उत्तराखंड में जल संरक्षण पर ध्यान देने की जरूरत

उत्तराखंड में जल संरक्षण पर ध्यान देने की जरूरत

दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश भारत का 70 प्रतिशत भाग जल से घिरा हुआ है। ऐसे में यदि देश में जल कल है या नहीं? यह विचारणीय प्रश्न बन जाए तो यह समझा जा सकता है कि देश में जल संकट की समस्या विकराल हो चुकी है।

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

खारे जल से समुद्र भरा है, मीठे जल से भरा है लोटा।
प्यासे को तो समुद्र से बड़ा दिखाई दे लोटा।।

उपर्युक्त पक्तियां के माध्यम से समझा जा सकता है की पृथ्वी पर इतने बड़े समुद्र सागर होने के बावजूद भी केवल 3 प्रतिशत पानी ही पीने योग्य है। “जल ही जीवन है” और “जल है तो कल है” ये दोनों मुहावरे काफी प्रचलित है लेकिन इसका वास्तविक अर्थ देश की अधिकांश जनसंख्या को नहीं पता है क्योंकि वो पानी के महत्व को न ठीक से समझते हैं ना ही ठीक से समझना चाहते हैं। पानी के बिना जीवन की क्या स्थिति होती है ये उन इलाको में जाकर समझा जा सकता है जहां लोग घंटों भर से बर्तन लेकर नल के पास खड़े रहते है उत्तराखंड भी पानी के मामले में गम्भीर जल संकट की स्थिति से गुज़र रहा है जिस उत्तराखंड से प्रवाहित सतत् नदिया जो उत्तर भारत के अनेक राज्यों के लिए जल की आपूर्ति करता है देवभूमि में पानी की किल्लत भविष्य के लिए अशुभ संकेत है। अगर समय रहते इसके लिये प्रबन्ध नहीं किए गए तो आने वाले समय में पूरे देश में विपरीत स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।

देश में पानी के अधिकांश स्थस्रोत सूख चुके हैं या उनका अस्तित्व नहीं रह गया है। देश की सैकड़ों छोटी नदियां विलुप्ति के कगार पर हैं, देश के अधिकांश गांव और कस्बों में तालाब और कुएं भी बिना संरक्षण के सूख चुके हैं। देश के अधिकांश जगहों में गंगा और यमुना अत्यधिक प्रदूषित है जिसकी वजह से इसका पानी भी पीने योग्य नहीं रह गया है। कुल मिलाकर देश में जल संकट और जल संरक्षण को लेकर बहुत ज्यादा संजीदगी नहीं दिख रही है।

दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश भारत का 70 प्रतिशत भाग जल से घिरा हुआ है। ऐसे में यदि देश में जल कल है या नहीं? यह विचारणीय प्रश्न बन जाए तो यह समझा जा सकता है कि देश में जल संकट की समस्या विकराल हो चुकी है। अक्सर गर्मियों की शुरुआत होते ही पीने के पानी की समस्या शहर व ग्रामीण क्षेत्रों की मुख्य समस्या बन जाती है और होगी भी, क्योंकि 70 प्रतिशत भाग में केवल 3 प्रतिशत ही पीने योग्य पानी है। जनसंख्या की दृष्टि से आंकलन किया जाए तो यह एक ज्वलंत समस्या नज़र आती है।

नीति आयोग द्वारा 2018 में एक अध्ययन में भी अंकित किया गया था कि विश्व के 122 देशों में जल संकट की सूची में भारत का स्थान 120वां है। जिसमें और भी उछाल देखने को मिल रहा है। शहरों की चकाचौंध अक्सर सबको अपनी ओर आकर्षित करती है। तीव्र शहरीकरण इसका ज्वलंत उदाहरण है। जहां कंक्रीट की ऊंची ऊंची बिल्डिंगें तो खड़ी कर दी गई हैं, लेकिन वहां पानी की समस्या का कोई स्थाई निदान नहीं किया गया है। यह समस्या केवल दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में ही देखने को नहीं मिल रहे हैं बल्कि पहाड़ी राज्य उत्तराखंड भी इसकी मिसाल है। राज्य का हल्द्वानी शहर जो कुमाऊं व गढ़वाल के लोगों की आवास की पहली पंसदीदा जगह है। इस शहर में आबादी का घनत्व तेजी से बढ़ रहा है तो साथ ही समस्याएं भी जिसमें जल की कमी प्रमुख है, बढ़ती जा रही हैं। लेकिन यहां जल विभाग की तारीफ करनी होगी, कि भले ही जनता को समय पर पानी मिले या न मिले, लेकिन भारी भरकम बिल अवश्य समय पर मिल जाते हैं।

