INTERVIEW: चार दशक का शानदार सेवाकाल – टिहरी गढ़वाल के घुमेटीधार से वायुसेना के एयर मार्शल तक

INTERVIEW: चार दशक का शानदार सेवाकाल – टिहरी गढ़वाल के घुमेटीधार से वायुसेना के एयर मार्शल तक

एयर मार्शल वीपीएस राणा मूलतः टिहरी गढ़वाल के नेलडा, धारमंडल के निवासी हैं। उन्होंने अपनी पढ़ाई उत्तराखंड के विभिन्न विद्यालयों से की। इनमें टिहरी गढ़वाल के घुमेटीधार, पौड़ी गढ़वाल के श्रीनगर, उत्तरकाशी और पंतनगर यूनिवर्सिटी शामिल हैं। उनकी प्राथमिक शिक्षा अपने गांव नेलडा और रजाखेत में ही हुई। हमेशा से मेधावी छात्र रहे एयर मार्शल राणा श्रीनगर के उच्चतर माद्यमिक विद्यालय में प्रतिष्ठित एकीकृत छात्रवृत्ति के तहत चलने वाले सैनिक स्कूल 1975-76 के पहले बैच के छात्र थे। उन्होंने ग्रेजुएशन में गढ़वाल विश्विद्यालय और पोस्ट ग्रेजुएशन में पंतनगर यूनिवर्सिटी में प्रथम स्थान प्राप्त किया।

एयर मार्शल विजयपाल सिंह राणा चार दशक का शानदार करियर पूरा करने के बाद वायुसेना की प्रशासनिक शाखा के प्रमुख यानी एयर ऑफिसर इन चार्ज एडमिनिस्ट्रेशन के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। वायुसेना में उन्होंने अपने लगभग चार दशक के कार्यकाल के दौरान विभिन्न महत्वपूर्ण पदों का कार्यभार संभाला। उन्होंने कारगिल युद्ध और ऑपरेशन पराक्रम के दौरान फाइटर कंट्रोलर और रडार यूनिट के कमांडिंग अफसर के रूप में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके वायुसेना में विशिष्ट सेवा के लिए पीवीएसएम, वीएसएम और वायु सेना प्रमुख द्वारा प्रशंसा पत्र से सम्मानित किया गया। हमेशा जमीन से जुड़े रहे एयर मार्शल राणा अपने विचारों में उत्तराखंड के चहुंमुखी विकास को प्राथमिकता देते हैं और उत्तराखंड को एक प्रगतिशील और आर्थिक रूप से विकसित राज्य के रूप उभरते देखना चाहते हैं। हिल-मेल दिल्ली के संपादक वाईएस बिष्ट की एयर मार्शल राणा से सेवानिवृत्ति के अंतिम दिन हुई बातचीत के प्रमुख अंश:

आपने चार दशक तक वायुसेना के विभिन्न पदों पर कार्य किया और आप वायुसेना की प्रशासनिक शाखा के प्रमुख के पद पर पहुंचे, आप अपने कार्यकाल को कैसे देखते हैं ?

मैं अपने आप को भाग्यशाली मानता हूं कि मुझे वायुसेना में लगभग चार दशक तक कार्य करने का सौभाग्य मिला और प्रशासनिक शाखा के सबसे ऊंचे पद तक पहुंच पाया। इसमें नियति, मेहनत, अपने प्रियजनों की दुआओं और बड़े बुजुर्गों और गुरूजनों के मार्गदर्शन का बहुत बड़ा योगदान है।

जैसा कि आपको विदित है वायुसेना, एक बहुत ही प्रोफेशनल सर्विस है और वायुसेना में प्रशासनिक शाखा का बहुत बड़ा योगदान होता है जो ज्यादातर लोगों को पता नहीं होता। वायुसेना में जहाज, मिसाइलों या रडार जैसे यंत्रों को चलाने और उनके रखरखाव के अलावा, जो भी कार्य होते हैं सब प्रशासन की जिम्मेदारी होती है जैसे मेडिकल, एकाउंटस, कानून व्यवस्था, रहन-सहन, रनवे/हैंगर का निर्माण कार्य, मकान जमीन, जन-कल्याण, जमीनी सुरक्षा इत्यादि। इसके अलावा प्रशासनिक शाखा, सीधे और परोक्ष रूप में भी ऑपरेशंस में भी शामिल होती है जैसे एयर ट्रैफिक कंट्रोलिंग और फाइटर कंट्रोलिंग, जिसमें वायुयानों को निश्चित मिशनों के लिए दिशानिर्देश देना शामिल है।

