कारगिल युद्ध की 25वीं वर्षगांठ : भारतीय नौसेना ने चलाया था ‘ऑपरेशन तलवार’, डरकर भाग गए थे पाकिस्तानी जहाज

कारगिल युद्ध की 25वीं वर्षगांठ : भारतीय नौसेना ने चलाया था ‘ऑपरेशन तलवार’, डरकर भाग गए थे पाकिस्तानी जहाज

कारगिल युद्ध में थल सेना और वायु सेना के बहुमूल्य योगदान को अच्छी तरह से प्रलेखित किया गया है, वहीं नौसेना द्वारा समुद्री क्षेत्र में की गई महत्वपूर्ण कार्रवाइयां काफी कम लोगों को मालूम हैं। इस युद्ध में जहां हमारे राजनीतिक, कूटनीतिक और नौकरशाही शीर्ष तंत्र ने अपनी-अपनी अहम भूमिका निभाई, वहीं भारतीय सशस्त्र सेनाओं ने एक सुनियोजित संयुक्त अभियान में पाकिस्तान के नापाक इरादों को धराशायी किया।

रियर एडमिरल ओम प्रकाश सिंह राणा, एवीएसएम, वीएसएम (से.नि.)
भूतपूर्व डायरेक्टर जनरल नौ-सेना आयुध निरीक्षण & महा प्रबंधक ब्रह्मोश एयरोस्पेस

इस वर्ष 26 जुलाई को हम कारगिल युद्ध विजय की 25वीं वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं। कारगिल क्षेत्र की हजारों फुट ऊंची बर्फीली पहाड़ियों पर मई-जून 1999 में लड़ा गया और टेलिविजन पर प्रसारित बहुचर्चित युद्ध रहा है। इस युद्ध में भारतीय सशस्त्र सेनायें अपनी-अपनी भूमिका में संयुक्त ऑपरेशन में शामिल थे। ये तीन ऑपरेशन थेः सेना द्वारा ‘ऑपरेशन विजय’, वायु सेना द्वारा ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ और नौसेना द्वारा ’ऑपरेशन तलवार’। जहां तक थल सेना और वायु सेना के बहुमूल्य योगदान को अच्छी तरह से प्रलेखित किया गया है, वहीं नौसेना द्वारा समुद्री क्षेत्र में की गई महत्वपूर्ण कार्रवाइयां काफी कम लोगों को ही मालूम हैं। इस युद्ध में जहां हमारे राजनीतिक, कूटनीतिक और नौकरशाही शीर्ष तंत्र ने अपनी-अपनी अहम भूमिका निभाई, वहीं भारतीय सशस्त्र सेनाओं ने एक सुनियोजित संयुक्त अभियान में पाकिस्तान के नापाक इरादों को धराशायी करनें में सफलता हासिल की।

नियंत्रण रेखा को पार न करते हुए, कारगिल क्षेत्र की ऊंची चोटियों पर पाकिस्तानी घुसपैठियों के ठिकानों को निशाना बनाने के लिए वायु सेना के लड़ाकू जहाजों और सेना के तोपखानों का सटीक उपयोग कर, अंततः थल सेना ने जाबांजों उन अदम्य चोटियों पर विजय प्राप्त की। वहीं, समुद्र में नौसेना नियंत्रण रेखा को पार न करने की बाध्यता से मुक्त और पूरी ताकत से सक्रिय रूप से तैनात की गई थी, ताकि पाकिस्तान को संकेत दिया जा सके कि संघर्ष के किसी भी विस्तार के परिणामस्वरूप हमारी नौसेना पाकिस्तान पर हावी होगी। यह योजना भारत की उस रणनीतिक संयम से हटकर थी जो आम तौर पर पाकिस्तान के उप-पारंपरिक उकसावों के खिलाफ दिखाता रहा है।

