INTERVIEW अनिता ममगाईंः आध्यात्मिकता को सहेजते हुए ऋषिकेश में बढ़ रहे विकास की ओर

INTERVIEW अनिता ममगाईंः आध्यात्मिकता को सहेजते हुए ऋषिकेश में बढ़ रहे विकास की ओर

हिल-मेल और ओहो रेडियो उत्तराखंड ने राज्य के विभिन्न हिस्सों में हो रहे विकास कार्यों की पड़ताल के लिए नए कार्यक्रम ‘ग्राउंड रिपोर्ट’ की शुरुआत की है। इस सीरीज के पहले एपिसोड में ऋषिकेश की मेयर अनिता ममगाईं से उनके नगर निगम का हाल जाना गया। अर्जुन रावत और आरजे काव्य ने ग्राउंड पर जाकर मेयर के काम को देखा और उन प्रोजेक्टों की जानकारी ली, जो वह आने वाले दिनों में शुरू करना चाहती हैं। 

आप अपने अब तक के कार्यकाल को कैसी देखती हैं ?

 

मैं आभार करना चाहती हूं अपनी पार्टी का, जिन्होंने मुझ पर विश्वास किया और विश्व पटल पर अंकित ऋषिकेश जैसे शहर के मेयर पद के लिए मुझ पर विश्वास जताया। अपने देवतुल्य कार्यकर्ताओं और ऋषिकेश की देवतुल्य जनता ने मुझे अपना आशीर्वाद दिया और मैं ऋषिकेश की प्रथम महापौर बनी। पहले यह नगर पालिका थी और पहली बार नगर निगम बना। पिछले 15 साल यहां विकास की कोई किरण नजर नहीं आई और ऐसी स्थिति हो गई थी कि लोग सोचते थे कि सिर्फ नगर निकाय का मतलब होता है वहां पर जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र बनाना और हाउस टैक्स जमा करना। निश्चित तौर पर चुनौतियां बहुत थी, क्योंकि लोगों की उम्मीदें भी बहुत थी। सभी के साथ मिलजुलकर मैंने कुछ सीखा है, चाहे उसमें छोटा बच्चा रहा हो, नौजवान रहा हो या कोई बुजुर्ग रहा हो।  यह ऋषि-मुनियों की तपस्थली रही है। इस स्वरूप में हमको यहां का व्यापार भी देखना है और यहां की पौराणिक चीजें भी देखनी है। सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास हमारा नारा था, उसको साथ लेकर हम आगे बढ़े और आज जो काम यहां धरातल पर उतरे हैं, उनमें चुनौतियां बहुत थी, सबके दिमाग में यह चीज थी कि नया नगर निगम है, इसको साल दो साल सीखने में भी लगेंगे तो तब तक हम कुछ नहीं बोलेंगे। लेकिन मां गंगा की ऐसी कृपा रही कि हमने साल भर के अंदर की कुछ चीजें करके दिखाई क्योंकि हमने संगठन में काम कर रखा है और भाजपा का संगठन हमेशा यह सिखाता है कि अंतिम छोर में बैठे व्यक्ति को कैसे हमें मुख्यधारा में जोड़ना है। ऋषिकेश में हमारे सामने बहुत बड़ी चुनौतियां थीं, हमने  चौक-चौराहों का सौंदर्यीकरण किया, यहां का कूड़ा ग्राउंड भी लोगों के लिए नासूर बना हुआ था। कूड़ा ग्राउंड शहर के बीचों बीच में था और जब कभी स्वच्छता सर्वेक्षण होता तो ऋषिकेश पहली ही रेस में बाहर हो जाता था। गंगा जी तो मुश्किल से 50 मीटर की दूरी पर हैं और पूरे शहर की गंदगी मां गंगा में जाना, शहर के बीचों बीच ऐसी बदबू आना और कूड़े का ढेर यहां पर लगना हमारे लिए बड़ी चुनौती थी। 20 नवम्बर 2018 को ऋषिकेश नगर निगम के चुनाव का परिणाम आया उसमें मैंने विजय प्राप्त की। 30 नवम्बर को एनजीटी ने आदेश कर दिया कि जो भूमि लाल पानी बीच में प्रस्तावित है, उसमें से एक इंच भूमि डपिंग जोन के लिए नहीं मिलेगी। इसमें मैं बड़े भाई और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का भी आभार व्यक्त करूंगी कि जैसे ही नेट पर सूचना आई, मैं सीधे उनके पास गई और कहा कि भाई हमने पूरा चुनाव इसी पर लड़ा है। पूरा फोकस यही ट्रेंचिंग ग्राउंड था और यदि एक इंच भूमि न देने की बात एनजीटी ने इस पर कर दी तो यह तो सिर मुंडवाते ही ओले पड़ने वाली बात है। यह हमारे लिए बड़ी दिक्कत हो जाएगी। तुरंत संबंधित अधिकारियों को निर्देशित किया गया और एनजीटी के निर्देश को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया और 1 दिसंबर को हमारे पास स्टे आ गया। सबसे सुखद परिणाम यह रहा कि जब 2 दिसंबर को जब मैंने शपथ ली तो उस समय हमारे पास कुछ तो था कि हम भूमि के हस्तांतरण के लिए कुछ कर सकते हैं। यह जमीन राजाजी नेशनल पार्क की है, इस कारण हमें काफी परेशानियां आती थी, उसमें भी तत्कालीन मुख्यमंत्री ने उस समय के शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक से बात की और उन्होंने इसमें हमारी बड़ी मदद की। अब वह जमीन हमें मिल गई गई, उसमें केवल हैंडओवर और टेक होना बाकी है। इसके बाद लोगों के दिमाग में यह था कि जमीन तो मिल जाएगी, वहां पर डपिंग जोन हो जाएगा। पर यहां कूड़े के पहाड़ का क्या होगा।  मैं आज यह कह सकती हूं कि कूड़े के निस्तारण का काम सफलतापूर्वक चल रहा है। मेरा आगे जो कार्यकाल बचा है उसमें यहां की पार्किंग की समस्या का समाधान करने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि यहां पर जो पर्यटक आए वह यहां की आध्यात्मिकता को देखें, जो भाव लेकर वह आए वह सब उनको यहां मिले और उनको पार्किंग के मामले में किसी भी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े। यहां पर सफाई व्यवस्था को दुरुस्त करना है। मैं कोशिश करती हूं कि सुबह स्कूटी से जाकर स्वच्छता व्यव्स्था को देखूं। ड्रेनेज सिस्टम का काफी बड़ा इश्यू यहां पर है, यहां पर नालियां छोटी-छोटी हैं, जनसंख्या काफी बढ़ गई और जब एक साथ पानी बरसता है, तो नालियां भर जाती हैं, ओवरफ्लो हो जाता है। इस दिशा में काम करना है।