ये मेरा सौभाग्य रहा कि लगभग इन सभी क्षेत्रों में मुझे कार्य करने का मौका मिला। कारगिल युद्ध के दौरान मैं एक रडार यूनिट का कमांडिंग ऑफिसर रहा और ऑपरेशन पराक्रम के दौरान भी युद्ध क्षेत्र में तैनाती रही। समय-समय पर निर्माण कार्य और रनवे निर्माण का भी अनुभव मिला। एक प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर लोगों के लिए काम करने का मौका मिला। एयर डिफेंस के क्षेत्र में भी लगभग हर तरह के ऑपरेशनल कार्यों से जुड़ा रहा और कई तरह के महत्वपूर्ण योगदान दे पाया। देश विदेशों में भी स्टाफ कॉलेजों के इंसट्रक्टर के तौर पर भी बहुत अच्छा अनुभव रहा।

लेकिन सबसे अलग और सबसे चैलेंजिंग मेरे अंतिम दो साल रहे, जिसमें लगभग पूरे समय कई तरह की मुश्किलें सामने आई, मुख्यतः सीमा पर चीन के साथ तनाव और कोविड19 की महामारी। वायुसेना ने इन दोनों क्षेत्रों में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया। वायुसेना के कोविड19 मुख्य संयोजन अधिकारी के तौर पर मुझे कोविड19 से जुड़ी सारी समस्याओें के समाधान के लिए कई स्तर पर लगातार सामंजस्य बनाना था और इसे मैं अपनी सबसे बड़ी कामयाबियों में गिनूंगा जिसके तहत हॉस्पिटल में बेड और ऑक्सीजन की सुविधाओं को एक बहुत ही कम समय में कई गुना बढ़ाया, जिससे कई जानें बच सकी। इस दौरान सिर्फ वायुसेना ही नहीं बल्कि आम जनता को भी सारी सुविधायें मुहैया करायीं। कुल मिलाकर मेरा अनुभव बहुत ही अच्छा रहा और मुझे खुशी के साथ-साथ बहुत संतुष्टि है कि मैं अच्छा योगदान दे पाया।

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आपकी शिक्षा दीक्षा कहां से हुई और अपने परिवार के बारे में कुछ बताइये ?

अपनी शिक्षा दीक्षा के मामले में मैं बहुत ही भाग्यशाली रहा हूं क्योंकि अपनी पढ़ाई मैंने उत्तराखंड में कई जगहों से की। आज के दिन शायद ही कोई इस बात पर विश्वास करें, लेकिन मेरी प्राथमिक शिक्षा की कहानी बड़ी दिलचस्प है। मेरे दादाजी जंगलात में फॉरेस्टर थे और उन्हें कई सामाजिक, सांसारिक, धार्मिक और शैक्षिक हर तरह का बहुत ज्ञान था, तो उन्होंने घर में ही मुझे पढ़ाया-लिखाया और फिर सीधे चौथी कक्षा में भर्ती करवाया क्योंकि पांचवी का जिलास्तरीय बोर्ड होताथा। मैं जब स्कूल गया तो हमारे प्रधानाध्यापक ने छह महीने के बाद मेरे दादाजीसे ये कह कर कि लड़का अच्छा है, मुझे पांचवीं कक्षा में डाल दिया और मैंने एक ही साल में चौथी और पांचवीं कक्षा की पढ़ाई की। वस्तुतः पूरी प्राथमिक शिक्षा में सिर्फ एक साल ही स्कूल गया और मजेदार बात ये है कि उसके बाद आयु कम होने के कारण छठी में भर्ती नहीं हुई तो एक साल फिर घर बैठना पड़ा। इस दौरान मेरे दादाजी ने मुझे रामायण, गीता अैर अन्य कई धार्मिक पुस्तकों को पढ़ाया और समझाया।उसके बाद माध्यमिक शिक्षा टिहरी जिले के रजाखेत और घुमेटीधार से की।फिर हाईस्कूल में 1975 में उत्तर प्रदेश सरकार ने एकीकृत छात्रवृत्ति की एक योजना शुरू की। जिसमें गढ़वाल क्षेत्र के तब के सभी पांच जिलों से मेधावी छात्रों के लिए सैनिक स्कूल की तर्ज पर श्रीनगर के इंटर कॉलेज में छात्रावास खोला गया। हम 16 लड़के उसमें चुने गए और तब हमें 100 रू प्रति मास छात्रवृत्ति मिली, जो कि उन दिनों बहुत बड़ी राशि थी। इंटर मैंने फिर घुमेटीधार से किया। स्नातक मैंने गढ़वाल यूनिवर्सिटी, उत्तरकाशी से किया, अच्छे अंक मिले तो स्नातकोत्तर के लिए पंतनगर विश्वविद्यालय में प्लांट ब्रीडिंग एंड जेनेटिक्स में प्रवेश मिला। इस तरह गढ़वाल और कुमाऊं, उत्तराखंड के दोनों क्षेत्रों को मैं बहुत नजदीक से देख और समझ पाया।

