बर्फ से ढके पहाड़, जंगल, गांव का रहन-सहन, देसी भोजन, सुकून की नींद… गांववालों के लिए शायद यह रोज की बात हो सकती है, पर शहरों में रहने वालों के लिए यह दुर्लभ है। ऐसे में आपाधापी से दूर सुकून के पल ढूंढने के लिए पर्यटक पहाड़ों का रुख करते हैं। ऐसे में आज हम आपको ऐसी खास जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जहां एक ही छत के नीचे आपको गढ़वाली परंपरा के बीच क्वॉलिटी टाइम बिताने का मौका मिलेगा और सबसे खास होगा ‘आदमखोर’ को मारने के हैरतअंगेज किस्से। ये जगह है बासा होमस्टे।
पौड़ी जिला मुख्यालय से करीब 16 किमी की दूरी पर मनमोहक पहाड़ियों के बीच बसा है खिर्सू। यहीं पर पहाड़ी शैली में बना है रात्रि विश्राम स्थल यानी बासा। यह एक तरह का होम स्टे है, जिसकी शुरुआत कुछ समय पहले ही की गई। पहाड़ी शैली में बने बासा का संचालन ग्राम समूह से जुड़ी महिलाएं करती हैं। आपके पहुंचने पर यहां स्वागत पूरी तरह से पहाड़ी शैली में होगा। चूल्हे पर बने लजीज उत्तराखंडी पकवान परोसे जाएंगे। मंडुवे की रोटी, चैंसू, कढ़ी-झंगोरा, झंगोरे की खीर, कुलथ और फाणू… ऐसे कई व्यंजन आपको अद्भुत स्वाद का एहसास कराएंगे। खाना खाने के बाद जल्दी सोने की तो आप सोचेंगे नहीं क्योंकि यहां आपको सुनने को मिलेंगे ‘आदमखोर’ बाघों एवं तेदुओं को मारने के हैरतअंगेज किस्से। जी हां, उत्तराखंड के मशहूर शिकारी जॉय हुकील बासा में ठहरने वाले सैलानियों को वाइल्ड लाइफ की कहानियां सुनाने के साथ ही रोमांचक अंदाज में शिकार से जुड़े अनुभव भी साझा करते हैं, जो सैलानियों को रोमांच से भर देता है।
यह पहल पौड़ी के जिलाधिकारी धीरज गर्ब्याल की सोच का परिणाम है। अपने अभिनव प्रयोगों के लिए विख्यात धीरज गर्ब्याल ने होमस्टे योजना को एक नया आयाम देने का प्रयास किया है। इस पहल में स्थानीय जरूरतों, अर्थव्यवस्था और वास्तु कला को ध्यान में रखा गया है, जिससे स्थानीय रीति-रिवाज और परंपरा का पोषण हो सके। गढ़वाली भाषा में बासा का अर्थ उस अभिव्यक्ति से है, जिसके माध्यम से अपने घर में रात्रि विश्राम के लिए मेहमानों को आमंत्रित किया जाता है। बासा, होमस्टे के एक मॉडल की तरह है। यह स्थानीय लोगों को होमस्टे के लिए अपने घरों के दरवाजे खोलने के लिए भी प्रेरित करता है। स्थानीय लोगों की इस तरह की पहल के माध्यम से स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में मदद मिल सकती है और पर्यटन को बढ़ावा मिल सकता है। इससे खिर्सू के प्राकृतिक और सांस्कृतिक स्वरूप को संरक्षित करने में भी मदद मिल सकती है।
इस अभिनव सोच के पीछे उद्देश्य स्थानीय महिलाओं को सशक्त बनाने का भी है। बासा होमस्टे को स्थानीय स्वयं सहायता समूह द्वारा चलाया जा रहा है। इस ग्रामीण संगठन का नाम ‘उन्नति’ है। एफटीएन वर्ल्ड द्वारा डिजाइन और हिमालयन होम्स कंस्ट्रक्शन द्वारा निर्मित बासा में चार कमरे, एक कम्युनिटी किचन, एक पर्यटन केंद्र और एक पैकेजिंग व एक हस्तशिल्प की बिक्री यूनिट है। स्टे के प्रबंधन के साथ ही महिलाएं स्थानीय उत्पादों के उत्पादन, पैकेजिंग और शिल्प से जुड़ा काम करती हैं, जिसे पर्यटकों को बेचा जा सकता है।