हरेले पर ऋषिकेश में एक पहल की गई, रंभा नदी को लेकर क्या योजना है ?

मां रंभा का स्कंदपुराण में वर्णन मिलता है और यहां से इसका उद्गम स्थल शुरू होता है और वीरभद्र महादेव, जो हमारे सिद्धपीठ हैं उनका जलाभिषेक इसी पवित्र रंभा नदी के जल से होता है। लेकिन आज यह पूरी तरह विलुप्त हो रही है। हम यहां पर दो वर्षों से आ रहे हैं और मेरी एक सोच भी थी कि कभी अगर मुझे सौभाग्य मिला ऋषिकेश की सेवा करने का तो यहां की जो पौराणिक चीजें हैं, जिसके लिए ऋषिकेष को जाना जाता है, उन पौराणिक चीजों को हम खोज कर निकालें, तो रंभा नदी के उद्गम स्थल पर सवा दो साल से लगातार आ रही हूं। जब यहां पर जलकुंड बन गया, स्वच्छ जल आने लगा तो उसके बाद यहां पर संजय झील बनाना प्रस्तावित है। हमने इसको नमामि गंगे से जोड़ने की कोशिश की है, यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक महत्वकांक्षी योजना है। जो हमारी विलुप्त होती नदियां हैं, उन नदी-नालों को जब तक हम नहीं जोड़ेंगे, उनका जीर्णोधार नहीं करेंगे तब तक हम जल की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं और जल बिना जीवन नहीं है तो उन सारी चीजों को लेकर उन्होंने एक अलग मंत्रालय का गठन किया है। मुझे यहकहते हुए बड़ी खुशी होती है कि नमामि गंगे के तहत 10 लाख वन विभाग को डीपीआर बनाने को दे दिया गया है। हमने यहां काफी पौधे भी लगा रखे हैं और इनमें हम पत्थरों के चबूतरे भी बनवाएंगे। यहां पर जल देवालय भी बन जाएगा, कुंड भी बन जाएगा। यह काफी साफ सुथरा जल है। इसको हमने संजय झील के नाम से प्रस्तावित किया है लेकिन हम इसे रंभा झील के नाम से विकसित करने का प्रयास करेंगे।

ऋषिकेश में बने खूबसूरत आस्था पथ के बारे में कुछ बताइये?

