भटकना पड़ा। कुछ साल पहले खबर आई थी कि निर्मल पंडित को राज्य सरकार ने अब तक राज्य आन्दोलनकारी का दर्जा नहीं दिया।
हम लम्बे समय तक निर्मल पंडित की बातें सुनते आये।जब कभी प्रदर्शन होता तो लोग कहते अभी निर्मल दा होता तो ऐसा कर देता। नब्बे के दशक में बड़े हुये पिथौरागढ़ के लोगों के लिये निर्मल पंडित एक नाम नहीं एक हीरो था। एक हीरो जिसको हमने कभी करीब से नहीं देखा।
निर्मल पंडित वो नाम है जिसके नेतृत्व में कलेक्टर की एम्बेसडर राज्य आन्दोलनकारियों में अपने कब्जे में ली थी। इस एम्बेसडर कार में जिलाधिकारी के बोर्ड की जगह लिखा होता मुख्यमंत्री। एक समय निर्मल की लोकप्रियता इतनी बढ गयी कि सरकार ने उसे जिन्दा या मुर्दा पकड़ने के आदेश दे दिए।
निर्मल पंडित ने 1998 में जब सरकार के द्वारा निकाला गए शराब के नये टेंडर का विरोध किया । उसने विरोध में आत्मदाह करने की घोषणा की. तय तारीख के दिन अपने जिले के जिलाधिकारी कार्यालय के सामने उसने आत्मदाह किया. जब तक कि महकमें के कानों में जूं रेंगती निर्मल पंडित का 65 प्रतिशत शरीर जल चुका था। वक्ताओं ने कहा कि शराब नीलामी के विरोध में अपना बलिदान देने वाले एक संघर्षशील व्यक्तित्व को हमेशा याद किया जाएगा।
उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के समय निर्मल पंडित के बहुत से साथी आज भाजपा-कांग्रेस की गोद में बैठे हैं. जिस ठसक से वो कहते हैं कि उन्होंने भी निर्मल पंडित के साथ लड़ाई लड़ी है, आप अंदाजा लगा सकते हैं कि निर्मल पंडित का नाम राज्य आन्दोलन में कितना बड़ा है।
शराब विरोध में अपनी जान गंवा देने वाले और पिथौरागढ़ जिले में राज्य आन्दोलन की अलख गाँव-गाँव तक पहुँचाने वाले निर्मल पंडित ने ऐसे राज्य की परिकल्पना तो कभी नहीं की होगी जिसकी अर्थव्यवस्था का आधार ही शराब की बिक्री होगा।
2021 रविवार को कोविड नियमों का पालन करते हुए महज चार लोगों ने स्थानीय शहीद स्मारक में पहुंचकर पंडित की मूर्ति पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। इस दौरान वक्ताओं ने पंडित के जीवन परिचय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उत्तराखंड राज्य आंदोलन में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। 27 मार्च 1998 को शराब नीलामी के विरोध में उन्होंने कलेक्ट्रेट परिसर में आत्मदाह कर लिया था।
आज के ही दिन यानि 16 मई 1998 में सफदरजंग अस्पताल दिल्ली में इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया। तीन बार छात्रसंघ महासचिव व एक बार एलएसएसएम पीजी कॉलेज पिथौरागढ़ के छात्रसंघ अध्यक्ष रहे पंडित छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय थे। गंगोलीहाट की चिटगल सीट से पंडित जिला पंचायत सदस्य भी रहे। राज्य आंदोलन के दौरान वह 57 दिनों तक फतेहगढ़ जेल में भी रहे। 1996 में पुलिस भर्ती निरस्त कराने में भी पंडित की अहम भूमिका रही। उनकी स्मृति में लंदन फोर्ट परिसर में पौधारोपण भी किया गया। कार्यक्रम संयोजक जुगल किशोर पांडे ने कहा कि पिथौरागढ़ में जब भी जनांदोलनों की बात होगी, पंडित को हमेशा याद किया जाएगा। कार्यक्रम में के.एमवीएन प्रबंधक दिनेश गुरू रानी, गोपाल दत्त सती, भगवान बल्लभ पंत मौजूद रहे।
यूथ कांग्रेस नमन निर्मल पंडित की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए यूथ कांग्रेस जिलाध्यक्ष ऋषेंद्र महर ने कहा कि क्रांतिकारी छात्र नेता के बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। युवा पीढ़ी को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।
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