कोरोना के डर से पहाड़ों की ओर लौटे 52 हजार प्रवासी, क्या आगे भी रुकेंगे?

कोरोना के डर से पहाड़ों की ओर लौटे 52 हजार प्रवासी, क्या आगे भी रुकेंगे?

सबसे ज्यादा पौड़ी, अल्मोड़ा, टिहरी, चंपावत और पिथौरागढ़ में लोगों की वापसी हुई है। ग्राम विकास विभाग के डेटा के अनुसार, पौड़ी में सबसे ज्यादा 12039 लोग लॉकडाउन के बाद लौटकर आए। वहीं अल्मोड़ा में 5487, टिहरी में 5276, चंपावत में 5070 और पिथौरागढ़ में 5035 लोग लौटकर आए।

कोरोना संक्रमण के चलते देश में चल रहे 21 दिन के लॉकडाउन ने विभिन्न हिस्सों में रहने वाले प्रवासियों को अपने गांवों की ओर लौटने को मजबूर कर दिया। राज्य पलायन आयोग की मानें तो उत्तराखंड के 10 जिलों में 52,216 प्रवासी लौटकर आए हैं। काम धंधों को तलाश में पहाड़ों को छोड़कर मैदानी क्षेत्रों में गए इन प्रवासियों को आगे गांवों में ही रोके रखना त्रिवेंद्र सिंह सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। यही वजह है कि आयोग ने इन लोगों की वापसी के बाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़े असर का अध्ययन शुरू कर दिया है। आयोग यह अध्ययन भी कर रहा है कि गांव लौटे लोग यहीं रहकर क्या काम-धंधा कर सकते हैं ? इनका अर्थव्यवस्था में क्या योगदान हो सकता है। आयोग जल्द ही इसकी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपेगा।

मीडिया रिपोर्ट्स में पलायान आयोग  और ग्राम विकास विभाग के हवाले से कहा गया है कि सबसे ज्यादा पौड़ी, अल्मोड़ा, टिहरी, चंपावत और पिथौरागढ़ में लोगों की वापसी हुई है। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इनमें से कितने लोग स्थायी तौर पर गांव लौट चुके हैं और कितने लोग लॉकडाउन खत्म होने के बाद फिर शहरों का रुख कर लेंगे।  डेटा के अनुसार, पौड़ी में सबसे ज्यादा 12039 लोग लॉकडाउन के बाद लौटकर आए। वहीं अल्मोड़ा में 5487, टिहरी में 5276, चंपावत में 5070 और पिथौरागढ़ में 5035 लोग लौटकर आए।

पलायन आयोग के उपाध्यक्ष एसएस नेगी के मुताबिक, लॉकडाउन खुलने के बाद जो प्रवासी यहां रुकना चाहेंगे, वे क्या कर सकते हैं, इसके लिए कार्ययोजना बनानी जरूरी है। सरकार को उन्हें अपना काम-धंधा शुरू करने के लिए कुछ रियायत तो देनी ही होगी। इससे वे गांव में तो रुकेंगे ही, साथ ही राज्य की अर्थव्यवस्था में योगदान भी देंगे। उन्होंने बताया कि आयोग ने सभी पर्वतीय जिलों के डीएम से संपर्क साधा है। अब प्रशासन के मार्फत इन लोगों से संपर्क किया जाएगा।

उत्तराखंड में पलायन का एक बड़ा कारण मूलभूत सुविधाओं में कमी होना है। हालांकि पिछले कुछ समय में स्थिति सुधरी है, ऐसे में अगर राज्य सरकार किसी कार्ययोजना के साथ इन लोगों को रोक में सफल रहती तो पहाड़ के वीरान गांव फिर से गुलजार हो सकते हैं।

एक दशक में जो छोड़ गए अपने घर, अपना गांव

 

· पलायन आयोग के एक 2018 के सर्वेक्षण के अनुसार ग्राम पंचायत स्तर पर मुख्य व्यवसाय कृषि 43 प्रतिशत एवं मजदूरी 33 प्रतिशत है।

· पिछले 10 वर्षों में 6,338 ग्राम पंचायतों से 3,83,726 व्यक्ति अस्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं। यह लोग घर में आते-जाते रहते हैं, लेकिन अस्थायी रूप से रोजगार के लिये बाहर रहते हैं।

· इसी अवधि में 3,946 ग्राम पंचायतों से 1,18,981 लोग स्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं।

· ग्राम पंचायतों से 50 प्रतिशत लोगों ने आजीविका एवं रोजगार की समस्या के कारण, 15 प्रतिशत ने शिक्षा की सुविधा एवं 8 प्रतिशत ने चिकित्सा सुविधा के अभाव के कारण पलायन किया है।

· ग्राम पंचायतों से पलायन करने वालों की आयु 26 से 35 वर्ष वर्ग में 42 प्रतिशत, 35 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में 29 प्रतिशत तथा 25 वर्ष से कम आयु वर्ग में 28 प्रतिशत है।

· ग्राम पंचायतों से 70 प्रतिशत लोग प्रवासित होकर राज्य के अन्य स्थानों पर गए तथा 29 प्रतिशत राज्य से बाहर एवं लगभग 01 प्रतिशत देश से बाहर गए।

उत्तराखंड में 1668 घोस्ट विलेज

पलायन के चलते राज्य में घोस्ट विलेज यानी भुतहा गांवों की संख्या बढ़कर 1668 पहुंच गई है। ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग की रिपोर्ट पर गौर करें तो पिछले सात सालों में 700 गांव वीरान हो गए। इससे पहले वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में भुतहा गांवों की संख्या 968 थी। रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के पांच पहाड़ी जिलों रुद्रप्रयाग, टिहरी, पौड़ी, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा में सबसे अधिक पलायन हुआ है। यहां के गांवों में पलायन राज्य औसत से अधिक है। हालांकि पहाड़ के गांवों से 70 फीसद लोगों का पलायन राज्य में ही हुआ है। 29 फीसद ने राज्य से बाहर और एक फीसद ने विदेश में पलायन किया है।

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