ग्रामीण स्तर पर चलने वाले हेल्थ सेंटरों की स्थिति छिपी नहीं है। डॉक्टरों की अनिवार्य तैनाती की कमी साफ नजर आती है। महज फॉर्मासिस्ट के भरोसे ये सेंटर चल रहे हैं। निश्चित तौर पर दवाओं की उपलब्धता एक बड़ा कारण हैं। कोविड मेडिसिन का जो अधिकृत इलाज उत्तराखंड सरकार के स्वास्थ्य महानिदेशालय की ओर से बताया गया है, कई जगह उसकी दवाएं नहीं हैं। दुर्गम इलाकों में कोरोना किट तो पहुंची लेकिन उनमें थर्मामीटर, ऑक्सीमीटर और कई अहम एंटीबॉयोटिक्स नहीं थे।
उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में जिस तेजी से कोरोना संक्रमण का प्रभाव फैला है, वह चिंता बढ़ाने वाला है। कोरोना संक्रमण की पहली लहर में बडे़ पैमाने पर प्रवासियों के आने के बावजूद स्थितियां उस तरह ‘बेकाबू’ नहीं हुईं जैसी दूसरी लहर के समय होती नजर आ रही हैं। पहाड़ में स्वास्थ्य सुविधाओं की हकीकत किसी से छुपी नहीं है, ऐसे में उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में तेजी से फैल रहा कोरोना संक्रमण बड़े खतरे की ओर इशारा कर रहा है। आबादी के अनुपात में उत्तराखंड में नियमित तौर पर सामने आ रहे मामले और होने वाली मौतें बहुत ज्यादा हैं। उत्तराखंड में कोरोना से होने वाली मृत्यु दर 1.80% है, जो राष्ट्रीय औसत 1.11% से काफी अधिक है। अकेले मई 2021 में पहले 19 दिन में 2636 लोगों की मौत हो चुकी है। इस महीने में 1,20,210 कोरोना के मामले सामने आए। इनमें से 91,946 लोग ठीक हो चुके हैं।
यह बात सही है कि उत्तराखंड में भौगोलिक चुनौतियां बहुत अधिक हैं, लेकिन यह भी हकीकत है कि कोरोना जैसी महामारी से लड़ने के लिए किए गए उपायों में तालमेल की कमी, जवाबदेही और दवाई की सप्लाई चैन में लीकेज साफ नजर आते हैं। हिल-मेल की टीम ने देहरादून से 100-120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यमकेश्वर ब्लॉक की कई ग्रामसभाओं में कोरोना मेडिसिन किट, सैनिटाइजर और मास्क पहुंचाने के लिए अभियान चलाया। इस दौरान वहां के जमीनी हालात में कई बातें निकलकर सामने आईं। गांवों में मामले तेजी से बढ़े हैं लेकिन ट्रेसिंग और टेस्टिंग में दिक्कतें आ रही हैं। लोगों को आइसोलेशन में रखने में भी चुनौतियां हैं, लोग लक्षण छिपा रहे हैं, ऐसे में संक्रमण का सामुदायिक फैलाव हो रहा है। एएनएम, आशा वर्कर कोरोना की फ्रंट लाइन वॉरियर्स हैं, लेकिन उन्हें जरूर बचाव के साधनों से लैस नहीं किया गया है। खानापूर्ति के नाम पर उनके पास सर्जिकल मास्क हैं, कई के पास वह भी नहीं हैं। न तो उनके पास सैनिटाइजर हैं, न ही थर्मामीटर, पल्स ऑक्सीमीटर और ग्लब्स। ऐसे में उनके भी संक्रमित होने का जोखिम बढ़ रहा है। ग्राम सभा स्तर पर प्रधान को कोविड प्रोटोकॉल की जानकारी को लेकर ब्रीफिंग की कमी साफ दिखती है। जागरुकता फैलाने के लिए यह काफी महत्वपूर्ण तरीका हो सकता है, लेकिन अभी तक इस ओर ध्यान नहीं दिया गया है।
ग्रामीण स्तर पर चलने वाले हेल्थ सेंटरों की स्थिति छिपी नहीं है। डॉक्टरों की अनिवार्य तैनाती की कमी साफ नजर आती है। महज फॉर्मासिस्ट के भरोसे ये सेंटर चल रहे हैं। निश्चित तौर पर दवाओं की उपलब्धता एक बड़ा कारण हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में मेडिकल की तमाम सुविधाओं की कमी है। यमकेश्वर सीएचसी में 10 बेड का अस्पताल, ऑक्सीजन सिलेंडर, कंसनट्रेटर जरूर है, डॉक्टरों की ड्यूटी कोविड सेंटर ऋषिकेश में है। किमसार जैसे अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र में दवाएं पर्याप्त नहीं हैं। सैंपलिंग के लिए लंबी वेटिंग नजर आती है। ब्लॉक मुख्यालय स्तर पर वॉर रूम जैसी कोशिश नजर नहीं आती। RTPCR टेस्ट की रिपोर्ट आने में लगने वाला समय चिंता का सबसे बड़ा कारण है। रिपोर्ट आने से पहले ट्रीटमेंट शुरू करने को लेकर असमंजस साफ तौर पर नजर आता है। रिपोर्ट आने में एक हफ्ते तक का समय लग रहा है। यही वजह है कि पहाड़ी जिले सामुदायिक संक्रमण की ओर बढ़ रहे हैं।
कोविड मेडिसिन का जो अधिकृत इलाज उत्तराखंड सरकार के स्वास्थ्य महानिदेशालय की ओर से बताया गया है, कई जगह उसकी दवाएं नहीं हैं। दुर्गम इलाकों में कोरोना किट तो पहुंची लेकिन उनमें थर्मामीटर, ऑक्सीमीटर और कई अहम एंटीबॉयोटिक्स नहीं थे।
यह भी देखें – हिल-मेल फाउंडेशन ने देहरादून-ऋषिकेश में फ्रंट लाइन कोरोना वॉरियर्स को पीपीई किट बांटे, सीडीएस जनरल रावत ने भी पहल को सराहा
जमीन पर जाकर साफ नजर आता है, कमियां हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि इन्हें दूर नहीं किया जा सकता। हिल-मेल की टीम ने एक हफ्ते का समय बिताने के बाद यह पाया कि कुछ उपाय करके पहाड़ों पर फैल रहे संक्रमण को नियंत्रित किया जा सकता है।
जमीन पर जाकर देखने के बाद कुछ सुझाव जो नियंत्रित कर सकते हैं हालात!
