निर्विवाद मुख्यमंत्री का सूबे की सियासत में नियंत्रण बरकरार

निर्विवाद मुख्यमंत्री का सूबे की सियासत में नियंत्रण बरकरार

इस समय उत्तराखंड में भाजपा का संगठन एकजुट है। पार्टी में खेमेबाजी नहीं दिखाई दे रही। बीच-बीच में कुछ सदाबहार बागी नेताओं के बारे में सुनने में आता है कि वे बगावत कर सकते हैं, लेकिन हर बार त्रिवेंद्र सिंह रावत और भी मजबूत होकर लौटे हैं।

 प्रो. गोविंद सिंह 

तीन वर्ष पहले जब केंद्र की झोली से त्रिवेंद्र सिंह रावत का नाम उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद के लिए निकला था, तब राजनीतिक पंडित हैरान हो गए थे कि कई पूर्व मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों को दरकिनार करते हुए क्यों अपेक्षाकृत युवा कार्यकर्ता को मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है? आज जबकि त्रिवेंद्र सरकार ने खुशी-खुशी तीन साल पूरे कर लिए हैं, तब लग रहा है कि आला कमान का निर्णय उचित ही था, क्योंकि मुख्यमंत्री पद के कई दावेदारों के रहते हुए भी इतना समय बेखटक सरकार की गाड़ी को खींच लेना आसान नहीं था। इसलिए बीते तीन वर्षों की सबसे बड़ी उपलब्धि निश्चय ही यह बनती है कि मुख्यमंत्री निर्विवाद तरीके से सरकार को यहां तक खींच लाए हैं। त्रिवेंद्र सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि निस्संदेह गैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाना है। यह एक साहसिक फैसला है। तीन चाथाई बहुमत वाली सरकार से ही इस तरह की अपेक्षा की जा सकती है।

जब त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सत्ता संभाली थी, चारों तरफ से भ्रष्टाचार का बोलबाला था। हरीश रावत सरकार अनेक घोटालों में फंसी हुई थी। उससे पहले की सरकारें भी भ्रष्टाचार पर लगाम लगा पाने में लगातार नाकामयाब हुई थीं। इसलिए नई सरकार ने भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टोलरेंस की नीति अपनाने की घोषणा की। एन एच-74 मुआवजा घोटाला, समाज कल्याण विभाग छात्रवृत्ति घोटाला, सिडकुल घोटाला आदि पर सरकार ने सख्त रवैया अपनाया। प्रदेश में उद्योग की तरह चलने वाले ट्रांसफर-पोस्टिंग को बंद करने के लिए ट्रांसफर एक्ट लाया गया। सबसे बड़ी बात यह है कि तीन साल बाद भी सरकार के दामन पर भ्रष्टाचार का कोई छींटा नहीं पड़ा।

पिछले तीन वर्षों में हुए पंचायत चुनाव, निकाय चुनाव, विधानसभा उपचुनाव और लोकसभा चुनाव में भाजपा को आशा से कहीं अधिक सफलता मिली। आम तौर पर इन चुनावों को राज्य सरकार के काम-काज पर टिप्पणी माना जाता रहा है। पिछली सरकारों के दौर में यह भी देखा जाता रहा है कि धीरे-धीरे सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ नीचे गिरता रहता है। इन चुनाव-प्रदर्शनों को प्रतिमान मानकर अलग-अलग पार्टियों के आलाकमान भी प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन करते रहे हैं। लेकिन पिछले तीन वर्षों में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। इससे यह साबित होता है कि प्रदेश की राजनीति में त्रिवेंद्र का नियंत्रण बरकरार है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि इस बार पार्टी संगठन भी एकजुट है। पार्टी में खेमेबाजी नही दिखाई दे रही। इसीलिए संकट के समय सभी एक हो जाते हैं। बीच-बीच में कुछ सदाबहार बागी नेताओं के बारे में सुनने में आता है कि वे बगावत कर सकते हैं, लेकिन हर बार त्रिवेंद्र और भी मजबूत होकर लौटे हैं।

