राज्यपाल ने किया 17वें कृषि विज्ञान सम्मेलन और नवाचार का शुभारम्भ

राज्यपाल ने किया 17वें कृषि विज्ञान सम्मेलन और नवाचार का शुभारम्भ

पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय में कृषि विज्ञान सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें नीति निर्माताओं, वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, विद्यार्थियों, किसानों एवं उद्योगों के प्रतिनिधियों की भारी संख्या में उपस्थित रही। सम्मेलन में ‘विकासशील भारत के लिए कृषि में अग्रणी विज्ञान और प्रौद्योगिकी’ विषय पर ध्यान केंद्रित किया गया।

पंत नगर विश्वविद्यालय में 20 से 22 फरवरी के मध्य 17वें कृषि विज्ञान सम्मेलन के आयोजन का आज सफलतापूर्वक शुभारंभ किया गया, जिसमें राज्यपाल, उत्तराखंड एवं कुलाधिपति, पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय ले.ज. गुरमीत सिंह तथा कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग, भारत सरकार के सचिव एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक एवं राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष डा. हिमांशु पाठक एवं डा. वजीर सिंह लाकरा, सचिव, राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी, डा. मनमोहन सिंह चौहान कुलपति एवं सम्मेलन के संयोजक तथा डा. ए.एस. नैन सम्मेलन के आयोजन सचिव मंचासीन थे।

कृषि के इस कुम्भ में नीति निर्माताओं, वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, विद्यार्थियों, किसानों एवं उद्योगों के प्रतिनिधियों का भारी संख्या में (लगभग 3 हजार की) उपस्थिति हुई। इस वर्ष, सम्मेलन में “विकासशील भारत के लिए कृषि में अग्रणी विज्ञान और प्रौद्योगिकी” विषय पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। इस सम्मेलन का उद्देश्य भारत के कृषि परिदृश्य को बदलने में नवीन प्रौद्योगिकियों की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करना है।

राज्यपाल ले.ज. गुरमीत सिंह ने अपने साथ अनुभव और ज्ञान का खजाना लेकर इस अवसर की शोभा बढ़ाई। उन्होंने इस सम्मेलन में बड़ी संख्या में वैज्ञानिकों, विद्यार्थियों एवं किसानों की भागीदारी पर अत्यन्त प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने अपने संबोधन में कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विभिन्न नीतियों और कार्यक्रमों को शुरू करने में सरकार के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन के आयोजन का लाभ जो हमारा केन्द्र बिन्दु किसान है, को जाना चाहिए। उन्होंने ‘लैब टू लैंड’ और ‘लैब टू पीपल’ कार्यक्रमों को मजबूत करने की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया, जो यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं कि वैज्ञानिक अनुसंधान और नवाचार सीधे किसानों को लाभान्वित करें। राजयपाल ने मजबूत मूल्य श्रृंखला विकसित करने, भंडारण सुविधाओं में सुधार करने और कृषि-उद्यमों को बढ़ावा देने के महत्व पर जोर दिया, जिसमें न्यूनतम निवेश की आवश्यकता होती है, लेकिन पर्याप्त लाभ मिलता है, जैसे कि मधुमक्खी पालन और मशरूम की खेती। उन्होंने प्रधानमंत्री कृषि सम्मान योजना जैसी सरकारी योजनाओं के सकारात्मक प्रभाव पर भी प्रकाश डाला, जो किसानों को आर्थिक रूप से सहायता करती है और उन्हें आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करती है। उन्होंने कहा कि वातावरण की चुनौतियों के मध्य खाद्यान्न उत्पादन को बनाये रखने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन एवं डिजिटल तकनीक का कृशि में समावेश अत्यंत आवश्यक है। महामहिम ने सभी पुरस्कार प्राप्त करने वाले वैज्ञानिकों को बधाई दिया।

डा. हिमांशु पाठक ने कृषि में उन्नत विज्ञान और प्रौद्योगिकी के एकीकरण के महत्व पर एक प्रेरक संदेश दिया। उन्होंने कहा कि भारत देश के 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या कृषि पर निर्भर हैं अतः कृषि को हर एक प्रकार से सुदृढ़ किये जाने की आवश्यक्ता है। उन्होंने बायो टैक्नोलॉजी, नैनो टैक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे फंर्टियर साईंस पर अधिक से अधिक कार्य किये जाने की आवश्यकता है। डा. पाठक ने टिकाऊ कृषि प्रथाओं को विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया, जो न केवल उत्पादकता को बढ़ाएं बल्कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण भी करें। उन्होंने वैज्ञानिक समुदाय से जलवायु-प्रतिरोध, जल संरक्षण और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन को प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के रूप में ध्यान केंद्रित करने की अपील की। डा. पाठक ने छोटे किसानों को सस्ती और सुलभ प्रौद्योगिकियों से सशक्त बनाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया, यह सुनिश्चित करने के लिए कि अनुसंधान के लाभ जमीनी स्तर तक पहुंचे। उन्होंने इस सम्मेलन को विस्तृत रूप देने तथा इसके सफल आयोजन के लिए विश्वविद्यालय की प्रशंसा की।

