जन्मदिन विशेष: CDS बिपिन रावत को शुभकामनाएं दे रहे देशवासी, पढ़िए उनकी अनसुनी कहानियां

जन्मदिन विशेष: CDS बिपिन रावत को शुभकामनाएं दे रहे देशवासी, पढ़िए उनकी अनसुनी कहानियां

मूल रूप से जनरल रावत पौड़ी जिले के सैंण गांव में सैन्य परिवार में जन्मे बिपिन रावत को आज पूरा देश उनके जन्मदिन पर शुभकामनाएं दे रहा है। ट्विटर पर #cdsbirthday ट्रेंड कर रहा है। लोग सीडीएस के साहस और पराक्रम की कहानियों की चर्चा कर रहे हैं और उनके पुराने वीडियो शेयर कर अपने तरीके से उन्हें सलाम कर रहे हैं।

उत्तराखंड के सपूत और देश की सेना के सबसे बड़े अफसर सीडीएस बिपिन रावत का आज जन्मदिन है। एक दिन पहले से ही लोग उन्हें सोशल मीडिया पर शुभकामनाएं दे रहे हैं। उनकी तस्वीरें शेयर करते हुए लोग उनके स्वास्थ्य और खुशहाली के लिए कामना कर रहे हैं। देहरादून से दमन तक लोग ट्विटर पर भारत के पहले सीडीएस को शुभकामनाएं दे रहे हैं। लोग सीडीएस के साथ अपनी तस्वीरों और उनके वीडियोज शेयर कर रहे हैं। उनकी वीरता की कहानियों की भी लोग चर्चा कर रहे हैं। एक यूजर ने लिखा सीडीएस रावत सर देश के युवाओं के लिए प्रेरणा हैं।

आइए जनरल बिपिन रावत के जन्मदिन पर जानते हैं उनके साहस और पराक्रम की कहानी। सीडीएस रावत को घर में ही फौजी माहौल मिला था। वह परिवार की तीसरी पीढ़ी के ‘फौजी’ हैं। उनके पिता लेफ्टिनेंट जनरल (रि.) लक्ष्मण सिंह रावत भारतीय सेना के उप-प्रमुख रह चुके हैं। रोचक यह भी है कि पिता-पुत्र दोनों को 11वीं गोरखा रायफल्स की पांचवीं बटालियन में ही कमीशन मिला था।

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जन्म से सेना में शिखर तक

16 मार्च, 1959 को जन्मे बिपिन रावत का चयन मेडिकल में हुआ था लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। उन्होंने चिकित्सा के पेशे पर अपनी पारिवारिक परंपरा को वरीयता दी। दादा और पिता के बाद वह भी देश की सेवा के लिए सेना में आए और अब देश के पहले सीडीएस हैं।

परम विशिष्ट सेवा मेडल, उत्तम युद्ध सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल, युद्ध सेवा मेडल, विशिष्ट सेवा मेडल और सेना मेडल से सम्मानित जनरल बिपिन रावत का जिक्र होते ही जैसे उत्तराखंड के लोगों में एक ऊर्जा का संचार हो जाता है। यह नाम अब युवाओं के लिए प्रेरणा, आदर्श के साथ ही पहाड़ की पहचान बन चुका है।

जनरल रावत जिस कौशल से सर्जिकल स्ट्राइक की रणनीति बनाते हैं, उसी कुशलता से अफसर और जवान तथा सेना और सिविलियंस के बीच की दूरियां मिटाने के फैसले लेकर मानवीय भावना का परिचय देते हैं।

वो फैसले याद हैं…

सेना में सहायक परंपरा खत्म करने का फैसला हो या फिर दिल्ली के ट्रैफिक में बेहाल आम लोगों को सेना के दिल्ली कैंटोनमेंट एरिया के ग्रीन जोन्स से होकर गुजरने की इजाजत देना, जनरल रावत के ‘साहसिक’ फैसले बताते हैं कि वह विशेषाधिकारों में नहीं दिल जीतने में यकीन रखते हैं। जनरल रावत ने स्कूली छात्रों के साथ अपना अनुभव बांटते एक बार कहा था, ‘बचपन में स्कूल में जो मानवता का पाठ मैंने पढ़ा था उसे कभी खुद से अलग नहीं होने दिया और कई बार वही मेरी सबसे बड़ी शक्ति बनता है।’

