माता शक्तिपीठों के विषय मे सभी जानते है। माता सती के अंग जिस जिस स्थानों में पड़े वहां वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। ये शक्तिपीठ न केवल माता के अस्तित्व की कहानी बयां करते है बल्कि इन पीठो की मान्यता और शक्ति सदैव श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण भी करती है।
माता शक्तिपीठों के विषय मे सभी जानते है। माता सती के अंग जिस जिस स्थानों में पड़े वहां वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। ये शक्तिपीठ न केवल माता के अस्तित्व की कहानी बयां करते है बल्कि इन पीठो की मान्यता और शक्ति सदैव श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण भी करती है।
उत्तराखंड जो कि देवभूमि के नाम से विख्यात है। यहां पर माता के शक्तिपीठ पाए जाते है। जिनमे से एक शक्तिपीठ रुद्रप्रयाग जिले के भरदार पट्टी में मठियाणा माता के नाम से विद्यमान है। रूद्रप्रयाग जिले के तिलवाड़ा सौराखाल रोड पर तिलवाड़ा से लगभग 29 किलोमीटर दूर माता का यह सिद्धपीठ मठियाणा देवी मंदिर स्थित है। कहा जाता है,कि यह वर्तमान में जाग्रत महाकाली शक्तिपीठ है।
मान्यताओं अनुसार
लोककथाओं के अनुसार मठियाणा माता के बारे में एक लोक कथा प्रचलित है,जिसके अनुसार कई वर्ष पहले मठियाणा देवी भी एक साधारण कन्या थी। उनकी दो माताएं थी । वह बांगर पट्टी के श्रावणी गावँ में रहती थी। उनकी माताओं की आपस मे नही बनती थी। दोनो माताएं अलग अलग रहती थी। उनकी सौतेली माँ गावँ वाले घर मे रहती थी ।और उनकी माँ डांडा मरणा में रहती है। यह कन्या जैसे ही बड़ी हुई तो , घरवालों ने उसकी शादी करवा दी। विवाह के पश्चात यह कन्या एक दिन अपने मायके, गांव वाले घर में आई । वहाँ उसकी सौतेली माँ रहती थी। उसकी सौतेली माँ ने उसको बहला फुसला कर अपनी माँ से मिलने डांडा -मरणा गावँ भेज दिया और उसके पति को गावँ में ही रोक लिया। सौतेली माँ ने उस कन्या के पति को भोजन में जहर देकर मार दिया और लाश को एक संदूक में बंद करके गौशाले में रख दिया।
जब वो लड़की अपनी मा से मिलकर वापस आई ,उसे वहां पता चला कि उसकी सौतेली माँ ने उसके पति को मार दिया। तब वह लड़की अपने होश खो बैठी ,और क्रोध के आवेश में आकर उसने रात के 12 बजे अपनी सौतेली माँ के घर को जला दिया और अपने पति की मृत देह को बक्से से निकाल कर ,सूर्यप्रयाग में बहने वाली नदी के पास ले आई। जब गावँ वाले उसके पति का अंतिम संस्कार करने लगे,तो वह सती होने के लिए चिता में जाने लगी तो, अचानक वहाँ लाटा बाबा आ गए। उन्होंने उस कन्या को अपने आप को पहचानने और अपनी शक्तियों को जाग्रत करने के लिए कहा । इसके बाद ये देवी के रूप में स्थापित होकर देवी के रूप में पूजी जाने लगी।
हर मनोकामना होती है पूर्ण
माँ मठियाणा सदैव सबकी मदद करती है। यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। माता सिर्फ लोगो की मदद ही नही बल्कि दोषियों को और पापियों को सजा भी देती है। अगर कोई स्त्री अपने ससुराल से परेशान होकर यहां आती है तो माता उसकी मदद भी करती है। राहगीरों को रास्ता व डरने वालो को सकुशल घर पहुँचाती है।
इस मंदिर के विषय मे ये भी कहा जाता है कि यहां अगर कोई व्यक्ति किसी तरह का द्वेष मन मे लेकर आता है तो माँ उसे दंडती भी करती है। मंदिर परिसर में बंधी घण्टियाँ परेशान मन को शांति प्रदान करती है। भरदार पट्टी में बसे इस मंदिर में हिमालय की बर्फीली ऊंची चोटियों से ठंडी हवा आती है।
यहां नवरात्रों में विशेष पूजन होता है। साथ ही यहां 6 से 12 वर्ष के अंतराल में अखंड यज्ञ का आयोजन भी होता है। और प्रति 3 वर्ष में माता की जागर का आयोजन भी होता है।
कैसे पहुंचे
मन्दिर के दर्शन के लिए आप दो रास्तों का इस्तेमाल कर सकते है पहला रुद्रप्रयाग से तिलवाडा होते हुए सड़क मार्ग से आप यहाँ पहुंच सकते है और दूसरा टिहरी बडियार गढ़ से सौंराखाल होते हुए भी आप आप इस मन्दिर तक पहुंच सकते है।सड़क से लगभग 3 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ने के बाद आप आप इस मन्दिर के भव्य दर्शन कर सकते है।
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