सचिव, राष्टीय कृषि विज्ञान अकादमी डा. वजीर सिंह लाकरा ने बड़ी संख्या में लोगों की भागीदारी पर प्रसन्नता व्यक्त की और कृषि अनुसंधान में उत्कृष्टता को मान्यता देने के महत्व पर प्रकाश डाला। उनके द्वारा कृषि विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए अकादमी द्वारा चयनित प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों एवं शोधकर्ताओं के नाम की घोषणा की गयी और राज्यपाल द्वारा वैज्ञानिकों को विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। पुरस्कारों के प्रथम श्रेणी में कृषि विज्ञान में उत्कृष्टता एवं सर्वश्रेष्ठ योगदान के लिए डा. बी.पी. पाल पुरस्कार डा. एस.के. वासल को; डा. ए.बी. जोशी मेमोरियल लेक्चर पुरस्कार डा. पी.एल. गौतम को; डा. आर.के. रमैया पुरस्कार डा. प्रीतम कालिया को; डा. के.सी. मेहता पुरस्कार डा. कट्पटा विश्वनाथन को; डा. एम.एस. रंधावा पुरस्कार डा. एच.पी. सिंह को; डा. एन.एस. रंधावा पुरस्कार डा. श्रीनिवास राव को; डा. पी. भट्टाचार्य पुरस्कार डा. राघवेन्द्र भट्टा को दिया गया। दूसरी श्रेणी एंडोमेंट अवार्ड श्री एलसी सिक्का पुरस्कार संयुक्त रूप से डा. जयचंद राना तथा तुशदकांति बेहरा को तथा डा. एनजीपी राव पुरस्कार डा. एस.के. प्रधान को दिया गया। तीसरी श्रेणी के पुरस्कारों में रिकॉग्निशन अवार्ड डा. ज्ञान प्रकाश मिश्रा, डा. सुरदीप शाहा, डा. यशपाल सिंह मलिक, डा. नारायण लाल पंवार, डा. रंजीत कुमार पाल एवं डा. विश्वनाथन चिन्नू स्वामी को दिया गया।

अपने स्वागत भाषण में विश्वविद्यालय के कुलपति डा. मनमोहन सिंह चौहान ने सर्वप्रथम राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी को इस 17वें सम्मेलन के आयोजन के लिए सहमति देने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने देश के विभिन्न प्रदेशों तथा विदेशों तथा आस्ट्रेलिया, जापान, स्लोवेनिया, नेपाल आदि देशों से आये वैज्ञानिकों का स्वागत किया। उन्होंने भारतीय कृषि में पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के महत्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इसके अभूतपूर्व योगदान के लिए हरित क्रांति की जननी के रूप में सम्मानित किया गया है। विश्वविद्यालय द्वारा विकसित गेहूं की कल्याण सोना, सोनालिका एवं यूपी 262 प्रजातियों का गेहूं के उत्पादन वृद्धि में अहम भूमिका रही हैं। अब तक विश्वविद्यालय द्वारा विभिन्न फसलों की कुल 357 किस्में विकसित की गयी हैं और लगभग 300 तकनीकी का विकास कर कृषकों के पास पहुंचाया गया है।

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय शोध, शिक्षा एवं प्रसार में सदैव अग्रणी रहा है। प्रतिवर्ष लगभग 9 हजार कुंतल प्रजनक बीज उत्पादन कर देश के खाद्यान्न वृद्धि निरंतर योगदान कर रहा है। विश्वविद्यालय देश के कृषि विश्वविद्यालयों में क्यू एस वर्ल्ड रैंकिंग 311 के साथ प्रथम कृषि विश्वविद्यालय रहा है। उन्होंने बताया कि वैज्ञानिकों एवं विद्यार्थियों के अतिरिक्त इस सम्मेलन में 500 कृषक भाग ले रहे हैं तथा कृषि विज्ञान प्रदर्शनी में 150 से अधिक शोध केंद्रों, कृषि संस्थानों और कृषि-व्यवसायों ने प्रतिभाग किया, जिसमें कृषि मशीनरी और उच्च उपज वाली फसल किस्मों से लेकर टिकाऊ खेती के तरीकों और कटाई के बाद के प्रबंधन समाधानों तक की अत्याधुनिक तकनीकों का प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शनी में जैविक खेती, जलवायु-स्मार्ट कृषि, मूल्यवर्धित उत्पादों और उभरते कृषि-व्यवसाय मॉडल में प्रगति पर भी प्रकाश डाला गया। स्टार्टअप और उद्यमियों ने किसानों के लिए उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाने, टिकाऊ कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देने और कृषि-मूल्य श्रृंखलाओं को मजबूत करने के उद्देश्य से नए विचार प्रस्तुत किए।

उद्घाटन में विभिन्न वैज्ञानिकों एवं विद्यार्थियों द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले शोध पत्रों की पुस्तक जो कि चार अंकों में थी, का मुख्य अतिथियों द्वारा अनावरण किया गया। सम्मेलन में प्रतिभाग करने हेतु देश एवं विदेश से कुल 1800 वैज्ञानिकों एवं शोधकर्ताओं द्वारा पंजीकरण कराया गया है। सत्र का समापन आयोजन सचिव डा. अजीत सिंह नैन द्वारा दिए गए धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ, जिन्होंने इस कार्यक्रम को सफलता बनाने के लिए सभी गणमान्य व्यक्तियों, प्रतिभागियों और आयोजकों का आभार व्यक्त किया।

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