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जीत सिंह नेगी के ‘मलेथा की कूल, जीतू बगड्वाल, रामी बोराणी, शाबाश मेरा मोती ढांगा जैसे नाटक आज उत्तराखंड के लोक नाटकों की विरासत हैं। उनकी कई अमर रचनाएं हैं, ‘घास काटी की प्यारी छेला’, ‘पिंगला प्रभात सी।’ उनके बारे में कहा जाता था कि ‘जहां गीत होते, वहां जीत होते।’
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जीत सिंह नेगी के ‘मलेथा की कूल, जीतू बगड्वाल, रामी बोराणी, शाबाश मेरा मोती ढांगा जैसे नाटक आज उत्तराखंड के लोक नाटकों की विरासत हैं। उनकी कई अमर रचनाएं हैं, ‘घास काटी की प्यारी छेला’, ‘पिंगला प्रभात सी।’ उनके बारे में कहा जाता था कि ‘जहां गीत होते, वहां जीत होते।’
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