पहले यहां पर 72 सीढ़ियां थीं,  वो इतनी संकरी थीं कि दो लोग क्रास नहीं हो सकते थे। अगर कोई गिर गया तो वह सीधा आस्था पथ तक चला जाता था। हमने इसको बड़े अच्छे ढंग से बनाया जिसमें अब इसमें एक साथ चार-चार लोग आ-जा सकते हैं। उनको आने-जाने में थकान भी नहीं होती। यहां पर बहुत सारे बुजुर्ग लोग भी आते हैं, उनको ध्यान में रखते हुए हमने इसका निर्माण किया। हमको अभी आर्थिक पैकेज भी कम मिलता है। यह आर्थिक पैकेज आबादी के हिसाब से दिया जाता है। हमने पूरे आस्था पथ पर 35 सीसी टीवी कैमरे लगा रखे हैं ताकि लोगों को किसी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े। अगर किसी अराजकतत्व ने कोई गलत काम किया तो उसकी तस्वीर सीसी टीवी कैमरे में कैद हो जाएगी और जिससे हम उस तक पहुंचने में कामयाब हो जाएंगे।

आस्था पथ पर हमने गुलाब वाटिका भी बना रखी है, जितने भी प्रकार के गुलाब होते हैं वह सब आपको इस आस्था पथ पर मिल जाएंगे। जब अजय भट्ट प्रदेश अध्यक्ष थे, तब हमने उनको यहां बुलाया था और यहां बड़े-बड़े पेड़ लगाए थे क्योंकि छोटे पौधे जल्दी खराब हो जाते है। हमने जितने भी पौधे लगाए, अधिकतर जीवित हैं। यहां पर सबसे अच्छी बात यह है कि पार्षद अशोक पासवान इन पेड़ पौधों की अच्छी देखभाल करते हैं। उनको बागवानी का काफी शौक है इसलिए यहां के पेड़ पौधों की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं पर रहती है। यह आस्था पथ त्रिवेणी से लेकर बैराज तक चार किलोमीटर लंबा है। इसमें पैदल चलने में कोई परेशानी नहीं होती है।

स्वच्छता के मामले में हम कब ऋषिकेश को टॉप टेन या टॉप फाइव में देख पाएंगे?

पूरे भारत में स्वच्छता सर्वेक्षण होता है तो उसमें टॉप करने के लिए और क्या करना है, वह तो मुझे पता नहीं है लेकिन मेरा यह मानना है कि जब जनता हमें अच्छा रिस्पांस देती है तो अपने आप संतुष्टि होती है। जब मैं फील्ड में जाती हूं तो मुझे अपने चौक चौराहों, हर गली, हर मोहल्ला साफ सुथरा दिखता है, वहीं तो मेरा ध्येय है कि यह लगातार ऐसा ही बना रहे और जो हमारी सबसे बड़ी ताकत हैं, हमारे पर्यावरण मित्र उन्होंने अपनी पूरी शक्ति इसमें झोकी हुई है। वेतन तो सभी को मिल रहा है लेकिन कर्तव्यनिष्ठा के साथ काम करना एक बहुत बड़ी बात होती है। मैं देखती हूं अपने स्वच्छता प्रहरियों को, चाहे बारिश हो, गर्मी हो, ठंड हो वो अपने काम में लगातार लगे रहते हैं। कहीं न कहीं उनको देखकर मेरा भी उनके प्रति एक बहुत अच्छा भाव जागता है कि इन्हीं की वजह से कहीं न कहीं हमारा भी मान सम्मान है। तो मेरे लिए नंबर वन वही हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हैं। जरूरी नहीं है कि हम कागजों में या ऑन रिकॉर्ड नंबर वन आएं, लेकिन मेरा प्रयास रहता है कि शहर में स्वच्छता हो। इसके लिए मैं हमेशा प्रयासरत रहती हूं।

ऋषिकेश एक आध्यात्मिक शहर के तौर पर जाना जाता है तो इसे लेकर आप और क्या काम करा रही हैं ?

