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उत्तराखंड के लोग जो लौट रहे हैं उनकी मजबूरी है कि लॉकडाउन से कामकाज बंद हुआ तो उनके पास कमरे का किराया देने के भी पैसे नहीं है। ऐसे में अपने गांव लौटने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है। ई-रैबार में विशेषज्ञों ने वो रास्ते सुझाए जिससे पहाड़ में ही इन लोगों को आगे रोका जा सकता है।
उत्तराखंड में कोरोना संकट, सीमा पर चीन और नेपाल की हरकतों के साथ-साथ प्रदेश के विकास पर ढेर-सारी चर्चा हुई जब हिल मेल के ई-रैबार कार्यक्रम में सेना के रिटायर्ड अफसर शामिल हुए। उन्होंने बताया कि पहाड़ में मौजूद एक्स सर्विसमेन का सरकार कैसे बेहतर इस्तेमाल कर सकती है।
कोरोना के संक्रमण की रफ्तार भले ही उत्तराखंड में अबतक कम थी पर प्रवासियों के लौटने के साथ ही यह आंकड़ा बढ़ने लगा है। लोग एहतियात बरत रहे हैं लेकिन डॉक्टरों, हेल्थकेयर पेशेवरों के साथ आम लोगों का भी तनाव बढ़ रहा है। ई-रैबार के इस अंक में इसी पर हुई विस्तार से चर्चा…
लॉकडाउन में लोगों की नौकरी छूट गई, कारोबार ठप हो गए तो खाने की दिक्कत होने लगी। ऐसे मुश्किल वक्त में सामाजिक संगठन सहारा बन रहे हैं। हिल मेल के शो में आए सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि जहां तक संभव है, वे लोगों को खाना खिलाने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे कोई भूखा न रहे।
NDMA के सदस्य राजेंद्र सिंह का कहना है कि बाहर से आए यूथ में से काफी वापस चले जाएंगे लेकिन फिर भी दो लाख लोगों में से करीब एक लाख लोग रह सकते हैं। इन लोगों को हर तरह का ज्ञान है। हमारी लीडरशिप का काम यह है कि इनके ज्ञान को सही डायरेक्शन में लेकर जाएं।
सीएम के आर्थिक सलाहकार आलोक भट्ट का कहना है कि राज्य का विजन लीडरशिप को तैयार करना होगा। जनता को भी अब इस दिशा में सोचना होगा। सबसे पहले हमें अपनी ताकत और कमजोरी को समझना होगा, ये देखना होगा कि हमारे लिए अवसर और चुनौतियां क्या हैं।
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उत्तराखंड के लोग जो लौट रहे हैं उनकी मजबूरी है कि लॉकडाउन से कामकाज बंद हुआ तो उनके पास कमरे का किराया देने के भी पैसे नहीं है। ऐसे में अपने गांव लौटने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है। ई-रैबार में विशेषज्ञों ने वो रास्ते सुझाए जिससे पहाड़ में ही इन लोगों को आगे रोका जा सकता है।
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