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हिन्दी को ज्यादा से ज्यादा लोग अपना रहे हैं, लेकिन सिर्फ बोलचाल की भाषा के रूप में। जैसे किसान का बेटा गांव छोड़ने को लालायित रहता है, उसी तरह हिन्दी को मातृभाषा बताने वाला भी अपनी हिन्दी से पिंड छुड़ाने के चक्कर में रहता है, हिन्दी की किताब या पत्रिका को घर में रखने से झेंपता है। टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलने में अपनी शान समझता है, हिन्दी मजबूरी में बोलता है।
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हिन्दी को ज्यादा से ज्यादा लोग अपना रहे हैं, लेकिन सिर्फ बोलचाल की भाषा के रूप में। जैसे किसान का बेटा गांव छोड़ने को लालायित रहता है, उसी तरह हिन्दी को मातृभाषा बताने वाला भी अपनी हिन्दी से पिंड छुड़ाने के चक्कर में रहता है, हिन्दी की किताब या पत्रिका को घर में रखने से झेंपता है। टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलने में अपनी शान समझता है, हिन्दी मजबूरी में बोलता है।
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