अपने लिए जिये तो क्या जिये। दुनिया उन्हें याद करती है जो दूसरों के लिए जीते हैं। आज हम आपको उत्तराखंड की एक ऐसी ही बेटी से मिलाने जा रहे हैं जिन्होंने लापता हुए मासूम बच्चों की तलाश के लिए एक अभियान चला रखा है…।
…जरा कभी उस मां-बाप के बारे में सोचिए, जिसके जिगर का टुकड़ा उनकी आंखों से ओझल हो गया हो। सब जगह ढूंढ लिया हो पर कहीं न मिल रहा हो। आपने ऐसे गुमशुदा बच्चों के कई पोस्टर देखे होंगे। लेकिन उत्तराखंड की एक बेटी ने जब ऐसे मां-बाप के दर्द को महसूस किया तो उनसे रहा न गया। उन्होंने ऐसे बच्चों को ढूंढने और उन्हें उनके परिवार से मिलाने का अभियान शुरू कर दिया।
गाजियाबाद के इंदिरापुरम में रहने वाली कुसुम कंडवाल भट्ट ने अपनी इस मुहिम का नाम रखा- सर्च माई चाइल्ड फाउंडेशन। हिल-मेल से विशेष बातचीत में कुसुम ने अपनी संस्था के बारे में विस्तार से बताया। वह कहती हैं कि किसी एक व्यक्ति, संस्था या सरकार के लिए अपने स्तर पर लापता बच्चे को ढूंढ पाना असंभव सा काम है। ऐसे में लापता बच्चों को उनके घरतक पहुंचाने के लिए पूरे समाज को मिलकर काम करने की जरूरत है।
वह कहती हैं कि हमारा मकसद ऐसी मुश्किल परिस्थितियों से बचाने के लिए जागरूक करना और उनका शोषण, दुर्व्यवहार आदि होने से बचाना है। कुसुम भट्ट ने हिल-मेल को बताया कि वह 7 बच्चों को खुद उनके माता-पिता से मिलवा चुकी हैं। इसके अलावा करीब 270 बच्चों को उनके परिवार से मिलवाने में उनका योगदान रंग लाया। ये बच्चे अपने परिजनों तक पहुंचे।
कुसुम भट्ट ने बताया, ‘शुरुआत में मैं अपना काम करती थी, खाली समय में बच्चों को पढ़ाती थी। पिछले 12 साल से पहाड़ों के स्कूल के लिए हम चैरिटी कर रहे हैं।’ एक घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि पौड़ी का एक परिवार नोएडा सेक्टर 12-22 में रहता था, हमें पता चला कि उनकी बच्ची मिसिंग है। बाद में पता चला कि उन्हें किसी तरह की मदद नहीं मिल रही है। यह बात मेरे दिमाग में घर कर गई। मैंने कुछ लोगों को इकट्ठा किया और धीरे-धीरे गुमशुदा बच्चों को ढूंढने का सिलसिला शुरू किया। दिनभर इलाकों में घूमना, पोस्टर लगाना जैसे काम किए गए। उस दौरान जब मैं जाती थी तो कई मां-बाप मिलने लगे जिनके बच्चे गायब थे। उन्हें लगा कि मैं उनके लिए कुछ कर सकती हूं।
वह कहती हैं कि यह समाज का अनछुआ पहलू है। कोई भी इस तरफ काम नहीं करना चाहता जबकि उस मां-बाप पर क्या गुजर रही होगी आप समझ सकते हैं। जब तक कि उनके बच्चे के साथ ऐसी घटना न घटे तब तक लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं। इसके बाद कुसम ने- सर्च माई चाइल्ड नाम से मुहिम शुरू की।
अब लोगों और बच्चों को जागरुक करने पर फोकस
2016 से कुसुम भट्ट यह काम कर रही हैं। उन्होंने बताया कि वह तीन फेज में यह काम कर रही हैं। पहला- बच्चों की तलाश करना, दूसरा काम अवेयरनेस का है जिसके लिए वह स्कूल, स्लम आदि जगहों पर जागरूकता कार्यक्रम चलाती हैं। अब तक वह सवा लाख बच्चों को जागरूक कर चुकी हैं। इसके अलावा वह करीब एक लाख अभिभावकों और अध्यापकों को जागरूक कर चुकी हैं। तीसरी बात- वह कहती हैं कि पूरे देश में अलग पुलिस सेल होनी चाहिए जो गुमशुदा बच्चों के लिए काम करे।
वह चिंता जताते हुए कहती हैं कि हमारे यहां का सिस्टम ऐसा है कि चार महीने बाद मानव तस्करी सेल एक्टिव होता है। अब सवाल यह है कि आप अगर चार महीने में बच्चों को नहीं ढूंढ पाए तो आप चार महीने के बाद क्या कर पाएंगे। यह तो एक तरह का मजाक है। मैंने इसके लिए एक ऑनलाइन पिटिशन भी डाली है। मैंने मांग की है कि जितने भी माइनर हैं 18 साल से कम उम्र के लोगों के लिए अलग से पुलिस सेल होना चाहिए।
कुसुम बताती हैं कि वह खुद से इसके लिए फंड का इंतजाम करती हैं। उन्होंने इस मुहिम में ज्यादा लोगों को इसीलिए नहीं जोड़ा है क्योंकि लोगों को देने के लिए उन्हें पैसे की जरूरत होगी।
आपको बता दें कि कुसुम कंडवाल भट्ट उत्तराखंड में पौड़ी की रहने वाली हैं और गाजियाबाद के इंदिरापुरम में रह रही हैं। वह लगातार टिहरी, श्रीनगर, देहरादून, ऋषिकेश के स्कूलों में जागरूकता कार्यक्रम करती रही हैं। उत्तराखंड की इस बेटी के इस महामिशन को चौतरफा सराहना मिल रही है।
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