स्वरोजगार योजना में पशुपालन को अपनाएं, बदल सकती है किस्मत

स्वरोजगार योजना में पशुपालन को अपनाएं, बदल सकती है किस्मत

लॉकडाउन में घर लौटे टिहरी-गढ़वाल जनपद स्थित थौलदार ब्लॉक के तिवार गांव के युवा प्रवासी आशीष डंगवाल ने अपने घर पर ही पशुपालन करते हुए एक दर्जन बकरियां, 6 मुर्गियां और एक गाय के जरिए अपना पशुपालन का काम शुरू किया।

कोरोना संकट के चलते शहर छोड़कर गांव लौटे हजारों लोगों को रोजगार देने के लिए उत्तराखंड सरकार काम कर रही है। फोकस इस बात पर है कि जो लोग लौटे हैं, उन्हें ऐसी सुविधाएं दी जाएं जिससे वे गांव में ही रहकर खुशहाल जिंदगी जी सकें। स्वरोजगार एक महत्वपूर्ण जरिया बन रहा है। गांव की अर्थव्यवस्था कृषि और पशुपालन पर निर्भर करती है और सामान्य रूप से देखा जाता है तो गांव के लोग ज्यादा नहीं तो 2-4 पशु रखते हैं और घर में जरूरत का दूध उपभोग करने के बाद उसे बेचकर आमदनी भी करते हैं। हालांकि जब गांव खाली होने लगे तो यह चलन भी घटता गया।

अब गांवों में हलचल बढ़ी है। युवाओं से लेकर अनुभवी लोग भी महामारी में गांव में ही रहकर कुछ करने की सोच रहे हैं तो पशुपालन से किस्मत बदली जा सकती है। प्रवासियों के गांव लौटने के बाद उन्हें स्वरोजगार से जोड़ने के लिए सरकार ने भी पशुपालन को तवज्जो दिया है। मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना में इसे शामिल किया गया है तो विभाग ने पशुपालन में प्रवासियों को शीर्ष प्राथमिकता देने का निश्चिय किया है।

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ऐसे में प्रवासियों को यह समझने की जरूरत है कि आखिर पशुपालन कैसे उनके लिए अच्छा आय का जरिया बन सकता है।  हिल-मेल की खास पेशकश ‘ई-रैबार’ में  आए करनाल स्थित नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. एमएस चौहान ने इस बारे में विस्तार से बताया था। उन्होंने कहा कि कृषि और पशुपालन दोनों क्षेत्रों में उत्तराखंड में अपार संभावनाएं है।

डॉ. चौहान बताते हैं कि उत्तराखंड में 18 लाख टन दूध पैदा होता है। 21 लाख गायें, 10 लाख भैंस, 3.7 लाख भेड़, 14 लाख बकरियां हैं। 69 प्रतिशत हमारे यहां की आबादी गांवों में बसती है और गांव की इकॉनमी कृषि और पशुपालन पर निर्भर करती है। उत्तराखंड में जो निचले क्षेत्र हरिद्वार, कोटद्वार जैसे इलाकों में डेयरी हैं जहां किसान भाइयों के पास 300-500 गाय और भैसों की डेयरी है। प्रतिशत के हिसाब से देखें तो राज्य की आमदनी रहन-सहन और भोजन कृषि और पशुपालन से ही होता है।

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अब अगर पिछले 10 साल में पशुओं की संख्या देखें तो पता चलता है कि 2012 के मुकाबले 2019 में कुल गोवंश में 7.95 फीसदी की कमी आई। इसी तरह भेड़ और दूसरे जानवर भी घट गए क्योंकि लोगों का पलायन तेजी से हुआ था। हालांकि अब यह वापस बढ़ सकता है।

सरकार का भी स्पष्ट कहना है कि विभाग के स्तर से भी पशुपालन, मत्स्यपालन, भेड़-बकरी पालन, कुक्कुट पालन को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए गए हैं। इसमें शीर्ष प्राथमिकता प्रवासियों को दी गई है। घटते पशुपालन के मद्देनजर अब सरकार इसे बढ़ावा दे रही है। पशुपालन को अन्य विभागों की योजनाओं से भी जोड़ने की तैयारी है। प्रवासियों के पशुपालन में आने से उन्हें घर बैठे स्वरोजगार मिल सकेगा।

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