1. ग्रामीण इलाकों में ट्रेसिंग और टेस्टिंग के लिए युद्ध स्तर पर छेड़ना होगा अभियान।
2. कोरोना टेस्ट को लेकर ग्रामीण स्तर पर लोगों में साफ तौर पर झिझक। कोविड प्रोटोकॉल को लेकर चल रहे जागरुकता अभियान को महज सड़कों तक नहीं गांव-गांव तक ले जाना होगा।
3. सबसे बड़ी चुनौती पहाड़ों में संक्रमितों तक मेडिसिन पहुंचाना। दवाइयों की किल्लत कोरोना नियंत्रण में बड़ी बाधा। जिला मुख्यालय में आबादी के अनुसार दवाएं मुहैया करानी होगी। ताकि ब्लॉक और न्याय पंचायत स्तर पर दवाओं को पहुंचाया जा सके। कोरोना मेडिसिन किट पूरी पहुंचे यह सुनिश्चित करना होगा। किट से सामान और दवाएं गायब होने की लगातार शिकायतें मिल रही हैं।
4. पहाड़ी इलाकों में सप्लाई चैन में लगने वाले समय को घटाने के लिए ज्यादा संक्रमण वाले जिलों में हेली सेवाओं का इस्तेमाल।
5. फ्रंट लाइन वर्कर जैसे एएनएम, आशा कार्यकर्ता और छोटे हेल्थ सेंटर को बेसिक साजो-सामान से लैस करने की जरूरत। मसलन, मास्क, सैनिटाइजर, ग्लब्स, थर्मामीटर और पल्स ऑक्सीमीटर। हर हेल्थ सेंटर पर डॉक्टर की अनिवार्य रूप से तैनाती।
6. दुर्गम भौगोलिक परिस्थिति के चलते वैक्सीनेशन भी चुनौती, पोलियो मिशन बन सकता है नजीर। आईटीबीपी, सेना को दी जा सकती है दुर्गम इलाकों में वैक्सीनेशन की जिम्मेदारी।
7. कोविड केयर सेंटर ब्लॉक मुख्यालय से दूर, इनकी दूरी घटानी होगी। ग्रामीण इलाकों में कोविड संक्रमितों को आइसोलेशन का सख्ती से पालन कराना जरूरी।
8. RTPCR टेस्ट की रिपोर्ट आने में लग रहे 6 दिन से ज्यादा के समय को एक दिन तक लाना होगा।
9. बाहर से उत्तराखंड आने वाले लोगों के लिए कोरोना नेगेटिव रिपोर्ट की अनिवार्यता, होम क्वारंटीन को सुदृढ़ बनाने पर फोकस। ग्राम प्रधान की भूमिका सबसे अहम। उसे ग्राम सभा स्तर पर समन्वयक बना सकते हैं।
10. प्रत्येक जिला मुख्यालय खासतौर पर पहाड़ी जिलों में वॉररूम स्थापित करने की जरूरत, ताकि रियल टाइम रिपोर्ट पर तत्काल एक्शन हो। लापरवाही बरतने पर जिम्मेदार लोगों पर एक्शन भी हो। सबसे अहम है को-ऑर्डिनेशन, यह व्यवहारिक परेशानी है, जिसे तत्काल दुरुस्त करने की आवश्यकता है।
ग्राउंड रिपोर्ट – यमकेश्वर ब्लॉक के तल्ला बनास, मल्ला बनास, किमसार, रामजीवाला, धारकोट, देवयाणा, यमकेश्वर, बिध्याणी, ठांगर, कांडी, जयहरी मल्ली, उमरोली, पोखरी, मागथा और उमड़ा में एक हफ्ते जमीनी हालात का जायजा लेने के बाद।
साथ में हिल-मेल फाउंडेशन के वॉलंटियर्स सतीश नेगी, दीपक नेगी, भानु प्रताप नेगी।
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