चमोली में 70 के दशक में मलबे से भर गई 100 साल पुरानी झील को फिर से ‘जिंदा’ करने की पहल

चमोली में 70 के दशक में मलबे से भर गई 100 साल पुरानी झील को फिर से ‘जिंदा’ करने की पहल

हमने बचपन से एक कहावत सुनी है कि एकता में शक्ति होती है। कोई बड़ा से बड़ा मुश्किल या कहें असंभव सा लगने वाला काम भी मिलकर किया जाए तो सफलता की गारंटी सुनिश्चित हो सकती है। उत्तराखंड के चमोली जिले में सामूहिकता का एक प्रयास ऐसा ही संदेश दे रहा है….

उत्तराखंड में पहाड़ों की आबोहवा दशकों से लोगों को आकर्षित करती रही है। पहाड़ों की सुंदरता हो, नदियां, झील, बाग-बगीचे भला किसे प्यारे नहीं लगते। हालांकि कुछ के बारे में अब हमें जानकारी नहीं है क्योंकि वे प्राकृतिक आपदा में नष्ट हो चुके हैं। ऐसी ही एक जगह है चमोली जिले के दुर्मिताल में। बताते हैं कि विरहिताल में 100 साल से भी ज्यादा पहले यानी 1890 के आसपास एक झील बनी थी, जो 1971 की बाढ़ में टूट गई। बादल फटने से बहकर आए मलबे ने इस झील का अस्तित्व लगभग मिटा दिया। दशकों बाद स्थानीय गांववालों ने मिलकर इस झील को नया जीवन देने की पहल की है।

इराणी गांव के प्रधान मोहन सिंह नेगी ने हिल-मेल को बताया कि बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि उस जमाने में वहां 5 किमी लंबी झील थी, जो बादल फटने से पूरी तरह नष्ट हो गई थी। उस समय वहां काफी पर्यटक आते थे, लोगों का रोजगार उससे जुड़ा हुआ था। आज भी यहां ब्रिटिश कालीन 2-3 बंगले अच्छी स्थिति में हैं। बताते हैं कि एक समय में यह एशिया की सबसे बड़ी लेक हुआ करती थी।

 

नेगी ने कहा कि हमने सुन रखा था कि वहां कोई नांव भी दबी पड़ी है। एक जिज्ञासा सबके मन में थी कि इसे कैसे निकाला जाए। हमने काफी कोशिश की पर कोई सकारात्मक परिणाम निकलता नहीं दिख रहा था। फिर तय किया गया कि एक जनजागरूकता अभियान चलाया जाए और इस काम को पूरा किया जाए।

 

इसके लिए हम लोगों ने 15 अगस्त का दिन चुना। हमने 10 गांव के लोगों के साथ मिलकर पहल शुरू की। तिरंगा फहराया गया और फिर बुजुर्गों से राय ली गई कि कश्ती कहां हो सकती है। खुदाई शुरू हुई तो एक फीट के बाद कश्ती का एक सिरा दिखाई दिया। तीन घंटे की खुदाई के बाद नाव को निकाल लिया गया। यह लोहे की बनी है लेकिन वह अच्छी स्थिति में ही कही जाएगी।

 

इस नाव को अलग रखा गया है। उन्होंने कहा कि अब पर्यटन और वन विभाग से बात की जा रही है कि इसका संरक्षण किया जाए। इसे एक विरासत के तौर पर रखा जाए। ताल और झील की निशानी बंगला या तो नाव ही बची है। प्रधान ने कहा कि आसपास के सभी लोग चाहते हैं कि उत्तराखंड सरकार इस झील को फिर से साफ-सुथरा करके इसे ठीक करे। अभी रिवर्स पलायन की बात हो रही है और हमारे पास कोई खेती या उद्योग नहीं है, ऐसे में पर्यटन ही एक बढ़िया विकल्प है।

 

उन्होंने कहा कि यदि झील फिर से अस्तित्व में आ जाती है तो कई लोगों के रोजगार शुरू हो जाएंगे। कोई चाय बेचेगा तो कोई दूसरे रोजगार कर लेगा। यह स्थान चमोली जिले में एक आकर्षक स्थल बन सकता है।

गांव के बुजुर्ग नारायण सिंह बताते है कि यह लगभग 5 किलोमीटर लंबा ताल था। बहुत सारी नावें चलती थीं, जिसमें लोग नौकायन करते थे। 15 अगस्त को इस जनजागरण अभियान में निमजूला घाटी के सेंजी, गाड़ी, ब्यारा, थोलि, निजमुला, गौना, दुर्मि, पगना, ईरानी पाना झिंझि के जनप्रतिनिधि एवं स्थानीय लोग उपस्थित रहे।

 

इस अवसर पर पाना की प्रधान श्रीमती कलावती देवी, दुर्मि की प्रधान कविता देवी, दुर्मि के पूर्व प्रधान लक्ष्मण खाती, दशोली ब्लॉक की ज्येष्ठ उपप्रमुख श्रीमती माहेष्वरी देवी, गौना के हुकुम बर्तवाल, ईरानी के पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य मोहन पहाड़ी, दुर्मि युवक मंगल दल के अध्यक्ष प्रेम सिंह, धीरज सिंह, उमेश चंद्र थपलियाल, गोपाल गुसाईं एवं अन्य ग्रामीण उपस्थित रहे।

2 comments
Hill Mail
ADMINISTRATOR
PROFILE

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked with *

2 Comments

विज्ञापन

[fvplayer id=”10″]

Latest Posts

Follow Us

Previous Next
Close
Test Caption
Test Description goes like this