कारगिल युद्ध के समय के नौसेना प्रमुख एडमिरल सुशील कुमार द्वारा प्रकाशित संस्मरण ‘ए प्राइम मिनिस्टर टू रिमेंबर – मेमोरीज़ ऑफ ए मिलिट्री चीफ’ में लिखते हैं कि ‘जून 1999 की शुरुआत में ही भारतीय नौसेना के पश्चिमी बेड़े ने उत्तरी अरब सागर में तेजी से तैनाती और कब्ज़ा कर बड़ी पहल की। इस परिप्रेक्ष्य में ऑपरेशन तलवार के तहत पाकिस्तान के विरुद्ध हमारे इरादों और क्षमता प्रदर्शन के इरादे बिल्कुल साफ थे। नौसैना के सभी युद्धक तत्वों को कार्रवाई में लगाया। इसके अंतर्गत पाकिस्तानी नौसेना की वर्तमान स्थिति का पता लगाना और यह सुनिश्चित करना था कि हमारा समुद्री क्षेत्र, बॉम्बे हाई का तेल इंस्टालेसन, तटीय क्षेत्र और गुजरात में सामरिक महत्व के सभी संपत्ति अच्छी तरह से संरक्षित रहे। इससे पीछे यह रणनीति थी कि पाकिस्तान को सफलता का अवसर न दिया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि अगर पाकिस्तान सीमित कारगिल क्षेत्र से लड़ाई का विस्तार करने के बारे में सोचने की हिम्मत करता है, तो नौसेना दक्षिण में एक ओर से युद्ध का एक ओर मोर्चा खोलेगी’।

इस ऑपरेशन में उत्तरी अरब सागर में नौसेना के जहाजों की अब तक की सबसे बड़ी तैनाती थी। पश्चिमी बेड़ा, जो अपने आप में पाकिस्तानी नौसेना से निपटने के लिए पर्याप्त था, को पूर्वी बेड़े के जहाजों द्वारा अतिरिक्त रूप से बढ़ाया गया था। साथ ही नौ-सैनिक विमान, पनडुब्बियां, लेंडिग जहाज और तटरक्षक जहाजों को भी खास मिशनों के लिये शामिल किया। इसके अलावा, जब पाकिस्तानी अधिकारियों ने परमाणु अस्त्र की धमकी देनी शुरु की तो भारतीय जहाजों को पाकिस्तान तट (कोस्टल वाटर की सीमा) के करीब ले जाकर जवाब दिया। यह एक स्पष्ट संकेत था कि हम परमाणु ब्लैकमेल के आगे नहीं झुकेंगे। उत्तरी अरब सागर में एक समय में लगभग 30 भारतीय युद्धक जहाजों को कराची के दरवाजे पर पाकिस्तान मीडिया में बताया गया, जिससे पाकिस्तान के लिए युद्ध आपूर्ति अवरुद्ध होने की बड़ी संभावना थी। भारतीय नौसेना के हमले के डर से पाकिस्तान को अपने जहाजों को स्थानांतरित करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

