उत्तराखंड में लॉकडाउन की तरह पाबंदियां लगने और टेस्टिंग बढ़ने से कोरोना के केस घट रहे हैं या स्थिर दिखाई दे रहे हैं। इस बीच ब्लैक फंगस नामक नई बीमारी ने नई चुनौती खड़ी कर दी है। इसके इलाज के लिए इंजेक्शन का उत्पादन तेज हो गया है पर मौतों का प्रतिशत धड़कनें बढ़ा रहा है।
उत्तराखंड में सरकार और स्वास्थ्य प्रशासन का फोकस कोरोना के साथ-साथ अब ब्लैक फंगस पर भी है। हाल के दिनों में ब्लैक फंगस यानी म्यूकरमाइकोसिस के मरीज बढ़े हैं और लोगों की जान भी जा रही है। ऐसे में इसके इलाज में इस्तेमाल होने वाली एंफोरटेरेसिन-बी इंजेक्शन की मांग बढ़ी है। राहत की खबर यह है कि रुद्रपुर स्थित वीएचबी इंटरनेशनल फार्मा कंपनी में इसका प्रोडक्शन तेजी से होने लगा है।
गुरुवार रात में 15 हजार इंजेक्शन राज्य को मिल गए। अधिकारियों ने बताया है कि इसके ऑर्डर दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय ने दिए थे। इसमें से 10 हजार मेडिकल कॉलेज दून, दो हजार मेडिकल कॉलोज हल्द्वानी और तीन हजार इंजेक्शन डीजी हेल्थ कार्यालय के लिए हैं।
अब चिंताजनक पहलू समझिए। इस समय राज्य में कोरोना की मृत्यु दर 1.92 फीसदी है लेकिन ब्लैक फंगस की 9 फीसदी है। प्रदेश में अब तक ब्लैक फंगस के 155 मामले आए हैं। केस भले ही कम हो पर मौतों का प्रतिशत अधिक है। 13 मरीज ठीक हो गए हैं और 14 मरीजों की मौत हो चुकी है।
जानकारों के मुताबिक यह फंगल इन्फेक्शन नाक से शुरू होता है। इसके बाद यह आंखों तक पहुंचता है और फिर दिमाग तक पहुंचने का खतरा रहता है। डॉक्टरों का कहना है कि जिन लोगों की इम्युनिटी कमजोर है उन्हें ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।
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डायबिटीज वाले मरीजों को और भी ऐहतियात बरतने की जरूरत है। उन्हें ब्लैक फंगस का खतरा ज्यादा है। अगर उन्हें कोरोना भी हुआ हो तो खतरा बढ़ जाता है। समय पर इलाज मिलने से इसके नाक या साइनस में रहने तक मरीज को बचाना आसान होता है।
डॉक्टरों की बात मानिए
कोरोना काल में अब लोगों को ब्लैक फंगस से भी बचने की जरूरत है। डॉक्टर बताते हैं कि कोरोना से ठीक होने के बाद अपना ब्लड शुगर नियंत्रित रखें। चिकित्सक की सलाह के बाद ही स्टेरॉयड का इस्तेमाल करें। एंटीबीयोटिक और एंटी-फंगल दवाइयों का उपयोग कैसे करना है, इस पर डॉक्टर की सलाह जरूर लें। ब्लैक फंगस के लक्षण दिखने पर इम्युनिटी बूस्टर दवा बंद कर दें। इलाज के लिए अपने शरीर में पानी की कमी न होने दें।
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