त्रिजुगी नारायण के अवतार माने जाते हैं कौल देवता!

त्रिजुगी नारायण के अवतार माने जाते हैं कौल देवता!

लोक मान्यतानुसार कौल देवता का संबंध केदारनाथ से है। इन्हें त्रिजुगी नारायण का अवतार माना जाता है और इसी के चलते हर बारहवें वर्ष कौल देवता से केदारनाथ की यात्रा करवाई जाती है। सालरा के अतिरिक्त आराकोट, बरनाली तथा धारा में भी कौल देवता का प्राचीन मंदिर अवस्थित हैं।

– दिनेश सिंह रावत, उत्तरकाशी

देवभूमि उत्तराखंड के सीमांत जनपद उत्तरकाशी के दूरस्थ विकास क्षेत्र मोरी के सालरा व बंगाण क्षेत्र में कौल देवता को आराध्य ईेष्ट के रूप में पूजा जाता है। कौल देवता के संबंध में यहां कुछ पौराणिक लोकगीत प्रचलित हैं जिनके अंश इस प्रकार से हैं –

‘ऊब सालरे देवा, उन्द से मेसाई के घोर।
तेरे देवरा कौल देवा सांदौणी सादों, तू देंदू पुतर वर।‘

 

अर्थात हे कौल देवता! सालरा गांव में ऊपर आपका मंदिर है, नीचे पुजारियों का घर। आपके मंदिर में जो सच्चे मन से उपासना करता है, उसे आप पुत्र का वर देते हैं। सालरा गांव में कौल देवता का प्रसिद्ध मंदिर अवस्थित है, जहां सदैव अखंड ज्योति और ज्योति भी क्या धूना जलता रहता है। 26 गते ज्येष्ठ को यहां क्षेत्र का प्रसिद्ध मेला लगता है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘कुजैल’ कहा जाता है।

इस सम्बंध में एक जनश्रुति प्रचलित है कि जो व्यक्ति 26 गते जैष्ठ को होने वाले इस कुजैल के लिए यहां पहुंचता है और सच्चे मन से रातभर उपासना करता है, उसे कौल देवता पुत्र का वर देता है। इसी मान्यता के चलते लोग दूर-दूर से कौल देवता के मंदिर में होने वाले इस कुजैल के लिए पहुंचते हैं। सालरा के अतिरिक्त बेनौल, नूराणू, मोताड़ तथा बंगाण क्षेत्र के आराकोट, कास्टा, नकोट व सनैल में भी कौल देवता की पूजा की जाती है। इनके विस्तार क्षेत्र के सम्बंध में एक लोक कहावत प्रचलित है – ‘तीन नगर पांच सौ बिल, तक कौल देवता की पूजा की जाती है।’

 

यदि मंदिर के सम्बंध में बात की जाय तो इस छोड़े के माध्यम से कौल देवता के मंदिर की भव्यता का अनायाश ही पता चल जाता है –

तेर देवरा कौल देवा, फिरी फिरयात् बैकल्या नास,

तेर कंडवारियो क कौल देवता, छूट कुम-कस्तूरी वास।

 

अर्थात हे कौल देवता! आपके मंदिर के चारों तरफ बैकल जो एक खास किस्म की वनस्पति होती है, उसके बिम्ब हैं और आपके मंदिर से सदैव कुमू-कस्तूरी की सुवास निकलती रहती है। इतना ही नहीं यह भी देखिए –

तेर देवरा कौल देवा, चाकुरी चुण्ंद मोर,
अमारी बारी उठी नयी, यथा बसंदी सी ओर।।

 

अर्थात हे कौल देवता! आपके मंदिर में सदैव सुन्दर-सुन्दर वन्य जीव विचरण करते रहते हैं और जिस प्रकार से एक चिड़िया दाना चुंगकर उड़ जाती है तो तुरन्त वहां दूसरी चिड़िया आकर बैठ जाती है उसी प्रकार से आपकी सेवा के लिए भी एक के बाद एक परिवार तैयार रहता है।

गाणें के पूजारे तऊं, कसेन्डी लगेन्दी भूख।

पूजा त करया पातोरी, गुगल करन्दी सी धूप।।

 

अर्थात हे कौल देवता! आपको क्षेत्रवासी बारी-बारी से पूजते हैं और गुगल, मासी का धूप देते हैं।

तेर देवरा कौल देवा, जंगल बजंद से घांड।

सुणी गै देवता, सूणी गै सी रावली पांड।।

 

लोक मान्यतानुसार कौल देवता का संबंध केदारनाथ से है। इन्हें त्रिजुगी नारायण का अवतार माना जाता है और इसी के चलते हर बारहवें वर्ष कौल देवता से केदारनाथ की यात्रा करवाई जाती है। सालरा के अतिरिक्त आराकोट, बरनाली तथा धारा में भी कौल देवता का प्राचीन मंदिर अवस्थित हैं। क्षेत्र विस्तार अधिक होने के कारण कौल देवता ने अपनी उपस्थिति का एहसास कराने के लिए आराकोटवासियों को अपने चिह्न के रूप में ‘कटारी’ दे दी। बस तब से ही इस क्षेत्र में ‘कटारी’ को पूजने की परंपरा का सूत्रपात हो गया, जो अब तक चली आ रही है। कटारी पर लोगों की उतनी ही श्रद्धा, विश्वास है जितना कौल देवता पर। लोग श्रद्धानुसार कौल-कटारी को श्रीफल, धूप, अगरबत्ती के अतिरिक्त, गेहूं का आटा, गुड़ व देशी घी इच्छित मात्रा में देते हैं, जिसे ‘कड़ाही’ देना कहते हैं।