एक वाकये का जिक्र बार-बार होता है। जब वह आर्मी चीफ बने तो उन्होंने सभी पूर्व जनरलों और जिन जनरलों का देहांत हो गया है उनकी पत्नियों को फोन किया और कहा कि यह मेरा फोन नम्बर है और मैं आपके लिए 24 घंटे उपलब्ध हूं। जब उन्होंने पूर्व जनरल बिपिन चंद्र जोशी की पत्नी को फोन किया तो वह भावुक हो गईं। उन्होंने कहा कि बिपिन तुम पहले जनरल हो जिसने मुझे फोन किया है। इससे पहले भी बहुत से जनरल हुए लेकिन कभी किसी ने मेरा हालचाल नहीं जाना। हर साल भारतीय सेना 15 जनवरी को आर्मी दिवस मनाती है और इस अवसर पर पूर्व जनरलों और उनकी पत्नियों को बुलाया जाता है।

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जनरल जोशी की पत्नी ने कहा कि मुझे तो कई सालों से सेना दिवस पर बुलाया ही नहीं गया। फिर जनरल रावत ने सेना दिवस पर उनके आने के लिए गाड़ी भेजी। वह कार्यक्रम में आकर बहुत खुश हुईं। जनरल बिपिन चंद्र जोशी उनकी शादी में शामिल हुए थे।

मूल रूप से जनरल रावत पौड़ी जिले के सैंण गांव से हैं। यहां पर उनके चाचा भरत सिंह रावत और उनका परिवार रहता है। उत्तराखंड के पौड़ी जिले द्वारीखाल ब्लॉक में बिरमोली ग्राम पंचायत के अंतर्गत सैंण गांव आता है। जनरल रावत के घर तक पहुंचने के लिए एक किलोमीटर का पहाड़ी रास्ता पैदल तय करना पड़ता है। जनरल बिपिन रावत का परिवार दशकों पहले देहरादून शिफ्ट हो गया था, लेकिन उन्हें अपने पैतृक गांव सैंण से इतना लगाव है कि आज भी वह यहां आते रहते हैं।

पढ़ाई- लिखाई के बारे में जान लीजिए

जनरल रावत की पढ़ाई देहरादून से शुरू हुई। उन्होंने कॉन्वेंट ऑफ जीसस एंड मेरी स्कूल से दूसरी कक्षा तक पढ़ाई की है जो लड़कियों का स्कूल है। जनरल रावत ने स्कूल के शुरुआती दिनों को याद करते हुए एक बार कहा था कि लड़कियों के स्कूल में पढ़ते हुए भी उनके साथ कभी कोई लिंगभेद नहीं हुआ। आगे की पढ़ाई देहरादून के प्रतिष्ठित कैंब्रियन हॉल स्कूल और फिर शिमला के सेंट एडवर्ड स्कूल में हुई।

उसके बाद नेशनल डिफेंस एकेडमी खड़कवासला और इंडियन मिलिट्री स्कूल देहरादून आए जहां उन्होंने सर्वश्रेष्ठ कैडेट को दिया जाने वाला स्वॉर्ड ऑफ ऑनर हासिल किया। उन्होंने वेलिंगटन के डिफेन्स सर्विसेज स्टाफ कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली। जनरल रावत ने मद्रास विश्वविद्यालय से डिफेंस स्टडीज में एम.फिल और चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से मिलिट्री और मीडिया-सामरिक अध्ययन विषय पर पीएचडी भी की है।

जब दूसरे देश में की सर्जिकल स्ट्राइक

जनरल रावत को सेना के लिए रणनीति बनाने में माहिर माना जाता है। 04 जून 2015 को मणिपुर के चंदेल में नागा विद्रोहियों ने छापामार हमला करके 6 डोगरा रेजिमेंट के 18 भारतीय सैनिकों की हत्या कर दी। सेना ने जब सर्च ऑपरेशन चलाया तो ये विद्रोही म्यांमार में जाकर छुप गए। विद्रोहियों के बढ़ते हौसलों को कुचलने और सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए सख्त कार्रवाई की दरकार थी। तय हुआ कि विद्रोहियों को करारा जवाब दिया जाएगा।

बतौर सेना की तीसरी कोर के प्रमुख ले. जनरल बिपिन रावत ने तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग के सामने नागा विद्रोहियों के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की योजना का विस्तृत खाका रखा। उत्तर-पूर्व में घुसपैठ रोकने के सैन्य अभियानों का खासा अनुभव रखने वाले बिपिन रावत ने स्ट्राइक की प्लानिंग इतने डिटेल में और इतनी सजगता से तैयार की थी कि हमले करने के महज छह दिनों के भीतर, 10 जून, 2015 को, सेना के पैरा कमांडो ने म्यांमार की सीमा में दाखिल होकर करीब 40 मिनट में एक बड़े सफल सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया और सुरक्षित वापस लौट आए। म्यांमार की सीमा के अंदर बने उग्रवादी गुट एनएससीएन-खापलांग के आतंकी कैंप तबाह हो गए। इस कार्रवाई से भारत के दुश्मनों में एक कड़ा संदेश दिया।

