उत्तरकाशी के DM की देशभर में चर्चा, प्राकृतिक जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने का चला रखा है अभियान

उत्तरकाशी के DM की देशभर में चर्चा, प्राकृतिक जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने का चला रखा है अभियान

उत्तरकाशी जिले के DM की इनदिनों खूब चर्चा है। उनका प्रकृति प्रेम ही है कि वह जल स्रोतों के संरक्षण के लिए जी जान से जुटे हैं। फिलहाल जिले में उन्होंने मिशन इंद्रावती चला रखा है। आइए जानते है कि आईएएस अफसर के इस भागीरथ प्रयास के बारे में…

2012 बैच के आईएएस अधिकारी और आईआईटी कानपुर के छात्र रहे मयूर दीक्षित अपने प्रकृति प्रेम के लिए जाने जाते हैं। इस समय वह उत्तरकाशी जिले के जिलाधिकारी के पद पर तैनात हैं। उन्होंने अपने जिले में जल स्रोतों को फिर से पुनर्जीवित करने के लिए ‘मिशन इंद्रावती’ की शुरुआत की है। इंद्रावती 12 किमी लंबी नदी है और जिले के 11 गांवों के कम से कम 5 हजार लोगों के लिए सिंचाई का प्रमुख स्रोत है। यह हजारों लोगों के जीवन और आजीविका में मदद करती है।

जिलाधिकारी ने नदी को पुनर्जीवित करने के प्रयासों की देखरेख के लिए नोडल अधिकारियों की नियुक्ति की है। नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी से पर्यावरण कानून में डिप्लोमा और मैकेनिकल इंजीनियर दीक्षित कहते हैं कि पारंपरिक जलस्रोत हमारी सभ्यता की जीवनरेखा रहे हैं। हमें इन प्राकृतिक स्रोतों को बनाए रखने के लिए प्रयास करना चाहिए।

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पिछले महीने उत्तरकाशी के जिलाधिकारी के रूप में कार्यभार संभालने से पहले वह उधम सिंह नगर के मुख्य विकास अधिकारी थे, जहां उन्होंने तालाबों, झरनों समेत 550 से ज्यादा जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने में मदद की। जल निकायों के कायाकल्प से मवोशियों और खेती योग्य भूमि के लिए पानी उपलब्ध हो सका, जहां अभी तक नहर नहीं पहुंच पाई थी। उनके कार्य की केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने भी सराहना की है।

जिलाधिकारी दीक्षित बताते हैं कि इंद्रावती पहल का मकसद जल प्रवाह में कमी या कुछ मामलों में जल स्रोतों के खत्म होने के कारणों की पहचान करना है। इसके बाद जल स्रोतों के पुनरुद्धार की योजना बनाई जाएगी, जहां अधिकांश आवश्यक सामग्री स्थानीय स्तर पर उपलब्ध होगी। अधिकारियों, विशेषज्ञों, स्थानीय लोगों और पारंपरिक जानकारी रखने वाले लोगों का एक कार्य समूह निकटतम जल क्षेत्र की पहचान करता है और एक ‘चाल-खाल’ का निर्माण किया जाता है, और उसका रखरखाव किया जाता है।

आईआईएम बैंगलोर से एमबीए करने वाले दीक्षित कहते हैं कि जल ग्रहण का क्षेत्र इन प्राकृतिक जलस्रोतों के लिए जीवनरेखा है। एक बार ये चाल-खाल मजबूत हो गया तो 80 फीसदी काम पूरा हो गया। इस कार्य को मनरेगा के तहत किया जा रहा है जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिल सके।

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