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उंगलियों से ईजा की धोती के पल्लू को लपेटकर सिसकियां भरने वाले दृश्य जेहन में उभर आते हैं। ईजा जितनी बार गुस्सा होती, सिर फोड़ने और कमर तोड़ने की ही बात करती! पहाड़ की संस्कृति में इन दो गालियों का अपना ही रसास्वादन है। विरला ही होगा जिसकी ईजा ने उस पर इन गालियों का स्नेह न बरसाया हो।
READ MOREकंधे पर 10 लीटर का पानी का डिब्बा लिए मैं पूरी फुर्ती के साथ चल रहा था। सर्दियों के दिन होने के बावजूद मेरे चेहरे से पसीना टपक रहा था। अंदर कहीं न कहीं डर धीरे-धीरे गहराता जा रहा था। तेज- तेज चलते हुए मैं उस गध्येरे तक पहुँच गया।
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उंगलियों से ईजा की धोती के पल्लू को लपेटकर सिसकियां भरने वाले दृश्य जेहन में उभर आते हैं। ईजा जितनी बार गुस्सा होती, सिर फोड़ने और कमर तोड़ने की ही बात करती! पहाड़ की संस्कृति में इन दो गालियों का अपना ही रसास्वादन है। विरला ही होगा जिसकी ईजा ने उस पर इन गालियों का स्नेह न बरसाया हो।
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