अभी हम जिस पर चल रहे हैं, यह आस्था पथ है। लोग इसे मैरीन डाइव के नाम से भी पुकारते हैं लेकिन हम इसको आस्था पथ के रूप में पुकारते हैं। मोक्ष दायिनी पतित पावनी गंगा माता है, जो बिल्कुल निर्मल और अविरल होकर बह रही है। मां गंगा के प्रति लोगों की आस्था ही एक बहुत बड़ी चीज हो जाती है। जो लोग बाहर से आते हैं वो 2 लीटर या 5 लीटर गंगाजल भरकर ले जाते हैं और जब तक वे यहां दोबारा नहीं आते तब तक वह उस गंगा जल को अपने घर में रखते हैं। हम इतने भाग्यशाली हैं कि यह चंगेश्वर महाराज, वीरभद्र महादेव, सोमेश्वर महादेव, भरत भगवान की भूमि है, इन जगहों को हम उनके स्वरूप् में उसी तरह से रखें कि लोग वहां पर जप, तप, ध्यान, योग सब चीजें कर सकें। मेरा मानना है उन धरोहरों को भी हम संजोकर रखें। उनका रखरखाव, सजावट और साजसज्जा हमारी जिम्मेदारी है।

धार्मिक शहरों में अतिक्रमण एक बड़ी समस्या है, अतिक्रमण को लेकर अभी तक क्या-क्या किया गया है और आगे क्या करने वाली हैं?

पिछले 15 साल में ऋषिकेश ने अपनी बहुत बड़ी संपदा खोई है। यहां पर अतिक्रमण और कब्जा करना एक ग्रहण की तरह है। संभवतः लोगों ने उसी वजह से परिर्वतन भी चाहा। काफी चीजें हैं जो अतिक्रमण के दायरे में जा चुकी हैं, वहां शांपिंग कॉम्पलेक्स बन गए हैं। मैं धीरे-धीरे उस काम को करने का प्रयास कर रही हूं। मैंने अच्छे लोगों को इसमें लगा रखा है जिसमें पटवारी, वकील और प्रबुद्ध बुद्धिजीवी हैं। मैंने उनसे बोला है कि आप देखो कि हम इन धरोहरों को कैसे बचा सकते हैं। जब तक हमारे पास जगह नहीं होगी तब तक हम विकास करने की कैसे सोच सकते हैं। हमें तो हाईटैक शौचालय बनाने हैं उनके लिए हमारे पास योजनाएं हैं, स्वच्छ भारत मिशन के तहत फंड है लेकिन बनाने के लिए जगह नहीं हैं। पिछले 15 साल ऋषिकेश के लिए बड़े दुर्भाग्यपूर्ण रहे हैं जिसमें राजनीतिक आड़ के चलते हमने अपनी धरोहरों को खोया है। निश्चित तौर पर अतिक्रमण एक बहुत बड़ा मुद्दा है और उस पर हम लगातार लगे हुए हैं।

आध्यात्म और योग को छोड़कर आप ऋषिकेश को अगले ढाई साल में विश्व पटल पर किस ओर ले जाना चाहती है?

ऋषिकेश अपने आप योग पटल पर है, किसी भी देश की एक राजधानी हो सकती है लेकिन ऋषिकेश तो एक अंतरराष्ट्रीय राजधानी है। इसमें सबसे प्रमुख बात तो यह है कि इस विरासत को हम बचाकर रखें और दूसरी चीजें यह कि नए-नए विकास करते रहें। विकास तो होने हैं। यहां एक बैराज जलाशय है, इससे थोड़ी दूर हम चले जाएं तो आपको एक अच्छा व्यू देखने को मिलेगा। इस जलाशय में हम टिहरी झील की तर्ज पर एक वाटर स्पोर्ट्स सिस्टम बनाएं। बाहर से जो लोग यहां आएं, वे यहां आकर जल क्रीड़ा करें। यहां पर पर्यटक ज्यादा से ज्यादा आएं और बेरोजगार युवाओं को भी रोजगार मिले, जब हम वाटर स्पोर्ट्स शुरू करेंगे तो वहां पर जो खाने पीने की कैंटीन होगी वह भी पूर्ण रूप से पहाड़ी खाने से भरपूर होगी। उसमें जितने भी व्यंजन परोसे जाएंगे, वे सब पहाड़ी होंगे, जिससे यहां के लोगों की आमदनी भी बढ़ेगी।

पूरा इंटरव्यू यहां देखें –

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