फिर पीओके में हुई सर्जिकल स्ट्राइक

म्यांमार ऑपरेशन कई लिहाज से अलग था। कमांडो, सेना की 12 बिहार रेजीमेंट की वर्दी में अपने अभियान पर निकले थे, ताकि उन्हें देखकर यह अंदाजा न लगाया जा सके कि वे किसी रूटीन अभियान पर नहीं बल्कि किसी विशेष अभियान पर निकले हैं। दुश्मनों को चकमा देते हुए अचानक हमले करके चौंका देने की म्यांमार की सर्जिकल स्ट्राइक की रणनीति बहुत सफल रही थी। इस ऑपरेशन की सफलता ने ही साल 2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी में हुए आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक की जमीन तैयार की।

18 सितंबर, 2016 को जम्मू-कश्मीर के उरी में नियंत्रण रेखा के पास पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकियों ने भारतीय सेना के कैंप पर आतंकी हमला किया। 29 सितंबर 2016 को भारतीय सेना ने इसका जवाब देते हुए पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकी शिविरों पर सर्जिकल स्ट्राइक की और कई आतंकियों को मार गिराया। इस कार्रवाई ने भारत को दुनिया में एक बड़ी और निर्णायक कार्रवाई करने वाले देश के तौर पर स्थापित किया। इस कार्रवाई का ब्लूप्रिंट भी जनरल रावत ने ही खींचा था। हालांकि तब वह लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर थे।

उत्तराखंड का गौरव

जनरल बिपिन रावत आर्मी चीफ के पद पर पहुंचने वाले उत्तराखंड के दूसरे अधिकारी हैं। इससे पहले जनरल बिपिन चंद्र जोशी सेना प्रमुख बने थे। जनरल रावत का करियर उपलब्धियों से भरा रहा है।

जनरल बिपिन रावत के करियर के सबसे महत्वपूर्ण पलों में से है चीन की सेना के साथ डोकलाम का गतिरोध। जिस अंदाज में भारतीय सेना 73 दिनों तक चीनी सेना के सामने डटी रही, उसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई कूटनीतिक संदेश दिए। इस गतिरोध में नैतिक रूप से विजय के बाद भारत ने अपने अन्य पड़ोसियों को यह संदेश दिया कि दबाव में आकर अपनी संप्रभुता से समझौता करके चीन से सैनिक और आर्थिक संबंधों के निर्माण की आवश्यकता नहीं है।

जनरल बिपिन रावत को भारतीय सेना की कमान संभाले करीब छह महीने हुए थे। इसी बीच चीन ने आदत के अनुसार एक बार फिर से भारत की उत्तर-पूर्वी सीमा पर धौंस दिखाना शुरू किया। भारतीय सेना को भूटान की अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास डोकलाम पठार पर स्थित एक गांव में चीनी सैनिकों द्वारा सड़क बनाने की सूचना मिली।

भारतीय सैनिक 16 जून 2017 को डोकलाम के उस गांव पहुंचे और चीनियों को सड़क बनाने से रोक दिया। सेना ने चीनियों के बुलडोजर भी जब्त कर लिए। जहां चीन यह दावा कर रहा था कि वह अपने इलाके में सड़क बना रहा था, जबकि भारत का तर्क था कि यह सड़क निर्माण उसके मित्र राष्ट्र भूटान के इलाके में हो रहा था और यह रणनीतिक रूप से भारत के हितों के विरूद्ध है इसलिए भारत को कार्रवाई का पूरा अधिकार है। भारत का मानना था कि इससे चीन, भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैनिकों की तनाती की यथास्थिति को भंग करना चाहता है और भारत इसकी अनुमति नहीं देगा। भारत ने चीन को आगे बढ़कर चुनौती दी थी।

जनरल रावत को पूर्वोत्तर का खासा अनुभव रहा है। उन्होंने संभावित युद्ध की तैयारियां शुरू कर दीं। जिम्मेदारी दोहरी थी। पहली चुनौती थी कि अपनी तरफ से उकसावा न देते हुए सैन्यबलों का मनोबल बनाए रखना। इसके साथ-साथ पूर्वोत्तर के दुरूह मोर्चे पर संभावित युद्ध की स्थिति में रणनीतिक रूप से पर्याप्त तैनाती जिससे कि भारत की तैयारियां भी होती रहें और विश्व पटल पर यह संदेश भी न जाने पाए कि भारत अपनी ओर से युद्ध की स्थितियां खड़ी कर रहा है। दोनों देशों के बीच 16 जून 2017 को शुरू हुआ गतिरोध, कूटनीतिक हस्तक्षेपों से 28 अगस्त 2017 को समाप्त हुआ और चीन को पीछे हटने को मजबूर होना पड़ा।

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