गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने की मांग साठ के दशक में पहली बार उठी थी। इस मांग को उठाने वाले कोई और नहीं, बल्कि पेशावर कांड के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली थे। यही वजह रही कि उत्तराखंड क्रांति दल ने उस दौर में गैरसैंण को गढ़वाली के नाम पर चंद्रनगर रखा था।
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तर प्रदेश से एक अलग राज्य उत्तराखंड बनाने के साथ ही उसकी राजधानी गैरसैंण को बनाने की मांग उठने लगी थी। राज्य आंदोलनकारियों और उत्तराखंड क्रांति दल ने समय-समय पर इसकी मांग के लिए आंदोलन तेज किया। उनका अलग राज्य गठन का ये संघर्ष 9 नवंबर 2000 को खत्म हुआ और उत्तराखंड को राज्य का दर्जा मिला। हालांकि फिर उत्तराखंड की राजधानी गैरसैंण न होकर देहरादून (अस्थाई) बन गई। इसको लेकर फिर से आंदोलन शुरू हुए और राज्य आंदोलनकारियों ने ’पहाड़ी प्रदेश की राजधानी पहाड़ हो’ का नारा बुलंद किया। इसलिए गैरसैण को जनभावनाओं की राजधानी भी कहा जाने लगा।
उत्तराखंड की स्थाई राजधानी गैरसैंण में सिक्के के दो पहलू देखने को नजर आते हैं। जहां एक तरफ विधानसभा क्षेत्र भराड़ीसैंण अपनी आलीशान इमारतों से नई इबारत लिख रहा है, तो वहीं दूसरा पहलू गैरसैंण और गैरसैंण के लोगों की उस स्याह हकीकत का है, जहां पिछले 24 सालों से केवल इंतजार और उम्मीद ही मिल पाया है। 21 अगस्त 2024 से 23 अगस्त तक गैरसैंण के भराड़ीसैंण विधानसभा भवन में उत्तराखंड विधानसभा का तीन दिवसीय मानसून सत्र आयोजित किया गया। बीते शुक्रवार को पूरी सरकार अपने दलबल के साथ भराड़ीसैंण के उस आलीशान विधानसभा भवन को एकांत और वीरान छोड़कर वापस देहरादून लौट आई है। ऐसे में जहां एक तरफ भराड़ीसैंण की आलीशान इमारतों की चमक है, तो वहीं दूसरी तरफ जिस मूल भावना के साथ गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने का संकल्प लिया गया था, उस से बहुत दूर खड़े गैरसैंण और आसपास के वो स्थानीय लोग हैं, जिनकी आंखें पिछले 24 सालों से उनके कायापलट के केवल इंतजार में तरस गई हैं।
गैरसैंण के भराड़ीसैंण में 47 एकड़ में फैला विधानसभा क्षेत्र भौगोलिक दृष्टि से बेहद खूबसूरत है। साल भर यहां मौसम बेहद ठंडा और खुशगवार बना रहता है। समुद्र तल से 5,410 फीट की ऊंचाई पर मौजूद उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी का विधानसभा भवन बेहद आलीशान और भव्य बनाया गया है। विधानसभा भवन में सदन के अलावा विधानसभा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री, कैबिनेट मंत्री के कार्यालय भी बनाए गए हैं। इसके अलावा विधानसभा भवन परिसर में सभी मंत्रियों और विधायकों के आवास भी बनाए गए हैं। 2012 में कांग्रेस की सरकार ने गैरसैंण राजधानी की दिशा में पहल शुरू की थी। इसे कांग्रेस के ही तत्कालीन मुख्यमंत्री ने और आगे बढ़ाया था। उसके बाद 2017 में बनी भाजपा सरकार में गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा तत्कालीन मुख्यमंत्री ने की थी। इस दौरान लगातार गैरसैंण के भराड़ीसैंण से विधानसभा परिसर में नए निर्माण किए जाते रहे।
गैरसैण के भराड़ीसैंण में किया गया भव्य निर्माण एक नवगठित राज्य के लिहाज से बेहद सुंदर और आलीशान है। साथ ही देहरादून जैसी कन्जस्टेड विधानसभा भवन के मुकाबले भराड़ीसैंण का विधानसभा भवन बेहद भव्य है। लेकिन साल भर में मात्र कुछ दिन ही दिनों के लिए यहां पर विधानसभा सत्र का आयोजन होता है। 2012 में कांग्रेस की सरकार ने गैरसैंण राजधानी की दिशा में पहल शुरू की थी। इसे कांग्रेस के ही तत्कालीन मुख्यमंत्री ने और आगे बढ़ाया था। उसके बाद 2017 में बनी भाजपा सरकार में गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा तत्कालीन मुख्यमंत्री ने की थी। इस दौरान लगातार गैरसैंण के भराड़ीसैंण से विधानसभा परिसर में नए निर्माण किए जाते रहे। गैरसैण के भराड़ीसैंण में किया गया भव्य निर्माण एक नवगठित राज्य के लिहाज से बेहद सुंदर और आलीशान है। साथ ही देहरादून जैसी कन्जस्टेड विधानसभा भवन के मुकाबले भराड़ीसैंण का विधानसभा भवन बेहद भव्य है। लेकिन साल भर में मात्र कुछ दिन ही दिनों के लिए यहां पर विधानसभा सत्र का आयोजन होता है।
