लंबे समय से विपक्ष यह आरोप लगा रहा था कि भाजपा कुमाऊं की उपेक्षा कर रही है। पार्टी को भी कुमाऊं से एक ऐसे चेहरे की तलाश थी, जिस पर लंबा दांव खेला जा सके। कुमाऊं से आने वाले राज्य के सबसे बड़े राजनीतिक चेहरे हरीश रावत के सामने खड़ा किया जा सके। ऐसे में राजपूत समुदाय से आने वाले धामी फिट बैठते हैं। एक ही फैसले से जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण साध लिए गए।
भाजपा अप्रत्याशित फैसले लेने के लिए जानी जाती है। 10 मार्च को जब त्रिवेंद्र सिंह को हटाकर तीरथ सिंह रावत को सूबे की कमान सौंपी गई थी, तब किसी ने इस तरफ सोचा नहीं था। हालांकि उस समय कुछ चेहरों को लेकर चर्चा हो रही थी, इनमें से एक नाम पुष्कर सिंह धामी का भी था। पुष्कर को डिप्टी सीएम बनाने की खबरें खूब चलीं। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, हालांकि अब जब राज्य में सरकार का चेहरा बदलने की जरूरत हुई तो भाजपा ने धामी के युवा चेहरे पर दांव खेलकर सबको चौंका दिया। पुष्कर सिंह धामी को कैबिनेट का कोई अनुभव नहीं है, लेकिन उनकी क्षमताओं पर पार्टी नेतृत्व को भरोसा है। लगातार उत्तराखंड को लेकर निशाने पर आ रही पार्टी ने धामी को सूबे की कमान देकर एक तीर से कई निशाने साध लिए हैं। धामी की ताजपोशी ने दूसरी पीढ़ी के नेताओं को बड़ा संदेश तो दिया ही है, विपक्षी दलों के सियासी गणित को भी बिगाड़ दिया है।
खटीमा से दो बार के भाजपा विधायक पुष्कर सिंह धामी का जन्म पिथौरागढ़ के टुंडी गांव में हुआ। लखनऊ विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट और इंडस्ट्रियल रिलेशंस में मास्टर डिग्री हासिल की है। वह दो बार भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। पुष्कर सिंह धामी ने लखनऊ विश्वविद्यालय से छात्र राजनीति में कदम रखा और एबीवीपी में विभिन्न पदों पर रहे। लखनऊ में एबीवीपी के राष्ट्रीय अधिवेशन के संयोजक होने की उपलब्धि उनके खाते में दर्ज है। पुष्कर सिंह धामी यूपी के समय में एबीवीपी के प्रदेश महासचिव भी रहे। 2000 में उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद वह सीएम भगत सिंह कोश्यारी के ओएसडी रहे। 2002 से 2008 तक दो बार भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहे।
बेरोजगारी के साथ ही विकास के मुद्दों को लेकर वह प्रखर रहे हैं। पुष्कर सिंह धामी तब चर्चा में आए थे जब 2002 से 2008 के बीच उन्होंने पूरे प्रदेश में भ्रमण कर अनेक बेरोजगार युवाओं को संगठित कर विशाल रैलियां की थीं। तत्कालीन सरकार से राज्य के उद्योगों में युवाओं को 70 प्रतिशत आरक्षण दिलाने की घोषणा कराना उनकी बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में धामी को खटीमा से टिकट दिया गया और वह विधायक बने और उसके बाद फिर 2017 में विधायक बने। अगले साल चुनाव को देखते हुए युवाओं के बीच अच्छी पैठ वाले नेता को सीएम पद की जिम्मेदारी देने का यही अहम कारण माना जा रहा है।
जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण
लंबे समय से विपक्ष यह आरोप लगा रहा था कि भाजपा कुमाऊं की उपेक्षा कर रही है। पार्टी को भी कुमाऊं से एक ऐसे चेहरे की तलाश थी, जिस पर लंबा दांव खेला जा सके। कुमाऊं से आने वाले राज्य के सबसे बड़े राजनीतिक चेहरे हरीश रावत के सामने खड़ा किया जा सके। ऐसे में राजपूत समुदाय से आने वाले धामी फिट बैठते हैं। एक ही फैसले से जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण साध लिए गए। धामी महज 45 साल के हैं, उनके सीएम बनने के बाद पार्टी में युवा चेहरों को आगे करने का संदेश गया है। इसके अलावा एक संदेश यह भी है कि पार्टी अब गिने-चुने चेहरों से आगे देख रही है।
2022 की रणनीति की झलक
धामी की ताजपोशी इस तरफ भी इशारा कर रही है कि भाजपा विधानसभा चुनाव में कुछ अप्रत्याशित करने जा रही है। सत्ता विरोधी लहर की काट के लिए युवा चेहरे को आगे बढ़ाने के साथ ही पार्टी ने नए चेहरों को मैदान में उतारने का संकेत दे दिया है। यह फैसला इसलिए भी अहम है कि पार्टी से कई लोगों के पाला बदलने की खबरें आती-जाती रही हैं, ऐसे में पार्टी ने खुद एक नए चेहरे को सीएम बनाकर रास्ता बना दिया है, ताकि जो भी दलबदल होना हो, समय रहते हो जाए। धामी अपने को किस तरह साबित करते हैं, यह आने वाले दिनों में दिखेगा, लेकिन उनके पास समय कम है और पार्टी ने एक बड़ी जिम्मेदारी दे दी है। अगर वह सत्ता विरोधी लहर को काट पाए तो उनके लिए संभावनाओं को बड़ा पहाड़ खड़ा हो जाएगा।
2 comments
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galiyara.net
July 3, 2021, 10:46 pmबहुत अच्छी खबर है। पुष्कर जी को बीजेपी ने थोड़ा कम समय दिया। लेकिन चलिए देर से आए दुरूस्त आए
REPLYHari Mohan Bajpai
July 3, 2021, 11:21 pmBrilliant analysis
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