पहाड़ों में स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने की जरूरत – मनोज बर्थवाल

पहाड़ों में स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने की जरूरत – मनोज बर्थवाल

उत्तराखंड के लोग चाहे वह किसी भी क्षेत्र में काम कर रहे हों उन्होंने अपनी मेहनत, लगन और ईमानदारी से एक अलग मुकाम हासिल किया है। उनमें से एक नाम मनोज बर्थवाल का है वह ओएनजीसी में 38 साल के कार्यकाल के बाद सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने 1984 में ओएनजीसी ज्वाइन की और जून 2022 में वह ओएनजीसी अकादमी प्रमुख व कार्यकारी निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए।

उत्तराखंड के लोग चाहे वह किसी भी क्षेत्र में काम कर रहे हों उन्होंने अपनी मेहनत, लगन और ईमानदारी से एक अलग मुकाम हासिल किया है। उनमें से एक नाम मनोज बर्थवाल का है वह ओएनजीसी में 38 साल के कार्यकाल के बाद सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने 1984 में ओएनजीसी ज्वाइन की और जून 2022 में वह ओएनजीसी अकादमी प्रमुख व कार्यकारी निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने ओएनजीसी में रहते हुए असम, बड़ोदा, देहरादून, मुम्बई व दिल्ली में अनेक पदों पर काम किया। उन्हें लेखन, गायन व खेल कूद का भी शौक है। उनका कहना है कि अब वह गढ़वाल व कुमाऊं का भ्रमण करेंगे और वहां के लोगों की समस्याओं को समझकर मित्रों के साथ मिलकर वहां कुछ करने कोशिश करेंगे। उन्होंने कहा कि सुदूर पहाड़ों में चिकित्सा व्यवस्थाओं को और अच्छा करने की आवश्यकता है। विशेषतौर पर खून की जांच के साधनों को आस पास स्थापित करवाने की दिशा में कार्य करना उनकी प्राथमिकता रहेगी। उन्होंने कहा कि मेरे कुछ मित्र ड्रोन के माध्यम से बीज दूर पहाड़ों में डालने पर विचार कर रहे हैं। स्वच्छता अभियान की तरह ही बीज व पेड़ लगाने के अभियान देश में चलने चाहिए। इससे पहाड़ों में भूस्खलन से हमें बहुत हद तक राहत मिल जायेगी व ग्लोबल वार्मिंग कम होगी। ओएनजीसी से सेवानिवृत होने के बाद मनोज बर्थवाल ने हिल-मेल के संपादक वाईएस बिष्ट से बातचीत की। बातचीत के प्रमुख अंश इस प्रकार हैं :-

1. आप किस गांव में पैदा हुए आपकी पढ़ाई लिखाई कहां हुई?

मेरा जन्म पौड़ी गढ़वाल में अपने नाना के घर में 30 मई 1962 को हुआ। मेरे पिताजी स्वर्गीय देवी प्रसाद बर्थवाल इंटेलीजेंस ब्यूरो में काम करते थे और एक लंबे समय उन्होंने नेफा (नॉर्थ इस्टर्न फ्रंटियर प्रोवियंस अब अरूणाचल प्रदेश) व असम के सुदूर क्षेत्रों में काम किया। मेरे जन्म के समय वे वहीं कार्यरत थे। मेरी मां स्वर्गीय कल्पेश्वरी बर्थवाल एक कुशल गृहणी थी। मेरी शुरूआती शिक्षा उत्तराखंड में ही हुई, मैंने पौड़ी में नेहरू माउन्टेसरी स्कूल में 1966 में प्रवेश लिया व तीन साल वहीं शिक्षा प्राप्त की। प्रारम्भिक शिक्षा अल्मोड़ा, नैनीताल इत्यादि में दी। फिर आने वाले वर्षों में जहां भी पिताजी का स्थानान्तरण हुआ जैसे धारचूला, जोशीमठ, इलाहाबाद व फैजाबाद वहीं शिक्षा प्राप्त की। बाद में बीए और एमए लखनऊ विश्व विद्यालय से किया व कुछ समय बाद दूरदर्शन, रेडियो व अखबार में वहीं काम किया। घर का वातावरण सामान्य मध्यम वर्गीय परिवार का था। पिताजी देशभक्त व ईमानदार अफसर थे अतः सीमित साधनों में परिवार का भरणपोषण किया जाता था। घर में पढ़ाई व अच्छे अंक लाने पर विशेष बल था। मैं हाई स्कूल से लेकर एमए तक सदैव प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ। बाद में देहरादून रहते हुए मैंने डीएवी कॉलेज में शाम की विधि की क्लासेस ज्वाइन की व प्रथम श्रेणी में एलएलबी किया। बीच में बड़ोदा रहते हुए मैंने डिप्लोमा इन मैंनेजमैंट व डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस मैंनेजमैंट भी कर लिया था। पढ़ाई के साथ साथ विभिन्न कलाओं व खेल कूद में मैंने हमेशा भाग लिया।

