कोरोना के बीच पहाड़ों को लेकर आई उत्तराखंड को टेंशन देने वाली रिपोर्ट

कोरोना के बीच पहाड़ों को लेकर आई उत्तराखंड को टेंशन देने वाली रिपोर्ट

कोरोना संकट ने लोगों को प्रकृति के काफी करीब ला दिया है। शहरों में कंकरीट के घरों में रहने वाले भी तेजी से गांव चले आए। अब उत्तराखंड की हरियाली, मौसम और आबोहवा सुकून दे रही है लेकिन भविष्य को लेकर एक और खतरा मुंह बाए दिख रहा है…

कोरोना काल में उत्तराखंड के लिए एक और चिंतित करने वाली खबर आई है। जी हां, एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में पहाड़ ज्यादा तेजी से गर्म हो रहे हैं और प्रदेश के अलग-अलग मौसम का अंतर भी खत्म हो रहा है। पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय और राज्य पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद इस बात को लेकर चिंता बढ़ गई है कि क्या पहाड़ का वो सदाबहार मौसम भविष्य में नहीं मिलेगा।

जलवायु परिवर्तन (Global Warming) का वैसे तो दुनिया के तमाम क्षेत्रों में असर दिख रहा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं, बेमौसम बारिश हो रही है। गर्मी रिकॉर्ड तोड़ रही है ऐसे में भविष्य को लेकर चिंता लाजिमी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक 1990 से ही उत्तराखंड में तापमान बढ़ना शुरू हो गया और यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। पिछले 100 साल में 0.46 डिग्री तापमान बढ़ा है। पहाड़ी जिलों का औसत वार्षिक तापमान 0.58 से लेकर 0.41 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है।

प्रोफेसर डिमरी ने बताई बड़ी बात

इस पर हमने जेएनयू के प्रोफेसर एपी डिमरी से बात की। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड के ग्लेशियर में मास लॉस है यानी वे तेजी से पिघल रहे हैं। यहां टू-स्टेप टोपोग्राफिक जोन में जलवायु असमान है। उन्होंने कहा कि ग्लेशियर, जलवायु और मौसम को अलग-अलग देखना चाहिए। एक्स्ट्रीम्स ज्यादा हो रहे हैं। छोटे समय के लिए बारिश आती है चली जाती है। ठंड का समय जल्द घट जाता है। इसके अलावा वॉर्मिंग तो बढ़ ही रही है। ग्लोबल वॉर्मिंग से उत्तराखंड अछूता नहीं रहेगा और यह एलीवेशन पर निर्भर वॉर्मिंग है जो कहीं ज्यादा होगी कहीं कम होगी, एकसमान नहीं हो सकती।

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ग्लोबल वॉर्मिंग की देन

रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के लिए चिंता की बात यह भी है कि बारिश घट रही है। पिछले कुछ वर्षों में प्रदेश में बारिश 13.5 सेमी कम हो गई है। पर्वतीय जिलों में बारिश लगातार कम होती जा रही है। प्रदेश में मौसमों के बीच का अंतर भी मिट रहा है। बरसात के मौसम में बारिश कम हो रही है और सर्दियों में अब ठंड कम होती जा रही है। ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और झीलों का निर्माण भी हो रहा है। इसका असर नदियों पर भी पड़ रहा है।

हर विभाग तक पहुंचेगी यह रिपोर्ट

पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव, एसपी सुबुद्धि के मुताबिक इस रिपोर्ट का मकसद उत्तराखंड में पर्यावरण की चुनौतियों को गहराई से समझने की कोशिश करना है, जिससे भविष्य की चुनौतियों के लिए पहले से तैयारी की जा सके। अब यह रिपोर्ट प्रदेश के अलग-अलग विभागों में भेजी जाएगी, जिससे परियोजनाएं बनाने में पर्यावरण के पहलू को भी ध्यान में रखा जा सके।

कोसी की सहायक नदियों की लंबाई करीब 225 किलोमीटर थी, घटकर 41 किमी रह गई है। जंगल की आग जैव विविधता को नुकसान पहुंचा रही है। रिपोर्ट में मौसम में बदलाव, शहरीकरण, जैव विविधता, आपदा आदि पर फोकस किया गया है। बोर्ड इस रिपोर्ट को प्रदेश के विभिन्न विभागों को भेजेगा, जिससे विभाग पर्यावरण के आधार पर परियोजनाएं तैयार कर सकें।

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