विधानसभा अध्यक्ष ने बताया कि वह लगातार गैरसैंण के भराड़ीसैंण में विधानसभा के जरूरी सभी एस्टेब्लिशमेंट कर रही हैं। इसमें अब तक रेजिडेंशियल अकोमोडेशन डॉरमेट्रीज के अलावा मेस, कैंटीन बनाई गई हैं। अभी इसमें और अधिक सुविधाएं एस्टेब्लिश की जानी हैं। उन्होंने बताया कि गैरसैंण विकास परिषद के माध्यम से उनका पूरा प्रयास है कि मिलकर काम किया जाए और इस तरह के बड़े प्रोजेक्ट्स को यहां पर धरातल पर उतारा जाए, जिससे ज्यादा से ज्यादा स्थानीय लोगों को लाभ मिले। विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि उनकी मुख्यमंत्री से बात हुई है और अब से लगातार कुछ ना कुछ कार्यक्रम गैरसैंण में किए जाएंगे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि धीरे-धीरे सभी लोगों को गैरसैंण की आदत हो रही है। उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे यह स्थान सभी के लिए जाना पहचाना हो गया है और यहां पर साल भर गतिविधियां हों और सत्र भी बड़ा चले। साथ ही अन्य सुविधाएं यहां पर मिलें, इसके लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि यहां पर बड़ा अस्पताल बनाने के लिए, सत्र के दौरान पत्रकारों के लिए अकोमोडेशन भवन बनाने के लिए और भराड़ीसैंण के पौराणिक भराड़ी देवी मंदिर के निर्माण के लिए उनके द्वारा निर्देश दिए गए हैं। सीएम धामी ने बताया कि जल्द ही एक सचिव स्तर का अधिकारी गैरसैंण के विकास के लिए नोडल बनाया जाएगा। गैरसैंण के स्थानीय युवा बताते हैं कि उत्तराखंड राज्य को अलग करने की मांग गैरसैण राजधानी के नाम पर हुई थी।
गैरसैंण स्थाई राजधानी की परिकल्पना की गई थी कि पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की राजधानी पहाड़ में होगी। इससे गैरसैंण और आसपास के गढ़वाल और कुमाऊं सभी क्षेत्रों में विकास होगा। लेकिन यह सपना उनके लिए सपना ही रह गया। उन्होंने कहा कि पिछली सरकारों की पहल के चलते गैरसैंण में विधानसभा सत्र आयोजित करने की परंपरा शुरू हुई। पहली बार गैरसैंण के लोगों ने मंत्रियों, विधायकों और सरकारी अधिकारियों को अपनी आंखों से सीधे तौर पर देखा था। लेकिन इसका भी कुछ खास फायदा गैरसैंण के लोगों को नहीं हुआ। उन्होंने भराड़ीसैंण में होने वाले विधानसभा सत्र का जिक्र करते हुए कहा कि पहले तो लगा था कि उत्तराखंड के बड़े-बड़े नेता यहां पर आएंगे और उससे कुछ स्थानीय लोगों को फायदा होगा। लेकिन आखिरकार होता यह है कि नेता, मंत्री और अधिकारी भी आते हैं, लेकिन आकर चले भी जाते हैं। स्थानीय लोगों की कोई सुनवाई नहीं होती है। यह बिल्कुल वैसा ही है कि आसमान से तो गिरा, लेकिन जमीन को नहीं मिल पाया।
एक तरफ उत्तराखंड सरकार द्वारा गैरसैंण के भराड़ीसैंण में उच्च स्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट किया जा रहा है। सभी सुविधाओं को यहां पर विकसित किया जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ गैरसैंण के पूरे इलाके और वहां के स्थानीय लोगों की बात करें, तो पिछले 24 सालों में उन्हें केवल राजधानी के नाम पर केवल निराशा ही मिली है। गैरसैंण ब्लॉक से आने वाली लक्ष्मी देवी बताती हैं कि हमें सुविधाएं तो कुछ दी नहीं गई। राजधानी तो नाम की बनी है। हॉस्पिटल बने हैं, वहां डॉक्टर नहीं हैं। गाइनेकोलॉजिस्ट नहीं हैं। अल्ट्रासाउंड की मशीन नहीं है।
गैरसैंण के ही नजदीक पंडुवाखाल कुमाऊं क्षेत्र से आने वाले दीपक बताते हैं कि गैरसैंण उत्तराखंड की स्थाई राजधानी केवल कागजों तक सीमित है। यहां केवल तीन दिन का सत्र चलता है। उसके लिए करोड़ों खर्च किया जाता है, लेकिन स्थानीय लोगों की कोई समस्या नहीं सुनी जाती है। उन्होंने चौखुटिया स्थित अपने कॉलेज गोपाल बाबू गोस्वामी राजकीय महाविद्यालय चौखुटिया का उदाहरण देते हुए बताया कि सन् 2000 में कॉलेज बन गया था। लेकिन अभी तक कॉलेज को बिल्डिंग नहीं दी गई। कॉलेज के लिए 5 करोड़ की बिल्डिंग बनाई गई जो कि बिल्कुल खस्ताहाल है। गैरसैंण की स्थानीय युवा ने बताया कि यहां शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार किसी भी तरह की कोई सुविधा न होने की वजह से स्थानीय युवा पलायन करके मैदानी शहरों की तरफ जाते हैं। उन्होंने बताया कि वह गैरसैंण से अल्मोड़ा क्षेत्र में पढ़ने के लिए जाते हैं, जहां उन्हें 12 किलोमीटर पैदल चलकर जाना पड़ता है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं और लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं)।
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