2. आपके परिवार में कौन कौन लोग हैं और आपके परिवार ने पहाड़ों में किस प्रकार का संर्घष देखा ?

मेरी दो छोटी बहिने हैं मंजरी व मनीषा। दोनों विवाहित हैं और वह अपने परिवार के साथ खुशी से रह रही हैं। मेरी पत्नी सुनन्दा हमेशा मेरी सहभागी व सहचर रहीं। एमए टॉप करने पर भी उन्होंने नौकरी न करके परिवार को अपना सम्पूर्ण समय देने का निर्णय लिया। अपनी पीएचडी की छात्रवृत्ति को भी दूसरे विद्यार्थी के लिये छोड़ दिया। हमारे दोनों बेटे ईशान आदित्य व शाश्वत आदित्य कम्प्यूटर इंजीनियर हैं व पेरिस में काम करते हैं। ईशान का विवाह ऑरेलिया से हुआ है जिन्होंने स्वयं बीटैक व एमबीए की शिक्षा विदेश में प्राप्त की है। तीनों बच्चे भारतीय नागरिक हैं। चूंकि हम जात पात व रंग भेद में विश्वास नहीं करते हैं व बच्चों को मानवता का तर्कसंगति की शिक्षा दी, अतएव उनके नाम से जाति सूचक उपनाम निकालने का हम दोनों ने निर्णय लिया।

3. आप अपने कैरियर में कैसे कैसे आगे बढ़े ?

मैंने ओएनजीसी की परीक्षा जो कि अखिल भारतीय परीक्षा थी 1984 में दी व 6ठे स्थान पर रहा। शुरूआती ट्रेनिंग एमडीआई गुड़गांव में तीन महीने चली तत्पश्चात् मैंने अपने पिता की तरह असम में जाने का अनुरोध किया जो मान लिया गया। लोग नॉर्थ ईस्ट जाने से कतराते थे परन्तु मेरा अनुभव अत्यंत सुखद रहा। मैं धारा प्रवाह असमिया बोल सकता हूं व भूपेन हजारिका जी के गाने गाता हूं। उन्हें मैं महानतम कलाकारों में गिनता हूं।

बाद में मेरा स्थानान्तरण बड़ोदा, देहरादून, मुम्बई व दिल्ली हुआ और अंत में मेरा स्थानान्तरण वापस देहरादून हुआ जहां में अकादमी प्रमुख व ईडी के पद से कार्यमुक्त हुआ। हमारा घर देहरादून में ही है और सम्प्रति हम यहीं निवास करते हैं। मुझे जो भी कार्यभार जहां भी दिया गया मैंने निष्ठा से उसे निभाने की चेष्ठा की। साथ ही अपने लेखन, गायन व खेल कूद के शौकों को जीवित रखने की भी चेष्ठा की। ओएनजीसी विश्व का अकेला प्रतिष्ठिन है जिसके 6 कर्मी एवरेस्ट पर व 9 कर्मी कंचनजंघा पर चढ गए। इन दोनों अभियानों का मैं भी अभिन्न अंग रहा। हमारे कर्मियों ने एवरेस्ट की चोटी पर राष्ट्र गान गाया व उनका नाम लिम्बा बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज है। हमारे गु्रप ने दिल्ली में पहली बार खेल आयोजित किये जिनकी बहुत सराहना की गई। अब यह लगभग हर वर्ष आयोजित किये जाते हैं।

4. आपको क्या क्या करना पंसद है ?

