उत्तराखंड में पिछले रविवार को चमोली जिले में आई आपदा ने 2013 में केदारनाथ त्रासदी की यादें ताजा कर दीं। वैज्ञानिक इसकी मूल वजह तलाशने में जुटे हैं कि आखिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि ऊंचाई से भारी मात्रा में पानी आ गया और भारी जानमाल का नुकसान हुआ।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर और ग्लेशियर पर अध्ययन करने वाले प्रोफेसर एपी डिमरी ने 7 फरवरी को उत्तराखंड के चमोली में आई आपदा पर महत्वपूर्ण जानकारी साझा की है। उन्होंने बताया है कि चमोली में ऋषिगंगा बेसिन में कंपाउंडिंग प्रभावों के कारण आई बाढ़ से मची तबाही केदारनाथ त्रासदी की याद दिलाती है। उन्होंने कहा कि रॉक ग्लेशियर के टूटने से हिमस्खलन/भूस्खलन इसकी वजह हो सकता है।
हालांकि हिमस्खलन या भूस्खलन या रॉक/आइस ग्लेशियर का टूटना अचानक भारी बाढ़ आने का एकमात्र कारण नहीं हो सकता है। इस बात की संभावना ज्यादा है कि वहां सतह पर या उप-सतह पर पानी रुका रहा होगा और उससे एक ग्लेशियल लेक भी शायद बन गई हो।
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उच्च पर्वतीय इलाकों में, ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण ग्लेशियरों के पिघलने की दर तेज होती है। इस स्थिति में ग्लेशियर से संबंधित खतरों की आशंका बढ़ जाती है।
इन जोखिमों में से एक ग्लेशियल लेक आउटबस्ट फ्लड्स है- जो ग्लेशियरों के अपनी जगह से हटने के कारण होता है, खासतौर से आइस ‘डैम’ के पीछे पानी इकट्ठा होने के कारण। ये ‘बांध’ एक बार टूटने या कमजोर होने के बाद तटबंध के रूप में कार्य करते हैं और ग्लेशियल झील के टूटने का कारण बन सकते हैं। ऐसी जगह से अचानक भारी मात्रा में पानी, मलबा और कीचड़ एक साथ आगे बह सकता है।
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ऐसे ‘विस्फोट’ से कुछ ही घंटों के भीतर लाखों क्यूबिक मीटर पानी जाने की संभावना होती है जिससे आई भयावह बाढ़ से जानमाल को भारी नुकसान होता है।
Glacial Lake Outburst Floods (GLOFs) विभिन्न प्रक्रियाओं की एक श्रृंखला के परिणामस्वरूप होता है। जैसे झीलों में काफी मूवमेंट, झील में ग्लेशियर/बर्फ का आगे का हिस्सा टूटकर आना, झील का विस्तार, झील का स्तर बढ़ने से ओवरफ्लो होना, मशीनों का टूटना/बांध फेल होना, हाइड्रोस्टेटिक विफलता, बांध का क्षरण या बांध में बर्फ के पिंडों का पिघलना, भूकंप, ऊपर बनी झील से बाढ़ की लहर आना और भारी वर्षा या बर्फ का पिघलना।
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बढ़ती मानव बस्तियों, इंसानों की विकासात्मक गतिविधियों के कारण हाल के दशकों में GLOFs पर्वतीय क्षेत्र में एक गंभीर खतरे के रूप में उभरा है। ये इलाके पहले से बसे हुए नहीं थे। भारतीय हिमालयी क्षेत्र में सैकड़ों ग्लेशियल झीलें हैं।
प्रोफेसर डिमरी ने कहा कि मेरे सहित वैज्ञानिकों के एक समूह का अध्ययन भारतीय हिमालयी क्षेत्र में GLOFs की विस्तार से जांच करता है। एक व्यापक लिस्ट से पता चलता है कि भारतीय हिमालयी क्षेत्र के अंदर कुल 4,418 ग्लेशियल झीलों के बारे में जानकारी मिलती है। इसके अलावा, कुल 636 ट्रांस बाउंड्री ग्लेशियल लेक्स की भी पहचान की गई थी, जो बाढ़ की वजह बन सकते हैं।
भारतीय हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियल झीलें 428.71 वर्ग किमी के क्षेत्र को कवर करती हैं। झीलों के चार प्रमुख प्रकारों में से बेडरॉक (67 प्रतिशत) और मोरेन डैम्ड (25 प्रतिशत) सबसे अधिक हैं।
जम्मू-कश्मीर, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में 57-84 प्रतिशत झीलें बेडरॉक से अवरुद्ध हैं जबकि उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में 76-80 प्रतिशत झीलें मोरेन डैम्ड हैं। दूसरे प्रकार की झीलों की तुलना में आइस-डैम्ड और अन्य झीलें उतनी आम नहीं हैं।
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