इसके जरिए पर्यटकों को खिर्सू की पारंपरिक संस्कृति का अनुभव होगा। जिलेभर के देसी पारंपरिक उत्पादों का निर्माण और बिक्री यहां से हो सकेगी। बासा गांव के बीच में स्थित है इसलिए बर्फ से ढके पहाड़, जंगल, गांव का जीवन और स्थानीय पौष्टिक भोजन सभी का अनुभव यहां किया जा सकता है। बासा को पर्यटकों के लिए समग्र और शानदार गढ़वाली रहन-सहन का अनुभव कराने के लिए डिजाइन किया गया है।
इसे पत्थरों का उपयोग कर बनाया गया है, जिससे परंपरागत रूप से स्थानीय घर बनते हैं। कॉटेज में स्थानीय कारीगर द्वारा की गई सुंदर लकड़ी की नक्काशी है, जो खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। बासा के भीतर का नजारा पारंपरिकता और आधुनिकता के संगम का बोध कराता है। चार कमरे, सीसम की लकड़ी के फर्नीचर और बाथरूम और वॉशरूम की सुविधा है।
बारिश के पानी को इकट्ठा करने के लिए 27 हजार लीटर पानी की क्षमता वाला टैंक भी बना है। घर में इस्तेमाल की गई स्थानीय सामग्री आसानी से उपलब्ध है और इसे आसानी से ले जाया जा सकता है। सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए स्थानीय जानकारी और आधुनिक निर्माण तकनीकों में संतुलन देखने को मिलता है।
दरअसल, उत्तराखंड में नई पहल का दौर चल पड़ा है। पौड़ी प्रशासन ने ऐसी कई पहल की हैं, जो देश-विदेश के पर्यटकों को अपनी ओर खींचेगी। पौड़ी में सेब के बागान, एडवेंचर स्पोर्ट्स, होम स्टे के बाद जिलाधिकारी धीरज सिंह गर्ब्याल ने सैलानियों को रोमांच से भरी उस यात्रा पर ले जाने की पहल की, जो आदमखोर बाघों और तेंदुओं के शिकार से जुड़ी है। मशहूर शिकारी जॉय हुकिल की जबानी नरभक्षी बाघों और तेंदुओं के शिकार की रोचक कहानी सुनने की लोगों में जिज्ञासा बनी रहती है।
उत्तराखंड के लोगों के लिए जॉय हुकील एक जाना-पहचाना नाम है। जब भी कहीं गुलदार लोगों की जान का दुश्मन बन जाता है तो मैदान में उतरते हैं प्रसिद्ध शिकारी जॉय हुकील। इनकी बहादुरी के किस्से सुनने को लोग उत्सुक रहते हैं। हुकील अब तक 39 आदमखोर गुलदारों से लोगों की रक्षा कर चुके हैं। उनका यह सफर साल 2007 में शुरू हुआ था। वह कहते हैं कि मैं इंसान-वन्य जीव संघर्ष में मानव जीवन को बचाने के लिए यह काम शुरू किया है। वह पौड़ी में ही रहते हैं और जहां भी जरूरत होती है, पहुंच जाते हैं। कुछ देर बाद ही गुलदार के उनकी गोली का शिकार बनने की खबर आ जाती है। लोग कहते हैं कि जॉय का निशाना अचूक है। वह पौड़ी ही नहीं, पिथौरागढ़, बागेश्वर, रुद्रप्रयाग सहित प्रदेश के कई जिलों में लोगों को आदमखोर जंगली जानवरों के आतंक से मुक्ति दिला चुके हैं।
अगर आप भी यहां जाने की सोच रहे हैं तो आपको बता दें कि यहां दो लोगों के खाने और एक रात ठहरने का किराया मात्र तीन हजार रुपये हैं। बुकिंग आप ऑनलाइन भी करा सकते हैं। ज्यादा जानकारी आपको पर्यटन विभाग की वेबसाइट पर मिल सकती है।
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पौड़ी में ऐसा क्या नया प्रयोग हो रहा, जिसकी पूरे उत्तराखंड में है चर्चा - Hill-Mail | हिल-मेल
November 29, 2020, 11:01 am[…] […]
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