कौल देवता के मंदिर में प्रतिदिन 4 बजे सांय पूजानुष्ठान का कार्य सम्पन्न होता है। जिसके लिए शुद्ध जल एवं छामरा की पतियां जरूरी होती हैं। रात्री को यहां ‘संदोल’ तथा सुबह को ‘प्रभात’ बजती है। ‘संदोल’ यहां नौबत को कहा जाता है। गौरतलब है कि इस क्षेत्र में जहां महासू की पूजा होती है, वहां कौल की नहीं और जहां कौल की पूजा होती है वहां महासू की नहीं।

इस संबंध में किवदन्ति है कि महासू ने कौल देवता से कहा कि तुम मेरे छत्तर के नीचे आ जाओ, जब कि कौल देवता ने कहा कि तुम्हीं मेरे छत्तर के नीचे आ जाओ। छत्तर के नीचे आना यानि आधिपत्य स्वीकारना। दोनों में से कोई भी किसी के भी छत्तर के नीचे आने को तैयार नहीं हुए और स्वतंत्र रूप से पूजे जाते रहे हैं।

इस संबंध में साहित्यकार श्री महावीर रवांल्टा जी लिखते हैं कि – ”कोटधार के पास किसी राणा का गढ़ हुआ करता था, वह कौल, लौकुड़ा एवं देवी का उपासक था। कोटधार में प्रवेश का सिर्फ एक ही रास्ता था, जिसे बड़ाकृसा फाटक लगाकर बंद रखा जाता था। राणा की महासू के बजीर बंग्वाण से अनबन थी। एक बार चालदा महासू के साथ वे रूमाली से गुजर रहे थे तभी राणा ने कोटधार से तीर छोड़ा जो चालदा के छत्र पर लगा। इससे वे रूष्ट हो गए। यह चालदा और साथ चल रहे बजीरों का अपमान था।

बग्वाणों ने करनाल का मुंह कोटधार की ओर किया, जिनके जवाब में राणा ने तीर छोड़ा। अपमान का घूंट पीकर वे सभी हनोल पहुंचे और अपने भाई महासुओं को पूरी व्यथा सुनायी। चार महासू में पवासी को सबसे अधिक क्रोधी स्वभाव का माना जाता है। अपने भाई चालदा के अपमान की खबर सुनते ही वे क्रोधित हो उठे और उन्होंने उसी पल राणा के विनाश का निश्चय किया।”

पवासी के इसारे पर बड़ी संख्या में बंग्वाण देववन के रास्ते कोटधार के लिए रवाना हुए उन्हें कहा गया कि रास्ते में यदि उन्हें सिंह के खोज (पद् चिन्ह) मिले तो समझ लेना कि उनकी विजय और राणा का विनाश निश्चित है। यदि नहीं मिलते हैं तो राणा को परास्त करना सम्भव नहीं होगा। रास्ते में उन्हें सिंह के पद् चिन्ह मिलते गए और वे आगे बढ़ते गए। राणा के हिमायती कोटीगाड़ वासियों को रोकने के लिए पवासी ने युक्ति सोची।

उन्होंने उस रात कोटी गाड़ में प्रलय मचा दिया ताकि कोई आर-पार न जा सके और न ही किसी प्रकार की चीख-पुकार उनके कानों तक पहुंचे। कोटधार में प्रवेश के लिए उन्होंने एक डाकिण को जिसका मायका हनोल की ओर से ही था, अपने मैती होने का वास्ता देकर उससे फाटक खुलवा दिया। बड़ी संख्या में बंग्वाण राणा के गढ़ में दाखिल हो गए। राजा व उसके सभी परिवारजन मारे गए और बंग्वाणों ने उस गढ़ में ही आग लगा दी।

बताया जाता है कि उस गढ़ में केवल वही डाकिण जीवित छोड़ी गई। उक्त डाकिण ने दया भावना से राणा खानदान के एक छोटे से बच्चे को अपने घाघरे के नीचे छुपा दिया, जिसे बाद में उसके ननिहाल भेज दिया गया। कुछ समय बाद बड़ा होकर वह बालक वापस लौटा और उसने नकोट यानि नया कोट बसा लिया। आज भी नकोट में सिर्फ एक ही राणा परिवार, कुछ हरिजन व नेपाली मूल के लोग निवास करते हैं। वहां निवास करने वाले राणा खानदान के लोग इसी राणा के वंशज बताए जाते हैं इसकी पुष्टि में बताते हैं कि यदि उनके परिवार का कोई भी सदस्य रास्ते में खड़ा हो और चालदा उस रास्ते से गुजर रहा हो तो वे आगे नहीं बढ़ते, बल्कि उन्हें रास्ते से किनारे कर आगे बढ़ते हैं। यानि राणा खानदान से उनकी दुश्मनी बदस्तर जारी है।

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