महासू देवता से जो भी सच्चे दिल से कुछ मांगता है वह उसकी मुराद पूरी हो जाती है। महासू देवता के बारे में आज भी रहस्य है कि केवल मंदिर का पुजारी ही मंदिर में प्रवेश कर सकता है। मंदिर में हमेशा एक ज्योति जलती रहती है जो दशकों से जल रही है।
प्रकृति की गोद में बसा एक प्रसिद्ध मंदिर है ‘महासू देवता’। महासू देवता मंदिर (महासू देवता मंदिर, हनोल), या मस्तो देवता मंदिर, हनोल, देहरादून जिले, उत्तराखंड, भारत में तुइनी-मोरी रोड पर स्थित है। यह मंदिर चकराता के पास हनोल गांव में टोंस नदी के पूर्वी तकट पर स्थित है। मंदिर महासू को समर्पित है। यह 9वीं शताब्दी में बना महासू देवता का प्राचीन मंदिर है।
माना जाता है कि जो भी यहां सच्चे दिल से कुछ मांगता है कि महासू देवता उसकी मुराद पूरी करते हैं। । यह बात आज भी रहस्य है की क्यू केवल मंदिर का पुजारी ही मंदिर में प्रवेश कर सकता है। मंदिर में हमेशा एक ज्योति जलती रहती है जो दशकों से जल रही है।
स्थानीय भाषा में महासू शब्द ‘महाशिव’ का अपभ्रंश है। ‘महासू देवता’ एक नहीं चार देवताओं का सामूहिक नाम है और स्थानीय भाषा में महासू शब्द ‘महाशिव’ का अपभ्रंश है। ये चारो भगवान शिव का ही रूप उनके नाम हैं बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू (बौठा महासू) और चालदा महासू है।
पौराणिक कथा के अनुसार गांव का नाम हूण भट्ट, एक ब्राह्मण के नाम पर रखा गया था। महासू के आने से पहले, इस स्थान का उपयोग अपराधियों को आग की गर्मी से प्रताड़ित करने के लिए एक बड़े ड्रम के खोखले में रखकर, क्षैतिज रूप से रखा जाता था और नीचे से गर्म किया जाता था। पहले इस स्थान को चक्रपुर के नाम से जाना जाता था, और कहा जाता है कि यह वह स्थान है जहाँ पांडव यमुना नदी पर लाक्षा गृह या लखमंडल से बच गए थे। मध्यकाल में महान मुग़ल बादशाह अकबर ने बार-बार मंदिर का आया करते थे।
महासू देवता मेला हर साल अगस्त में आयोजित किया जाता है। यह स्थानीय जनजाति का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक मेला है। मंदिर के गर्भ गृह में पानी की एक धारा भी निकलती है, लेकिन वह कहां जाती है, कहां से निकलती है यह अज्ञात है।
देहरादून से महासू देवता के मंदिर पहुंचने के लिए तीन रास्ते हैं। पहला है देहरादून, विकासनगर, चकराता, त्यूणी होते हुये हनोल जो कि लगभग 188 किमी है, दूसरा रास्ता देहरादून, मसूरी, नैनबाग, पुरोला, मोरी होते हुये हनोल जो कि लगभग 175 किमी है। तीसरा रास्ता देहरादून से विकासनगर, छिबरौ डैम, क्वाणू, मिनस, हटाल, त्यूणी होते हुये लगभग 178 किमी हनोल पहुंचा जा सकता है।
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