उत्तराखंड में तापमान बढ़ने के साथ पेयजल संकट का खतरा भी बढ़ने लगा है। न केवल नगरीय क्षेत्र बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी पीने के पानी की उपलब्धता मुश्किल में पड़ती दिखाई दे रही है। कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां टैंकरों से पानी मंगाकर लोग गर्मियों में प्यास बुझाने को मजबूर हो रहे हैं। उधर चारधाम यात्रा नजदीक है, लिहाजा पेयजल की समस्या को चारधाम मार्गों पर दूर करना भी एक बड़ी चुनौती बनता हुआ दिखाई दे रहा है। उत्तराखंड में गर्मियों का सीजन हमेशा पेयजल संकट को लेकर परेशानी भरा दिखाई देता है। इस साल मई महीने की शुरुआत में ही तापमान अपने उच्चतम स्थान पर पहुंचने के कारण दिक्कत ज्यादा बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। राज्य में कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां हर साल पानी की किल्लत देखने को मिलती है। ऐसे क्षेत्र इस साल भी जल संस्थान के लिए चिंता भरे बने हुए हैं।

इस वक्त राज्य सरकार का ध्यान चारधाम यात्रा पर भी है। चारधाम मार्गों पर पेयजल की किल्लत न हो, इसके लिए अलग से कार्य योजना तैयार करनी पड़ रही है। राज्य के न केवल नगरीय क्षेत्र बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी ऐसे बड़ी संख्या में इलाके मौजूद हैं, जहां पानी की मारामारी देखने को मिलती है। आंकड़ों से समझिए कि उत्तराखंड में संभावित पानी की समस्या को लेकर कितने क्षेत्र में दिक्कतें हैं। प्रदेश के 436 इलाके ऐसे हैं, जहां पानी का संकट उत्तराखंड जल संस्थान की नजर में संभावित है। जबकि ऐसे दूसरे कई और क्षेत्र भी हैं, जहां गांड गदेरे सूखने की कगार पर हैं और यहां भी पेयजल एक बड़ी समस्या बन रहा है।

उधर पहले ही वैज्ञानिक ये बात साफ करते रहे हैं कि अंडरग्राउंड वाटर धीरे-धीरे कम हो रहा है। जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में भी पानी के तमाम स्रोत सूख रहे हैं। इस तरह देखा जाए तो राज्य में पेयजल की समस्या एक गंभीर चिंता के रूप में सामने आई हुई दिखाई दे रही है। हाल ही में मुख्यमंत्री भी इस मामले में विभाग की समीक्षा बैठक कर चुके हैं, जिसमें राज्य में मौजूदा हालात पर चिंता जाहिर की जा चुकी है। उत्तराखंड जल संस्थान की मुख्य महाप्रबंधक कहती हैं कि गर्मी में पेयजल की समस्या को देखते हुए जल संस्थान की तरफ से सभी संभावित पेयजल संकट वाले क्षेत्रों का चिन्हीकरण किया जा चुका है। इसके लिए तमाम दूसरी व्यवस्थाएं भी बनाई जा रही हैं।

दूसरी तरफ सरकार की सबसे बड़ी चिंता चारधाम यात्रा भी है। जहां न केवल श्रद्धालुओं को पेयजल के संकट से दूर रखने की चुनौती है, बल्कि आसपास के क्षेत्र में रहने वाले लोगों को भी पेयजल की उपलब्धता करना जरूरी है। उसके लिए उत्तराखंड जल संस्थान ने चारधाम मार्ग में 199 टैंक टाइप स्टैंड पोस्ट, 371 पिलर टाइप स्टैंड पोस्ट, 1066 हैंडपंप और 62 चरही लगाए हैं। इसके अलावा यात्रा मार्गों पर 47 वाटर प्यूरीफायर और 39 वाटर एटीएम भी स्थापित किए गए हैं। जल संस्थान का दावा है कि पेयजल की व्यवस्था बनाने के लिए 20 टैंकर भी लगाए गए हैं और बाकी किराए के 74 टैंकर भी चिन्हित किए गए हैं। इस तरह चारधाम यात्रा पर भी उत्तराखंड जल संस्थान का पूरा फोकस है। तमाम समीक्षा बैठकों में पेयजल संकट से बचने के लिए विभिन्न उपायों पर काम करने की बात भी कहीं जा रही है। जल कितना अनमोल है। इसकी महत्ता को समझना हम सबकी जिम्मेदारी है।