जहां तक परिवार का सवाल है, जैसे मैंने बताया मेरे दादाजी का मेरे ऊपरबहुत प्रभाव पड़ा, उन्होंने शुरूआती दिनों में मेरी परवरिश भी की और मार्गदर्शनभी। मेरे पिताजी भी रेंज ऑफिसर थे, उनके साथ बहुत घूमा, मेरा छोटा भाई और उनकी पत्नी भी फॉरेस्ट में प्रशासनिक अधिकारी हैं। इस तरह जंगलात और पर्यावरण से मेरा बहुत गहरा नाता है। मेरी मां गृहणी रही हैं और उन्होंने हर मां की तरह मेरे लिए बहुत त्याग और मेहनत की। दुर्भाग्य से कुछ समय पहले मेरी छोटी बहन का देहांत हो गया। मेरी पत्नी कई स्कूलों में अध्यापिका रही हैं और मेरी सफलता में बराबर की हिस्सेदार हैं। मेरे दो बेटे और एक बेटी हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र में कार्यरत हैं। हर परिवार की तरह मेरे परिवार के हर सदस्य का मेरी सफलता में बहुत बड़ा योगदान है।

आप एक कुशल प्रशासनिक अधिकारी के अलावा पर्वतारोही रहे, खेलों में भी आपकी रूचि रही, इसमें कैसे तालमेल बैठाया?

ये सही है कि जैसे-जैसे आपकी जिम्मेदारियां बढ़ती हैं, आपके पास अपने लिए बहुत कम समय रहता है लेकिन अगर आप समय को अच्छे से बांट पाएं तो शौक पूरा करने के लिए समय निकाल सकते हैं। खुशकिस्मती से खेल और एडवेंचर फौजी जीवन का अहम हिस्सा होता है और ये एक प्रशासनिक अधिकारी की जिम्मेवारियों में भी शामिल है इसलिए अगर आप अच्छे खिलाड़ी हैं और साहसिक कार्यों में भी रूचि रखते हैं तो आप बाकी लोगों के लिए भी एक अच्छा माहौल बना सकते हैं।

जैसा आप जानते हैं किसी भी फौजी के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से चुस्त दुरूस्त रहना एक आवश्यकता है और टीम स्पोर्ट्स हमारी टीम बिल्डिंग और लीडरशिप में बहुत अहम भूमिका निभाते हैं। पर्वतारोहण तो हरपहाड़ी के व्यक्तित्व का हिस्सा होता ही है लेकिन उसे एकएडवेंचर के तौर पर विकसित करने के लिए बहुत मेहनत और लगन चाहिए। मैंने एनआईएम उत्तरकाशी से माउंटेनियरिंग की ट्रेनिंग भी ली और कई एक्सपीडिशन में भी भाग लिया, जो अपने आप में काफी रोचक और रोमांचक होता है। ये एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें हमारे युवा अच्छा कर सकते हैं और इसे एक व्यवसाय के रूप में भी अपना सकते हैं। पिछले कुछ समय से एनआईएम के प्रिंसिपल भी उत्तराखंड से रहे हैं और मुझे पूरा विश्वास है कि वे इस क्षेत्र में निरंतर प्रयत्नरत हैं।

आपकी साहित्य में भी काफी रूचि है, आपकी कई रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं, इन सबके लिए कैसे समय निकालते हैं ?