बड़ी उपलब्धि यह भी है कि त्रिवेंद्र सरकार केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई लोक-कल्याणकारी योजनाओं को अच्छी तरह से लागू करने में कामयाब रही है। अटल आयुष्मान योजना एक ऐसी ही योजना है, जिसमें 34 लाख लोगों को गोल्डन कार्ड जारी किए जा चुके हैं। प्रदेश भर में स्वस्थ्य केंद्रों को उच्चीकृत किया जा रहा है। उद्योग बढ़ाने के लिए ग्रोथ सेंटर खोले जा रहे हैं। बाहरी उद्यमियों को आकर्षित करने के लिए निवेश समिट करवाया गया है।

प्रदेश भर में बुनियादी संरचना मजबूत करने के लिए सचमुच त्रिवेंद्र सरकार बधाई की पात्र है। सड़क, रेल और विमान, तीनों ही स्तरों पर जमकर काम हो रहा है। ऑल वेदर रोड से भले ही जगह-जगह सड़कें खुदी हुई नजर आती हों, लोगों को आने-जाने में असुविधा होती हो, लेकिन उससे एक आशा जगती है कि हमारा भविष्य सुंदर बनाया जा रहा है। रेल के स्तर पर भी इस बार पहली बार यह उम्मीद जग रही है कि पहाड़ के कई कोनों में एक दिन रेल जरूर पहुंचेगी। जहां तक विमानन का सवाल है, अनेक स्थलों पर छोटे विमान उड़ने लगे हैं। पंतनगर, पिथौरागढ़, चिन्यालीसौढ़, गौचर के लिए विमान सेवाएं शुरू हुई हैं। इसी तरह उत्तराखंड के मनोरम पर्यटन स्थलों से पर्यटकों को जोड़ने के लिए नई-नई योजनाएं बन रही हैं। निश्चय ही आने वाले दिनों में इसके फायदे दिखाई देंगे।

जहां तक सरकार के कमजोर पहलुओं का सवाल है, वे भी हैं। पलायन इस सरकार के लिए भी सबसे बड़ी चुनौती है। सरकार ने रिवर्स पलायन की नीति शुरू की तो, लेकिन उसका कोई खास सुफल अभी तक नहीं मिला है। पलायन को रोकने के लिए सरकार को गंभीरता से चिंतन-मनन करना होगा। चूंकि यह एक वैश्विक समस्या है, इसलिए कोई भी फौरी समाधान यहां कारगर नहीं होगा। जो राज्य ग्रामीण जनता को वहीं रोक पाने में सफल हुए हैं, उनसे भी सबक लेना होगा। सबसे बड़ी बात गांव के स्तर पर सुविधाएं बढ़ानी होंगी। इसी तरह बेरोजगारी की समस्या भी मुंह बाए खड़ी है। नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में बेरोजगारी दर 4.2% पहुंच गई है। यानी एक करोड़ में से सवा चार लाख युवाशक्ति बेरोजगार। जाहिर है ये सारे लोग सरकारी नौकरियों पर नहीं रखे जा सकते। न ही तुरंत किसी भी नौकरी पर रखे जा सकते हैं। इसके लिए भी सरकार को दूरदृष्टिपूर्ण योजनाएं लानी होंगी। लोगों में उद्यमिता की आदतें बढ़ानी होंगी। ताकि व्यवस्था पर उनका विश्वास बरकरार रहे। इसलिए त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के लिए जितने आसान पिछले तीन साल थे, उनसे कहीं मुश्किल और चुनौती भरे आगामी दो साल होंगे।

(लेखक जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय में मॉस कम्युनिकेशन एंड न्यू मीडिया विभाग के विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं)

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked with *

विज्ञापन

[fvplayer id=”10″]

Latest Posts

Follow Us

Previous Next
Close
Test Caption
Test Description goes like this