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चिपको आंदोलन की जननी गौरा देवी का जन्म 1925 में उत्तराखंड के लाता गांव में हुआ था। उस समय गांव में काफी बड़े पेड़-पौधे थे तो गौरा देवी का उनसे काफी लगाव हो गया। 12 साल में शादी रैणी गांव में हुई। पति किसान थे, पर शादी के 10 साल बाद उनकी मृत्यु हो गई। ऐसे मुश्किल हालात में आगे बढ़कर गौरा देवी लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बनीं।
READ MOREआज ही के दिन उत्तराखंड की धरती से पेड़ों को बचाने का महाअभियान शुरू हुआ था। महिलाओं ने इस मूवमेंट में बड़ी भूमिका निभाई। पेड़ों को कटने से बचाने के लिए पुरुष ही नहीं महिलाएं भी पेड़ों से चिपक जाती थीं। आइए याद करें पर्यावरण बचाने वाले उन योद्धाओं को।
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चिपको आंदोलन की जननी गौरा देवी का जन्म 1925 में उत्तराखंड के लाता गांव में हुआ था। उस समय गांव में काफी बड़े पेड़-पौधे थे तो गौरा देवी का उनसे काफी लगाव हो गया। 12 साल में शादी रैणी गांव में हुई। पति किसान थे, पर शादी के 10 साल बाद उनकी मृत्यु हो गई। ऐसे मुश्किल हालात में आगे बढ़कर गौरा देवी लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बनीं।
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