नौसेना इतिहासकार दिवंगत वाइस एडमिरल जी.एम. हीरानंदानी, ने अपनी पुस्तक ‘ट्रांजिशन टू गार्जियनशिप’ में कारगिल युद्ध के बारे में लिखते हुए कहा है कि पाकिस्तानी नौसेना मुख्यालय ने अपने जहाजों को भारतीय नौसेना से अच्छी तरह से दूर रहने और युद्धपोतों को बंदरगाह में बने रहने का संकेत दिया। पाकिस्तान की कमजोरी तब ओर प्रदर्शित हुई जब उसने अपने तेल टैंकरों को फारस की खाड़ी से मकरान तट तक ले जाना शुरू कर दिया। साथ ही यह पता चला कि कराची की नाकाबंदी और फारस की खाड़ी से तेल की आपूर्ति में रुकावट पाकिस्तान के लिए युद्ध को जारी रखने हेतु गंभीर समस्या पैदा कर सकती है। नौसेना की इस रणनीति से थल सेना और वायु सेना को अपनी बढ़त हासिल करने और शुरुआती झटके को यादगार जीत में बदलने का समय और छूट मिल गई। यह भी बताया गया था कि तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने संघर्ष के बाद संकेत दिया था कि भारतीय नौसेना ने कराची को ब्लोकेज कर दिया था, जिससे पाकिस्तान के पास पारंपरिक युद्ध के केवल छह दिनों के लिए ईंधन की आपूर्ति पर्याप्त रह गयी थी। इस तरह अगर सही अर्थों में देखा जाए, तो भारतीय नौसेना की साहसिक तैनाती और संकल्प के पर्याप्त संकेत के साथ प्रदर्शित तत्परता का कारगिल संघर्ष पर काफी प्रभाव पड़ा। नौसेना ने एक उत्तर कोरियाई जहाज को भी कराची जाने से रोका और गिरफ्तार किया जो मिसाइल घटकों को पाकिस्तान ले जा रहा था और उनके युद्ध प्रयासों में सहायता कर रहा था।

समाचार पत्रों के लेख, तस्वीरें और टेलीविजन सूचना युद्ध के महत्वपूर्ण पहलुओं पर लगातार प्रकाश डाल रही थी। साथ ही अंतर सेनाओं में शहयोग के तहत, नौसेना के विमानों का स्क्वाड्रन आर्मी के अंतर्गत नियंत्रण रेखा पर संचालित होता था। स्थानों का पता लगाने के लिए हाइड्रोग्राफी विशेषज्ञ टीम को सेना की तोपखाने बैटरियों के साथ जोड़ा गया और नौसेना के मेरीन कमांडो बल ने अपने समकक्षों के साथ मिलकर इस युद्ध में अहम भूमिका अदा की। इस युद्ध में नौसेना ने पाकिस्तान को निरंतर दबाव की स्थिति में रखकर उसे अपनी नौसेना को प्रयोग न करने के लिए मजबूर किया। जैसा कि एडमिरल सुशील कुमार कहते हैं, ‘हमारी नौसेना की अत्यधिक श्रेष्ठता का पाकिस्तान पर गंभीर प्रभाव पड़ा’। इस युद्ध के समय मैं मुम्बई में कार्यरत था और जहाजों, पनडुब्बियों और हवाई जहाजों को विभिन्न प्रकार के आयुधों : कई प्रकार के मिसाइलें, टोरपीडो, गन अम्युनिसन/ गोला-बारूद, समुद्री माइन, रोकेट, बम, आदि की रात-दिन तैयारी, निरीक्षण, टेस्टिंग, गुणवत्ता, डिजाइन, से सही रूप में तैयार कर आपूर्ति करते थे।

शस्त्रों के सही प्रबंधन और आपूर्ति हेतु उस वक्त के पश्चिमी कमांड के चीफ एडमिरल माधवेंन्द्र सिंह (बाद में नौसेना अध्यक्ष) ने हमारे सयुंक्त प्रयास की सराहना भी की और अंततः कारगिल विजय पदक से सम्मानित भी किया। आज सेवानिवृत्ति के बाद भी जब उन दिनों को याद करते हैं तो एक खुशी की लहर दौड़ उठती है। प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी द्वारा निभाई गई दूरदर्शी भूमिका, राजनीतिज्ञों, सिविल संस्थानों और देश के हर नागरिक ने तीनों सेवाओं और अन्य एजेंसियों के साथ एकजुट और समन्वित तरीके से काम किया और भारत को विजयश्री प्राप्त हुई। अंततः कारगिल दिवस पर हिलमेल के सभी पाठकों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

कारगिल युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को शत् शत् नमन।

जय हिंद।

Hill Mail
ADMINISTRATOR
PROFILE

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked with *

विज्ञापन

[fvplayer id=”10″]

Latest Posts

Follow Us

Previous Next
Close
Test Caption
Test Description goes like this