गर्मियों में पानी के संभावित संकट को देखते हुए पानी से जुड़ी शिकायतों के निस्तारण को हर जिले में कंट्रोल रूम बना दिए गए हैं। जल संस्थान वॉटर वर्क्स में उत्तर शाखा में स्ट्रेट कंट्रोल रूम बनाया गया है। जल सभी डिवीजनों को अपने स्तर पर भी कंट्रोल रूम बनाने और सभी सब डिवीजनों के एई, जेई के नंबर सार्वजनिक किए जाने के निर्देश दिए हैं। इन नंबरों पर भी आम लोग सीधे अपनी शिकायतें दर्ज करा सकते हैं। सुबह आठ बजे से लेकर रात आठ बजे तक इन नंबरों पर फोन किए जा सकेंगे। जिलों में डिवीजनों के कंट्रोल रूम के साथ ही देहरादून में बनाए गए स्टेट आने वाली शिकायतों को संबंधित अधिकारियों तक पहुंचाया जा रहा है। टोल फ्री नंबर 18001804100 और 1916 पर भी उपभोक्ता पानी की शिकायतों को दर्ज करा सकते हैं।

पानी की शिकायतों के सामने आने पर जल संस्थान के पास तत्काल समाधान को सिर्फ टैंकर ही एकमात्र विकल्प है। सालों से पेयजल संकट के समाधान को लेकर सिर्फ कागजों पर ही काम हो रहा है। हर साल गर्मियों में एक्शन प्लान के नाम पर टैंकरों की संख्या बढ़ा दी जाती है। जहां पहले पर्याप्त पानी उपलब्ध था, लेकिन अब ये बस्तियां भी संकटग्रस्त क्षेत्रों की श्रेणी में आ गई हैं। इन आंकड़ों ने सरकारी विभाग की कार्यशैली और जल प्रबंधन की नीति को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। गर्मियों में पहाड़ी दुर्गम क्षेत्रों के संकटग्रस्त क्षेत्रों तक पानी की सप्लाई खच्चर के जरिए और सड़क से सटे क्षेत्रों में टैंकर के जरिए वैकल्पिक इंतजाम के तहत पानी पहुंचाने का प्रावधान है। किंतु खच्चर और टैंकर के नाम पर होने वाले खर्च को लेकर भी हर साल सवाल उठते रहे हैं।

पिछले पांच वर्षों में पर्वतीय क्षेत्रों में जिस तरह से पेडों का अंधाधुंध कटान हुआ है और जलवायु परिवर्तन के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में ‘ग्लोबल वार्मिंग’ का प्रकोप बढ़ा है, उससे प्राकृतिक जलस्रोतों में पानी निरंतर कम हो रहा है। कई जलस्रोत सूख गए हैं। राज्य के 19 हजार 500 जलस्रोतों में से 17 हजार जलस्रोतों में 50 से 90 फीसद तक पानी कम हो गया है और गर्मियों में हालात और भी ज्यादा बदतर हो गए हैं। एक जल वैज्ञानिक सर्वे के अनुसार उत्तराखंड में 90 फीसद पीने के पानी की सप्लाई प्राकृतिक झरनों या छोटे-छोटे जलस्रोतों से होती है। जहां पहले पर्याप्त पानी उपलब्ध था, लेकिन अब ये बस्तियां भी संकटग्रस्त क्षेत्रों की श्रेणी में आ गई हैं। इन आंकड़ों ने सरकारी विभाग की कार्यशैली और जल प्रबंधन की नीति को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

जल संरक्षण सभी के लिए और उत्तराखंड के लिए भी एक चुनौती है। सभी सरकारी भवनों में वर्षा जल संचयन तथा सौर ऊर्जा की व्यवस्था सुनिश्चित की जाये। पेयजल को लेकर असली चुनौती अभी सामने आना बाकी है, इसलिए अभी से तैयारी पुख्ता कर लें।

लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

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