अक्सर लोग मुझसे कहते हैं कि खेल, सेना की जिंदगी और साहित्य का कोई मेल नहीं। लेकिन मुझे लगता है हर उस इंसान के अंदर, जिसे प्रकृति से प्रेम है और जिसे जिंदगी की संजीदगी से लगाव है, एक कवि होता है। ये अलग बात है कि उसे बाहर लाने का कोई कितना प्रयास करता है। मेरी साहित्य के प्रति रूचि बचपन से रही है। लेखन में भी पहले से रूचि रही है लेकिन सेना में जिस माहौल में रहते हैं, जितना समय मिलता है, उसमें सृजनात्मक लेखन थोड़ा मुश्किल है, लेकिन आपमें अगर प्रतिभा है शब्दों को संजोने की और रचनात्मक लेखन की तो आपको प्रयास जरूर करना चाहिए। उसे लिखें जरूर, और बाद में जब भी वक्त मिले आप उसको बाद में फिर से एक अच्छी प्रस्तुति दें। ये बिल्कुल उसी तरह है जैसे आप बिना तराशा हुआ हीरा संभाल कर रखें और जब भी वक्त मिले उसे तराश लें।

सेवानिवृत्ति के बाद क्या प्लान है, आप उत्तराखंड के बारे में क्या सोचते हैं और आने वाले समय में उसे कैसे देखते हैं?

पहाड़ हमेशा से मेरी जिंदगी का हिस्सा रहे हैं और पर्वतों की ऊचाइयां हमेशा से मुझे प्रेरित करती रही हैं इसलिए इसमें कोई शक नहीं कि मेरा काफी वक्त उत्तराखंड के पहाड़ों में गुजरेगा। अब वक्त है कि किस्मत औरदुआओं ने मुझे जो भी दिया है उसे मैं किसी न किसी रूप में समाज को वापस दे पाऊं। मुझेपर्यावरण से बहुत लगाव है और अब इसी क्षेत्र में शोध कार्य करने का विचार है। साथ ही पानी एक ऐसा मुद्दा है जो मेरे दिल के बहुत करीब है। पहाड़ी क्षेत्र देश को लगभग 80 फीसदी पानी देते हैं लेकिन हमारे अपने पारंपरिक स्रोत धीरे-धीरे लुप्त हो रहे हैं और पहाड़ों में रहने वाले लोगों को पानी आराम से मुहैया नहीं हो पाता। पानी के संरक्षण, संचयन और पुनर्जीवन के क्षेत्र में काम करने का मेरा विचार है।इसके साथ-साथ और भी कई क्षेत्र हैं जिनमें काम हो तो एक बड़ी समस्या जो उत्तराखंड से पलायन की है, उसमें कमी आ सके।

हमारे युवा बहुत होनहार और मेहनती हैं लेकिन उन्हें अवसर नहीं मिल पाता कई अभावों की वजह से। इसलिए मैं चाहता हूं कि हर उत्तराखंडी जिन्हें जीवन में सफलताएं मिली हैं वो सब इस दिशा में प्रयास करें। आपकी मैग्जीन का यही प्रयास मुझे आकर्षित करता है, जो लोगों को बार-बार इस बात की ओर ध्यान देने को प्रेरित करता है। आपके इस प्रयास के लिए मैं आपका तहे दिल से धन्यवाद देता हूं। अंत में मैं कहना चाहूंगा कि इंसान की सफलता का आकलन इस बात से नहीं होता कि लोग उसके बारे में क्या जानते हैं या क्या सोचते हैं, बल्कि इस बात से होता है कि वो अपने बारे में कितना जानता है और क्या सोचता है।

अपनी शोहरतों के शोरोगुल से गुलजार न हो

तन्हाइयों में अक़्स पर फख्र हो तो जिक्र कर ।।

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