डॉक्टरों को धरती पर भगवान का रूप माना जाता है, पर उत्तराखंड के उन सुदूर इलाकों के बारे में क्या कहेंगे जहां डॉक्टर या नर्स हैं ही नहीं। सच में, बड़ा मुश्किल होता है किसी के पेट में दर्द हो, चोट लग जाए या प्रसव पीड़ा हो तो लोगों को लंबा रास्ता तय कर अस्पताल आना पड़ता है पर धारचूला के इस गांव में एक ‘देवी’ हैं….
सीमांत क्षेत्र धारचूला के नारायण आश्रम के पास एक ग्राम सभा है रूंग। यहां की रहने वाली श्रीमती सरस्वती देवी गर्भवती महिलाओं के लिए किसी डॉक्टर से कम नहीं हैं। वह पिछले 20 वर्षों से लोगों की मदद कर रही हैं। दरअसल, विडंबना यह है कि गर्भवती महिलाओं को प्रसव प्रसव पीड़ा होने पर वहां डॉक्टर या नर्स कोई नहीं है। ऐसे में मजबूरन लोगों को सरस्वती देवी को बुलाना पड़ता है। हालांकि अब लोगों की नजर में उनकी पहचान किसी नर्स से कम नहीं है।
पिछले 20 सालों से घर-घर जाकर लगभग 145 से अधिक गर्भवती महिलाओं को नर्स की तरह मदद कर चुकी हैं। गौर करने वाली बात यह है कि इसके बदले में वह कोई डिमांड या पैसा नहीं लेती हैं।
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अस्पतालों की हालत यह है कि 14 ग्राम सभाओं में चिकित्सक केंद्र तो छोड़िए ANM केंद्र तक नहीं है। उनके सेवाभाव के कारण ही दुरस्त गांव की गर्भवती महिलाओं को राहत मिल रही है।
सरस्वती देवी के लिए सब कुछ इतना आसान भी नहीं है, पर उन्होंने अपने निजी संघर्ष को जारी रखने हुए किसी को भी मना नहीं किया। उनके पति गजी रुंगाल जब 19 साल के थे तभी आंखों की रोशनी खो चुके हैं। इसके बावजूद सरस्वती देवी ने हिम्मत रखते हुए अपने परिवार एवं समाज के प्रति संघर्षशील कार्य किया। कोरोना काल में भी जब लोग एक दूसरे से बच रहे थे, उन्होंने घर-घर जाकर 7 गर्भवती महिलाओं का प्रसव कराया और सब कुछ फ्री। ऐसी नारी को गांववाले देवी मानते हैं।
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गांव के ही सोनू बताते हैं कि धारचूला से ऊपर चौदास में ग्राम रुंग में जो लोग रहते हैं वहां सुविधाओं का अभाव हैं। सरस्वती देवी के निस्वार्थ भाव से किए जा रहे कार्यों का ही नतीजा है कि लोग नर्स से भी ज्यादा उन्हें महत्व देते हैं और भरोसा करते हैं। सरस्वती देवी किसी से एक पैसा नहीं लेती हैं। हां, लोग स्वेच्छा से उन्हें दे देते हैं। सोनू कहते हैं कि निजी जीवन में संघर्षों के बाद भी इस तरह का महान कार्य निश्चित तौर पर सरस्वती देवी को देवी का दर्जा देता है।
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