मुझे लोगों के संपर्क में रहना व एक दूसरे की सहायता करते रहना पर्वप्रिय हैं। मेरे मित्र सम्पूर्ण विश्व में फैले हुए है और हम आपस में सदैव सम्पर्क बनाये रखते हैं। विशेषतौर पर हम मित्रों ने सैकड़ों व्यक्तियों की सेवा की जिसके लिये मुझे अपने मित्रों पर गर्व है। मेरे ओएनजीसी के साथी जो उच्च पदों पर थे उन्होंने सदैव मेरा समर्थन किया व यथासम्भव पहाड़ों के लिये सहायता दी। पौड़ी के कोट ब्लौक व सतपुली में मेरे अनुरोध पर ओएनजीसी ने विश्वस्तरीय ऑक्सीजन कंसंट्रेटरस लगाए व कई लोगों को स्वास्थ्य लाभ दिया। पौड़ी में ही ओएनजीसी ने वाटर एटीएम भी लगवाया जिससे आमजन को लाभ मिल सके। मेरा जन्म स्थान पौड़ी है अतः वहां के लिए मेरा स्नेह स्वाभाविक है।

5. अब आप सेवानिवृत हो गये हैं, अब आप अपने राज्य के लिए क्या करना चाहते हैं ?

अपने कार्यकाल में देहरादून रहते हुए मुझे जब भी मौका मिला है आस पास के पहाड़ों की ओर निकल जाता था। पहाड़ों से मुझे विशेष स्नेह है। व्यक्तिगत तौर पर जो भी संभव हो अपने लोगों की सहायता करने की कोशिश मेरा प्रण रहेगा। समय समय पर विद्यार्थियों को मैं अपने अनुभव व आगे बढ़ने के उपाय बताता हूं।

सेवानिवृति के उपरांत मैंने पुनः लिखना आरम्भ कर दिया है व मेरे लेख छपते रहते हैं। बरसात के उपरान्त मैं गढ़वाल व कुमाऊं का भ्रमण करूंगा, वहां के लोगों की समस्याओं को समझकर मित्रों के साथ मिलकर वहां कुछ करने की अभिलाषा है। सुदूर पहाड़ों में चिकित्सा व्यवस्थाओं को और अच्छा करने की आवश्यकता है। विशेषतौर पर खून की जांच के साधनों को आस पास स्थापित करवाने की दिशा में कार्य करना मेरी प्राथमिकता रहेगी। मेरे कुछ मित्र ड्रोन के माध्यम से बीज दूर पहाड़ों में डालने पर विचार कर रहे हैं। मुझे प्रकृति से अत्यन्त प्रेम है और मेरा मानना है कि स्वच्छता अभियान की तरह ही बीज व पेड़ लगाने के अभियान देश में चलने चाहिए। इससे पहाड़ों में भूस्खलन से हमें बहुत हद तक राहत मिल जायेगी व ग्लोबल वार्मिंग कम होगी।

मेरा मानना है कि वानप्रस्थ अवस्था में विशेषतौर पर हमें अपने जन्मस्थान व प्रान्त के लिये जितना संभव हो प्रयास करना चाहिए।

5 comments

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5 Comments

  • KISHORE ACHARYA
    August 20, 2022, 11:54 am

    Delighted to know the experience and view point of Mr.Manoj Barthwal . Uttarakhand is really a special place and there is huge margin of scope for the development of this beautiful place.

    REPLY
    • Manoj Barthwal@KISHORE ACHARYA
      August 20, 2022, 11:11 pm

      I am grateful for kind words of Mr Acharya,Mr Shama and Mr Anil

      REPLY
  • P. D. Sharma
    August 20, 2022, 12:20 pm

    He is a lively young senior citizen with lots of energy which will help him achieve whatever he is contemplating. Our subh Asirvad will always be with his endeavours.

    REPLY
  • Anil Sharma
    August 20, 2022, 3:54 pm

    Sir, my best wishes for second inning of your life, remembered my tenure with senior colleague Barthwalji at IMD (now ONGC Academy).

    REPLY
  • Satyavir Sharma
    August 21, 2022, 11:30 am

    Living life and sharing it within our wide horizon and keep promoting the views and convictions for the growth of all whom we love and wish they prosper.

    REPLY

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